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कैसे भारत की पहली स्वदेशी वैक्सीन तैयार करने के लिए NIV लैब से भारत बायोटेक तक पहुंचा COVID-19 वायरस स्ट्रेन? जानें 'वैक्सीन लेडी' सुचित्रा एला से

योरस्टोरी के 'वूमन ऑन मिशन' समिट में, भारत बायोटेक की सह-संस्थापक और संयुक्त प्रबंध निदेशक, सुचित्रा एला ने भारत की घरेलू COVID-19 वैक्सीन, COVAXIN विकसित करने के लिए अपने अथक प्रयासों को याद किया।

कैसे भारत की पहली स्वदेशी वैक्सीन तैयार करने के लिए NIV लैब से भारत बायोटेक तक पहुंचा COVID-19 वायरस स्ट्रेन? जानें 'वैक्सीन लेडी' सुचित्रा एला से

Thursday March 17, 2022 , 5 min Read

COVID-19 महामारी ने दुनिया को मौत, निराशा और गमों के कुछ सबसे परेशान करने वाले दृश्य और कहानियों से सामना कराया।

हालांकि, जैसे-जैसे दुनिया इस नई हकीकत को अपनाने लगी, वैसे ही बदलाव और नवीनीकरण की कहानियों ने भी आशा की एक नई कहानी लिखी। मानवता के पुनर्निर्माण की इस कहानी को ताकत प्रदान करने वाले टीके हैं, जो घातक वायरस के खिलाफ युद्ध छेड़ रहे हैं।

Suchitra Ella

सुचित्रा एला

11-12 मार्च को आयोजित योरस्टोरी के 'वूमन ऑन मिशन' समिट ने Bharat Biotech की सह-संस्थापक और संयुक्त प्रबंध निदेशक सुचित्रा एला की मेजबानी की। सुचित्रा ने भारत बायोटेक को अपने पति डॉ कृष्णा एला के साथ 1996 में शुरू किया था। कंपनी ने कोरोना के खिलाफ भारत का पहला देसी वैक्सीन, COVAXIN डेवलप किया है। सुचित्रा भारत के वैक्सीन मिशन की अग्रणी आवाजों में से एक रही हैं।

इन वर्षों में, भारत बायोटेक ने विश्व स्तर पर हेपेटाइटिस बी, इन्फ्लूएंजा एच1एन1, रोटावायरस, जापानी इंसेफेलाइटिस, रेबीज, चिकनगुनिया, जीका, और टाइफाइड के लिए दुनिया का पहला टेटनस-टॉक्सोइड संयुग्मित टीके वितरित किए हैं।

भारत की 'वैक्सीन लेडी' ने एक विशेष बातचीत में, एक बेहद ही रोचक किस्सा बताया कि कैसे COVID-19 स्ट्रेन पुणे में इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी लैब से जीनोम वैली, हैदराबाद में भारत बायोटेक की फैसिलिटी तक पहुंचा।

जब महामारी आई, तो सुचित्रा ने कहा, भ्रम की स्थिति पैदा हो गई थी।

वह कहती हैं, “अकादमिक दुनिया, वैज्ञानिक दुनिया, बायोटेक, जीवन विज्ञान क्षेत्र, नीति निर्माता, सरकार और निश्चित रूप से बड़े पैमाने पर जनता भ्रमित थी। उस समय पश्चिमी दुनिया में COVID-19 वायरस के भयानक दुष्प्रभाव सामने आ रहे थे।”

मार्च-अप्रैल 2020 में, भारत में रिकॉम्बिनेंट टेक्नोलॉजी के संदर्भ में वैक्सीन की तैयारी मौजूद नहीं थी।

वे कहती हैं, "हमें बस एक टाइम-टेस्टेड वैक्सीन डेवलपमेंट प्रोसेस में कूदना पड़ा, जो कि 70 साल से अधिक पुरानी और टीकों को विकसित करने की क्लासिक विधि है।"

सुचित्रा ने इस प्रक्रिया को सरल शब्दों में समझाया।

उन्होंने कहा, “जिस संभावित वैक्सीन को हम बनाने की उम्मीद कर रहे थे, उसे पोलियो वैक्सीन के समान होनी चाहिए जिस तरह से इसे विकसित किया गया था। यह (पोलियो) एक सुरक्षित टीका है क्योंकि इसे दशकों से दुनिया भर में सार्वजनिक स्वास्थ्य में तैनात किया गया है। हमने उस समय रिकॉम्बिनेंट टेक्नोलॉजी या अन्य प्लेटफार्मों को देखकर नई प्रोसेस को सुदृढ़ करने के बजाय इस तरह से प्रयास करने में सहज महसूस किया क्योंकि हमारे पास समय नहीं था।”

वे कहती हैं, "हमारे पास एक नई दिशा में रिसर्च शुरू करने का समय नहीं था, और हमारी पूर्व विशेषज्ञता के कारण हम समझ गए थे कि एक अच्छा और सुरक्षित टीका विकसित करने के लिए, हमें जिस कच्चे माल की आवश्यकता थी, वह वायरस के सोर्स कोड के अलावा और कुछ नहीं था।"

एक निजी बायोटेक कंपनी के रूप में, भारत बायोटेक के पास इसकी पहुंच नहीं थी। उन्होंने इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) को पत्र लिखा, और उनसे SARS COV 2 वायरस एंटीजन के नमूने उपलब्ध कराने का अनुरोध किया, जो उस समय नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी, पुणे में आइसोलेटेड थे, जिनका कि वह संस्थान वायरोलॉजी के क्षेत्र में व्यापक शोध के लिए इस्तेमाल करता है।

एक घातक वायरस का ट्रांसपोर्टेशन

एनआईवी ने अनुरोध स्वीकार कर लिया, लेकिन पुणे से हैदराबाद तक वायरस को ले जाने की यात्रा कई चुनौतियों से भरी थी।

देश में लॉकडाउन था, कोई फ्लाइट नहीं थीं और मटेरियल के ट्रांसपोर्टेशन का एकमात्र तरीका सड़क मार्ग था। यह भी जरूरी था कि वे किसी थर्ड पार्टी के ड्राइवर या लॉजिस्टिक सर्विस प्रोवाइडर द्वारा इस तरह के मटेरियल को भेजने का जोखिम नहीं उठा सकते थे।

वे कहती हैं, “हमारी अपनी टीम आगे आई, और उन्होंने एक-दो वाहनों में यात्रा की। हमें पुणे में प्रवेश करने के लिए तेलंगाना, कर्नाटक और महाराष्ट्र राज्य की सीमाओं को पार करने की अनुमति की आवश्यकता थी। हमें वह सब मिल गया, और हमारी टीम ने अपनी कारों में भोजन, पानी, कॉफी और चाय पैक की।”

पुणे पहुंचने के बाद टीम रात भर रुकी, सही तापमान और सावधानियों पर इसे संभालने के संदर्भ में प्रासंगिक जानकारी के साथ नमूने एकत्र किए।

वे बताती हैं, “इसकी अच्छी बात यह है कि हमारी अपनी टीम स्वेच्छा से नमूना एकत्र करती है, यात्रा और अन्य मुद्दों के मामले में अपनी सुरक्षा और जीवन को खतरे में डालती है। वे इसे दो दिनों के अंतराल में सफलतापूर्वक हैदराबाद ले आए। हमें यह सुनिश्चित करना था कि इस वायरस मटेरियल को तुरंत उस फैसिलिटी में ले जाया जाए, जो अत्यधिक संक्रामक और तेज फैलने वाले वायरस को हैंडल करने के लिए तैयार थी। ये फैसिलिटी थी एक जैव-सुरक्षित लेवल 3 प्लस फैसिलिटी जो इंजेक्शन योग्य पोलियो टीका बनाने के लिए पहले से ही मौजूद थी।"

सुचित्रा ने कहा कि वे भाग्यशाली रहे हैं कि सभी काम सही सलामत हो गया।

लगभग एक महीने के समय में, कंपनी के पास चौबीसों घंटे बायोप्रोसेस टीम की लगभग 40 से 50 टीमें थीं, जिनमें से कुछ कम से कम तीन महीने से घर नहीं जा रही थीं। उनमें से कुछ को कैंपस के बहुत करीब रखा गया था ताकि जब भी कोई आपातकाल या अत्यावश्यक काम हो तो कैंपस में आ सकें।

और बाकी जैसाकि लोग कहते हैं, इतिहास है। समय के खिलाफ दौड़ के परिणाम सामने आए। भारत बायोटेक द्वारा भारत का स्वदेशी COVID -19 वैक्सीन, COVAXIN®, ICMR - नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (NIV) के सहयोग से विकसित किया गया, जिसे 2021 में लॉन्च किया गया था और यह भारत के टीकाकरण अभियान का हिस्सा बन गया, जो दुनिया में सबसे बड़ा अभियान है।

(संहति बनर्जी द्वारा अतिरिक्त रिसर्च के साथ)


Edited by Ranjana Tripathi