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जिनका कोई नहीं, उनके पालनहार रवि कालरा

जिनका कोई नहीं, उनके पालनहार रवि कालरा

Thursday November 08, 2018 , 5 min Read

गुरुग्राम (हरियाणा) के गांव बंधवाड़ी में गरीबों, लाचारों, मानसिक रूप से बीमार लोगों, विकलांगों, बुजुर्गों की निःशुल्क देखभाल करते हैं 'द अर्थ सेवीयर्स फाउंडेशन' के संस्थापक अध्यक्ष रवि कालरा। फाउंडेशन को ही गांव के लोग अपनी सरकार मानते हैं। कालरा अब तक 4,750 लावारिस शवों का अंतिम संस्कार भी कर चुके हैं।

कर्मयोगी रवि कालरा

कर्मयोगी रवि कालरा


फाउंडेशन की ही ओर से गांव के स्कूल की चहारदीवारी और प्रिंसिपल के ऑफिस का निर्माण कराया गया है। इस स्कूल के छात्रों के सहयोग से पौधरोपण के प्रयास तेज किए जाते हैं तो उन छात्रों के पर्यटन-भ्रमण के साथ वार्षिक खेल उत्सवों का आयोजन फाउंडेशन करता रहता है।

सामाजिक कार्यकर्ता, पर्यावरण प्रेमी एवं 'द अर्थ सेवीयर्स फाउंडेशन' के संस्थापक अध्यक्ष रवि कालरा गुरुग्राम (हरियाणा) के गांव बंधवाड़ी में गरीबों, लाचारों, मानसिक रूप से बीमार लोगों, विकलांगों, बुजुर्गों की निःशुल्क देखभाल करते हैं। द अर्थ सेवीयर्स फाउंडेशन एक स्वयं सेवी संस्था है, जिसे भारत सरकार के गृह मंत्रालय से मान्यता प्राप्त है। रवि कालरा का जन्म दिल्ली के मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। उनके पिता दिल्ली पुलिस में इंस्पेक्टर थे। अपने की ईमानदारी और व्यक्तित्व से प्रेरित होकर उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक किया और ताइक्वॉन्डो, मार्शल आर्ट्स ब्लैक बेल्ट की इंटरनेशनल डिग्री लेकर विभिन्न बटालियंस में मार्शल आर्ट्स का प्रशिक्षण देने लगे। उन्होंने वर्ष 2008 में द अर्थ सेवीयर्स फाउंडेशन की नींव रखी। संस्था के वृद्धाश्रम, बाल सुधार गृह में शारीरिक रूप से अक्षम उन लोगों की देखभाल की जाती है, जिनका इस संसार में कोई नहीं है। संस्था की अपनी एक गौशाला भी है।

वह अभी तक 42 देशों की यात्राएं करने के साथ ही एक लाख से अधिक वाहनों के पीछे लिखे 'हॉर्न प्लीज' के संकेतों को मिटाने का वर्ल्ड रिकॉर्ड बना चुके हैं। फाउंडेशन ध्वनि प्रदूषण के भी खिलाफ अभियान चलाता है, वाहन चालकों को ध्वनि प्रदूषण के घातक परिणामों के विषय में जागरूक किया जाता है। इसीलिए उनको 'हॉकिंग ऑफ इंडिया' भी कहा जाता है। उन्होंने पर्यावरण-सुरक्षा के लिए सर्वोच्च न्यायलय में एक जनाधिकार याचिका भी लगाई थी। वह वर्ष 2012 में पर्यावरण-संरक्षण के लिए 'सरदार वल्लभ भाई पटेल इंटरनेशनल अवार्ड' से सम्मानित हो चुके हैं।

चार हजार की मध्यमवर्गीय आबादी वाले गांव बंधवाड़ी के इस गुरुकुल वृद्धाश्रम में तीन सौ बुजुर्ग, बेसहारा, अपाहिज, बेघर, लाचार और मानसिक रूप से कमजोर लोगों की निःशुक्ल सेवा-सुश्रुषा की जाती है। इस गांव में जो सरकार को करना चाहिए, वह 'द अर्थ सेवियर्स फ़ाउंडेशन' के अध्यक्ष रवि कालरा के लोग कर रहे हैं। इसीलिए समाज सेवा में अग्रणी यह गांव एक नजीर बन चुका है। गांव के स्कूल की चारदीवारी गिर जाए तो सरकारी अनुदान की बजाए सीधे रवि कालरा से संपर्क किया जाता है। गांव के लोग द अर्थ सेवीयर्स फाउंडेशन को ही अपनी सरकार समझते, मानते हैं। वे किसी नेता, किसी अधिकारी से मदद की उम्मीद करने की बजाए रवि कालरा से अपनी मुश्किलें साझा करना ज्यादा मुफीद समझते हैं। उनकी संस्था पानी के संकट से ग्रामीणों को उबारने के लिए गांव में बोरिंग तक करा देती है।

फाउंडेशन की ही ओर से गांव के स्कूल की चहारदीवारी और प्रिंसिपल के ऑफिस का निर्माण कराया गया है। इस स्कूल के छात्रों के सहयोग से पौधरोपण के प्रयास तेज किए जाते हैं तो उन छात्रों के पर्यटन-भ्रमण के साथ वार्षिक खेल उत्सवों का आयोजन फाउंडेशन करता रहता है। गांव के विकास में ग्रामीण और फाउंडेशन कंधे से कंधा मिलाकर एकजुट हैं। एक बार ग्रामीण आनंद के मकान की छत गिर गई तो फाउंडेशन ने ही उसका निर्माण कराया। संस्था की ओर से गांव में कई शौचालयों का भी निर्माण कराया गया है।

रवि कालरा अब तक चार हजार सात सौ पचास लावारिस शवों का अंतिम संस्कार कर चुके हैं। वह हर रात लावारिस लोगों की तलाश में निकल पड़ते हैं। जो मिल जाए, उसे सीधे अपने आश्रम ले आते हैं। उन्होंने मृत्यु के पश्चात अंगदान का भी निर्णय लिया हुआ है। पर्व-त्योहार के मौकों पर भी फाउंडेशन का संस्था के आश्रम में रह रहे लोगों के साथ ही ग्रामीणों और स्कूली शिक्षकों, छात्रों के साथ भी रवि कालरा पूरे उत्साह से दिवाली-होली मनाते हैं। गांव राजकीय उच्च्तर माध्यमिक विद्यालय में इस बार भी दीपावली पर आठ सौ छात्रों, शिक्षकों में आकर्षक उपहार के रूप में लंच टिफिन बॉक्स, मेडिकल किट बांटे गए। स्कूल की छात्रा सरोज बताती है कि वह कभी हवाई जहाज़ में नहीं उड़ी थी।

रवि कालरा उन स्कूली बच्चों को मुंबई ले गए। दो-दो हजार जेब खर्च देकर वहां उन्हे घुमाया-फिराया। रवि कालरा कहते हैं कि फाउंडेशन बने एक दशक से अधिक का समय हो चुका, लेकिन सरकार की तरफ से उसे आज तक एक पैसे की मदद नहीं मिल सकी है। जनसहयोग से ही संस्था संचालित हो पा रही है। प्रायः पैसे के अभाव में लगता है कि आश्रम के साढ़े चार सौ लोगों की सेवा के इस काम को कैसे जारी रखें, तब समाज के लोगों से ही उन्हें संबल मिलता है। बंधवाड़ी गांव का विकास एवं असहायों की सेवा ही उनकी जिंदगी का पहला और आखिरी संकल्प है।

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