खेल को उसका सही सम्मान और स्थान देगी भारत सरकार की खेलो इंडिया स्कीम
सरकार ने 10 साल की उम्र से ही प्रतिभावान खिलाड़ी बच्चों का पोषण करने का फैसला किया है। सरकार हर साल एक हजार बच्चों को चुनेगी और उन्हें अगले आठ साल तक पांच लाख रुपए सालाना वजीफा देगी ताकि वह अपने खर्चे उठा सकें और केवल खेलों पर ही ध्यान दे सकें। बच्चों और किशोरों को अपराध या असामाजिक गतिविधियों से दूर रखने में भी यह योजना सहायक साबित होगी।
क्रिकेट और बैडमिंटन के अलावा अन्य खेलों में भी भारत का परचम विश्व में फहराने के लिए केंद्र सरकार ने अनूठी पहल शुरू की है। खेल मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौर ने नए सिरे से तैयार 'खेलो इंडिया' के कार्यक्रम की घोषणा की। केंद्र सरकार के इस कार्यक्रम में किए गए बदलाव का लक्ष्य देश में खेल की स्थिति व स्तर में सुधार करना है।
इस कार्यक्रम में एक अखिल भारत स्तरीय स्पोर्ट छात्रवृत्ति योजना भी शामिल है, जो चुनिंदा खेलों में प्रति वर्ष 1,000 प्रतिभावान युवा खिलाड़ियों को कवर करेगी। इस योजना के तहत चुने गए हर एथलीट को सालान तौर पर पांच लाख रुपये की छात्रवृत्ति आठ साल तक लगातार मिलेगी।
सरकार ने 10 साल की उम्र से ही प्रतिभावान खिलाड़ी बच्चों का पोषण करने का फैसला किया है। सरकार हर साल एक हजार बच्चों को चुनेगी और उन्हें अगले आठ साल तक पांच लाख रुपए सालाना वजीफा देगी ताकि वह अपने खर्चे उठा सकें और केवल खेलों पर ही ध्यान दे सकें। बच्चों और किशोरों को अपराध या असामाजिक गतिविधियों से दूर रखने में भी यह योजना सहायक साबित होगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में ‘खेलो इंडिया’ कार्यक्रम के पुनरुत्थान योजना को मंजूरी दी गई। बैठक के बाद खेल एवं युवा मामलों के मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौर ने एक संवाददाता सम्मेलन में बताया कि देश को अच्छे खिलाड़ियों को पैदा करने के लिए बुनियादी ढांचा के विकास के साथ खेलों के चहुंमुखी विकास पर ध्यान दिया जाएगा। इस कार्यक्रम को व्यक्तिगत विकास, सामुदायिक विकास, आर्थिक विकास और राष्ट्रीय विकास के रूप में खेलों को मुख्य धारा से जोड़े जाने के फलस्वरूप भारतीय खेलों के इतिहास में यह एक उल्लेखनीय उपलब्धि का क्षण है।
क्रिकेट के अलावा अन्य खेलों को भी प्रोत्साहन-
अगर हम गौर करें तो ये पाएंगे कि क्रिकेट को जितना बढ़ावा दिया गया अगर उतना किसी और खेल को भी दिया जाता तो शायद आज माहौल कुछ और ही होता। हर जगह सिर्फ और सिर्फ क्रिकेट का प्रचार किया जाता है। समाचार चैनलों, समाचार पत्रों, पत्रिकाओं और फिल्म में, हर जगह स्पोर्ट्स के नाम पर केवल क्रिकेट। अब अगर कोई क्रिकेटर बनना चाहता है तब तो बल्ले-बल्ले। लेकिन मान लीजिए अगर कोई तैराक बनना चाहता है तो उसे प्रोत्साहन ही नहीं मिलता था। लेकिन अब क्रिकेट और बैडमिंटन के अलावा अन्य खेलों में भी भारत का परचम विश्व में फहराने के लिए केंद्र सरकार ने अनूठी पहल शुरू की है। खेल मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौर ने नए सिरे से तैयार 'खेलो इंडिया' के कार्यक्रम की घोषणा की। केंद्र सरकार के इस कार्यक्रम में किए गए बदलाव का लक्ष्य देश में खेल की स्थिति व स्तर में सुधार करना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इस कार्यक्रम को मंजूरी दी।
फिर से तैयार 2017-18 से 2019-20 अवधि के इस खेल कार्यक्रम पर 1,756 करोड़ रुपये खर्च होंगे। अपने बयान में खेल मंत्रालय ने कहा, 'यह भारतीय खेल जगत के इतिहास में एक आमूल परिवर्तन काल का पल है। इस खेल कार्यक्रम को व्यक्तिगत विकास, सामुदायिक विकास, आर्थिक विकास और राष्ट्रीय विकास के लिए एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया जाएगा।' बयान में कहा गया है, 'फिर से तैयार किया गया 'खेलो इंडिया' कार्यक्रम खेल के पूरे पारिस्थितिकीय तंत्र को प्रभावित करेगा, जिसमें बुनियादी ढांचा, सामुदायिक खेल, प्रतिभा की पहचान, उत्कृष्टता के लिए प्रशिक्षण, प्रतियोगिता संरचना और खेल अर्थव्यवस्था शामिल है।'
स्पोर्ट्सपर्सन बनना कोई 'खेल' नहीं है-
जब भी हम खेल के बारे में बात करते हैं या सोचते हैं तो इसे हम इसे एक टाइमपास या छुट्टियों में मनोरंजन के साधन की तरह देखते हैं। भारत में खेलों की दुर्दशा पर बात करने से पहले अपने दिल पर हाथ रखकर पूछिए कि क्या हम इसे वाकई एक करियर के रूप में मानते हैं? एक शोध के मुताबिक भारत में दस लोगों में से केवल एक इंसान खेल को करियर बनाने के लिए इच्छुक है। ऐसा क्यों है? इसके जवाब में लोगों ने बताया कि वो खेल को एक ऐसी गतिविधि के रूप में मानते हैं जो स्कूल तक ही सीमित है और इसमें आगे कोई भविष्य नहीं। माता- पिता अपने बच्चों को यही रटाते आए हैं कि खेलोगे कूदोगे तो होएगे खराब पढ़ोगे लिखोगे तो बनोगे नवाब।
आप ही बताइए, हममें से कितने लोग हैं जिनका दिल किया हो और उन्हें खेलने दिया गया। लड़कों को तो फिर भी बल्ला उठाकर सामने वाले मैदान में खेलने की अनुमति मिल जाती है लेकिन लड़कियों पर बात आते ही घर वालों के तमाम बहाने शुरू हो जाते हैं। सानिया, साइना, मैरी कॉम और तीन चार और बड़े नाम। बस। लड़कियों के स्पोर्ट्स के नाम पर हमारे देश में उंगलियों पर गिनने भर लायक ही नाम हैं। ये महिलाएं एक अपवाद की तरह ही हैं जिन्होंने जेंडर भेदभाव जैसी कटु मानसिकता से लड़कर खेल में अपना नाम कमाया है। मीडिया किसी की भी छवि बनाने में अहम भूमिका निभाता है।
इस कार्यक्रम में एक अखिल भारत स्तरीय स्पोर्ट छात्रवृत्ति योजना भी शामिल है, जो चुनिंदा खेलों में प्रति वर्ष 1,000 प्रतिभावान युवा खिलाड़ियों को कवर करेगी। इस योजना के तहत चुने गए हर एथलीट को सालान तौर पर पांच लाख रुपये की छात्रवृत्ति आठ साल तक लगातार मिलेगी। संवाददाताओं से राठौर ने कहा, 'हम इस योजना में हर साल 1,000 युवा एथलीट को शामिल करेंगे। हम इन युवाओं को सर्वोत्तम संभव प्रशिक्षण और सुविधा प्रदान करेंगे।' राठौर ने कहा, 'यह पहली बार है कि प्रतियोगी खेलों में उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए प्रतिभाशाली और प्रतिभावान युवाओं के लिए एक दीर्घकालिक विकास मार्ग उपलब्ध कराया जाएगा। इससे अत्यधिक प्रतिस्पर्धी खिलाड़ियों का एक दल तैयार होगा, जो विश्व स्तर पर प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेंगे और सकारात्मक परिणाम देंगे।'
इस कार्यक्रम का लक्ष्य देश में 20 विश्वविद्यालयों को खेल की उत्कृष्टता के केंद्र के रूप में बढ़ावा देना है। इसके तहत प्रतिभाशाली एथलीट अपनी शिक्षा के साथ समझौता किए बिना प्रतियोगी खेलों में आगे बढ़ने में सक्षम हो पाएंगे। खेलमंत्री ने कहा, 'यह सभी चीजें कदम-दर-कदम होती रहेंगी और अभी हम जो कदम उठा रहे हैं, उसमें हम दो बड़ी चीजों पर ध्यान केंद्रित करने वाले हैं। इसमें पहली चीज है खेलों के आधार का विस्तार और दूसरा है देश के शीर्ष स्तरीय खिलाड़ियों को सर्वोत्तम सुविधाएं प्रदान करना।' इस कार्यक्रम के तहत, 10 से 18 साल के आयुवर्ग के करीब 20 करोड़ बच्चों को राष्ट्रीय शारीरिक फिटनेस अभियान में शामिल किया जाएगा। मंत्रालय के अनुसार, इससे ने केवल बच्चों की शारीरिक फिटनेस पर ध्यान दिया जाएगा, बल्कि फिटनेस से संबंधित गतिविधियों को भी समर्थन मिलेगा।
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