प्लास्टिक से निपटने के लिए कागज के पेन बांट रहे साधु कृष्ण बिहारी
पर्यावरण की रक्षा के लिए रायबरेली के साधु कृष्ण बिहारी ने शुरू की एक सकारात्मक पहल...
उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले के साधु कृष्ण बिहारी पर्यावरण की रक्षा के लिए व्यक्तिगत स्तर पर एक अनोखी प्लास्टिक विरोधी मुहिम चला रहे हैं। उनके आश्रम में हर माह रद्दी कागज से दस-बारह हजार पेन तैयार कर लोगों को फ्री में बांटा जा रहा है। इस काम में महिलाएं भी बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रही हैं। उनको पारिश्रमिक भी दिया जाता है।
भारतीय प्रतिदिन पंद्रह हजार टन प्लास्टिक कचरे में फेंकते हैं। प्लास्टिक प्रदूषण के कारण पानी में रहने वाले करोड़ों जीव-जन्तुओं की जान जाती है। यह धरती और जनजीवन के लिए खतरा बन चुका है।
पहले एक मूक संवाद सुनिए कागज और कलम के बीच। कलम से कागज कहता है- 'दोस्त, जब कोई मुझे कैंची से काटता है तो दर्द से मेरी चीख निकल जाती है लेकिन उसे कोई सुन भी नहीं पाता।' कलम का जवाब होता है- 'दोस्त, मेरा हाल तुमसे भी गया-बीता है। बच्चे मेरी निब तोड़ते रहते हैं।' पिछले साल जापानी कंपनी एजिक ने एक ऐसा पेन बनाया, जिससे कागज पर लकीरें खींचने पर उसमें करंट दौड़ने लगता है। वह कागज भी खास तरह का होता है। पेन में बिजली वाली स्याही भरी होती है। पेन में जिस खास इंक का इस्तेमाल होता है, उसमें सिल्वर कंडक्टिव नैनो कण होते हैं। बाद में उस इंक को मिटाने वाला एक इरेजर भी बनाया गया। यह अजूबा तो एक साल पुराना हो चुका।
काफी समय से पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए प्लॉस्टिक विरोधी घरेलू स्तर पर तैयार हो रहे नए-नए अजूबे सामने आ रहे हैं, उन्हीं में है कागज का पेन अथवा पेन स्टैंड। चाइना कागज, बांस और लकड़ी से पारिस्थितिकी पेन बनाकर बेच रहा है, जो विश्व बाजार में काफी लोकप्रिय हो चुका है लेकिन रायबरेली (उ.प्र.) के एक साधु हर माह कागज के दस-बारह हजार पेन बनाकर फ्री बांट रहे हैं। रायबरेली के खांदेश्वरी आश्रम के ये साधु कृष्ण बिहारी चाहते हैं कि लोग प्लास्टिक का कम से कम इस्तेमाल करें क्योंकि यह पर्यावरण के लिए बहुत घातक हो चुका है। उनके आश्रम में पुराने अखबार और बेकार पड़े रद्दी को कागज का पेन बनाने में इस्तेमाल किया जाता है।
गौरतलब है कि प्लास्टिक से बनी वस्तुओं के जमीन या जल में इकट्ठे होने से प्रदूषण एक बड़े संकट की तरह सामने आ रहा है। इससे वन्य जीवों के साथ ही मानव आबादी पर भी गंभीर असर देखा जा रहा है। इसीलिए सरकार भी प्लास्टिक की खपत में कमी के लिए प्रयासरत है। प्लास्टिक की रीसाइक्लिंग को बढ़ावा दिया जा रहा है। प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के लिए भारत सरकार के प्रयासों की संयुक्त राष्ट्र संघ भी प्रशंसा कर चुका है। वर्ल्ड इकोनोमिक फोरम के मुताबिक भारत में हर साल छप्पन लाख टन प्लास्टिक कूड़ा पैदा होता है। दुनियाभर में जितना कूड़ा सालाना समुद्र में डम्प किया जाता है, उसका साठ प्रतिशत भारत डम्प करता है।
भारतीय प्रतिदिन पंद्रह हजार टन प्लास्टिक कचरे में फेंकते हैं। प्लास्टिक प्रदूषण के कारण पानी में रहने वाले करोड़ों जीव-जन्तुओं की जान जाती है। यह धरती और जनजीवन के लिए खतरा बन चुका है। कोका-कोला, इनफोसिस, हिलटन जैसी कंपनियां प्लास्टिक प्रदूषण में कमी लाने की शपथ ले चुकी हैं। तीन तरीकों (री-यूज, री-साइकिल, रिड्यूज) से प्लास्टिक प्रदूषण में कमी लाई जा रही है। केंद्र सरकार ने कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में प्लास्टिक प्रदूषण रोकने के लिए प्लास्टिक केरी बैग्स पर पूरी तरह पहले से ही रोक लगा रखी है।
साधु कृष्ण बिहारी बताते हैं कि लोग अब खांदेश्वरी आश्रम में कागज के पेन बनाने में रोजाना उनकी मदद करने लगे हैं। इसके बदले उनको पारिश्रमिक भी दिया जाता है। इससे कई लोगों को रोजगार मिलने लगा है। इसमें खास तौर से क्षेत्र की स्थानीय महिलाएं ज्यादा हाथ बंटा रही हैं। आश्रम में रोजाना कागज के कम से कम चार-पांच सौ पेन तैयार हो जाते हैं। कृष्ण बिहारी का कहना है कि कागज घुलनशील होता है। मिट्टी-पानी में मिल जाता है। इससे पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं होता है। आश्रम में हाथोहाथ हर माह तैयार हो रहे लगभग दस-बारह हजार कागज के पेन लगातार लोगों को फ्री में बांटे जा रहे हैं।
पर्यावरण सुरक्षा के लिए व्यक्तिगत स्तर पर प्लास्टिक विरोधी अभियान चला रहे कृष्ण बिहारी कहते हैं कि जिस प्लास्टिक को वैज्ञानिकों ने मानव जाति की सुविधा के लिए ईजाद किया था, वह भस्मासुर बनकर समूचे पर्यावरण के विनाश का कारण बनता जा रहा है। इसकी सबसे बड़ी खूबी ही दुनिया के लिए सबसे खतरनाक साबित हो रही है। धरती से लेकर समुद्र तक हर तरफ प्लास्टिक ही प्लास्टिक। पीने के पानी में हम प्लास्टिक पी रहे हैं, नमक में प्लास्टिक खा रहे हैं। सालाना लाखों जल जीव प्लास्टिक प्रदूषण से मर रहे हैं। इसका सबसे ताजा उदाहरण थाईलैंड में देखने को मिला है, जहां एक व्हेल मछली अस्सी से अधिक प्लास्टिक बैग निगल जाने के कारण मर गई। दुनिया की यह दुर्गति हमारी अपनी वजह से हुई है। हम विकल्पों की तरफ देखना ही नहीं चाहते।
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