न गरीबी आड़े आई, न सरकारी स्कूल की पढ़ाई, बन गए अफसर
न्यायाधीश बन गए पंजाब के युवा अजय कुमार सिंह और आईपीएस ट्रेनिंग बीच में छोड़कर आईएएस सेलेक्ट हो गए युवा अजय कुमार ने साबित कर दिया है कि किस्मत या संयोग नाम की कोई चीज नहीं होती है। अपनी मेहनत, अपने विवेक और अपनी लगन से जिंदगी में कुछ भी हासिल किया जा सकता है। उन्होंने ऐसा कर दिखाया है।
अजय कुमार कहते हैं कि सरकारी स्कूलों में पढ़ते हुए उन्होंने तो कभी कल्पना भी नहीं की थी कि वह इतनी बड़ी प्रशासनिक सेवाओं के लिए दो बार सेलेक्ट हो जाएंगे लेकिन उन्हें अपनी प्रतिभा और मेहनत पर विश्वास था।
जब अक्सर ऐसा लगने लगता है कि सफलता हाथ नहीं आ रही है, तो शायद अपनी कोशिशों में ही कोई कमी रह गई होती है। भौतिक विज्ञान की क्वांटम थ्योरी भी यही कहती है कि अगर आप बार-बार तक कोशिश करते रहेंगे, एक दिन दीवार के बीच से भी निकल सकते हैं। बार-बार टकराने से दीवार के कणों में स्पंदन होता रहेगा, जिसकी वजह से शायद दीवार के बीच से निकल पाना भी संभव हो जाए। पंजाब के अजय कुमार सिंह और हिमाचल के अजय कुमार की सफलताओं से तो यही सबक मिलता है।
कभी-कभी संतानों की कामयाबी के ऐसे वाकयात पढ़ने-सुनने को मिलते हैं, अपरिचित होते हुए भी आज के जमाने में ऐसे युवाओं पर गर्व होने लगता है। उनकी बेमिसाल सफलता पर मन खुद की बधाई देने लगता है। ऐसे ही हैं अबोहर (पंजाब) के तंदूर पर रोटियां पकाकर घर की गाड़ी खींच रहे माता-पिता के न्यायाधीश बन गए पुत्र अजय कुमार सिंह और ऊना (हिमाचल) के युवा आईएएस बने अजय कुमार। अबोहर के अजय कुमार सिंह के पिता बलवीर सिंह और मां आशा रानी अबोहर की आनंद नगरी में तंदूर पर रोटियां पकाती हैं। उनके परिवार में आज तक किसी ने दसवीं तक की भी पढ़ाई नहीं की है।
अजय कुमार सिंह के घर में गरीबी का ऐसा आलम था कि अजय कुमार सिंह को अपनी नौवीं क्लास की पढ़ाई छोड़कर नौकरी करने की नौबत आ गई। वह सीनियर एडवोकेट उदेश कक्कड़ के यहां क्लर्की करने लगे। साथ ही उसी दौरान प्राइवेट बारहवीं तक की पढ़ाई भी कर ली। इसके बाद उन्होंने अबोहर के खालसा कॉलेज से बीए किया और पंजाब विश्वविद्यालय के बठिंडा सेंटर से एलएलबी। उसके बाद न्यायिक सेवा परीक्षा की तैयारी में जुट गए और बिना कोचिंग के पीसीएस ज्यूडिशियल की परीक्षा दूसरी बार में ही पास कर ली। अब वह जज बन गए हैं। वह कहते हैं कि कोई गरीब हो या अमीर, मेहनत का फल तो मिलता ही है। उनके माँ-बाप ने खुद को आग पर तपाते हुए कामयाबी के इस ऊंचे मोकाम तक पहुँचाया है।
जरूरी नहीं कि कॉन्वेंट में पढ़कर ही कोई युवा जीवन में ऊंची छलांग लगा सकता है। पंजाब के अजय कुमार सिंह की तरह के एक और अजय कुमार ऊना (हिमाचल प्रदेश) हैं, जिन्होंने सरकारी स्कूल से पढ़ाई पूरी की और इसी साल हरियाणा कॉडर के आईएएस सेलेक्ट हो गए। उनकी पढ़ाई पांचवीं क्लास तक अभयपुर प्राइमरी स्कूल से, दसवीं तक गौंदपुर बनेहड़ाई हाई स्कूल से हुई। उसके बाद इंटर कर उन्होंने दिल्ली इंजीनियरिंग कॉलेज से एमबीए भी किया। इस समय वह रोहतक (हरियाणा) जिला मुख्यालय पर एडीसी हैं। उनके पिता गुरुदेव हिमाचल के लोकनिर्माण विभाग में काम करते हैं। अजय पहली कोशिश में आईपीएस सेलेक्ट हो गए थे, उनको हिमाचल कॉडर मिला और वह ट्रेनिंग पर भी चले गए लेकिन उसी बीच आईएएस परीक्षा में पास हो गए।
अजय कुमार कहते हैं कि सरकारी स्कूलों में पढ़ते हुए उन्होंने तो कभी कल्पना भी नहीं की थी कि वह इतनी बड़ी प्रशासनिक सेवाओं के लिए दो बार सेलेक्ट हो जाएंगे लेकिन उन्हें अपनी प्रतिभा और मेहनत पर विश्वास था। अपने तीन भाइयों में मझले अजय एक आईएएस के रूप में अपने देश की सेवा करना चाहते हैं। उनके पिता गुरुदेव कहते हैं कि वह शुरू से ही पढ़ाई में अव्वल आता रहा है। वह तो बेटे को विज्ञान का टीचर बनाना चाहते थे, लेकिन उसने ऐसा सपना साकार किया कि वह खुद उसकी योग्यता से हतप्रभ हैं।
इसीलिए कहते हैं कि लक्ष्य के प्रति समर्पित इंसान के लिए विफलता जैसी कोई चीज नहीं होती है। अगर एक दिन में आप सौ बार गिरते हैं तो इसका मतलब हुआ कि आपको सौ सबक मिल गए। अगर आप अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित हो जाएं, तो आपका दिमाग भी उसी तरह सुनियोजित हो जाएगा। जब आपका दिमाग सुनियोजित रहेगा तो आपकी भावनाएं भी उसी के अनुसार रहेंगी, क्योंकि जैसी आपकी सोच होगी, वैसी ही आपकी भावनाएं होंगी। एक बार जब आपकी सोच और आपकी भावनाएं सुनियोजित हो जाएंगी, आपकी ऊर्जा की दिशा भी वही होगी और फिर आपका शरीर भी एक लय में आ जाएगा। जब ये चारों एक ही दिशा में बढ़े तो लक्ष्य हासिल करने की आपकी क्षमता गजब की होगी। फिर कई मायनों में आप अपने भाग्य के रचयिता होंगे। अजय कुमार सिंह और अजय कुमार ने तो कुछ ऐसा ही साबित कर दिखाया है।
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