दूसरों को शिक्षित करने के लिए 'कुसुम भंडारी' ने झोंक दी अपनी जिंदगी...
1976 में संभाली ‘बाल निलाया’ की कमानपूर्वी भारत में शुरू किया यूनेस्को क्लबआला दर्जे की रही हैं ‘फोटोग्राफर’ज्योतिष के क्षेत्र में डॉक्टर ऑफ फिलॉसफी से सम्मानित
वो एक शिक्षाविद्, फोटोग्राफर, कला प्रेमी और ज्योतिषी हैं। वो मोंटेसरी बाल निलाया का चेहरा भी हैं। ये एक स्कूल है, जो पश्चिम बंगाल में मोंटेसरी शिक्षा का बीड़ा उठा रहा है। कुसुम भंडारी को कोलकाता में कौन नहीं जानता। इन्होने ग्रेजुएशन करने के बाद एक प्ले स्कूल में काम करना शुरू किया साथ ही साथ मोंटेसरी की ट्रेनिंग भी ली। ये उस वक्त की बात है जब मैडम मोंटेसरी का भारतीय संगठन और एसोसिएशन मोंटेसरी इंटरनेशनल (एएमआई) के लोग कोलकता के दौरे पर थे। तब कुसुम ने उनके एक कोर्स में दाखिला ले लिया।
मोंटेसरी कोर्स के दौरान ही कुसुम की मुलाकात अपनी होने वाली सास से भी हुई जो बाल निलाया की संस्थापक थी। ट्रेनिंग खत्म होने के बाद कुसुम की शादी हो गई और उन्होने साल 1976 में बाल निलाया की कमान अपने हाथों में संभाल ली। वो बताती हैं कि कोलकाता में मोंटेसरी आंदोलन उसी जगह से शुरू हुआ था जहां आज बाल निलाया का घर है। जहां पर मैडम मोंटेसरी के बेटे मारियो मोंटेसरी ने 70 के दशक में दौरा भी किया था।
कुसुम का कहना है कि स्कूल की कमान संभालने के बाद उन्होने पढ़ाने के तरीके और सीखने को लेकर काफी कुछ सीखा। इस दौरान उन्होने बच्चों की मानसिकता को भी समझने की कोशिश की। आज सालों बाद उनको बच्चों के साथ बातचीत करने में ये सब चीजें मददगार साबित होती हैं। आज कुसुम भंडारी एक प्रख्यात शिक्षाविद हैं। जिन्होने अपनी सारी जिंदगी अच्छी गुणवत्ता वाली शिक्षा व्यवस्था समाज के हर क्षेत्र तक पहुंचाने में लगा दी। पिछले 4 दशकों से वो इस क्षेत्र में आगे की सोच रखने वाली, उद्यमी, दूरदर्शी और परोपकारी के तौर पर जानी जाती हैं। उन्होने शिक्षा के क्षेत्र में कई इनोवेशन किये और प्रि-प्राइमरी शिक्षा को कंप्यूटर से जोड़ने की कोशिश की।
मोंटेसरी हाउस चलाने के अलावा कुसुम एक शोधकर्ता भी हैं। वो गंभीरता से उचित शैक्षिक मुद्दों को उठाना भी जानती हैं। कुसुम ने करीब 20 साल पहले पूर्वी भारत में यूनेस्को क्लब की शुरूआत की थी। कुसुम भंडारी के कई तरह के शौक हैं। हालांकि मोंटेसरी शिक्षा उनका प्राथमिक शौक है। बाल निलाया में चार-पांच साल की कड़ी मेहनत और समपर्ण के बाद उन्होने तय किया कि उनको जिंदगी के और पहलुओं पर भी ध्यान देना चाहिए। इसके लिए उन्होने रिश्तेदार से एक कैमरा लिया और कई फोटो खींचे, लेकिन कुछ फोटो खींचने के बाद उनको लगा कि इस काम को गंभीरता से करने की जरूरत है। उस दौरान कोलकता में राष्ट्रीय कांग्रेस का सत्र चल रहा था और उसमें तब की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी इसमें हिस्सा लेने के लिए शहर में मौजूद थी। फोटग्राफी के शौक के कारण कुसुम ने भी फैसला लिया कि वो इस सत्र में जाएंगी और कई सारे फोटो लेंगी। शहर के कुछ कांग्रेसियों की मदद से कुसुम को सत्र में हिस्सा लेने के लिए पास भी मिल गये। नेताजी इंडोर स्टेडियम में आयोजित हो रहे इस सत्र में कुसुम के खींचे फोटो को ‘Illustrated Weekly’ ने लगातार तीन हफ्तों तक अपनी पत्रिका में जगह दी। इसके अलावा कई स्थानीय अखबारों में भी उनके खींचे फोटो दिखाए गये। कुसुम ने हार्वर्ड से फोटोग्राफी का कोर्स भी किया।
साल 1985 में कुसुम कुंभ मेले में गई जिसके बाद उन्होने अपनी खींची फोटो की प्रदर्शनी लगाई। इस प्रदर्शनी का उद्घाटन प्रसिद्ध फिल्मकार मृणाल सेन ने किया। जिसके बाद उन्होने ‘Men with Beards’ नाम से एक सीरिज तैयार की। जिसमें उन्होने खुद से खींचे पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर, श्याम बेनेगल, विजय तेंदुलकर, अलीक पद्मसी के कई चित्रों को इसमें जगह दी। जिज्ञासु प्रवृति की कुसुम ज्योतिष की भी बेहतरीन छात्रा रही हैं यही कारण है कि साप्ताहिक संडे मैगजीन के अलावा और कई पत्रिकाओं में नियमित तौर पर उनके कॉलम छपते रहे हैं। उन्होने आधुनिक और वैज्ञानिक ज्योतिष के क्षेत्र में अपनी पढ़ाई की। एक छात्र के तौर पर उन्होने इसकी क्षमताओं की खोज की जिसको वो दिन-प्रतिदिन की भविष्यवाणी से भी आगे ले गई। कुसुम को एस्ट्रो-मेडिको विज्ञान के क्षेत्र में डॉक्टर ऑफ फिलॉसफी की उपाधि दी गई। वो हारूकी मुराकामी की डाईहार्ड प्रशंसक रही हैं। कुसुम ने उनके लिखे सभी नॉवेल को पढ़ चुकी हैं बावजूद इसके उनको उन नॉवेल को दोबारा पढ़ने में खूब मजा आता है।