तेलंगाना में बह रही बदलाव की बयार, दलितों ने सम्मान के लिए बदला अपना 'नाम'
शादी के कार्ड से लेकर नये बच्चे के जन्म पर दिया जाता है स्वैरो नाम।
तेलंगाना में दलित समुदाय को सरकार की ओर से एक नई पहचान दे दी गई है। अब राज्य में दलित समुदाय के लोगों को दलित, अनुसूचित जाति या वंचित तबका की बजाय 'स्वैरो' (SWAERO) के नाम से जाना जाता है।
दलितों के लिए यह आइडेंटिटी रेवॉल्यूशन राज्य के एक वरिष्ठ आईपीएस ऑफिसर और तेलंगाना सोशल वेलफेयर रेजिडेंशियल एजुकेशनल इंस्टीट्यूशन सोसाइटी के डॉ. आर एस प्रवीन कुमार की ओर से लाया गया है।
तेलंगाना में इन दिनों सामाजिक बराबरी का एक नया दौर चल पड़ा है। जयशंकर भुपालपल्ली जिले के रहने वाले बोटला कार्तिक को अपनी दो साल की बेटी का आधार कार्ड मिला तो वो फूले नहीं समाए। वजह थी आधार कार्ड में छपा नाम। कार्ड में बेटी का नाम छपा था- बोटला अभय स्वैरो। बेटी के नाम में लगा 'स्वैरो' ही एक बड़ा बदलाव है। तेलंगाना में दलित समुदाय को सरकार की ओर से एक नई पहचान दे दी गई है। अब राज्य में दलित समुदाय के लोगों को दलित, अनुसूचित जाति या वंचित तबका की बजाय 'स्वैरो' (SWAERO) के नाम से जाना जाता है। नए नाम में लगा 'SW' सोशल वेलफेयर का प्रतीक है और बाकी के “aeros” का मतलब आकाश होता है।
दलितों के लिए यह आइडेंटिटी रेवॉल्यूशन राज्य के एक वरिष्ठ आईपीएस ऑफिसर और तेलंगाना सोशल वेलफेयर रेजिडेंशियल एजुकेशनल इंस्टीट्यूशन सोसाइटी के डॉ. आर एस प्रवीन कुमार की ओर से लाया गया है। दलित समाज के लोग भी इससे काफी उत्साहित हैं और इसे सकारात्मक रूप से ले रहे हैं। राज्य केलगभग 2 लाख दलित छात्रों ने अपने नाम के आगे अपनी जाति लगाने के बजाय स्वैरो लिखने लगे हैं। यहां तक कि सोशल मीडिया पर भी इसी नाम का इस्तेमाल हो रहा है।
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ाई कर चुके आईपीएस ऑफिसर प्रवीन कुमार ने कहा कि वो दिन चले गए जब दलित समुदाय के लोगों को, निम्न, हरिजन, दलित या चंदाला कहा जाता था। प्रवीन खुद अपने नाम के आगे स्वैरो शब्द का इस्तेमाल करते हैं। वह खुद को इसी नाम से पुकारने के लिए कहते हैं। दलित युवाओं के बीच यह शब्द काफी पॉप्युलर हो गया है। इसे फेसबुक पर शेयर करते हुए आईपीएस प्रवीन कुमार ने कहा, 'यह हमारी नई पहचान है। अब मैंने वो सरनेम चुना है जो मेरे भविष्य और व्यक्तित्व को सही ढंग से प्रदर्थिक करता है। अब मेरा नाम आधिकारिक रूप से यही हो गया है।'
शादी के कार्ड में भी इस नाम का उपयोग होने लगा है। पिछले साल आंदेय भास्कर और गंगा जमुना ने शादी की। उन्होंने शादी के कार्ड में अपने नाम के आगे स्वैरो लिखा। राज्य के कई सारे गांवों में दलित बस्तियों के नाम भी बदल रहे हैं। जागितियल जिले में थांड्रियल गांव में दलितों ने अपनी कॉलोनी का नाम बदलकर स्वैरोज कॉलोनी रख दिया। गांव के एक स्टूडेंट ने कहा कि अब काफी गर्व होता है जब बस का ड्राइवर बस रोकते हुए कहता है कि स्वैरो कॉलोनी आ गई है। प्रवीन कुमार कहते हैं कि दलित सदियों से वंचित रहे हैं। उनकी जातियों को अपमानजनक शब्दों के लिए इस्तेमाल किया जाता है। नया नाम मिलने से दलितों में आत्मस्वाभिवान और गर्व का संचार होगा।
राज्य में एक नया ट्रेंड चल पड़ा है। शादी के कार्ड से लेकर नये बच्चे के जन्म पर स्वैरो नाम दिया जाता है। दुकानों के साइनबोर्ड और गाड़ियों पर यह नाम अक्सर देखा जा सकता है। कई समाजशास्त्रियों का भी यही मानना है कि तथाकथित निचली जातियों के नामों को गाली के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ. गोपाल चंद्रैया कहते हैं कि ऐसे बदलावों का सकारात्मक असर देखने को मिलेगा और समाज की मानसिकता में भी बदलाव आएगी। वे कहते हैं कि सिर्फ सामाजिक बदलाव काफी नहीं है, बल्कि सांस्कृतकि आधार भी महत्वपूर्ण है।
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