सपनों में रंग भरती महिला नौकरशाह
उत्तर प्रदेश की वे महिला अॉफिसर्स जो नौकरशाही के रास्ते लाखों दिलों की शाह बन गई हैं।
"औरत शक्ति है, ये फलसफा सैकड़ों दफा हकीकत की सरज़मीं पर खुद को साबित कर चुका है। ऐसा कोई क्षेत्र नहीं बचा जो औरत के विजयी पग से अभिसंचित न हुआ हो। इन्हीं सबके बीच उत्तर प्रदेश की महिला अॉफिसर्स ने नौकरशाही को नए अर्थ प्रदान करने के साथ-साथ ये साबित कर दिया है, कि सिविल सेवा सिर्फ जीविकोपार्जन का माध्यम भर नहीं बल्कि एक ऐसा रास्ता है, जिस पर चल कर एक नौकरशाह लाखों दिलों का शाह बन सकता है।"
क्रमश: बी. चंद्रकला, कंचन वर्मा, डॉ. काजल, रोशन जैकब, किंजल सिंहa12bc34de56fgmedium"/>
नई पीढ़ी की तमाम महिला आईएएस अॉफिसर्स अपनी ज़िंदगी में इस कदर आगे बढ़ रहीं हैं, कि पीछे छूटने वाला हर पल उन्हें इतिहास का हिस्सा बनाते हुए लोगों की दुआओं का हकदार भी बना रहा है।
दरअसल राजनेता लोकतंत्र के अस्थायी प्रतिनिधि होते हैं और नौकरशाह स्थायी। अत: नौकरशाहों के माध्यम से ही जनतंत्र के सपनों में रंग भरा जा सकता है। जनता का दु:ख दर्द दूर करने के लिए ऐसा ताना-बाना बुना जा सकता है, कि आईएएस अधिकारी लोगों की स्मृतियों का अविभाज्य हिस्सा बन जायें। नई पीढ़ी की तमाम महिला आईएएस अधिकारी इसी आदर्श को अंगीकार करते हुए अपनी जिन्दगी में इस कदर आगे बढ़ रहीं हैं कि पीछे छूटने वाला हर पल उन्हें इतिहास का हिस्सा बनाते हुए लोगों की दुआओं का हकदार भी बना रहा है। पेश है ऐसी ही महिला नौकरशाहों के बारे में कुछ कही-अनकही बातें।
सबसे पहले बात करते हैं बी. चंद्रकला की, जो मौजूदा समय में एक उदाहरण बनकर उभरी हैं। मूलत: आंध्रप्रदेश के रामागुंडम की रहने वाली बी. चन्द्रकला संघ लोक सेवा आयोग द्वारा चयनित 2008 बैच की आईएएस अधिकारी है। बी. चन्द्रकला को उनकी ईमानदारी, मेहनत और लगन के लिए जाना जाता है। डीएम चन्द्रकला अपनी सुलभ छवि के कारण आम जनता में काफी लोकप्रिय हैं।
जिला अधिकारी बी. चन्द्रकला ने विकास कार्यों में भ्रष्टाचारियों के खिलाफ मोर्चा खोलकर अपनी खास पहचान बना ली है। अपनी विकासपरक सोच की वजह से वे महिलाओं के बीच लोकप्रिय हुई हैं। उनकी लोकप्रियता की सबसे बड़ी वजह जनता और खुद के बीच के फासले को कम करना रहा है। वह जनता की समस्याएं बन्द कमरे की बजाय ऑफिस के बरामदे में सुनना पसन्द करती हैं। ग्रीनयूपी-क्लीनयूपी अभियान के तहत बी. चन्द्रकला की टीम ने 36 घंटे तक लगातार सफाई करने का विश्व कीर्तिमान इण्डिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज कराया है। इंडिया बुक और न्यू इण्डिया मैगजीन द्वारा उनको 'स्वच्छ भारत अवार्ड' से भी नवाजा जा चुका है।
बी. चन्द्रकला को बच्चों से काफी लगाव है इसी कारण वह अपने पद पर रहते हुए जिस भी शहर में कार्य करती हैं, वहां स्थित अनाथालयों में जाकर बच्चों से मिलती है और उन्हें भोजन खिलाती, टॉफियां बांटती हैं। उनके इसी आचरण के कारण उन्हें क्रडियर मम्मी भी कहा जाता है। वह खुद भी एक बच्ची की मां है। मथुरा में अपने छोटे से कार्यकाल के बाद जब वे वहां से विदा हुई तो एक अनाथालय के बच्चों का उनसे इतना लगाव हो गया था कि वे उनसे बिछड़ते ही रो पड़े। यही नहीं कई सरकारी विद्यालयों में जाकर बच्चों को पढ़ाने का काम भी करती हैं। पिछले दिनों द बेटर इण्डिया ऑनलाइन वेबसाइट ने रेटिंग जारी की थी। इसमें देश भर में आईएएस अफसरों में बी. चन्द्रकला को तीसरा स्थान मिला था। बी. चन्द्रकला तकनीक से भी खासा जुड़ाव रखती हैं। दीगर है, कि मथुरा के बाद बुलन्दशहर स्थानांतरित हुई बी. चन्द्रकला ने विदेश में बैठे-बैठे जिले का ऑनलाइन चार्ज ले लिया था। जो कि सूबे का शायद यह पहला मामला था। जब किसी अधिकारी की ज्वाइनिंग मेल पर हुई। सारी प्रकिया ऑनलाइन हुई और मेल पर ही उन्होंने सीडीओ को चार्ज भी दे दिया था। तब वह दुबई में थीं। संभवत: ये प्रदेश के इतिहास में पहली बार हुआ था। इसलिए इनकी ज्वाइनिंग काफी चर्चा में भी रही थी।
बी. चन्द्रकला के व्यक्तित्व में एक और तमगा उस वक्त जुड़ गया जब उन्हे नेशनल सेंटर फॉर गुड गवर्नेंस मसूरी में विदेशी सिविल सेवा अधिकारियों को प्रशिक्षण के लिए चुना गया। 8 सितम्बर को बी. चन्द्रकला ने बांग्लादेश के 16 डिप्टी कमिश्नर रैंक के अफसरों की क्लास ली और उन्हें गुड गवर्नेन्स के गुर सिखाये।
रौशन जैकब को तो आप आप जानते ही होंगे। रौशन जैकब 2004 बैच की आईएएस हैं। कानपुर में रोशन जैक़ब ने महिला सशक्तिकरण के लिए ‘शक्ति दिवस” की शुरुआत की, जिसमें दहेज उत्पीड़न, घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न और भूमि विवाद जैसी घटनाओं को सुनवाई में रखा गया। योजना की सफलता को देख कर सरकार ने इसे पूरे प्रदेश में लागू कर दिया।
महिलाओं से जुड़े दहेज उत्पीडऩ, बलात्कार, छेड़छाड़ जैसी कई समस्याओं की शिकायत आने पर कानपुर में डीएम रहते हुए डॉ. रौशन जैकब ने शक्ति दिवस कार्यक्रम चलाने के लिए जिला तथा पुलिस प्रशासन को निर्देश दिये। निर्देशानुसार प्रत्येक रविवार को पुलिस लाइन में जिला प्रशासन, पुलिस प्रशासन महिलाओं की समस्या सुनकर जल्द ही निस्तारण किया जाता था। यही नहीं प्रदेश के पिछड़े जिलों में शुमार गोण्डा, डॉ. रौशन जैकब के कार्यकाल में ई-गवर्नेंस के क्षेत्र में राष्ट्रीय क्षितिज पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में कामयाब हुआ।
साथ ही रौशन जैकब ने 'इज़ी गैस' योजना के मार्फत घरेलू गैस उपभोक्ताओं को आसानी से रसोई गैस मुहैया कराने की शुरुआत की। इसके लिए जिले भर में 186 लोकवाणी केन्द्र खोले गये जिसमें ऑन लाइन बुकिंग के लिए 10 रुपये देने होते हैं। बुकिंग के सात दिन के अन्दर गैस सिलेण्डर देना अनिवार्य है।
डॉ. जैकब ने 'किसान साफ्टवेयर' भी विकसित कराया, जिसके माध्यम से गेहूं, धान की बिक्री के साथ ही साथ रासायनिक उर्वरकों और कृषि यन्त्रों की खरीद की बुकिंग भी हो रही है। अब इसी के मार्फत किसान क्रेडिट कार्ड की भी मांग करने लगे हैं। बुकिंग के समय किसान को किसान बही के साथ लोकवाणी केन्द्र पर यह बताना होता है कि उसे अमुक दुकान से कितनी खाद चाहिए होती है। किसानों की पसंद के मुताबिक खाद का आवन्टन दुकानों को किया जाता है। मृदा परीक्षण का कार्य भी किसान सॉफ्टवेयर के मार्फत कराया जा सकता है।
डॉ. जैकब कहती हैं, 'किसान इम्फॉर्मेशन सिस्टम एण्ड नेटवर्क' प्रणाली को सरकार पूरे प्रदेश में लागू करने जा रही है।
इस सराहनीय कार्य के लिए उन्हें तकनीकी सेवाओं के क्षेत्र में दक्षिण एशिया के सबसे बड़े सम्मान 'मंथन अवॉर्ड' से सम्मानित किया गया। डॉ. जैकब को केन्द्र सरकार के सूचना एवं तकनीकी विभाग की ओर से भी ई-इण्डिया अवॉर्ड से सम्मानित किया जा चुका है। साथ ही ई-गवर्नेंस के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित की जा चुकी हैं।
2008 बैच की आईएएस अधिकारी किंजल सिंह थारु जनजाति की लड़कियों को मेन स्ट्रीम में लाने के लिए विशेष प्रोजेक्ट चला रही हैं, जिसके अंतर्गत लड़कियों को लो कॉस्ट बिल्डिंग मटीरियल बनाना, पेपर बनाने के साथ-साथ अपने स्वास्थ्य पर ध्यान देना सिखाया जाता है।
आईएएस अधिकारी किंजल सिंह ने थारू जनजाति की लड़कियों को मेन स्ट्रीम में लाने के लिए विशेष प्रोजेक्ट चलाया है। इस प्रोजेक्ट के तहत पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से मिल कर लड़कियों के लिए विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम भी शुरू करया पूर्व सीएम इसके लिए किंजल सिंह की तारीफ कर चुके हैं।
बहराइच के पांच वन गांवों में महिलाओं के लिए शौचालय मुहैया नहीं है। वन कानून इन गांवों में स्थायी निर्माण की छूट नहीं देता है। जिले में स्वच्छता जागरूकता अभियान चला रही जिलाधिकारी किंजल सिंह को एक कार्यक्रम के दौरान एक छात्रा ने यह जानकारी दी। जिलाधिकारी ने भी अपने स्तर से तमाम कोशिश कीं, कि शौचालयों का स्थायी निर्माण हो सके। पर सम्भव नहीं हुआ।
राजस्व गांवों में परिवर्तन भी काफी मुश्किल था। उन्हें किसी से पता चला कि उत्तराखण्ड के किसी गांव में प्लास्टिक मोल्डेड टॉयलेट लगे हैं। जिलाधिकारी ने वहां अपने किसी हुक्मरान को भेजा तो पता चला कि महाराष्ट्र की कोई कम्पनी यह टॉयलेट बनाती है। इसके लिए जनता से ही पांच लाख रुपये का फण्ड जुटाया और 11 हजार की लागत वाले 50 से ज्यादा टॉयलेट इन पांचों वन गांवों में बनवा कर एक मिसाल कायम की। गांव की एक विधवा स्त्री ने इन शौचालयों के लिए अपनी जमीन दान की। इसके लिए सुलभ संस्था ने इस महिला को अपना ब्राण्ड अम्बेसडर बनाया। महिला को हर माह 10 हजार रुपये खर्च के रूप में देने का भरोसा भी दिलाया।
अब बात करते हैं आईएएस अधिकारी डॉ. काजल के बारे में। डॉ. काजल ने ‘मीनोपॉज हाइजीन मैनेजमेंट’ को लेकर रिसर्च की। रिसर्च के बाद निकले परिणाम के आधार पर हाइजीन को लेकर जिला पंचायतीराज विभाग महोबा के तहत कुटीर उद्योग के जरिए कम दर पर सैनेटरी नैपकीन उपलब्ध कराने में सफलता हासिल की।
डॉ. काजल 2008 बैच की आईएएस अॉफिसर हैं। डॉ. काजल ने 'मीनोपॉज हाइजीन मैनेजमेंट' को लेकर रिसर्च की। रिसर्च के बाद निकले परिणाम के आधार पर हाइजीन को लेकर जिला पंचायती राज विभाग महोबा के तहत कुटीर उद्योग के जरिये कम दर पर सैनेटरी नैपकीन उपलब्ध कराने में सफलता हासिल की।
दरअसल बुंदेलखंड की निर्धनता ने वहां की बेटियों और महिलाओं का जीवन माहवारी काल में अत्यंत दुष्कर कर दिया था। उचित साफ़ सफाई के अभाव ने महिलाओं में फैलते संक्रमण के चलते बुंदेलखंड में करीब 20 फीसद महिलाएं नि:संतान रह जाती थीं। यही वजह है कि इस क्षेत्र में स्त्री-पुरुष अनुपात 835/1000 है और यह देश में लैंगिक अनुपात का सबसे निम्न आंकड़ा है। इस बीच, महोबा में खामोशी के साथ आगे बढ़ी एक क्रांति ने यहां की लड़कियों-महिलाओं को जीवन में बड़ा परिवर्तन लाया।
महोबा की जिलाधिकारी डॉ. काजल को यहां की महिलाओं की तकलीफ का एहसास हुआ। नतीजतन उन्होंने 'फिफ्थ इस्टेट’ नाम से चलने वाली स्वयंसेवी संस्था (जो इस मुद्दे पर काम कर रही थी) की मदद करने का फैसला लिया। डॉ. काजल ने ग्राम पंचायत अधिकारी अनिल सेंगर को निर्देश दिया कि वे हापुड़ जिले के सोलाना सैनिटरी नैपकिन यूनिट को देखकर आयें और उसके मुताबिक एक बिज़नेस प्लान तैयार करें, लेकिन सेंगर खाली हाथ लौट आये क्योंकि सोलाना की यूनिट बंद हो गई थी।
महिला जिलाधिकारी डॉ. काजल ने इस पर भी हार नहीं मानी। उन्होंने सेंगर को कोयंबटूर भेजा, जहां इस तरह की एक इकाई काम कर रही थी। इसके बाद डॉ. काजल ने महोबा में सैनिटरी यूनिट बैठाने के लिए मशीन आदि की खरीद के लिए 3.5 लाख रुपए मंजूर किए, पर इससे पहले कि उनका सपना साकार होता, उनका तबादला कहीं और हो गया। अच्छी बात यह रही कि अब तक इलाके में महिलाओंं की स्थिति में सुधार को लेकर खासी जागरुकता आ चुकी थी। इसीलिए जब नए जिलाधिकारी अनुज कुमार झा आये तो उन्होंने काम को वहीं से शुरू किया, जहां डॉ. काजल छोड़ गईं थीं। उन्होंने एक साल के भीतर महोबा में एक और सैनिटरी यूनिट लगाने के लिए खादी और ग्रामोद्योग आयोग से चार लाख रुपए का एक और लोन मंजूर करा लिया।
इलाके में सैनिटरी यूनिट लग जाने से न सिर्फ महिलाओं को रोजगार मिला, बल्कि उनकी जिंदगी में इससे क्रांतिकारी बदलाव आया। शुरुआत में 8 सैनिटरी नैपकिन के पैक की कीमत महज 10 रुपए रखी गई। पर बाद में महंगाई को देखते हुए इसकी कीमत 6 नैपकिन के पैक की 15 से 18 रुपए कर दी गई। बढ़े दाम के बावजूद यह बाजार में उपलब्ध दूसरे नैपकिन पैक से सस्ता ही है। दिलचस्प है कि सैनिटरी नैपकिन बनाने वाली यूनिटों में मैटरनिटी पैड भी बनाए जा रहे हैं। इसके 6 पैड की कीमत महज 48 रुपए रखी गई है, जबकि बाज़ार में यह 300-400 रुपए में मिलते हैं।
सस्ते सैनिटरी नैपकिन और मैटरनिटी पैड की मांग देखते ही देखते बुंदेलखंड के दूसरे जिलों के अलावा सूबे के अन्य हिस्सों से भी शुरू हो गई। इस सस्ते नैपकिन को 'सुबह’ नाम दिया गया है। 'सुबह’ से महिलाओं की जिंदगी में स्वास्थ्य और स्वच्छता की दृष्टि से परिवर्तन आया ही, उन्हें आर्थिक सबलता भी मिली। इससे अकेले महोबा जिले की सौ से ज्यादा महिलाओंं को रोजगार मिल चुका है। उन्हें जहां हर महीने 3000 से 3500 रुपए की नियमित आय हो रही है, 'सुबह’ की सफलता इसी बदलाव की दास्तां है, जिसमें स्वास्थ्य और स्वच्छता से जुड़े कई मामलों में ग्रामीण महिलाओंं ने शहरी महिलाओं को भी पीछे छोड़ दिया है।
कंचन वर्मा 2005 बैच की आईएसए हैं। वे काफी तेज तर्रार अधिकारी मानी जाती हैं।
कंचन वर्मा ने 2012 में फतेहपुर की डीएम रहते हुए सूख चुकी ठीठौरा झील और ससुर खदेरी नदी को को पुनर्जीवित करने के लिये कदम उठाया और वह सफल हुईं।
ससुर खदेरी नदी 46 किलोमीटर लंबी थी। उन्होंने डीएम के पद पर रहते हुए 38 किलोमीटर तक की खुदाई करवा दी, जिसके बाद नदी 12 से लेकर 45 मीटर की चैड़ाई में बहनी शुरू हो गई। इसके लिए उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सम्मान भी मिला। कंचन वर्मा को बीते 20 अगस्त 2016 को मलेशिया में कॉमनवेल्थ अवार्ड से सम्मानित किया गया है। यह सम्मान उन्हें फतेपुर में डीएम के पद पर कार्यरत रहने के दौरान ससुर खदेरी नदी को पुनर्जीवित करने पर मिला है।
बाराबंकी की जिलाधिकारी के तौर पर एस. मिनिष्ठी ने मातृ और शिशु मृत्यु दर की रोकथाम के लिए अनोखी योजना की शुरुआत की थी। आंगनबाड़ी में गर्भवती का सार्वजनिक तौल और बच्चों का पंजीयन प्रारंभ किया जिससे सार्वजनिक तौल करने से महिलाओं ने अपनी सेहत पर खुद ध्यान देना शुरू किया।
बाराबंकी की जिलाधिकारी एस. मिनिष्ठी ने आंगनबाड़ी में गर्भवती का सार्वजनिक तौल और बच्चों का पंजीयन योजना के तहत जच्चा-बच्चा की सेहत के सुधार के लिए हीमोग्लोबिन की लगातार ट्रैकिंग का सिस्टम तैयार किया है। सेनेटरी नेपकिन बनवाने का बाकायदा उद्योग लगवाया। मसौली में इसकी एक यूनिट भी लग गयी। इसके मार्फत कम पैसे में उच्च स्तरीय सेनेटरी नैपकिन तैयार हुए और इन्हें कस्तूरबा गांधी आवासीय स्कूलों, समाज कल्याण विभाग, सरकारी हास्टल, सामुदायिक व प्राथमिक चिकित्सा केन्द्रों पर आपूर्ति करके महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने का कार्य किया गया।
इन्हीं सबके साथ एस. मिनिष्ठी ने जल के स्रोतों के रूप में अपनी जगह खो चुके कुओं की उपयोगिता को भी स्थापित करने की दिशा में मील के पत्थर गाड़ने शुरू कर दिये। वह जिले के हजारों वीरान पड़े और सूख चुके अंग्रेजों के समय के कुओं की सफाई और रंग-रोगन कराने के साथ ही अपनी टीम के साथ निकल कुओं की पूजा-अर्चना कर खुद बाल्टी से पानी निकालती और पीती हैं, ताकि आसपास के लोगों में उन कुओं के पानी को पीने का भरोसा जग सके। हालांकि ग्रामीणों में यह भरोसा जगना शुरू हो गया है।
एस. मिनिष्ठी ने 'मुट्ठी भर अनाज' अभियान की भी शुरूआत की। इसके तहत हर परिवार को मुट्ठी भर अनाज सामुदायिक स्वास्थ्य के लिए दान करना होता है।