पर्यावरण के अनुकूल और बायोडिग्रेडेबल सैनिटरी पैड बनाकर उन्हें मुफ्त में बांटती है ये महिला
हाल ही में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने 'मन की बात' कार्यक्रम में सिंगल-यूज प्लास्टिक प्रोडक्ट्स को खत्म करने की आवश्यकता को संबोधित किया था। उन्होंने इस पर जोर इसलिए भी दिया था क्योंकि ये प्लास्टिक अंत में हमारी नदियों और लैंडफिल में जाती है जिससे पर्यावरण को बेहद गंभीर नुकसान होता है। तब से, सरकार ने सिंगल-यूज प्लास्टिक प्रोडक्ट्स पर एक व्यापक प्रतिबंध लागू करके एक बड़ा कदम उठाने पर विचार किया है, और 2022 तक इस प्लास्टिक को खत्म करने का लक्ष्य रखा है।
सरकार के अलावा, विभिन्न गैर-सरकारी संगठन और व्यक्ति प्लास्टिक-आधारित उत्पादों का स्थायी वैकल्पिक समाधान प्रदान करने के लिए सक्रिय प्रयास कर रहे हैं। पंजाब के लुधियाना की एक सामाजिक कार्यकर्ता परम सैनी नि: शुल्क पर्यावरण के अनुकूल बायोडिग्रेडेबल सैनिटरी पैड प्रदान कर रही हैं।
लुधियाना में कृष्णा नगर में एक आवासीय भवन की ऊपरी मंजिल पर स्थित एक छोटी वर्कशॉप है जिसमें तीन कार्यकर्ता, राजिंदर कौर (52), शिखा (28), और मदन पाल वर्मा (52) काम करते हैं। परम सैनी के नेतृत्व में यह समूह, प्रति माह 20,000 सैनिटरी नैपकिन का उत्पादन करता है। ये सैनिटरी पैड लकड़ी की लुगदी, कपास और जैविक फाइबर से बने होते हैं, और प्रत्येक पैड को एक नोट के साथ भेजा जाता है जिसमें लिखा होता है, गिफ्ट फॉर चेंज - गर्ल्स इन फ्रीडम ट्रेल।
इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए, परम ने कहा,
“हम वर्तमान में रोटरी क्लब के कार्यकर्ताओं के माध्यम से लुधियाना, कपूरथला, जालंधर और यहां तक कि हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में कुछ स्कूलों में लड़कियों को नैपकिन की सप्लाई कर रहे हैं। इसके अलावा, हम इन्हें मलिन बस्तियों और महिलाओं की जेलों में वितरित करते हैं। महिलाओं ने हमें बताया कि कैसे ये नैपकिन उनके जीवन को बदल रहे हैं क्योंकि उन्होंने पहले कभी इसका इस्तेमाल नहीं किया था। उन्होंने इससे पहले कपड़े का इस्तेमाल किया था जिससे चकत्ते और संक्रमण हो जाता था। हम मासिक धर्म स्वच्छता पर लड़कियों को शिक्षित करने के लिए स्त्री रोग विशेषज्ञों को स्कूलों में ले जा रहे हैं।”
वेंचर शुरू करने के लिए, परम ने पैडमैन ऑफ इंडिया यानी अरुणाचलम मुरुगनांथम से 3.40 लाख रुपये में मशीनरी खरीदी, वहीं सेटअप लगाने के लिए स्वतंत्रता सेनानी, भगत सिंह के भतीजे प्रोफेसर जगमोहन सिंह ने उन्हें फ्री में जगह दी। जब नवंबर 2018 में उद्यम शुरू हुआ, तो रोटरी क्लब की लुधियाना इकाई ने मशीनरी खरीदने में परम को सपोर्ट किया।
अब, परम को केवल तीन-इकाइयों में अपने श्रमिकों के वेतन का भुगतान करना होता है, जो उन्हें मिलने वाले दान से हो जाता है। इंडियन वूमन ब्लॉग की रिपोर्ट अगर पर्याप्त पैसा नहीं होता है, तो परम मजदूरों को अपनी जेब से भुगतान करती हैं।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, अपने निजी अनुभव को साझा करते हुए, राजिंदर ने कहा,
“लड़कियों को पता होना चाहिए कि स्वास्थ्य के लिए सैनिटरी नैपकिन का उपयोग करना कितना महत्वपूर्ण है। मुझे व्यक्तिगत रूप से बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ा। कपड़े का उपयोग करती थी वो भी छुपा-छुपा के। हमें कभी भी नैपकिन तक पहुंच नहीं मिली और हमेशा संक्रमण का खतरा बना रहा। यहां तक कि अब मेरा 28 वर्षीय बेटा भी इस बात की सराहना करता है कि मैं यहां काम करती हूं और जब भी वह फ्री होता है, काम में मेरी मदद करता है।"