30 साल के बिनायक ने बनाया ऐप, ओडिशा के 4000 से अधिक गरीब बच्चों को दे रहे अच्छी शिक्षा
भारत में स्टूडेंट्स के लिए आईआईटी-आईआईएम जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों को और अधिक सुगम बनाने के लिए इनमें सीटें बढ़ाने पर काम किया जा रहा है, और शहरी इलाकों में डिजिटल लर्निंग ने स्कूलों की जगह ले ली है। ऐसे में देश के ग्रामीण इलाकों में स्कूल ड्रॉपआउट्स की बढ़ती संख्या देश की शिक्षा पद्धति पर सवाल खड़े कर रही है। साल 2016 की ऐनुअल स्टेट्स ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (ASER) सर्वे के आधार पर फर्स्टपोस्ट में छपी एक खबर के अनुसार, 2016 में 11 से 14 साल की उम्र के 3.5 फीसदी और 15 से 16 साल की उम्र के 13.5% स्टूडेंट्स ने बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी।
एएसईआर के इस सर्वे में देश के 589 जिलों में 3 से 16 साल उम्र के 5 लाख 60 हजार से अधिक छात्रों को शामिल किया गया। जब सर्वे किया गया, उस समय कक्षा 1 से 8 के 25 फीसदी से भी अधिक बच्चे क्लास में नहीं थे। इसके प्रमुख कारणों में से एक बच्चों में पढ़ाई को लेकर रूचि का कम होना है। इसी सर्वे से यह बात भी सामने आई कि बच्चों को साधारण हिंदी पढ़ना और आधारभूत गणित भी नहीं आती।
कटक (उड़ीसा) के रहने वाले बिनायक आचार्य ग्रामीण इलाकों के शिक्षकों और छात्रों के बीच डिजिटल लर्निंग की अवधारणा को लागू करके इस शैक्षणिक परिदृश्य में क्रांति लाने के लिए काम कर रहे हैं। बिनायक ने उड़ीसा के ग्रामीण इलाकों के बच्चों को अच्छी शिक्षा प्रदान करने के लिए संगठन थिंकजोन की शुरुआत की। अपनी शिक्षा के बारे में द बेटर इंडिया को बताते हुए बिनायक ने बताया, 'मैं एक मध्यम वर्गीय पृष्ठभूमि से आता हूं। मेरे घरवाले मुझे महंगे स्कूल में पढ़ाने का खर्चा नहीं उठा सकते थे। हालांकि मुझे अच्छी शिक्षा मिली। कॉलेज में आने के बाद मुझे समझ आया कि लर्निंग कितनी अच्छी हो सकती है।'
बिनायक का मानना है कि ग्रामीण स्कूलों में दी जाने वाली शिक्षा के साथ समस्या यह है कि एक छात्र का ज्ञान ग्रेड स्तर से कम होने के बावजूद वहां के शिक्षक स्टूडेंट की आवश्यकताओं पर बहुत कम ध्यान देते हैं और पाठ्यक्रम के अनुसार पढ़ाना जारी रखते हैं। बिनायक को दूसरा कारण उनकी नौकरी के दौरान मिला। उन्होंने बताया, 'मैंने अपनी नौकरी के दौरान एक समान पैटर्न देखा। जहां लोग अपना काम करने में सक्षम थे लेकिन ज्ञान के अभाव में वे काम के घंटों से भी अधिक काम करते थे।' साल 2014 में उन्होंने नौकरी छोड़ दी और अपने संगठन थिंकजोन के जरिए ग्रामीण स्कूलों में सस्ती और उच्च स्तर की शिक्षा प्रदान करने का जोखिम उठाया।
आधारभूत स्तर पर डिजिटल क्रांति लाना
ग्रामीणों के पास जाने से पहले बिनायक और उनकी टीम ने एक लर्निंग ऐप विकसित किया। इसमें स्टडी मैटीरियल के दो सेट थे। पहला 3 से 5 साल के स्टूडेंट्स के लिए और दूसरा 5 से 10 साल के छात्रों के लिए था। यह इंटरऐक्टिव ऐप शिक्षा प्रदान करने के लिए गेम, पज़ल और विडियो का उपयोग करता है। जो छात्र अपने साथियों के समान नहीं होते, उनके लिए 'सही स्तर पर पढ़ाई' (TaRL) पद्धति का प्रयोग किया जाता। इसके तहत बच्चों का आंकलन किया जाता और उन्हें ग्रेड या उम्र के बजाय उनके लर्निंग लेवल के हिसाब से समूह में रखा जाता।
द बेटर इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस ऐप में एक बार कोर्स डाउनलोड करने के बाद इंटरनेट कनेक्शन की भी जरूरत नहीं होती। बस एक बार ऐप ओपन करो और फिर अंग्रेजी और उड़िया में पढ़ाई की जा सकती है। रूरल मैनेजमेंट में मास्टर डिग्री और वर्ल्ड बैंक के साथ एक कंसल्टेंट के तौर पर काम करने के कारण बिनायक के लिए ग्रामीण इलाकों में शिक्षक और छात्रों के बीच संबंधों को समझना मुश्किल नहीं था।
अपने संगठन की शुरुआत के लिए उन्होंने केंद्रपाड़ा, भद्रक और कटक के जिलों को चुना। उन्होंने दो-तीन गांवों का दौरा किया और वहां पर होम ट्यूशन देने वालों से बातचीत की। बिनायक ने बताया, 'हमारा विचार एक समुदाय नेतृत्व वाला मॉडल विकसित करना था। इसलिए हमने शहरी इलाकों के ट्यूशन टीचर से संपर्क करने के बजाय ग्रामीण इलाकों के स्थानीय ट्यूटर को सशक्त बनाने का फैसला किया।' जैसा कि अनुमान लगाया था, अधिकतर ट्यूटर (घर जाकर पढ़ाने वाले शिक्षक) होम मेकर या कॉलेज स्टूडेंट्स थे जो पैसों की कमी के कारण ट्यूशन पढ़ाते थे। बिनायक ने बताया, 'स्कूलों में शिक्षा की क्वॉलिटी को नहीं समझने वाले पैरेंट्स जिस भी स्कूल में अपने बच्चों का उज्जवल भविष्य देखते, वहीं उनका ऐडमिशन करा देते। इस अंतर को पाटने के लिए थिंकजोन ने सीखने के लिए तत्पर रहने वाले संभावित होम ट्यूटर को पहचाना और उन्हें कठिन गतिविधि और तकनीक आधारित ट्रेनिंग दी। यह ट्रेनिंग लगातार जारी रही।
थिंकजोन निजी शिक्षकों को हर महीने में एक बार इन सर्विस ट्रेनिंग देता है। इसके अलावा शिक्षकों की प्रगति का रिव्यू करने और उसके अनुसार काम करने के लिए एक ट्रैक रिकॉर्ड भी रखा जाता है। 30 साल के बिनायक ने बताया, 'हर ट्यूटर को इस ट्रेनिंग के लिए योग्य होने के लिए एक स्क्रीनिंग टेस्ट और एक इंटरव्यू से गुजरना होता है। एक बार ट्रेनिंग खत्म होने पर उन्हें 1 हफ्ते की प्री सर्विस पर रखा जाता है। इसमें वे बच्चों को ऐंड्रॉयड ऐप के जरिए पढ़ाई करना सिखाते हैं।' फाइनल टेस्ट पास करने के बाद वे आधिकारिक तौर पर संगठन में शामिल हो जाते हैं। होम मेकर्स और कॉलेज जाने वाले ट्यूटर्स को ट्रेनिंग देना कठिन काम प्रतीत होता है लेकिन इससे ज्यादा मुश्किल काम बच्चों को इस कोर्स में दाखिला दिलाने के लिए बच्चों के पैरेंट्स को मनाना है। यह निशुल्क नहीं है।
बिनायक ने बताया कि अधिकतर पैरेंट्स को महीने के लिए नाममात्र के 50-100 रुपये का शुल्क देना गलत लगता है। वह स्कूल फी के अलावा किसी भी तरह का शुल्क देने में विश्वास नहीं करते। इस समस्या के समाधान के लिए कटक आधारित इस संगठन ने स्थानीय ट्यूटर्स की मदद से पैरेंट्स को समझाने की शुरुआत की। यह बात काम कर गई। पैरेंट्स फी देने और अपने बच्चों को 1 साल लंबे प्रोग्राम में भेजने के लिए तैयार हो गए। इस कोर्स में टीचर स्कूल टाइम खत्म होने के बाद 3 घंटे अतिरिक्त पढ़ाते थे। समय के साथ-साथ छात्रों की संख्या बढ़ती गई। 2014 के बाद से 400 गांवों के 4000 से भी अधिक छात्रों ने इस प्रोग्राम के तहत ऐडमिशन लिया। मालूम हो, इन जिलों में बारिश अधिक होती है। इसके कारण छात्र उन जगहों पर आसानी से नहीं पहुंच पाते जहां स्कूल होते हैं। लेकिन थिंकजोन अपने होम ट्यूटर को ऐसे इलाकों में उपलब्ध कराने में मदद कर रहा है।
थिंकजोन की आभारी एक महिला पैरेंट ममता सिंह ने बताया, 'मानसून के दौरान हमारा गांव उस इलाके से कट जाता है जहां मेरे बेटे का स्कूल है। हर साल वह उन (मानसून) 4 महीनों के लिए घर पर रहता है। लेकिन अब चीजें बदल गई हैं। यहां तक कि अब हमारे बच्चों को भी कम पैसों में अच्छी शिक्षा मिल रही है।' अपने भविष्य की असुरक्षा की भावना से पार पाकर छात्र अंग्रेजी बोलना सीख रहे हैं। वे अब अपने निजी और पेशेवर आकांक्षाओं को आगे बढ़ाने का साहस कर रहे हैं। 9 साल की प्रिया ने बताया, 'मेरा आंख और हाथ समन्वय (हैंड-आई कॉर्डिनेशन) खराब है। थिंकजोन की शारिरिक क्रियाओं की मदद से अब मुझमें लिखने का विश्वास आ गया है। इसके अलावा मैं अपने दोस्तों के साथ गेम भी खेल सकती हूं। मुझे नई चीजें सीखने के लिए फ्लैशकार्ड का प्रयोग करना पसंद है। मुझे गणित की वर्कशीट हल करना भी अच्छा लगता है।'
होम मेकर और कॉलेज स्टूडेंट्स को सशक्त करना
ट्रेनिंग प्रोग्राम से गुजरने वाले 200 टीचर्स में से 101 शिक्षकों को चुना गया। अब वे सभी विषयों के बारे में छात्रों की समझ मजबूत करने में मदद कर रहे हैं। जैसे कि अधिकतर ट्यूटर्स होम मेकर या कॉलेज जाने वाले हैं। इस कारण पूरे दिन में वे केवल कुछ ही घंटे संगठन को दे सकते हैं। हालांकि यह एक पार्टटाइम जॉब है फिर भी ट्यूटर्स को एक ठीकठाक और स्थिर आय प्रदान करती है। औसत के तौर पर देखें तो हर ट्यूटर महीने में 3000 रुपये तक कमा रहा है। इसके अलावा थिंकजोन भी समय-समय पर परफॉर्मेंस के आधार पर उन्हें ईनाम देता है।
इसके साथ ही टीचर्स को उनकी डिजिटल और उद्यमिता स्किल्स में निखार लाने के लिए ट्रेनिंग दी जाती है। उदाहरण के तौर पर ट्यूटर्स आमतौर पर बच्चों के पैरेंट्स से मिलते रहते हैं तो इस वजह से उनकी कम्युनिकेशन और मार्केटिंग स्किल्स भी लगातार सुधर रही हैं।
ऐसी ही एक ट्यूटर ज्योतिमय भुयान ने कहा, 'मैं अभी पढ़ाई कर रही हूं और पार्ट टाइम पढ़ाती हूं। थिंकजोन के कोर्स से ना केवल मैं आर्थिक रूप से स्वतंत्र हुई हूं बल्कि मेरे पढ़ाने के नियमों में भी सुधार हुआ है। मैंने बच्चों के सीखने के पैटर्न में भी महत्वपूर्ण सुधार देखा है।' थिंकजोन कोर्स से जहां ज्योतिमय को उनकी ग्रैजुएशन से पहले ही लाभ मिल रहा है। वहीं, सस्मिता बेहरा को पोस्ट ग्रैजुएशन के बाद रोजगार मिल रहा है। उन्होंने बताया कि उन्होंने अपनी पोस्ट ग्रैजुएशन पूरी कर ली। इसके बाद वह लंबे समय तक बेरोजगार रहीं। यह ऐप आधारित प्रोग्राम उनके लिए एक वरदान है।
थिंकजोन का फ्यूचर प्लान
एक बूटस्ट्रैप संगठन के तौर पर शुरू किए गए थिंकजोन को निवेशकों से थोड़ी सी मदद मिली है और इसके जरिए यह खुद को बनाए रखने में कामयाब रहा है। यह कम आय वाली स्कूलों में अपने प्रोग्राम को लागू करने के लिए गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ), सरकारी स्कूलों और अन्य कम फी वाले निजी स्कूलों के साथ साझेदार है। अब यह संगठन फंड इकठ्ठा करने की खातिर कॉर्पोरेट्स से सीएसआर के जरिए मदद करने के लिए बातचीत कर रहा है। बिनायक ने कहा, 'अब हमसे जुड़ने के लिए देश के कई हिस्सों से लोग पूछताछ कर रहे हैं। इसमें खासकर झारखंड और आंध्र प्रदेश के लोग शामिल हैं।' यह अपना कारोबार उड़ीसा के सात अन्य जिलों में भी फैलाने का योजना बना रहा है। इसका प्लान एक साल में 10,000 छात्रों का एडमिशन करना और 300 महिलाओं को रोजगार उपलब्ध कराना है।
सार्वजनिक क्षेत्र का विषय होने के कारण हेल्थकेयर और एजुकेशन को निजी क्षेत्र और यहां के लोग नजरअंदाज करते हैं। चूंकि, एजुकेशन के क्षेत्र में मुनाफा कम है। इसलिए कोई इसे कोई हाथ नहीं लगाना नहीं चाहता है। हालांकि, यह सच नहीं है। शिक्षा का स्तर सुधारना और आमदनी बढ़ाना एकसाथ हो सकता है। बिनायक अपनी खत्म करते हुए कहते हैं, 'मेरे प्रयासों से मैं इस धारणा को बदलने की कोशिश कर रहा हूं।'
थिंकजोन ने सराहनीय प्रयासों से अपने ताज में कई नगीने जोड़ लिए हैं। साल 2018 में इसे इजराइल के मास चैलेंज में विश्व के टॉप 10 सबसे प्रभावशाली और संभावनाओं भरे स्टार्टअप्स की लिस्ट में नामांकित किया गया। इसमें 2018 में ही मेक्सिको का सेमेक्स-टेक अवॉर्ड भी जीता। उसी साल विश्व बैंक ने थिंकजोन को गरीबी खत्म करने की दिशा में सबसे अच्छे उपाय करने वाले संगठनों की लिस्ट में शामिल किया। थिंकजोन से जुड़ने के लिए आप [email protected] पर संपर्क कर सकते हैं।
यह भी पढ़ें: पिता ने किराने की दुकान में काम कर के पढ़ाया, आईएएस बनकर बेटी ने पूरा किया सपना