भविष्य में होने वाली बीमारियों से बचने के लिए युवा पीढ़ी करा रही है अपने जीन का परीक्षण
युवाओं में क्यों लोकप्रिय हो रही है जीन टेस्टिंग...
अब लोगों के लिए चिकित्सकीय परीक्षण अधिक सहूलियत वाले हो गए हैं जिनकी मदद से इस बात की पुष्टि की जा सकती है कि कि आपमें या अन्य लोगों में कुछ आनुवांशिक स्थितियों के विकसित होने कि कितनी संभावना है ताकि आप पहले से ही एहतियाती उपाय कर सकें।
कोई विशेष विकार किसी व्यक्ति या किसी परिवार को किस प्रकार प्रभावित करता है, इसके बारे में अधिक जानने के लिए जीन और आनुवांशिकी के बारे में नई जानकारी पता लगाने के लिए इस शोध परीक्षण और क्लिनिकल टेस्ट की खोज की गई है।
पिछले 2-3 वर्षों से भारत में जेनेटिक टेस्टिंग (अनुवांशिक परीक्षण) का क्रेज काफी बढ़ रहा है और अब अधिक से अधिक लोग जीन परीक्षण कराने के लिए आगे आ रहे हैं। जेनेटिक टेस्टिंग की मदद से इस बात का पता चलता है कि आपकी जीन में कुछ खास किस्म की असामान्यताओं एवं विकारों से ग्रस्त होने का खतरा कितना अधिक है। इस परीक्षण के जरिए आनुवांशिक क विकारों की पहचान करने के लिए रक्त या शरीर के कुछ ऊतकों के छोटे नमूने का विश्लेषण करके गुणसूत्र, जीन और प्रोटीन की संरचना में परिवर्तन की पहचान की जा सकती है। अब लोगों के लिए चिकित्सकीय परीक्षण अधिक सहूलियत वाले हो गए हैं जिनकी मदद से इस बात की पुष्टि की जा सकती है कि कि आपमें या अन्य लोगों में कुछ आनुवांशिक स्थितियों के विकसित होने कि कितनी संभावना है ताकि आप पहले से ही एहतियाती उपाय कर सकें।
कम उम्र में उपयोगी है आनुवांशिक परीक्षण
यदि परीक्षणों से प्राप्त परिणाम निगेटिव आते हैं तो यह रोगियों के लिए एक बड़ी राहत है। लेकिन अगर कम उम्र में ही आनुवांशिक कमी की पहचान की जाती है, तो जांच के परिणाम के आधार पर आने वाली स्थिति की रोकथाम के लिए निर्णय लेने के लिए लोगों के पास पर्याप्त समय होता है। जांच के परिणाम से शुरुआती उपचार विकल्पों का चयन करने में मदद मिलती है जिससे जीवन की गुणवत्ता और व्यक्ति के जीवन प्रत्याशा पर बड़े पैमाने पर प्रभाव पड़ सकते हैं।
3 hcare.in की संस्थापक और सीईओ सीए (डॉ.) रुचि गुप्ता कहती हैं, 'नवजात शिशुओं में आनुवंशिक जांच की सुविधा के उपलब्ध होने से, कई माता- पिता अपने नवजात शिशु में असामान्य विकारों या स्थितियों का शुरुआती चरण में ही पहचान कर सकते हैं, जिससे शुरुआत से ही बेहतर उपचार विकल्प अपनाने में मदद मिलती है।' कोई विशेष विकार किसी व्यक्ति या किसी परिवार को किस प्रकार प्रभावित करता है, इसके बारे में अधिक जानने के लिए जीन और आनुवांशिकी के बारे में नई जानकारी पता लगाने के लिए इस शोध परीक्षण और क्लिनिकल टेस्ट की खोज की गई है।
गर्भावस्था के दौरान अनुवांशिक परीक्षण
यूनिसेफ 2015-16 की रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारत में 5 साल से कम आयु के बच्चों की वार्षिक मृत्यु दर दुनिया में सबसे ज्यादा, 14 लाख है। इनमें से 10 प्रतिषत से अधिक जन्मजात विकृतियों और गुणसूत्र असामान्यताओं के मामले होते हैं। हालांकि आनुवांशिक परीक्षण मुख्य रूप से क्लिनिकल ट्रीटमेंट के रूप में किया जाता है, लेकिन इसके अतिरिक्त लाभों में जीन वाहकों के पूर्वानुमान और उनकी पहचान शामिल है। 35 साल की उम्र के बाद गर्भधारण करने वाली महिलाओं को ऐसी असामान्यताओं और विकारों वाले बच्चों को जन्म देने का अधिक खतरा होता है।
जिस तरह से जीन बच्चे की त्वचा के रंग और बालों और आंखों के बनावट को प्रभावित करने के लिए जिम्मेदार होते हैं, उसी प्रकार से यह विभिन्न जन्म दोषों को भी प्रभावित करता है। इसलिए गर्भवती महिलाओं को पहले और दूसरे तिमाही में सभी संभावित जेनेटिक स्क्रीनिंग परीक्षण कराने की सलाह दी जाती है। यह उनके विकसित हो रहे भ्रूण में संभावित समस्याओं के खतरे का मूल्यांकन करने के लिए सहायक साबित होगा। पहचान किये जाने वाले सबसे आम दोषों में डाउन सिंड्रोम, स्प्लिट स्पाइन डिफेक्ट, सिकल सेल एनीमिया और सिस्टिक फाइब्रोसिस सहित कई अन्य दोष भी षामिल हैं।
किस प्रकार के होते हैं ये परीक्षण?
न्यू बोर्न स्क्रीनिंग: जन्मजात विकारों की पहचान करने के लिए, नवजात षिषुओं के असामान्यताओं का परीक्षण किया जाता है ताकि उन्हें प्रारंभिक उपचार या रोकथाम के विकल्प प्रदान किए जा सकें।
डायग्नोस्टिक टेस्टिंग: यह जांच विशिष्ट आनुवांशिक या गुणसूत्र स्थिति का पता लगाने के लिए की जाती है। नैदानिक परीक्षण जन्म से पहले या जीवन में किसी भी समय किया जा सकता है। यह आहार नियंत्रण, व्यायाम इत्यादि जैसी जीवन शैली से संबंधित आदतों में परिवर्तन करके स्थिति को रोकने में मददगार साबित होती है।
कैरियर टेस्टिंग: यह परीक्षण उन लोगों की पहचान करने के लिए किया जाता है जो जीन उत्परिवर्तन (म्यूटेषन) की प्रतिलिपि होती है जब एक तरह की दो प्रतिलिपियां मौजूद होती हैं, तो आनुवांशिक विकार पैदा होते हैं। जिन लोगों में आनुवंशिक विकार का पारिवारिक इतिहास होता है, वे इससे प्रभावित होते हैं। कभी-कभी माता-पिता दोनों का परीक्षण किया जाता है। यह परीक्षण बच्चे में आनुवांशिक विकार पैदा करने के माता- पिता के जोखिम के बारे में जानकारी प्रदान करता है।
प्रीनैटल टेस्टिंग: जन्म से पहले भ्रूण के जीन या गुणसूत्रों में परिवर्तनों का पता लगाने के लिए यह एक महत्वपूर्ण परीक्षण है। आनुवंशिक या गुणसूत्र विकार वाले बच्चे के जन्म होने के खतरे का पता लगा लगाने के लिए यह परीक्षण गर्भावस्था से पहले ही किया जाता है।
प्री-इम्प्लांटेशन टेस्टिंग: इसे प्री-इम्प्लांटेशन जेनेटिक डायग्नोसिस (पीजीडी) भी कहा जाता है। यह एक विशेष तकनीक है जो बच्चे में किसी विशेष आनुवंशिक या गुणसूत्र विकार होने के जोखिम को कम कर सकती है। यह परीक्षण भ्रूण में आनुवांशिक परिवर्तनों का पता लगाने के लिए भी बहुत फायदेमंद है जो इन-विट्रो फर्टिलाइजेषन जैसे सहायक प्रजनन तकनीकों के उपयोग के कारण पैदा होते हैं।
प्रीडिक्टिव टेस्टिंग: यह परीक्षण उन उत्परिवर्तनों की पहचान करने के लिए किया जाता है जो किसी व्यक्ति में कुछ प्रकार के कैंसर जैसे आनुवंशिक आधार के साथ विकार विकसित करने के खतरे को बढ़ाते हैं।
फॉरेंसिक टेस्टिंग: फोरेंसिक परीक्षण का उपयोग डीएनए अनुक्रमों के माध्यम से कानूनी उद्देश्यों के लिए किसी व्यक्ति की पहचान करने के लिए किया जाता है। इस परीक्षण का उपयोग अपराध या आपदा पीड़ितों की पहचान करने, संदिग्ध अपराधी का पता लगाने या या पिता से जैविक संबंध स्थापित करने के लिए किया जाता है।
कैसे किया जाता है अनुवांशिक परीक्षण?
यह परीक्षण रक्त के सैंपल, बाल, त्वचा, गालों के अंदर मौजूद ऊतकों के नमूने या यहां तक कि गर्भ में भ्रूण के चारों ओर मौजूद अम्नीओटिक तरल पदार्थ का किया जा सकता है। सर्वश्रेष्ठ परिणाम प्राप्त करने के लिए विशेषज्ञों और अत्यधिक प्रशिक्षित प्रोफेशनलों के द्वारा अवलोकनों की निगरानी की जानी चाहिए। नवजात शिशु के परीक्षण के मामले में, रक्त परीक्षण करने के दौरान डॉक्टर को सावधान रहना चाहिए और इसके लिए माता-पिता की सहमति लेने की आवश्यकता होती है।
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