विश्व बालश्रम दिवस पर विशेष: कोरोना महामारी के कारण बालश्रम और बच्चों की तस्करी की समस्या बढने की आशंका
नयी दिल्ली, बारह बरस का राहुल किराने की एक दुकान पर काम करता है और तेरह बरस की हर्षिनी गुंटूर में मिर्ची के खेत में दिहाड़ी मजदूरी करती रही है। ये बच्चे स्कूल में दाखिला लेकर बेहतर भविष्य के सपने संजो ही रहे थे कि कोरोना वायरस महामारी ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया।
दिल्ली के मयूर विहार इलाके में किराने की दुकान से लोगों के घरों तक सामान पहुंचाने के बदले में दो हजार रुपये महीना पाने वाले राहुल ने कहा,
‘‘स्कूल बंद है और पता नहीं कब खुलेंगे। पापा रिक्शा चलाते हैं और उनका भी काम बंद पड़ा है। ऐसे में मुझे नहीं लगता कि अब काम छोड़कर स्कूल जा सकूंगा।’’
यह हाल इन दोनों का ही नहीं, कोरोना काल में देश के अधिकांश बाल मजदूरों का है। 12 जून को विश्व बालश्रम दिवस से पहले ऐसी आशंकायें हैं कि मौजूदा दौर में आर्थिक परेशानियों को झेलने में अक्षम परिवार फिर बच्चों को बाल श्रम की गर्त में धकेल सकते हैं। बच्चों की तस्करी करने वाले भी सक्रिय हो गए हैं जिस पर उच्चतम न्यायालय ने केंद्र से जवाब भी मांगा है।
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने 2002 से विश्व बालश्रम दिवस मनाना शुरू किया जिसमें इस समस्या को खत्म करने के लिये हो रहे प्रयासों पर विश्व स्तर पर बात की जाती है।
हर्षिनी ने गुंटूर से भाषा से कहा,
‘‘मिर्ची के खेत में काम करना आसान नहीं था। मेरी आंखें जलती थी और आंसू बहते रहते थे। मेरी त्वचा पर दाग पड़ गए थे और मुझे रातों को नींद नहीं आती थी।’’
उसकी मां भाग्य लक्ष्मी ने बताया कि मिर्ची की खेती के मौसम (जनवरी से अप्रैल और मई से सितंबर) में उनका पूरा परिवार खेत में दिहाड़ी मजदूरी करके 300 से 500 रुपये रोज कमाता था और उनका ध्यान कभी बच्चों को पढाने पर गया ही नहीं।
बाद में उन्होंने हर्षिनी को स्कूल में डाला लेकिन अब कोरोना महामारी के कारण स्कूल बंद है और ऑनलाइन क्लास लेने की सुविधा उनके पास नहीं है।
बच्चों के लिये काम कर रहे संगठनों ने आशंका जताई है कि लॉकडाउन और प्रवासी मजदूरों की समस्या के बाद बाल श्रम भी विकराल रूप ले सकता है। पहले लॉकडाउन में ही बच्चों की हेल्पलाइन पर तीन लाख कॉल आये और आठ प्रतिशत बाल श्रम संबंधी थे।
गैर सरकारी संगठन ‘सेव द चिल्ड्रन’ के उप निदेशक (बाल संरक्षण) प्रभात कुमार ने भाषा से कहा,
‘‘पिछले तीन चार दशक से हमने बाल श्रम को खत्म करने के लिये काफी उपाय किये और 2001 से 2011 की जनगणना में बाल श्रम के आंकड़ों में 20 फीसदी कमी आई। लेकिन अगर इस समय इसके लिये कोई ठोस उपाय नहीं किये गए तो इस सारी मेहनत पर पानी फिर जायेगा।’’
वहीं राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो ने कहा,
‘‘हम राज्य सरकारों के संपर्क में हैं और इस दिशा में प्रयास कर रहे हैं। इसके लिये पंचायतों या ग्रामीण बाल कल्याण समितियों को अधिक सक्रिय होना होगा।’’
कुमार ने कहा,
‘‘यह भी आशंका है कि अब ये बच्चे दोबारा स्कूल भी ना लौटें और इन्हें आर्थिक अड़चनों से जूझ रहे इनके परिवार मजदूरी की ओर धकेल दें। उम्रदराज लोगों में कोरोना वायरस संक्रमण का जोखिम अधिक होने से अब बच्चों को दोबारा शहरों में काम के लिये भेजने की आशंका भी बढ़ी है।’’
उल्लेखनीय है कि भारत में खरीफ की फसल का मौसम शुरू होने वाला है और देश में 62 प्रतिशत बाल मजदूर इसी सेक्टर में हैं।
कानूनगो ने कहा,
‘‘खेती में तो बाल मजदूरी है ही लेकिन इसके अलावा भी कई सेक्टर ऐसे हैं जिनमें बच्चों को ही लगाया जा रहा है। हमें उन क्षेत्रों की पहचान करके कड़ी सतर्कता बरतनी होगी।’’
उन्होंने कहा,
‘‘जुवेनाइल जस्टिस एक्ट की धारा 45 में 2000 रुपये प्रतिमाह प्रायोजन का प्रावधान है लेकिन उत्तर और मध्य भारत में यह लगभग बंद ही है। इसके अलावा संस्थागत प्रायोजन के चलन पर भी रोक लगानी जरूरी है।’’
उन्होंने कहा,
‘‘हमने बच्चों के अवैध व्यापार और बाल श्रम पर रोक लगाने के लिये राज्यों से बात की है और अगले सप्ताह उन्हें योजना का मसौदा भी भेजेंगे। बाल श्रम से बचाव के लिये परिवारों को रोजगार सुनिश्चित कराना भी जरूरी है।’’
2011 की जनगणना के अनुसार भारत में पांच से 14 वर्ष की उम्र के एक करोड़ से अधिक बाल श्रमिक हैं और पांच से 18 वर्ष की उम्र के 11 में से एक बच्चा काम कर रहा है।
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के 2016 के आंकड़ों के अनुसार दुनिया में पांच से 17 वर्ष के 15 करोड़ 20 लाख से अधिक बच्चे काम करते हैं और इनमें से दो करोड़ 38 लाख भारत में हैं।
Edited by रविकांत पारीक