सिर्फ़ 10 हज़ार में बांध और 1.6 लाख में बनाया ट्रैक्टर
किसानों के लिए हर मोड़ पर मदद करते हैं भांजीभाई मठुकिया...
गुजरात के जूनागढ़ ज़िले के एक छोटे से गांव के रहने वाले भांजीभाई मठुकिया के बारे में आप जानते हैं? भांजीभाई एक ऐसी शख़्सियत हैं, जिन्होंने वक़्त की चुनौतियों से परेशान अपने क्षेत्र के किसानों की हर मोड़ पर मदद की।
भांजीभाई ने गुजरात और राजस्थान में 25 से ज़्यादा चेक डैम्स बनवाए हैं। भांजीभाई द्वारा बनाए गए ग्राउंडनट स्प्रेयर और एयरबोर्न ऐग्रीकल्चरल स्प्रेयर भी किसानों के समुदाय के बीच काफ़ी लोकप्रिय हुए। इतना ही नहीं, उन्होंने एक ऐसी व्यवस्था भी विकसित की, जिसके तहत किसानों को अनाज के किफ़ायती भंडारण की सुविधा उपलब्ध हुई।
हर किसी के जीवन में बेशुमार चुनौतियां आती हैं। चुनौतियों के सामने घुटने टेक देना है और मदद के लिए दूसरों पर निर्भर रहना है या फिर अपनी मेहनत और लगन से परिस्थितियों के स्वरूप को बदलने की कोशिश करनी है; यह निर्णय पूरी तरह से आपका होता है। आज हम बात करने जा रहे हैं, गुजरात के जूनागढ़ ज़िले के एक छोटे से गांव के रहने वाले भांजीभाई मठुकिया की। भांजीभाई एक ऐसी शख़्सियत हैं, जिन्होंने वक़्त की चुनौतियों से परेशान अपने क्षेत्र के किसानों की हर मोड़ पर मदद की। जब-जब किसानों के पास आर्थिक या प्राकृतिक चुनौतियां आईं, भांजीभाई अपने नए और कारगर प्रयोगों के साथ सामने आए और किसानों की मदद को एक मुहिम की शक्ल दे दी।
भांजीभाई के लोकप्रिय प्रयोगों या यूं कहें कि आविष्कारों की फ़ेहरिस्त में कम कीमत वाले ट्रैक्टरों और ग्राउंडनट स्प्रेयर से लेकर चेक डैम्स तक शामिल हैं। भांजीभाई ने गुजरात और राजस्थान में 25 से ज़्यादा चेक डैम्स बनवाए हैं। भांजीभाई द्वारा बनाए गए ग्राउंडनट स्प्रेयर और एयरबोर्न ऐग्रीकल्चरल स्प्रेयर भी किसानों के समुदाय के बीच काफ़ी लोकप्रिय हुए। इतना ही नहीं, उन्होंने एक ऐसी व्यवस्था भी विकसित की, जिसके तहत किसानों को अनाज के किफ़ायती भंडारण की सुविधा उपलब्ध हुई।
80 के दशक में भांजीभाई को इस बात का एहसास हुआ कि मूंगफली उगाने और बागबागी करने वाले छोटे किसानों को अधिक क्षमता और पावर वाले ट्रैक्टरों की ज़रूरत नहीं पड़ती। साथ ही, ये बड़े ट्रैक्टर्स किसानों के लिए महंगा सौदा भी होते हैं। मुख्य रूप से सौराष्ट्र क्षेत्र के किसानों की इस समस्या का कारगर हल खोजते हुए भांजीभाई ने एक 10 हॉर्सपावर वाले ट्रैक्टर का आविष्कार किया। आमतौर पर खेतों में 35 हॉर्सपावर के ट्रैक्टर्स इस्तेमाल होते हैं। यह ट्रैक्टर डीज़ल पर चलता था और जीप की चेसिस या बॉडी से बना था। भांजीभाई का यह प्रयोग सफल साबित हुआ और क्षेत्र के किसानों के बीच इसकी लोकप्रियता तेज़ी से बढ़ने लगी। किसानों को अब अपने कामभर का अच्छा विकल्प मिल गया था और उन्हें अपनी ज़रूरतभर के ट्रैक्टरों के लिए अधिक क़ीमत चुकाने की ज़रूरत नहीं थी। भांजीभाई द्वारा बनाए तीन चक्के और चार चक्के वाले ट्रैक्टर्स, बाज़ार में उपलब्ध ट्रैक्टरों से लगभग आधे दाम के थे और यही उनकी लोकप्रियता की मुख्य वजह थी। पहले प्रयोग की सफलता के बाद भांजीभाई ने अपने बेटे और भतीजे के साथ मिलकर और ट्रैक्टर्स भी तैयार किए (लगभग 9), क्योंकि क्षेत्र के किसानों के बीच इनकी मांग बढ़ रही थी।
भांजीभाई के इस प्रयोग और इसका उपयोग करने वाले किसानों को बड़ा झटका तब लगा, जब क्षेत्रीय यातायात विभाग ने इस ट्रैक्टर के डिज़ाइन में ख़ामियां बताईं। सरकारी विभाग द्वारा इस विरोध के बाद भांजीभाई को एक ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने पड़े, जिसके तहत उन्होंने स्वीकार किया कि अब वे इन ट्रैक्टरों का इस्तेमाल नहीं करेंगे। हालांकि, इस रुकावट के बाद भांजीभाई की मुहिम को, ग्रासरूट्स इनोवेशन ऑगमेंटेशन नेटवर्क (जीआईएएन) की मदद से एक नई दिशा मिली। जीआईएएन ने भांजीभाई के डिज़ाइन की ख़ामियां दूर करके, मानकों के अनुरूप बनाने में मदद की। इतना ही नहीं नेटवर्क ने एक बड़े ग्राहक वर्ग तक पहुंच बनाने में भी भांजीभाई का साथ दिया।
नैशनल इनोवेशन फ़ाउंडेशन (भारत) के संस्थापक और इंडियन इन्स्टीट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट, अहमदाबाद (आईआईएम-ए) के वरिष्ठ प्रोफ़ेसर अनिल के. गुप्ता ने ‘बिज़नेस स्टैंडर्ड’ को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि बड़ी-बड़ी ट्रैक्टर कंपनियां अधिक क्षमता वाले ट्रैक्टरों से अच्छा बिज़नेस ज़रूर कर रहे हैं, लेकिन हमारे देश में किसानों की एक बड़ी आबादी है और उनके बीच आर्थिक विविधताएं भी हैं और इस बात को ध्यान में रखते हुए जल्द ही कम क्षमता यानी 10-12 हॉर्स पावर वाले ट्रैक्टरों के लिए भी फ़ंडिग मिलने लगेगी और वे बाज़ार में नज़र आने लगेंगे।
2002 में जब सौराष्ट्र के किसान जमीन के अंदर पानी के घटते स्तर और बारिश की कमी से जूझ रहे थे, तब उन विपरीत हालात में भांजीभाई एकबार फिर किसानों के लिए एक कारगर उपाय के साथ सामने आए थे। भांजीभाई ने अपनी दूरदर्शिता और प्रयोगशीलता के बल पर महज़ 10 हज़ार रुपयों में उनके गांव से गुज़रने वाली धरफाड़ नदी पर एक चेक डैम बनाया। मकान बनाने वाले एक मिस्त्री और चार मज़दूरों के साथ मिलकर भांजीभाई ने सिर्फ़ चार दिनों में यह बांध बनाकर तैयार कर दिया था। इस बांध की मदद से आस-पास के इलाकों में हरियाली बढ़ने लगी और कुंओं के पानी का स्तर भी बढ़ने लगा। भांजीभाई का नया प्रयोग एक बार फिर किसानों के लिए मददगार साबित हुआ और किसानों ने उनसे ऐसे ही और बांध बनाने की मांग की। किसानों की मांग के मद्देनज़र भांजीभाई ने कम लागत वाले चेक डैम्स बनाने की शुरूआत की और उनकी यह मुहिम अभी तक जारी है।
भांजीभाई ने ‘द हिंदू’ से बातचीत करते हुए इन बांधों से होने वाले फ़ायदों के बारे में जानकारी देते हिए बताया कि सिंचाई का अगला सबसे बड़ा वैकल्पिक स्त्रोत कुंए हैं, जबकि साल-दर-साल बारिश की कमी की वजह से ज़मीन के नीचे पानी का स्तर तेज़ी से कम होता जा रहा है। चेक डैम्स की मदद से बारिश के पानी को रोकने में मदद मिलती है और ग्राउंडवॉटर का स्तर भी बढ़ता है, उन्होंने आगे कहा।
अपनी असाधारण और दूरदर्शी सोच के साथ नए प्रयोगों से किसानों की ज़िंदगी में हरियाली लाने वाले भांजीभाई के काम को ख़ूब सराहना भी मिली। 2017 में नैशनल इनोवेशन फ़ाउंडेशन ने भांजीभाई को लाइफ़टाइम अचीवमेंट पुरस्कार से नवाज़ा। इसके साथ-साथ, भांजीभाई दक्षिण अफ़्रीका में हुई कॉमनवेल्थ साइंस काउंसिल में भारत का प्रतिनिधित्व भी कर चुके हैं। वह नैशनल इनोवेशन फ़ाउंडेशन की अनुसंधान सलाहकार समिति (रिसर्च अडवाइज़री कमिटी) के सदस्य भी रह चुके हैं।
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