जब संसद में गरजने लगीं सड़क किनारे पत्थर तोड़ने वाली बिहार की भगवती देवी
ज़मीन से उठकर कैसे कोई महिला देश की संसद में आधी आबादी की आवाज बुलंद करने लगी, ऐसे दुरधर्ष जीवट की धनी बाराचट्टी की रहनेवाली भगवती देवी को बिहार के लोग आज भी नहीं भूले हैं। एक जमाने में वह सड़क किनारे पत्थर तोड़ती थीं, वक़्त ने नहीं, खुद उन्होंने समय का पहिया ऐसा घुमाया कि देश के सिरहाने पहुंच गईं।
भगवती देवी के जीवन पर एक पुस्तक छपी है- 'धरती की बेटी', जिसे राम प्यारे सिंह ने लिखा है। एक समय में खाली समय में भगवती सत्संग में हिस्सा लेती थीं। उनकी तीन बेटियां और एक पुत्र हैं। भगवती के बेटे विजय मांझी राजनीति में हैं। उनकी बेटी समता देवी 1998 के उप चुनाव और 2015 के विधानसभा चुनाव में विधायक बनीं। भगवती देवी पत्थर तोड़ती थीं और परिवार का लालन-पालन करती थीं।
भगवती उस परिवार से आती हैं, जिसमें लोग चूहे पकड़ने और उनसे ही अपना पेट भरते रहे हैं। ऐसे मुश्किलों से जूझ रहे लोगों के बीच से आने वाली भगवती देवी ने न तो कभी हिम्मत हारी, न अपनी आवाज बुलंद करते रहने से पीछे हटीं। अब तो वह बिहार की जन नेता बन चुकी हैं। उनके राजनीति में आने की दास्तान भी किसी फिल्म जैसी कुछ कम दिलचस्प नहीं।
अब न भागवती देवी हैं, न ही वे दो शीर्ष सोशलिस्ट नेता राम मनोहर लोहिया और उपेंद्रनाथ वर्मा लेकिन हमारे देश के महिलाएं आज भी उनसे प्रेरणा लेती हैं।
वर्ष 1968 में एक दिन भगवती देवी गांव नैली दुबहल में सड़क किनारे पत्थर तोड़ रही थीं, तभी उस समय के कद्दावर समाजवादी नेता उपेंद्रनाथ वर्मा वहां से गुजर रहे थे। उन्होंने देखा कि पत्थर तोड़ने वाली ये महिला आठ दस अन्य मजदूरों के सामने भाषण दे रही है। वर्मा ने अपना वाहन वहीं रुकवा दिया और भगवती देवी का भाषण सुनने लगे। भाषण खत्म हो जाने के बाद उन्होंने भगवती देवी से कहा कि उन्हे तो राजनीति में होना चाहिए। उस समय राम मनोहर लोहिया जिंदा थे।
वर्मा ने भगवती देवी को लोहिया से मिलवाने के लिए दिल्ली बुला लिया। वहां तालकटोरा स्टेडियम में एक कार्यक्रम होना था, मंच पर भागवती देवी को कुछ बोलने के लिए कहा गया। गांव से आई इस महिला ने जैसे ही एक गीत गाया- ‘हम न सहबो हो भइया, हम न सहबो हो, बाप-दादा सब गाली सहबो, हम न सहबो हो भइया’ पूरा स्टेडियम तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। लोहिया जी ने सोशलिस्ट पार्टी, जिसका बरगद चुनाव चिह्न था, से टिकट देकर बाराचट्टी विधानसभा सीट से भगवती देवी को चुनाव लड़वा दिया। भगवती देवी चुनाव जीत कर विधानसभा पहुंच गईं। इसके बाद 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव जीतीं।
वर्ष 1980 में भगवती देवी चुनाव हार गईं तो राजनीति से दूर चलीं गईं और फिर से मजदूरी करने लगीं। समय निकालकर मजदूरों की आवाज़ भी बुलंद करती रहीं। वर्ष 1995 में बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने एक बार फिर भगवती देवी को गया सीट से टिकट दे दिया। वह एक बार फिर विधायक बन गईं। एक साल बाद 1996 में जनता दल ने उन्हें गया से लोकसभा चुनाव में उतार दिया। भगवती देवी वहां से जीतकर दिल्ली पहुंच गईं।
कई बार चुनाव जीतने के बावजूद भगवती देवी अपने रहन-सहन में रत्तीभर बनावटी नहीं। बिल्कुल सादगी भरा जीवन जीती हैं। भगवती देवी की राजनीतिक दास्तान बाकी नेताओं से काफी अलग तरह की है।
एक पत्थर तोड़ने वाली महादलित समाज की भगवती न सिर्फ सांसद बनीं बल्कि अपने संसदीय जीवन में महिलाओं के अधिकारों की आवाज बुलंद करती रही हैं।