कैलकुलेटर रिपेयर करने वाले कैलाश कैसे बन गये 350 करोड़ की कंपनी के मालिक
कैलकुलेटर जैसी छोटी सी डिवाइस को रिपेयर करने से लेकर कैलाश काटकर ने कंप्यूटर सीखा और आज वह 350 करोड़ की कंपनी क्विक हील के मालिक हैं। पुणे के मार्वल एज ऑफिस कॉम्प्लेक्स में 8 मंजिला इमारत में उनका ऑफिस है। कैलाश और उनके भाई संजय साहबराव काटकर दोनों लोग मिलकर रात-रात भर लगातार काम करते हैं और कंप्यूटर के लिए हानिकारक साबित होने वाले वायरस की पड़ताल करते हैं।
कैलकुलेटर जैसी छोटी सी डिवाइस को रिपेयर करने से लेकर कैलाश काटकर ने कंप्यूटर सीखा और आज वह 350 करोड़ की कंपनी क्विक हील' के हैं मालिक।
दसवीं पास करने के बाद ही संजय को एक कैलकुलेटर ठीक करने वाले मकैनिक के तौर पर नौकरी मिल गई थी। उन्हें इस नौकरी से उन्हें हर महीने 400 रुपये मिलते थे।
कैलकुलेटर जैसी छोटी सी डिवाइस को रिपेयर करने से लेकर कैलाश काटकर ने कंप्यूटर सीखा और आज वह 350 करोड़ की कंपनी क्विक हील के मालिक हैं। पुणे के मार्वल एज ऑफिस कॉम्प्लेक्स में 8 मंजिला इमारत में उनका ऑफिस है। कैलाश और उनके भाई संजय साहबराव काटकर दोनों लोग मिलकर रात-रात भर लगातार काम करते हैं और कंप्यूटर के लिए हानिकारक साबित होने वाले वायरस की पड़ताल करते हैं। कैलाश इस कंपनी के सीईओ हैं उन्हें लोग प्यार से केके के नाम से भी जानते हैं।
केके भले ही आज करोड़ों की संपत्ति के मालिक हैं लेकिन वह अपनी सफलता को पैसे से नहीं आंकते हैं। वह कहते हैं, 'सफलता को पैसों से नहीं आंका जा सकता। जब मैं किसी काम में लगता हूं और वह सफलतापूर्वक हो जाता है तो मुझे बेहद खुशी होती है वही मेरे लिए मायने रखती है।'
महाराष्ट्र के सतारा जिले में लालगुन गांव में पैदा हुए केैलाश काटकर (केके) का परिवार पुणे आकर बस गया था। यहां उनके पिता फिलिप्स कंपनी के साथ काम करते थे।
केके की पढ़ाई 10वीं से आगे नहीं हो पाई। उन्हें यह भी लगता था कि वह 10वीं की परीक्षा नहीं पास कर पाएंगे, लेकिन वे पास हो गए थे। दसवीं पास करने के बाद ही उन्हें एक कैलकुलेटर ठीक करने वाले मकैनिक के तौर पर नौकरी मिल गई। उन्हें इस नौकरी से हर महीने 400 रुपये मिलते थे। केके हालांकि पहले से ही रेडियो और टेप रिकॉर्डर की ट्रेनिंग घर पर ही अपने पिता से ले चुके थे।
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केके ने कैलकुलेटर रिपेयर करने के साथ ही वो सारी चीजें सीख लीं जो इस बिजनेस से जुड़ी हुई थीं, जैसे कस्टमर्स के साथ डील करना, बुक और लेजर का हिसाब-किताब रखना।
केके का परिवार पुणे के शिवाजीनगर में तानाजी वड़ी के स्लम इलाके में एक चॉल में रहता था। केके उन दिनों को याद करते हुए बताते हैं कि उन्हें कभी अंदाजा ही नहीं था कि वह एक दिन इतनी बड़ी सॉफ्टवेयर कंपनी के मालिक बन जाएंगे, लेकिन वह चाहते थे कि उनका भी कोई बिजनेस हो। 1980 कै दौर में लोगों के लिए कैलकुलेटर बहुत नई और अनोखी चीज हुआ करती थी और केके का मन भी नई चीजों की तरफ काफी आकर्षित होता था। केके ने कैलकुलेटर रिपेयर करने के साथ ही वो सारी चीजें सीख लीं जो इस बिजनेस से जुड़ी हुई थीं, जैसे कस्टमर्स के साथ डील करना, बुक और लेजर का हिसाब-किताब रखना।
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उस वक्त भारत में कंप्यूटर का आगमन भी नया-नया आया था और सबसे पहले बड़ी-बड़ी बैंक की शाखाओं में ही उसे लगाया गया था। केके जिस बैंक में कैलकुलेटर ठीक करने जाते थे वहा पर एक कंप्यूटर लगा हुआ था। केके की उम्र उस वक्त सिर्फ 22 साल थी और वह जानते ही नहीं थे कि यह टीवी जैसी चीज कंप्यूटर है। वह जब भी बैंक जाते थे तो हमेशा कंप्यूटर क ओर देखते रहते थे। हालांकि उस वक्त भारत में कंप्यूटर का तेजी से विरोध हो रहा था क्योंकि लोगों को लगता था कि इससे रोजगार खत्म हो जाएंगे। लेकिन केके को मालूम चल गया कि आने वाले समय में जमाना कंप्यूटर का ही होगा।
केके हमेशा से नई चीजों को सीखने के बारे में उत्साहित रहते थे। उन्होंने कंप्यूटर के बारे में जानने और समझने के लिए एक किताब खरीदी और उसे पूरा पढ़कर कम्प्यूटर को समझने की कोशिश की। उन्होंने किताब को काफी बारीकी से पढ़ लिया।
एक बार बैंक का कंप्यूटर खराब हो गया था। केके को जब यह बात पता चली तो उन्होंने बैंक के मैनेजर से गुजारिश की कि उन्हें कंप्यूटर ठीक करने दिया जाए, लेकिन इतनी महंगी चीज को एक नौसिखिये के हाथों सौंपने में सबको डर लग रहा था। लेकिन आखिर में मैनेजर ने उन्हें कंप्यूटर ठीक करने की इजाजत दे दी। केके ने उस कंप्यूटर की खराबी को चुटकियों में ठीक कर दिया। इससे बैंक के मैनेजर भी काफी प्रभावित हुए और उन्होंने केके से कहा कि अब से जब भी कंप्यूटर खराब होगा वे ही आकर इसे ठीक करेंगे।
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उस वाकये के बाद उनकी सैलरी भी बढ़कर 2,000 रुपये महीने हो गई थी। केके और उनके भाई की उम्र में सिर्फ 4-5 साल का ही अंतर है। केके नहीं चाहते थे कि उनकी तरह ही उनका भाई भी पढ़ाई छोड़कर नौकरी करे। उन्होंने किसी तरह पैसे इकट्ठा करके अपने भाई को पढ़ाया। जो आज उनकी कंपनी में मैनेजिंग डायरेक्टर का काम देखते हैं।
केके के भाई संजय ने इलेक्ट्रॉनिक्स की पढ़ाई की और वह कंप्यूटर के मास्टर हो गए थे। संजय के कॉलेज में हमेशा 8-10 कंप्यूटर वायरस की वजह से खराब पड़े रहते थे। इसी समस्या को दूर करने के लिए संजय ने प्रोग्रामिंग सीखी और एंटी वायरस सॉफ्टवेयर बनाने पर काम करना शुरू किया।
1995 में संजय ने एक एंटी वायरस सॉफ्टवेयर बनाया और उसके व्यवसायिक प्रयोग के लिए बाजार में लॉन्च किया। इसी साल क्विक हील एंटी वायरस का पहला वर्जन मार्केट में आया था। यह प्रोडक्ट कंप्यूटर को वायरस से बचाने के साथ ही उसे क्लीन करके भी रखता था। दोनों भाइयों ने मिलकर 2007 में ही अपनी ये कंपनी बना ली थी, जिसका नाम रखा क्विक हील टेक्नॉलजी प्राइवेट लिमिटेड।
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आज यह एंटी वायरस किसी पहचान का मोहताज नहीं है और हर कंप्यूटर यूजर इससे अच्छी तरह से वाकिफ है। भारत में कई सारे विदेशी ब्रांड के एंटी वायरस मौजूद हैं, लेकिन क्विक हील का कोई मुकाबला नहीं है।
2010 में क्विक हील कंपनी को 60 करोड़ा का इन्वेस्टमेंट मिला और उन्होंने इस फंड की मदद से तमिलनाडु से लेकर जापान, यूएस समेत अफ्रीका जैसे देशों में भी अपने ऑफिस खोल दिए। आज क्विक हील एंटी वायरस की पहुंच 80 से अधिक देशों में है।
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