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ऑफिस पहुंचने में घंटों समय खर्च करने वालों को राहत, इस स्टार्टअप ने खोजी नई टेक्निक

ट्रैफिक में ज्यादा समय खर्चने से ये स्टार्टअप देता है राहत...

ऑफिस पहुंचने में घंटों समय खर्च करने वालों को राहत, इस स्टार्टअप ने खोजी नई टेक्निक

Monday December 18, 2017 , 5 min Read

क्वार्ट्ज की एक रिपोर्ट के मुताबिक हर ऑफिस जाने वाला व्यक्ति अपने रोजमर्रा की जिंदगी में से दो घंटे सिर्फ आने-जाने के सफर करने में बिता देता है। अगर इसे जोड़ा जाए तो पूरे साल में 470 घंटे सिर्फ ऑफिस आने-जाने में खर्च हो जाते हैं। 

दीपेश अग्रवाल और आकाश माहेश्वरी (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

दीपेश अग्रवाल और आकाश माहेश्वरी (फोटो साभार- सोशल मीडिया)


 इस समस्या का समाधान निकालने के लिए दीपेश अग्रवाल और आकाश माहेश्वरी ने MoveInSync (मूवइनसिंस) की स्थापना की है। जिसका मकसद एक ऐसा प्लेटफॉर्म बनाना है जिसके माध्यम से कंपनियां अच्छी और सस्ती परिवहन सुविधा प्रदान करवा सकें।

इसमें एक ट्रैकिंग मैकेनिज्म भी होता है, जिसके द्वारा रियल टाइम ट्रैकिंग संभव हो पाती है। इसके अलावा किसी विशेष परिस्थिति में कैब में बैठी महिला अगर चताहे तो वह सीधे पुलिस कंट्रोल रूम से कॉन्टैक्ट कर सकती है। 

बेंगलुरु में सफर करने वाला हर व्यक्ति अपने कुल समय का 7 प्रतिशत सड़कों पर गुजार देता है। यहां का ट्रैफिक इतना ज्यादा है कि औसतन हर कर्मचारी को ऑफिस जाने-आने में रोजाना दो घंटे खर्च करने पड़ते हैं। क्वार्ट्ज की एक रिपोर्ट के मुताबिक हर ऑफिस जाने वाला व्यक्ति अपने रोजमर्रा की जिंदगी में से दो घंटे सिर्फ आने-जाने के सफर करने में बिता देता है। अगर इसे जोड़ा जाए तो पूरे साल में 470 घंटे सिर्फ ऑफिस आने-जाने में खर्च हो जाते हैं। वहीं दूसरी ओर किसी भी कंपनी या संस्थान के लिए परिवहन की सुविधा उपलब्ध कराना तीसरा सबसे ज्यादा खर्चीला मद होता है।

यह तो सिर्फ भारत के एक शहर की तस्वीर है। पूरे देश के बड़े शहरों की हालत कमोबेश एक सी है। सड़क पर गाड़ियों के बढ़ते हुजूम की वजह से काफी समय यूं ही व्यर्थ होता रहता है। इस समस्या का समाधान निकालने के लिए दीपेश अग्रवाल और आकाश माहेश्वरी ने MoveInSync (मूवइनसिंस) की स्थापना की है। जिसका मकसद एक ऐसा प्लेटफॉर्म बनाना है जिसके माध्यम से कंपनियां अच्छी और सस्ती परिवहन सुविधा प्रदान करवा सकें। दीपेश कहते हैं कि अभी कंपनी का फोकस सिर्फ उन लोगों की समस्या पर है जो ऑफिस आते-जाते हैं।

वे कहते हैं, 'भारत में कई सारी ऐसी कंपनियां हैं जो अपने कर्मचारियों को घर से लाने और ले जाने की सुविधा उपलब्ध करवाती हैं। MoveInSync कंपनी को ऐसा प्लेटफॉर्म उपलब्ध करवाती है जिसके माध्यम से वे यह जान सकते हैं कि कर्मचारियों की आने-जाने की टाइमिंग क्या है और उन्हें किस तरह का वाहन चाहिए। इन सब चीजों के व्यवस्थित हो जाने से कंपनी की ट्रांसपॉर्टेशन लागत कम हो जाती है।' य़ह प्लेटफॉर्म कर्मचारी को अपने मन मुताबिक आने-जाने का समय निर्धारित करने की सहूलियत प्रदान करता है। इसके साथ ही एक रूट पर पड़ने वाले सभी कर्मचारियों को एक साथ पिक अप या ड्रॉप की सुविधा प्रदान करता है।

MoveInSync ने इसके लिए एक ऐसा एल्गोरिथम तैयार किया है जिसके माध्यम से किसी भी कंपनी की बस या कैब के लिए सबसे सही रूट तैयार करके देता है। MoveInSync का दावा है कि इससे हर रास्ते पर कम से कम 10 मिनट की बचत होती है और आखिर में लगभग 52 मिनट का समय बचता है। दीपेश के मुताबिक तीसरा सबसे बड़ा पहलू ये है कि कर्मचारियों की सुरक्षा का अलग से ध्यान रखा जाता है, खासतौर पर महिला कर्मचारियों का। प्लेटफॉर्म पर यह भी देखा जा सकता है कि कौन सा व्यक्ति इस वक्त ट्रैवल कर रहा है और उसके साथ बैठा हुआ इंसान कौन है। अगर कैब सही रास्ते से नहीं जा रही होती है तो यह प्लेटफॉर्म एक अलर्ट मैसेज भी भेजता है।

मूवसिंस ऐप की तस्वीर

मूवसिंस ऐप की तस्वीर


इस ऐप में एक आपातकालीन बटन की भी सुविधा दी गई है। जिसे दबाने पर मैनेजमेंट चौकन्ना हो जाता है। इसमें हर एक कैब ड्राइवर को वही रास्ता अपनाना होता है जो MoveInSync द्वारा बताया गया रास्ता होता है। इसमें एक ट्रैकिंग मैकेनिज्म भी होता है, जिसके द्वारा रियल टाइम ट्रैकिंग संभव हो पाती है। इसके अलावा किसी विशेष परिस्थिति में कैब में बैठी महिला अगर चताहे तो वह सीधे पुलिस कंट्रोल रूम से कॉन्टैक्ट कर सकती है। इसके लिए MoveInSync ने हैदराबाद पुलिस के महिला सेफ्टी ऐप, हॉक आई का सिस्टम लगाया है। कंपनी SaaS मॉडल पर काम करती है जो कि हर महीने कर्मचारी के हिसाब से बदलाव करती रहती है।

अभी MoveInSync के पूरे देश में कुल 19 शहरों में 50 कंपनियां ग्राहक हैं। दीपेश का दावा है कि लगभग 1.50 लाख कर्मचारी इस सिस्टम का उपयोग कर रहे हैं। इससे सबसे ज्यादा उन बीपीओ कंपनियों को फायदा होगा जो काफी कम मार्जिन पर काम करती हैं। देश के अलावा यह छोटा सा स्टार्टअप विदेशों में भी संभावनाएं तलाश रहा है। इसके लिए फिलीपींस और श्रीलंका में बातचीत जारी है। आगे की योजना के बारे में दीपेश बताते हैं कि दूसरे कैब प्रोवाइडर की बजाय वे खुद अपनी कैब सर्विस कंपनी की ओर कदम बढ़ा रहे हैं, जिससे लागत और समस्याओं में जाहिर तौर पर कमी आ सकेगी।

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