लड़कों को प्रेम करना सिखाती है ‘लाल सिंह चड्ढा’
हिंदी सिनेमा के लार्जर देन लाइफ महान नायकों ने स्त्रियों को कभी बराबर का मनुष्य ही नहीं माना. उन्हें सचमुच में प्रेम करना तो बहुत दूर की बात है.
हिंदी फिल्मों का वो हीरो कैसा है, जिस पर महिलाएं जान छिड़कती हैं. 60 के दशक में देव आनंद हुआ करते थे. फिल्म ‘गाइड’ का राजू, जो रोजी को बिना प्यार और बिना सम्मान वाली शादी को तोड़कर आजाद होने की राह दिखाता है. देव आनंद ये तब कर रहे थे, जब राज कपूर और राजेंद्र कुमार जैसे हिंदी फिल्मों के नायक कभी लड़की को पाने के लिए आपस में लड़ मरते तो कभी दोस्ती के लिए मुहब्बत कुर्बान कर महान हो जाते. लेकिन एक ही नायिका से प्रेम कर रहे दो नायकों ने कभी ये जानने की जहमत भी नहीं उठाई कि लड़की आखिर किससे प्यार करती है. लड़की की मर्जी के वहां कोई मायने नहीं थे. उसकी नियति यही थी कि वो दो महान मर्दों की कभी दुश्मनी तो कभी दोस्ती की वेदी पर कुर्बान हो जाए.
फिर शाहरुख खान का जमाना आया और स्त्रियां शाहरुख पर जान छिड़कने लगीं. प्यार और रोमांस का प्रतीक, अपनी दोनों बांहें फैलाकर दुनिया की सब प्रेमिकाओं को अपने आगोश में समा लेने वाला हिंदी सिनेमा का सबसे ज्यादा चाहा गया नायक. लेकिन सचमुच में वो नायक कैसा था? वो डर फिल्म का स्टॉकर था, जिसके लिए लड़की की हां या ना का कोई मायने नहीं था. वो लड़की पर शक करने वाला, उस पर अधिकार जमाने वाला, जिद्दी, अहंकारी, पजेसिव और कंट्रोलिंग हीरो था, जो अपने प्यार को पाने के लिए पागलपन की किसी भी हद तक जा सकता था. जिस आदमी की जगह मेंटल हॉस्पिटल का साइकिएट्रिक वॉर्ड होनी थी, वह हिंदी जनमानस का लार्जर देन लाइफ लवर बॉय बन गया.
हिंदी फिल्मों के तमाम शक्की, अहंकारी, हिंसक, पजेसिव, कंट्रोलिंग और स्टॉकर हीरो की चरम परिणति थी कबीर सिंह. पिछले एक दशक में हिंदी फिल्मों का सबसे ज्यादा चाहा गया नायक. लड़की को अपनी पर्सनल प्रॉपर्टी समझने वाला, उसे थप्पड़ मारने वाला और ये सब करके खुद को महान समझने वाला.
ये सब हिंदी सिनेमा के आदर्श हीरो हैं. कबीर सिंह को देखकर सिनेमा हॉल में लड़कों ने सीटियां बजाईं तो लड़कियों ने भी कुछ कम आहें नहीं भरीं. लड़कियां भी उनको माल और निजी संपत्ति समझकर कंट्रोल करने वाले लड़कों पर जान छिड़कने लगती हैं. जिसे लड़कियां मुहब्बत समझती हैं, मनोविज्ञान की भाषा में उसे ट्रॉमा बॉन्डिंग कहते हैं.
फिलहाल हिंदी सिनेमा के नायकों के इन तमाम नमूनों के बाद एक और हीरो हमारे सामने है- फिल्म ‘लाल सिंह चड्ढा’ का लाल. ये फिल्म 1994 में आई टॉम हैंक्स की फिल्म ‘फॉरेस्ट गंप’ का हिंदी रीमेक है, जिसे उस जमाने में छह एकेडमी अवॉर्ड से नवाजा गया था.
फिलहाल बात हो रही थी हिंदी सिनेमा के चाहे गए नायकों की. जिन फिल्मी नायकों को फिल्मी नायिकाओं की मुहब्बत मिली, जिन पर असल जिंदगी की लड़कियों ने जान छिड़की, जिनकी दीवानी हुईं, उनके उलट फिल्म ‘लाल सिंह चड्ढा’ का लाल कैसा है, जिस पर कोई लड़की, कोई स्त्री न्यौछावर नहीं हो रही.
इस लेख के अगले 10 पॉइंट सिर्फ लाल सिंह का कैरेक्टर स्केच हैं. अब ये तय करना लड़कियों का काम है कि लाल उनके प्रेम के लायक है या नहीं.
1. लाल सिंह बुद्धिमत्ता, चतुराई, स्मार्टनेस और सफलता, किसी भी चीज के दुनियावी पैमानों पर खरा उतरने वाला नहीं है. औसत बुद्धि का लड़का है, लेकिन उसका दिल सही जगह पर है.
2. बचपन में अपने क्लास की जिस लड़की रूपा को वो अपना सबसे अच्छा दोस्त मानता है, खुद हीरो बनकर उसे हर जगह नहीं बचाता फिरता, बल्कि खुद ही उस लड़की से अभिभूत रहता है. उसे लगता है कि वो सचमुच जादू जानती है, जो हवाई जहाज को पकड़कर अपनी जेब में रख सकती है.
3. जहां कक्षा के बाकी लड़के लड़कियों का मजाक उड़ाते हैं, उनकी चोटी खींचते हैं, तंग करते हैं, आपस में लड़ते हैं, दूसरे कमजोर बच्चों को परेशान करते हैं, लाल सिंह उन उग्र बच्चों के बीच बड़ा सीधा, बड़ा डरपोक सा नजर आता है. वो इतना कमजोर है कि किसी को बचा भी नहीं सकता. खुद ही डरकर अपनी जान बचाता फिरता है, लेकिन बात अगर रूपा की हो तो वो आव देखता है न ताव, बस जान हथेली में लेकर कूद पड़ता है.
4. लाल सिंह दुनियावी अर्थों में स्मार्ट नहीं था, लेकिन बहुत सारी दुनियावी सफलताएं भी उसके हिस्से में आती हैं. रूपा से कहीं ज्यादा, लेकिन फिर भी उसे हमेशा लगता है कि रूपा उससे ज्यादा समझदार, ज्यादा बुद्धिमान और ज्यादा काबिल है. लाल सिंह के दिल में रूपा के लिए जितना प्यार है, उससे कहीं ज्यादा सम्मान है. वो हमेशा कहता है, “तुम मुझे कितना कुछ बताती हो, कितना समझाती हो.” जहां एक ओर अमूमन लड़के सिर्फ लड़कियों को सिखाने और ज्ञान देने के अहंकार में डूबे रहते हैं, लाल सिंह हमेशा बड़ी विनम्रता, जिज्ञासा और सम्मान के साथ रूपा की बातें सुनता है.
5. लाल सिंह रूपा से प्रेम करता है, लेकिन रूपा को और लोगों से प्रेम करता देख न पजेसिव होता है, न नाराज. कई बार पूछता है- “मुझसे ब्याह करोगी” और वो मना कर देती है. हर बार उसका दिल जरूर टूटता है, लेकिन उसकी मुहब्बत कम नहीं होती.
वो ऐसा प्रेमी नहीं है, जिसकी कहानियां हम फिल्मों से लेकर समाज तक में हर दिन देखते हैं. प्रेमिका के इनकार करने पर प्रेमी ने उसका एमएमएस बनाया, प्रेमी ने एसिड फेंका, प्रेमी ने जान से मार दिया. वो कबीर सिंह नहीं है. वो “पत्थर के सनम तुझे हमने मुहब्बत का खुदा जाना” गाने वाला हिंदी फिल्मों का हीरो भी नहीं है. वो सादगी, सरलता और मनुष्यता की ओस में भीगी वो हरी घास है, जिस पर पैर भी पड़ जाए तो वो चुभती नहीं. आंखों को सुख और मन को सुकून ही देती है.
6. लाल सिंह जितनी बार अपनी मां का जिक्र करता है, वो उसकी ममता, त्याग, बलिदान की बात नहीं करता. वो उसके साहस की, हिम्मत की, बुद्धिमत्ता की बात करता है. मां सबकुछ कर सकती है. मां को किसी से डर नहीं लगता.
7. फिल्म के आखिरी दृश्य में जब रूपा की कब्र के सामने बैठा लाल सिंह उससे बातें कर रहा है तो कहता है, “तुम होती तो मुझे कितना कुछ समझाती.” ये एक वाक्य उसके पूरे व्यक्तित्व का सार है.
8. लाल सिंह का प्रेम ओस की तरह नाजुक है, फूल की तरह सुंदर. वो एक ऐसा लड़का है, जो तुम्हें हमेशा प्यार करेगा. तुम उसे प्यार करो या न करो. वो हमेशा हर तकलीफ, हर मुश्किल, हर संकट में साथ रहेगा, तुम रहो न रहो. वो तुमसे एक भी सवाल नहीं पूछेगा, सफाइयां नहीं मांगेगा, जवाब-तलब नहीं करेगा, हिसाब नहीं लेगा, बस तुम्हें प्यार करेगा. तुम्हारा सम्मान करेगा- तुम्हारे व्यक्तित्व का, जीवन का, फैसलों का.
वो तुम्हारे साथ ऐसे होगा, जैसे एक मनुष्य को दूसरे मनुष्य के साथ होना चाहिए.
9. बात सिर्फ प्यार की है ही नहीं. सच तो ये है कि हिंदी सिनेमा के लार्जर देन लाइफ महान नायकों ने स्त्रियों को कभी बराबर का मनुष्य ही नहीं माना. उन्हें सचमुच में प्रेम करना तो बहुत दूर की बात है.
10. औसत बुद्धि के लाल सिंह को पता है कि प्यार करना असल में सिर्फ अच्छा मनुष्य होना है. वैसे पता नहीं कि वो ऐसा इसलिए है क्योंकि उसे ये बात पता है. वो बस ऐसा ही है. सारी परिभाषाओं, नियमों, अर्थों से परे.