देश भर में लाखों महिलाओं को सशक्त बना रहा है बंधन बैंक
बंधन बैंक के संस्थापक चंद्र शेखर घोष, महिलाओं के हाथों को सशक्त करने के आजीवन मिशन पर है। उन्होंने अपना जीवन महिला सशक्तिकरण और आर्थिक रूप से समावेशी भारत के निर्माण के लिए समर्पित कर दिया है। उनके जीवन की इसी असाधारण कहानी को हम यहां बता रहे हैं।
"बंधन बैंक के संस्थापक चंद्र शेखर घोष ने महिलाओं के हाथों में सत्ता हस्तांतरण और आर्थिक रूप से समावेशी भारत के निर्माण को अपना आजीवन मिशन बना लिया है, जिसका सबसे बड़ा उदाहरण है बंधन बैंक। इस बैंक की शुरुआत एक गैर-मुनाफाकारी संस्था के रूप में हुई थी, जो आगे चलकर बंधन बैंक बन गया। आज, यानि कि दो दशक बाद बंधन बैंक में 1.5 करोड़ से अधिक महिला ग्राहक हैं जो बैंक के कुल 2.2 करोड़ ग्राहक का दो-तिहाई हिस्सा हैं।"
"जो पैसों को नियंत्रित करता है, वही परिवार, समाज और यहां तक कि देश को भी नियंत्रित करता है।" इसी सोच के साथ, लैंगिक समानता के हिमायती और बंधन बैंक के संस्थापक चंद्र शेखर घोष ने महिलाओं के हाथों में सत्ता हस्तांतरण और आर्थिक रूप से समावेशी भारत के निर्माण को अपना आजीवन मिशन बना लिया। यह मिशन 20 साल पहले शुरू हुआ था। हालांकि इसने आधिकारिक रूप लिया 2001 में, जब पहली बार पश्चिम बंगाल के ग्रामीण इलाकों में उन्होंने महिलाओं के लिए माइक्रोफाइनेंस का काम शुरू किया। इसकी शुरुआत एक गैर-मुनाफाकारी संस्था के रूप में हुई थी, जो आगे चलकर बंधन बैंक बन गया। आज दो दशक बाद, बंधन बैंक में 1.5 करोड़ से अधिक महिला ग्राहक हैं जो बैंक के कुल 2.2 करोड़ ग्राहक का दो-तिहाई हिस्सा हैं।
इस सबके बावजूद बंधन बैंक के एमडी और सीईओ चंद्र शेखर घोष जोर देकर कहते हैं "यह अंत नहीं है।" वह कहते हैं, कि बैंक का लक्ष्य पूरे भारत में बैंकिंग सेवाओं तक सबसे कम पहुंच वाले समुदाय की महिलाओं तक पहुंचने का है।
YourStory की फाउंडर और सीईओ श्रद्धा शर्मा को दिए एक हालिया इंटरव्यू में उन्होंने बताया,
“आज 1.5 करोड़ महिलाएं हमारी ग्राहक हैं। मैं इसे दिन-प्रतिदिन, महीने-दर-महीने आधार पर बढ़ा रहा हूं। लेकिन यह अंत नहीं है। कई और ग्राहक हैं, जिन तक मैं पहुंच सकता हूँ। हर बार नए ग्राहक (हमारे पास) आ रहे हैं। नई माताएं (हमारे पास) आ रही हैं। वे अपनी फैमिली के साथ अपने बुरे अनुभवों के बारे में हमसे बताती हैं। हालांकि अब वे अपना खुद का नया बिजनेस या फिर पहले से मौजूद बिजनसे को शुरू करने या फिर अपने पति के साथ एक संयुक्त बिजनेस शुरू करने में सक्षम हैं। यह एक बदलाव है जिसे मैंने देखा है।”
यह सब बदलाव रात भर में नहीं आया है। इन ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं और उनके परिवारों के बीच विश्वास कायम करने, उनकी चुनौतियों को समझने और उनकी परिस्थितियों के बारे में पहले सीखने में कई वर्षों का अथक परिश्रम लगा।
YourStory की फाउंडर और सीईओ श्रद्धा शर्मा के साथ बंधन बैंक के एमडी और सीईओ चंद्र शेखर घोष का पूरा इंटरव्यू यहां देखिए:
महिला सशक्तिकरण और महिला उद्यमिता को बढ़ावा देना
बंधन बैंक, भारत का पहला माइक्रोफाइनेंस संस्थान है, जिसे बैंकिंग लाइसेंस मिला है। 2015 से इसने एक पूर्णकालिक बैंक के तौर पर लॉन्च किया। लॉन्चिंग के समय बंधन बैंक के पास 2,523 बैंकिंग आउटलेट थे, जिसकी संख्या अगले पांच सालों में बढ़कर 5,300 से अधिक है। इसके अलावा इसकी करीब 1,000 बैंक शाखआएं भी हैं। 2020 तक देश के कुल 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से 34 में इसकी उपस्थिति थी।
इस व्यापक पहुंच और बैंकिंग सेवाओं तक सबसे कम पहुंच वाले समुदायों के सामने आने वाली चुनौतियों की चंद्रशेखर की सहज समझ के साथ, बंधन बैंक को आज व्यापक रूप से सभी सामाजिक-आर्थिक वर्गों को सेवा देने की अपनी भूमिका के लिए जाना जाता है। खासतौर से एक ऐसे बैंक के रूप में जिसकी उपलब्धि महिला सशक्तीकरण और महिला उद्यमिता को बढ़ावा देने और भारत के कुछ सबसे दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी रेखा से ऊपर लाने की रही है।
चंद्रशेखर कहते हैं कि आज अगर ग्रामीण भारत में महिलाओं को व्यवसाय शुरू करने या किसी मौजूदा व्यवसाय को ठीक से चलाने या विस्तार करने के लिए धन की आवश्यकता होती है, तो वे जानती हैं कि उन्हें पैसे के लिए कहाँ जाना है। उन्होंने कहा, "यही वो विश्वास है जो उनके पास आया है।"
इस आत्मविश्वास के अलावा उनके पास वित्तीय स्वतंत्रता और शक्ति भी आई है। बंधन बैंक से लिए कर्ज के साथ कई महिलाएं उद्यमी बन गई हैं और वे अपने परिवार और अपने बच्चों की शिक्षा को सहारा देने में सक्षम बन गई हैं।
अब झारखंड के पाकुड़ शहर की रहने वाली रेणुवाड़ा बीबी का ही उदाहरण लीजिए। एक रुपये के साथ। उन्होंने 2008 में बंधन बैंक से 7,000 का कर्ज लेकर खुद की किराने की दुकान खोली। उनका मकसद अपने चार सदस्यों वाले परिवार को सहारा देना था, जो अभी तक उनके पति की बतौर टीचर होने वाली आय पर गुजारा कर पाने में असमर्थ थी। बंधन बैंक से मिले कर्ज से रेणुवाड़ा ने डिस्पोजेबल पेपर बर्तनों का निर्माण करने के लिए अपना खुद का व्यवसाय शुरू किया और अब उनका व्यवसाय काफी फल-फूल गया है, जो कई लोगों को रोजगार देता है।
बिहार के बेगूसराय की रहने वाली नीलम देवी बंधन-बैंक की सहायता से बनी एक और सफल उद्यमी हैं। बंधन बैंक की सरल ऋण आवेदन प्रक्रिया की बदौलत, नीलम ने 10,000 हजार रुपये का अपना पहला लोन लिया। इससे उन्होंने खुद का कॉस्ट्यूम ज्वैलरी बिजनेस शुरू किया। इस बिजनेस से जो उन्हें वित्तीय स्थिरता मिली, उससे नीलम अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने के साथ रही समुदाय में दूसरों को रोजगार भी प्रदान कर पा रही है।
सच कहें तो देश के कोने-कोने में महिला सशक्तिकरण की ऐसी अनगिनत कहानियां हैं। चन्द्र शेखर ने इस सफलता का श्रेय महिलाओं की उनके काम के प्रति प्रतिबद्धता और उनकी परिस्थितियों को सुधारने के लिए उनके अभियान को दिया है। वह मानते हैं कि ये सफलताएं उनके लिए गर्व की बात हैं। खासतौर उन चुनौतियों को देखते हुए, जो उन्होंने एक समुदाय की महिलाओं को सशक्त बनाने के अपने प्रयासों के आरंभ में सामना किया।
उन्होंने YourStory को बताया,
“एक बहुत बड़ी चुनौती पुरुषों से महिलाओं को सत्ता हस्तांतरित करने की रही है। यह हमारे देश में बहुत कठिन है। भले ही महिलाओं के पास आय हो, लेकिन सत्ता हस्तांतरण करना बहुत आसान नहीं है। क्योंकि हमारा समाज मुख्य रूप से एक पितृसत्तात्मक समाज है।”
शुरू में पुरुषों के लिए यह स्वीकार करना मुश्किल था कि महिलाओं को पैसे दिए जा रहे थे। चंद्र शेखर ने देखा कि इन वजहों से घरों में मारपीट और हिंसा बढ़ गई। हालांकि धीरे-धीरे, उन्होंने यह भी देखा कि पुरुषों ने यह महसूस करना शुरू कर दिया कि महिलाएं ही पैसे स्रोत हैं क्योंकि सिर्फ महिलाएं ही इन कर्ज योजनाओं का लाभ उठा सकती थीं।
इस बोध के साथ उन्हें यह डर भी सताने लगा कि उनकी पत्नियां अपने पिता के घर लौट सकती हैं, जिसका मतलब था कि वे अपने धन के स्रोत को खो देंगे। ऐसे में पुरुष धीरे-धीरे महसूस करने लगे कि उन्हें अपनी पत्नी के साथ संयुक्त रूप से काम करना है और उनके साथ सम्मान से पेश आना है। इस तरह सालों से अलग-अलग तरीकों से, अलग-अलग आकारों में जीत मिलती रही। कुछ छोटी जीत थी, तो कुछ बड़ी। लेकिन वे सभी एक जैसे थे क्योंकि उन्होंने इन महिलाओं के हाथों में सत्ता के धीमे और स्थिर हस्तांतरण का संकेत दिया।
ऐसा ही एक मामला है जब चंद्र शेखर ने एक बैंक शाखा का दौरा किया। उन्होंने देखा कि कैसे सभी माताएं शाखा में अंदर बैठी है जबकि उनके पति उनके इंतजार में बाहर खड़े थे। चंद्र शेखर ने विजयी भाव के साथ कहा, “यह शक्ति है। यह एकमात्र ऐसा ऑफिस है जहां पतियों के पास शक्ति नहीं है, लेकिन महिलाओं के पास हैं।” कई बार, चंद्रशेखर चुपचाप बैंक शाखाओं में जाकर इन सब चीजों को देखते थे। ताकि वे इस 'परिवर्तन' के साक्षी बन सकें। यह सत्ता का हस्तांतरण है। इससे परिवार में महिलाओं के कद में बदलाव होता है।
उन्होंने विस्तार से बताया,
“कई बार मैं देखता हूं कि बैंक शाखा के बाहर पुरुष आपस में कैसे बात करते हैं। फिर जब पत्नी आती है, तो वे उसे साइकिल के पीछे अपने घर ले जाते हैं, जबकि सभी उसके साथ बहुत धैर्य और सम्मानपूर्वक बात करते हैं। इसलिए चीजें बदल रही हैं।”
बंधन बैंक: उत्पत्ति और प्रभाव
दरअसल चंद्र शेखर के लिए यह एक स्वागत योग्य परिवर्तन हैं। 1990 में परिवार में महिलाओं की स्थिति के बारे में चंद्रशेखर के शुरुआती अवलोकन ने महिला सशक्तीकरण को सक्षम बनाने के उनके अभियान को आकार दिया। वहीं छोटे व्यापारियों की दुर्दशा के बारे में उनके अवलोकन ने इन व्यापारियों की मदद करने और आर्थिक रूप से अधिक समावेशी भारत ने उनके सपने को आकार दिया।
उस समय एक युवा एनजीओ कार्यकर्ता के रूप में, चंद्रशेखर ने परिवार की महिलाओं के जीवन को करीब से देखा। उन्होंने देखा कि हर दिन कितनी जिम्मेदारियों उन पर होती है, बिना किसी शिकायत के वो घंटों बिना थके काम करती हैं। फिर भी वो हिंसा और अनादर का वो सामना करती हैं और इतने योगदानों के बावजूद उनकी परिवार और समाज में स्थिति कमजोर है। इसके साथ ही उन्होंने पाया कि कैसे इन कमजोर तबके के परिवारों को साहूकारों के पास जाना पड़ता है और अपनी दैनिक जरूरतों को पूरा करने के लिए अधिक ब्याज दर पर कर्ज लेना पड़ता है। ऐसा इसलिए क्योंकि बैंक उन्हें उधार नहीं देंगे।
परिवार की आय को दोगुना करने और महिलाओं को सशक्त बनाने में इन लोगों की मदद करने की गहरी इच्छा से प्रेरित होकर, चंद्र शेखर ने 2001 में एक नॉट-फॉर-प्रॉफिट सोसाइटी शुरू की, जिसका मकसद महिलाओं को माइक्रोलोन प्रदान करना था।
चंद्र शेखर ने बताया,
“मैंने जब इस एनजीओ को शुरू करने का फैसला किया, तो हमारा मकसद महिलाओं को अपने दम पर पैसा कमाने के लिए सशक्त बनाना था। इससे ना सिर्फ परिवार की आय में इजाफा हो सकता है, बल्कि पति-पत्नी के बीच लड़ाई को कम करने और अपने बच्चों के लिए जीवन और शैक्षणिक दायरे में भी सुधार हो सकता है।"
चन्द्र शेखर ने जो कुछ भी तय किया, आज दो दशक से भी अधिक समय के बाद वो उसे बड़े पैमाने पर पूरा करने में सक्षम है। जब वो फील्ड विजिट पर जाते हैं, तो लोग उनसे कहते हैं, "सर, जो कुछ भी आप अपनी आंखों से देख रहे हैं, यह सब आपके द्वारा विकसित किया गया है।" जब वह ये देखते हैं, तो वो अपने स्तर पर किए इन प्रयासों के अभी तक प्रभाव के को देखकर गर्व की भावना महसूस करते हैं।
एक दूसरी फील्ड विजिट के दौरान उन्होंने एक व्यक्ति को एक महिला ग्राहक के घर में सोते हुए देखा। उन्होंने महिला से पूछा कि क्या वह व्यक्ति उसका रिश्तेदार है? इस पर महिला ने जवाब दिया, “सर, अब चूंकि मैं कमाने लगी हूं, तो मेरे रिश्तेदार भी आने लगे हैं। पहले किसी ने मुझे मौका नहीं दिया।”
चंद्र शेखर कहते हैं,
"यह शक्ति है। जब आप इन लोगों से बात करते हैं और उनसे उनके जीवन की शुरुआत के बारे में पूछते हैं, तो वे रोते हैं। वे कहते हैं, हम कहां थे और हम कहां आए हैं। इसलिए, यह वह जगह है जहां मैं खुद को विनम्र और खुश महसूस करता हूं कि ईश्वर ने मुझे इन लोगों के लिए कुछ करने का मौका दिया है।"
उन्होंने कहा कि हालांकि अभी भी महिलाओं को सशक्त बनाने और आर्थिक रूप से समावेशी भारत के निर्माण के लिए काफी बहुत कुछ किया जाना चाहिए। चंद्र शेखर कहते हैं कि घर के भीतर की जिम्मेदारियों को निभाने में पति की भागीदारी बढ़नी चाहिए, क्योंकि महिलाएं अभी भी व्यवसाय चलाने के साथ ही घर का सारा काम भी करती हैं।
दूसरी बात, अभी भी बड़ी संख्या में ऐसी महिलाएं हैं जिनकी क्रेडिट तक कोई पहुंच नहीं है। इसके कारण सामाजिक या राजनीतिक हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें भी क्रेडिट की सुविधा मिलनी चाहिए। चन्द्र शेखर ने जोर देकर कहा कि महिला सशक्तीकरण की खोज में ही उनकी वित्तीय आजादी की कुंजी है।
वे अंत में कहते हैं
"अभी तक, हम महिलाओं को सशक्त बनाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन आप देख सकते हैं कि वित्त एक शक्ति है- जिसके पास वित्त का नियंत्रण है, वही परिवार, समाज और यहां तक कि देश पर भी नियंत्रण करता है।"
यहां देखें पूरा इंटरव्यू:
Edited by Ranjana Tripathi