सामने आया 4,760 करोड़ रुपये का बैंक फ्रॉड, सीबीआई ने बैंक अधिकारियों के खिलाफ दर्ज किया मुकदमा
एजेंसी ने कंपनी, अज्ञात निदेशकों, अधिकारियों और वेंडर पर भारतीय दंड संहिता के तहत आपराधिक साजिश, धोखाधड़ी के अलावा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया है.
केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने आईडीबीआई बैंक के नेतृत्व वाले बैंकों के समूह से लिए गए 4,760 करोड़ रुपये के कर्ज के एक बड़े हिस्से को कथित रूप से अन्य जगह इस्तेमाल किए जाने के आरोप में दूरसंचार बुनियादी ढांचा कंपनी जीटीएल के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की है. अधिकारियों ने यह जानकारी दी.
एजेंसी ने कंपनी, अज्ञात निदेशकों, अधिकारियों और वेंडर पर भारतीय दंड संहिता के तहत आपराधिक साजिश, धोखाधड़ी के अलावा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया है.
प्राथमिकी के अनुसार, कंपनी ने कथित तौर पर अपने वेंडर, अज्ञात बैंक अधिकारियों और अन्य लोगों के साथ साजिश कर ऋण राशि के अधिकांश हिस्से को अन्य जगहों पर उपयोग किया या हड़प लिया.
प्राथमिकी में आरोप लगाया गया है कि जीटीएल लिमिटेड सामग्री/सामान की आपूर्ति के बिना साल दर साल वेंडर को अग्रिम राशि का भुगतान कर रही थी. आईडीबीआई बैंक ने 2011 में कंपनी का विशेष ऑडिट किया था और वेंडर के साथ संदिग्ध लेनदेन का मुद्दा उठाया था.
सीबीआई ने कहा कि धोखाधड़ी को आसान बनाने के लिए, अपराधियों ने कथित तौर पर जीटीएल लिमिटेड के साथ मिलकर विभिन्न विक्रेता कंपनियां बनाईं. बैंकों में आईसीआईसीआई बैंक का जीटीएल लिमिटेड पर 650 करोड़ रुपये, बैंक ऑफ इंडिया का 467 करोड़ रुपये और केनरा बैंक का 412 करोड़ रुपये का कर्ज है.
बता दें कि, ग्लोबल ग्रुप के मनोज तिरोडकर ने 1987 में GTL की शुरुआत की थी. GTL भारत और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में दूरसंचार ऑपरेटरों को दूरसंचार नेटवर्क डिप्लॉयमेंट सर्विसेज, ऑपरेशंस और मेंटेनेंस सर्विसेज करने के व्यवसाय में लगी हुई है.
जांच एजेंसी के अनुसार, GTL धोखाधड़ी निम्नलिखित तरीके से हुई. शुरू करने के लिए, कथित विक्रेताओं को भारी मात्रा में एडवांस दिए गए थे और इस तरह के एडवांस पेमेंट की पर्याप्त राशि विक्रेताओं द्वारा तथाकथित सीमांत आपूर्ति के लिए विनियोजित करने के बाद विक्रेता संस्थाओं द्वारा जीटीएल लिमिटेड को वापस भेज दी गई थी.
दूसरे, कार्यशील पूंजी कोष का उपयोग GTL द्वारा विक्रेताओं से अचल संपत्ति खरीदने के लिए भी किया जाता था. सीबीआई ने कहा कि कंपनी ने कथित तौर पर विभिन्न कंपनियों के शेयर खरीदने के लिए उनमें निवेश किया.
कर्जदाताओं ने वित्त वर्ष 2009-10 और 2010-11 में क्रमश: 1,055 करोड़ रुपये और 1,970 करोड़ रुपये का भुगतान किया है. सीबीआई ने कहा कि इस ऋण राशि में से वित्त वर्ष 2009-10 में 649 करोड़ रुपये और वित्त वर्ष 2010-11 में 1,095 करोड़ रुपये का निवेश अल्पकालिक म्युचुअल फंड में किया गया था.
इसके अलावा वित्त वर्ष 2010-11 में संवितरण के तुरंत बाद सावधि जमा में 135 करोड़ रुपये का निवेश किया गया. सीबीआई ने अपनी प्राथमिकी में कहा कि कंपनी ने 3,01,08 करोड़ रुपये (वित्त वर्ष 2009-10) और 5,06,27 करोड़ रुपये (वित्त वर्ष 2010-11) के बिक्री बिल छूट का लाभ उठाया है, जिसमें से लिक्विड म्यूचुअल फंड में पर्याप्त राशि का निवेश किया गया है.
Edited by Vishal Jaiswal