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लाजपत राय के सिर पर पड़ी हरेक लाठी अंग्रेजी सरकार के ताबूत की कील बनी, मौत के 20 साल बाद मिली आजादी

आज ही के दिन भगत सिंह और राजगुरु ने पुलिस अधीक्षक जॉन सॉन्डर्स की गोली मारकर हत्या कर दी थी.

लाजपत राय के सिर पर पड़ी हरेक लाठी अंग्रेजी सरकार के ताबूत की कील बनी, मौत के 20 साल बाद मिली आजादी

Saturday December 17, 2022 , 6 min Read

95 साल पहले 17 दिसंबर, 1927 को दो क्रांतिकारियों भगत सिंह और शिवराम राजगुरु ने सहायक पुलिस अधीक्षक जॉन सॉन्डर्स की गोली मारकर हत्या कर दी थी. लाला लाजपत राय की मृत्‍यु का बदला लेने के लिए की गई इस कार्रवाई में सुखदेव थापर और चंद्रशेखर आजाद ने उनकी मदद की थी.

 

हालांकि सॉन्‍डर्स की मौत गलती से हुई थी क्‍योंकि राजगुरु पुलिस वाले को ठीक से पहचान नहीं पाए. निशाने पर तो पुलिस अधीक्षक जेम्स स्कॉट था, जिसने साइमन कमीशन का विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज करने का आदेश दिया था. इसी लाठीचार्ज में लाला लाजपत राय की मौत हो गई थी.

बाद में इस हत्‍या और असेंबली में बम फेंकने के आरोप में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को अंग्रेज सरकार ने फांसी दी थी.   

क्‍या था साइमन कमीशन  

8 नवम्बर, 1927 में भारत में राजनीतिक और संवैधानिक सुधारों के मकसद से अंग्रेज सरकार ने एक कमीशन का गठन किया, जिसका नाम था साइमन कमीशन. इसके अध्‍यक्ष थे सर जोर साइमन. इस कमीशन में 7 ब्रिटिश सांसद थे. कमीशन का मकसद था मॉन्‍टेंग्‍यू चेम्‍सफोर्ड सुधारों की जांच करना. 

मोंटेग्‍यू-चेम्सफोर्ड सुधार या इतिहास में जिसे शॉर्ट में मोंट-फोर्ड सुधार के नाम से जाना गया, भारत में ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रस्‍तावित सुधार थे, जो भारत को स्वराज्य संस्थान का दर्जा देने के लिए पेश किये गए थे. पहले विश्व युद्ध के दौरान भारत के राज्य सचिव रहे एडविन सेमुअल मोंटेगू और भारत के वायसराय लॉर्ड चेम्सफोर्ड के नाम इसका नाम मोंटेग्‍यू-चेम्सफोर्ड सुधार पड़ा.

3 फरवरी, 1928 को साइमन कमीशन भारत आया. भारतीय इस कमीशन का विरोध कर रहे थे क्‍योंकि भारतीय राजनीतिक और संवैधानिक सुधारों के नाम पर बनाए गए इस कमीशन में एक भी भारतीय सदस्‍य नहीं था. कांग्रेस के साथ-साथ मुस्लिम लीग भी इसका विरोध कर रही थी.  

साइमन कमीशन ने भारत की ब्रिटिश सरकार को जो सुझाव सौंपे, वो इस प्रकार थे- 

1. भारत में एक संघ की स्थापना हो, जिसमें ब्रिटिश भारतीय प्रांत और देशी रियासतें शामिल हों.

2. केन्द्र में उत्तरदायी शासन की व्यवस्था हो.

3. वायसराय और प्रांतीय गवर्नर को अतिरिक्‍त पॉवर दी जाए.

4. एक लचीले संविधान का निर्माण हो.

साइमन कमीशन का विरोध

साइमन कमीशन को लेकर भारत की आजादी की लड़ाई में शामिल सभी तबकों और समूहों में घोर असंतोष की भावना था. कांग्रेस, मुस्लिम लीग और स्‍वतंत्र क्रांतिकारी, सभी इसका विरोध कर रहे थे. 

17th december 1927 british police officer john saunders was killed by bhagat singh and rajguru

चौरी-चौरा की घटना के बाद महात्‍मा गांधी ने असहयोग आंदोलन भी वापस ले लिया था. इस कारण से भी चारों ओर काफी असंतोष का माहौल था.  

1927 में मद्रास में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ. वहां सर्वसम्मति से यह फैसला लिया गया कि सभी एकजुट होकर साइमन कमीशन का बहिष्कार करेंगे. गांधी, नेहरू, पटेल, मौलाना आजाद वगैरह सभी इस फैसले में शामिल थे. मुस्लिम लीग ने भी बहिष्कार का निर्णय लिया.

लखनऊ में जवाहरलाल नेहरू पर लाठीचार्ज

3 फरवरी को कमीशन भारत पहुंचा था. वहां से उसे कोलकाता, लाहौर लखनऊ, विजयवाड़ा और पुणे समेत कई शहरों में जाना था. जहां-जहां भी यह कमीशन गया, बड़ी संख्‍या में लोगों ने एकजुट होकर उसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया. पूरे देश में “साइमन गो बैक” के नारे लगे और उसे काले झंडे दिखाए गए.  

पंडित जवाहर लाल नेहरू उस भीड़ में शामिल थे, जो लखनऊ में कमीशन का विरोध कर रही थी. भीड़ पर हुए लाठीचार्ज में नेहरू भी घायल हो गए और गोविंद वल्लभ पंत हमेशा के लिए अपंग हो गए.

लाहौर का वो वाकया

यह 30 अक्टूबर, 1928 का लाहौर का वाकया है. साइमन कमीशन लाहौर पहुंचा था. वहां बहुत सारे युवा और क्रांतिकारी लाला लाजपत राय के नेतृत्व में साइमन कमीशन का विरोध कर रहे रहे थे.

अपनी भारी पुलिस फोर्स के साथ लॉ एंड ऑर्डर की जिम्‍मेदारी संभाल रहा था पुलिस अधीक्षक जेम्स स्कॉट. भीड़ को ताकतवर होता देख स्‍कॉट ने अपने आदमियों को भीड़ पर लाठीचार्ज करने का आदेश दिया. पुलिस की एक तेज लाठी लाजपत राय के सिर पर लगी. वो बुरी तरह घायल हो गए.

17 दिन बाद 17 नवंबर 1928 को उनकी मृत्‍यु हो गई. मरने से पहले लालाजी ने कहा था, "मेरे ऊपर बरसी हरेक लाठी कि चोट अंग्रेजों की ताबूत की कील बनेगी."  

क्रांतिकारियों की गुप्‍त सभा और बदले की कार्रवाई

लालाजी की मौत से क्रांतिकारियों में बहुत गुस्‍सा था. उन्‍हें लगा कि यह कोई दुर्घटना नहीं, बल्कि अंग्रेज सरकार द्वारा की गई हत्‍या है. क्रांतिकारियों को इस हत्‍या का बदला चाहिए था. 10 दिसम्बर, 1928 की रात हुई क्रांतिकारियों की एक बैठक में यह फैसला लिया गया कि स्‍कॉट को गोली मार दी जाए. यही तरीका था लालाजी की मौत का बदला लेने का और अंग्रेज सरकार को ये बताने का कि अब उसे हर हिंदुस्‍तानी के खून की कीमत चुकानी होगी. 

उस रात हुई मीटिंग में भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, राजगुरु, सुखदेव, जय गोपाल, दुर्गा भाभी आदि सभी जमा थे. भगत सिंह ने जोर दिया कि स्‍कॉट को गोली वो मारेंगे. भगत, आजाद, राजगुरु, सुखदेव और जयगोपाल को यह काम सौंपा गया.

जब राजगुरु ने जॉन सॉन्‍डर्स को स्‍कॉट समझकर मारी गोली 

7 दिन बाद 17 दिसंबर को गोली मारने की तारीख तय की गई थी. भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव सब स्‍कॉट के दफ्तर के बाहर अपनी-अपनी पोजीशन लेकर स्‍कॉट के बाहर निकलने का इंतजार कर रहे थे.

तभी सहायक पुलिस अधीक्षक जॉन सॉन्डर्स बाहर निकला और अपनी मोटरसाइकिल स्‍टार्ट करने लगा. राजगुरु के हाथों में बंदूक थी. वो सॉन्डर्स के ज्‍यादा नजदीक थे. तभी भगत सिंह को लगा कि शायद यह स्‍कॉट नहीं है. उन्‍होंने इशारे से राजगुरु को बताना चाहा, लेकिन तब तक राजगुरु गोली चला चुके थे. गोली सीधा स्‍कॉट के सिर पर लगी और वो वहीं ढेर हो गया. तभी भगत सिंह ने भी आगे बढ़कर स्‍कॉट के सीने पर दनादन कई राउंड फायर किए.     

अगले दिन लाहौर की दीवारों पर एक पोस्‍टर चस्‍पां था, जिस पर लिखा था- “हिन्दुस्‍तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन ने लाला लाजपत राय की हत्या का बदला ले लिया है.”

लालाजी की भविष्‍यवाणी सच साबित हुई

इसके बाद सारे क्रांतिकारी भेष बदलकर गायब हो गए. भगत सिंह वहां से सीधा कलकत्‍ता गए थे, जहां पर सोई हुई अंग्रेज सरकार को नींद से जगाने के लिए असेंबली में बम फेंकने योजना बनी थी. 

   

7 अक्‍तूबर, 19230 को लाहौर में सांडर्स की हत्या, असेंबली में बम धमाके  के आरोप में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी की सजा दी गई. बटुकेश्‍वर दत्‍त को असेंबली बम कांड के लिए उम्रकैद की सजा सुनाई गई.

 

लाजपत राय की वह भविष्‍यवाणी सही साबित हुई. लालाजी पर पड़ी हरेक लाठी सचमुच में अंग्रेजी सरकार की ताबूत की कील साबित हुई. उनकी हत्‍या के 20 साल बाद 15 अगस्‍त, 1947 को देश आजाद हो गया.


Edited by Manisha Pandey