ओडिशा की नई अक्षय ऊर्जा नीति और 10 गीगावाट का लक्ष्य
ओडिशा सरकार ने हाल ही में राज्य में स्वच्छ ऊर्जा में निवेश को आकर्षित करने के लिए एक नई अक्षय ऊर्जा नीति – राज्य अक्षय ऊर्जा नीति 2022 – जारी की है. इस नीति में नए क्षेत्रों जैसे ग्रीन हाइड्रोजन, ग्रीन अमोनिया, फ्लोटिंग सोलर और पवन ऊर्जा पर ध्यान केंद्रित किया गया है.
ओडिशा को भले ही अक्षय ऊर्जा की उच्च क्षमता वाला राज्य नहीं माना जाता हो, लेकिन राज्य सरकार अपनी नई ऊर्जा नीति के साथ इसी तरफ बढ़ती नज़र आ रही है. अपनी नई अक्षय ऊर्जा नीति – राज्य अक्षय ऊर्जा नीति 2022 – के जरिए सरकार स्पष्ट तौर पर राज्य के भीतर स्वच्छ ऊर्जा विकास को प्रोत्साहित करने और उस पर ध्यान केंद्रित करना चाहती है. राज्य सरकार मानती है कि राष्ट्रीय अक्षय ऊर्जा नीतियों ने अक्षय संसाधनों से समृद्ध सिर्फ कुछ राज्यों को फायदा पहुंचाया है.
ओडिशा का लक्ष्य इस अंतर को दूर करना और इस क्षेत्र में निवेशकों को आकर्षित करते हुए राज्य स्तर के हस्तक्षेपों के माध्यम से अपनी अक्षय ऊर्जा क्षमता का दोहन करना है. अक्षय ऊर्जा नीति, 2022 के मुताबिक, राज्य सरकार अन्य लाभों के साथ-साथ शुल्क और अधिभार पर छूट की पेशकश कर रही है और 2030 तक इसका लक्ष्य 10,000 मेगावाट या 10 गीगावाट की अक्षय ऊर्जा क्षमता हासिल करने का है. यह नीति फ्लोटिंग सोलर, विंड एनर्जी के साथ-साथ ग्रीन हाइड्रोजन और ग्रीन अमोनिया जैसे अक्षय ऊर्जा के नए स्रोतों पर भी ध्यान केंद्रित कर रही है.
राज्यों में अक्षय ऊर्जा के प्रसार के लिए केंद्र सरकार की ओर से दी गई छूट पर टिप्पणी करते हुए, एक दिसंबर को जारी की गई ओडिशा की इस नई नीति में कहा गया कि अंतरराज्यीय ट्रांसमिशन सिस्टम (ISTS ) शुल्क पर दी गई राष्ट्रीय छूट ने बाजार में एक असंतुलन पैदा कर दिया है और ओडिशा में अक्षय ऊर्जा (अक्षय ऊर्जा) परियोजनाओं के विकास को भी हतोत्साहित किया है. राज्य नीति दस्तावेज एक नई अक्षय ऊर्जा नीति पर काम करेगा, जो राज्य के अंदर कई अक्षय ऊर्जा तकनीक से जुड़ी, व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य परियोजनाओं के विकास के लिए जमीन तैयार करने में मदद करेगी. इसमें लिखा है, “ओडिशा अग्रणी औद्योगिक राज्यों में से एक है. रिन्यूएबल परचेज ऑब्लिगेशन (आरपीओ) (अक्षय ऊर्जा की खरीदी की बाध्यता) और नेट जीरो प्रतिबद्धताओं के चलते डिस्कॉम (वितरण कंपनियों) और उद्योगों की तरफ से अक्षय ऊर्जा की काफी मांग है.”
नई दिल्ली स्थित थिंक टैंक आई-फारेस्ट (iForest) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) चंद्र भूषण का कहना है कि राज्यों में स्थापित क्षमता के आंकड़ों के मुताबिक, ओडिशा जैसे पूर्वी भारत के अधिकांश कोयला उत्पादक राज्यों की अक्षय ऊर्जा क्षमता में वृद्धि नहीं देखी गई है. इसकी वजह केंद्र सरकार की ओर से इन राज्यों पर कम ध्यान देना है. उनका कहना है कि राष्ट्रीय अक्षय ऊर्जा नीतियों में पूर्वाग्रह के चलते अक्षय ऊर्जा से समृद्ध राज्यों की तुलना में ओडिशा जैसे राज्यों की मदद कम हो पाती है. इनकी अक्षय ऊर्जा क्षमता को अन्य राज्यों की तुलना में कम करके आंका जाता है.
उन्होंने दावा करते हुए कहा, “रुझान बता रहे हैं कि राष्ट्रीय नीतियों ने इंटर-स्टेट चार्जेस और ओपन एक्सेस में छूट के जरिए गुजरात, राजस्थान और कुछ दक्षिणी राज्यों की काफी मदद की है. ये सभी अक्षय ऊर्जा के मामलों में समृद्ध रहे राज्यों में से हैं. जबकि फोकस उन राज्यों पर होना चाहिए जहां अक्षय ऊर्जा ग्रोथ (अक्षय ऊर्जा का विकास) कम रही है. यह गलत धारणा है कि ओडिशा जैसे राज्यों में अक्षय ऊर्जा की कम क्षमता है. क्षमता का विश्लेषण करने में एमएनअक्षय ऊर्जा की तरफ से अपनाई गई पद्धति त्रुटिपूर्ण है. अक्षय ऊर्जा क्षमता के उचित मूल्यांकन की जरूरत है.”
अक्षय ऊर्जा की ओर जाने के लिए ढेर सारे प्रयास
इस महीने की शुरुआत में भुवनेश्वर में मेक इन ओडिशा कॉन्क्लेव का तीसरा संस्करण आयोजित किया गया था. इस दौरान अलग-अलग क्षेत्रों के कई निवेशक इस तटीय राज्य में व्यापार के अवसरों का पता लगाने के लिए इकट्ठा हुए थे. हालांकि ओडिशा को आमतौर पर कोयले और बॉक्साइट के बड़े भंडार के लिए जाना जाता है और राज्य की खनन बेल्ट के आसपास कई एल्यूमीनियम और इस्पात उद्योगों ने अपने पैर जमाए हुए हैं. लेकिन राज्य ने अपनी इस छवि के उलट, इस कार्यक्रम में अपनी अक्षय ऊर्जा नीति का अनावरण किया था.
सभी अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं के लिए सिंगल-विंडो मैकेनिज्म और आसानी से जमीन उपलब्ध कराने के अलावा, राज्य की नीति स्वच्छ ऊर्जा का विकल्प चुनने वालों को कई तरह के आर्थिक लाभ भी मुहैया करा रही है.
नई नीति में प्रस्ताव है कि नोडल एजेंसी राज्य में सभी अक्षय ऊर्जा प्रोजेक्ट के अप्रूवल के लिए सिंगल विंडो सुविधा उपलब्ध कराएगी. इसके अलावा समयबद्ध तरीके से सभी परियोजनाओं का अनुमोदन और आवंटन भी किया जाएगा. एजेंसी एक प्रोजेक्ट स्क्रीनिंग कमेटी (पीएससी) का गठन करेगी. नीति दस्तावेज में कहा गया है कि सभी विभागों, जिला कलेक्टरों और राज्य सरकार की संस्थाओं को समयबद्ध तरीके से पीएससी की तरफ से दिए गए अनुमोदन और निर्णयों का पालन करना होगा.
नीति नई अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं के लिए जमीन की जरूरतों जैसे मामलों से निपटने पर भी काम कर रही है. ओडिशा में अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं को “लैंड बैंक” योजना के तहत उद्योगों को प्राथमिकता के आधार पर जमीन उपलब्ध कराई जाएगी. अब भले ही वह जमीन सरकारी हो या फिर उसका दावेदार कोई निजी जमींदार हो. नीति दस्तावेज़ में कहा गया है कि अगर जमीन को निजी ज़मींदार से खरीदने की जरूरत है, तो कलेक्टर निजी ज़मीन की खरीद/पट्टे पर लेने की सुविधा देंगे. इसके अलावा नीति में डेवलपर्स की ओर से जमींदार को पर्याप्त रूप से मुआवजा देने की बात भी कही गई है. राज्य अक्षय प्रोजेक्ट के लिए अधिग्रहीत जमीन को गैर-कृषि स्थिति में बदलने की भी योजना बना रहा है ताकि डेवलपर्स को स्थानीय भूमि सुधार अधिनियम के अनुसार किसी भी शुल्क का भुगतान करने की जरूरत न पड़े.
इस प्रावधान के बारे में बात करते हुए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के वकील और ओडिशा में भूमि एवं पर्यावरण संबंधी मुद्दों पर काम करने वाले शंकर प्रसाद पाणि का कहना है कि ये भूमि बैंक आमतौर पर सरकारी जमीन होती हैं और अक्सर विवादों के घेरे में फंस रहते हैं, खासतौर पर आदिवासी क्षेत्रों में. यहां सरकार और समुदाय के बीच जमीन को लेकर संघर्ष बना रहता है. अगर इन परियोजनाओं को सही ढंग लागू नहीं किया गया तो यह विरोध अक्षय ऊर्जा प्रोजेक्ट के मामले में भी देखने को मिल सकता है.
आर्थिक मोर्चे पर नीति दस्तावेज अक्षय ऊर्जा उपभोक्ताओं के लिए कैप्टिव उपयोग या ओपन-एक्सेस के तहत 50 पैसे प्रति यूनिट बिजली शुल्क छूट जैसे कई प्रोत्साहनों के बारे में बात करता है. नीति में उन ओपन एक्सेस उपभोक्ताओं के लिए क्रॉस सब्सिडी सरचार्ज में 50% की छूट का भी प्रस्ताव है जो स्वच्छ ऊर्जा का इस्तेमाल करना चाहते हैं. यह कैप्टिव/ओपन-एक्सेस उपभोक्ताओं के लिए व्हीलिंग शुल्क में 25% की छूट देने की भी बात करता है. सरकार ने अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं के लिए भूमि की खरीद और पट्टे पर स्टांप शुल्क में छूट देने का भी निर्णय लिया है.
सरकार ने किसी भी तरह की अक्षय ऊर्जा परियोजना के लिए राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से मंजूरी की छूट का भी प्रस्ताव दिया है. लेकिन इसके लिए जरूरी है कि ये योजनाएं हाइड्रो ऊर्जा, बायोमास और अपशिष्ट-से-ऊर्जा परियोजनाओं की श्रेणी में नहीं आती हों.
नए क्षेत्रों पर ध्यान
ओडिशा ने इससे पहले 2016 में अपनी अक्षय नीति जारी की थी, जिसमें उसने बिजली शुल्क, स्टांप शुल्क और अन्य कई तरह के लाभ देने की पेशकश की थी. हाल में जारी की गई नीति में अब ग्रीन हाइड्रोजन और ग्रीन अमोनिया क्षेत्रों का समर्थन करने के लिए खास प्रावधान जोड़े गए हैं. यह राज्य में पेट्रोकेमिकल, उर्वरक, इस्पात क्षेत्रों की मांगों को पूरा करने और निर्यात की सुविधा के लिए विशेष ग्रीन हाइड्रोजन/ग्रीन अमोनिया हब विकसित करने की भी योजना बना रहा है.
प्राइसवाटरहाउसकूपर्स प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक बिस्वादीप परिदा ने मोंगाबे-इंडिया को बताया, “राज्य चार सक्रिय बंदरगाहों से समृद्ध है. इसमें पारादीप का एक प्रमुख बंदरगाह भी शामिल है. हमें यहां से दुनिया के अन्य देशों में ग्रीन हाइड्रोजन और ग्रीन अमोनिया के आसान निर्यात में मदद मिल सकती है. इस क्षेत्र के विकास के लिए सबसे पहले शुरुआती मांग का होना जरूरी है. ओडिशा जैसे राज्यों में हमारे पास पेट्रोकेमिकल इंडस्ट्री और इस्पात एवं उर्वरक संयंत्र हैं जहां इन उत्पादों का इस्तेमाल किया जा सकता है. जो लोग इसमें निवेश करना चाहते हैं, उन्हें हमारी औद्योगिक नीति संकल्प 2022 और अक्षय ऊर्जा नीति के तहत कई प्रोत्साहनों का लाभ मिलेगा. इस तरह के उत्साहजनक प्रयास ओडिशा को ग्रीन हाइड्रोजन और ग्रीन अमोनिया के हब में बदलने में हमारी मदद कर सकते हैं, जो पूरी दुनिया के लिए भी काफी नई तकनीकें हैं.” परिदा नई अक्षय ऊर्जा नीति निर्माण में ओडिशा सरकार के साथ काम कर चुके हैं.
नई नीति फ्लोटिंग सौर पैनलों पर भी जोर देती है. यह पैनल सौर ऊर्जा का उत्पादन करने के लिए जल निकायों पर स्थापित किए जाते हैं. भारत के कई राज्यों में सौर ऊर्जा के पैनल लगाने के लिए जमीन की कमी एक बडी चुनौती के रूप में सामने आती है. इस समस्या से निपटने के लिए तेलंगाना और असम जैसे राज्यों में फ्लोटिंग सोलर पैनल लगाए गए हैं.
ओडिशा की नई नीति ने प्री-फिजिबिलिटी रिपोर्ट का जिक्र करते हुए बताया कि राज्य में फ्लोटिंग सोलर के जरिए 5,000 मेगावाट सौर ऊर्जा का उत्पादन करने की क्षमता है. सरकार अब अपने नियंत्रण वाले जल निकायों को निजी दिग्गजों या केंद्रीय या फिर राज्य सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों को इस्तेमाल करने देने की योजना बना रही है. ये कंपनियां इन जल निकायों पर अपने फ्लोटिंग सोलर लगा सकती है. सरकार फ्लोटिंग सौर डेवलपर्स के जरिए बनने वाली बिजली को पारस्परिक रूप से सहमत मूल्य पर खरीदने के लिए इसे अपने स्टेट इलेक्ट्रिसिटी यूटिलिटी ‘GRIDCO’ (ओडिशा के ग्रिड कॉर्पोरेशन) के साथ जोड़ने की भी योजना बना रही है.
मेक इन ओडिशा कॉन्क्लेव के दौरान राज्य ने तीन कंपनियों के साथ तीन समझौता ज्ञापनों (एमओयू) पर हस्ताक्षर करने की भी घोषणा की थी. इन कंपनियों की राज्य में विभिन्न हरित ऊर्जा परियोजनाओं में कुल 51,000 करोड़ रुपये का निवेश करने की योजना है. इसमें राज्य में फ्लोटिंग सौर और अन्य अक्षय परियोजनाओं में एनटीपीसी ग्रीन एनर्जी का निवेश भी शामिल है. सतलुज जल विद्युत निगम लिमिटेड एक भारतीय सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम है जो पनबिजली उत्पादन और ट्रांसमिशन में शामिल है. इस कंपनी ने भी कुल 2000 मेगावाट की फ्लोटिंग और लैंड-माउंटेड सौर परियोजनाओं की योजना बनाई है.
हालांकि विशेषज्ञ इस कदम और प्रस्तावित निवेश का स्वागत कर रहे हैं, लेकिन साथ ही वे जमीनी चुनौतियों का हवाला भी देते हैं. उनके मुताबिक ये चुनौतियां राज्य में अक्षय ऊर्जा खासकर फ्लोटिंग सोलर के विकास में बाधा बन सकती हैं. सोलर एनर्जी सोसायटी ऑफ इंडिया (SESI)-ओडिशा चैप्टर के अध्यक्ष चंद्रशेखर मिश्रा कहते हैं, “सौर परियोजनाओं के लिए राज्य में खुली जमीन की कमी है, क्योंकि यहां की लगभग 30% भूमि वन भूमि है. यह एक ऐसा तथ्य है जिसे राज्य सरकार ने भी स्वीकारा है. क्योंकि हमारे पास, विशेष रूप से दक्षिणी ओडिशा में, लगभग 30-40 जलाशय हैं. इसलिए हम फ्लोटिंग सोलर के साथ आगे बढ़ने की योजना पर काम कर रहे हैं. हालांकि जमीन पर लगे सौर ऊर्जा की तुलना में फ्लोटिंग सोलर को अधिक रखरखाव की जरूरत होती है और ऐसे में लागत बढ़ जाती है. अगर ओडिशा का ग्रिड कॉरपोरेशन (जीआरआईडीसीओ) ऐसी फ्लोटिंग सौर परियोजनाओं से उच्च दर पर बिजली खरीदता है तो इसके बाद में एक समस्या पैदा हो सकती है. GRIDCO राज्य सरकार का एक उद्यम है जो बिजली ट्रांसमिशन के कारोबार से जुड़ा है.
नीति में एनर्जी ट्रांजिशन की अवधारणा
ओडिशा के तलचर कोयला क्षेत्रों में भारत के पावर-ग्रेड कोयले का काफी ज्यादा भंडार है. इसके कई जिले जैसे अंगुल, सुंदरगढ़ और संबलपुर कोयला खनन में शामिल हैं. बड़ी संख्या में लोग अपनी आजीविका के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कोयले से जुड़े कामों में लगे हुए हैं.
राज्य की अक्षय ऊर्जा नीति में पहली बार “एनर्जी ट्रांजिशन” की अवधारणा को भी पेश किया गया और ऊर्जा के क्षेत्र में काम कर रहे मजदूरों को अक्षय ऊर्जा तकनीक का प्रशिक्षण देने की बात की गई. दरअसल इसका मकसद राज्य के कोयला खदानों को बदलना है. भारत सरकार की नेट जीरो प्रतिबद्धता को देखते हुए राज्य में कोयला खदानों को चरणबद्ध रूप से बंद करने की संभावना है.
ओडिशा के अंगुल जिले में हाल ही ‘आई-फॉरेस्ट’ ने ऊर्जा के बदलाव के मुद्दे पर एक विस्तृत अध्ययन किया था. इस संस्था के साथ जुड़े चंद्र भूषण ने मोंगाबे-इंडिया को बताया कि यह नीति सैद्धांतिक नहीं है बल्कि भविष्यवादी है. उन्होंने देश में अक्षय ऊर्जा की बढ़ती मांग के लिए अगली पीढ़ी को तैयार करने का रास्ता खोलने के लिए नीति में ऊर्जा परिवर्तन को शामिल करने की भी सराहना की.
ओडिशा अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी (ओआरईडीए) के सेवानिवृत्त अधिकारी अशोक चौधरी फिलहाल एक स्वतंत्र ऊर्जा सलाहकार के तौर पर काम कर रहे हैं. उन्होंने मोंगाबे-इंडिया से कहा कि मौजूदा नीतियां अक्षय ऊर्जा को संवाद की मुख्यधारा में लाने के लिए सरकार की गंभीरता को दर्शाती हैं. इससे राज्य में एक बेहतर हरित ऊर्जा पारिस्थितिकी तंत्र का रास्ता खोलने की संभावना बनी हुई है.
उन्होंने कहा, “नई नीति में सौर पार्कों की अवधारणा और निवेश के लिए काफी सारी छूट देने की बात कही गई है. यह सरकार की सक्रियता को दर्शाती है. यहां तक कि नई औद्योगिक नीति भी कई नए प्रोत्साहन दे रही है. ऐसा लगता है कि सरकार अक्षय ऊर्जा के साथ आगे बढ़ने और इसे मुख्यधारा में लाने की कोशिश कर रही है.”
(यह लेख मुलत: Mongabay पर प्रकाशित हुआ है.)
बैनर तस्वीर: ओडिशा के नुआपाड़ा जिलें के खोलीभीतर गाँव में लगा एक विकेंद्रीकित सौर ऊर्जा का एक प्लांट. तस्वीर - मनीष कुमार/मोंगाबे