रक्षा क्षेत्र में उतरी स्टार्टअप कंपनी भारत वायर मेश बना रही मोबाइल बंकर
अन्य सेक्टर के बाद अब रक्षा क्षेत्र में भी स्टार्टअप की उत्साहजनक पहल ने सरकार को उत्साहित और आश्वस्त किया है। जम्मू-कश्मीर की 'भारत वायर मेश' एक ऐसी ही स्टार्टअप कंपनी है, जो मोबाइल बंकर बना रही है। सरकार चाहती है कि विदेशों का मुंह ताकने की बजाए देश रक्षा क्षेत्र में हर तरह के प्रॉडक्ट से आत्मनिर्भर हो जाए।
पीएम नरेंद्र मोदी के शीर्ष प्रयास से अब, सुरक्षा उपकरण बनाने के क्षेत्र में भी नए-नए स्टार्टअप कामयाबी के कदम-ताल करने लगे हैं। डिफेंस इंडिया स्टार्टअप चैलेंज में लेजर हथियारों और 4G लैन (लोकल एरिया नेटवर्क) जैसी तकनीकी चुनौतियों को काबू करने वाले स्टार्टअप सामने आ रहे हैं। इन चुनौतियों में ज्यादातर ऐसी हैं, जो सुरक्षा बलों से जुड़ी हैं।
जम्मू-कश्मीर की भारत वायर मेश प्राइवेट लिमिटेड एक ऐसी ही स्टार्टअप कंपनी है, जो मोबाइल बंकर बना रही है। भारत सरकार 'प्रमोशन ऑफ स्टार्टअप्स अंडर मेक-2 प्रोसीजर ऑफ डीपीपी' का भी ऐलान कर चुकी है। रक्षा मंत्रालय इसी दिशा में पहल करते हुए आईआईटी और आईआईएम जैसे संस्थानों के साथ भी कई एमओयू पर दस्तखत कर चुका है। मकसद है, ऐसे स्टार्टअप के प्रॉडक्ट्स से डिफेंस प्रॉडक्ट्स और तकनीकी मामलों में भारत आत्मनिर्भर बने। अभी इनका विदेशों से आयात हो रहा है।
सरकार खुद ऐसे स्टार्टअप शुरू करने और उसे आगे बढ़ाने में सहयोग कर रही है। बिल्ट इन सेंसर के साथ इंडिविजुअल प्रोटेक्शन सिस्टम, सी-थ्रू आर्मर, कार्बन फाइबर वाइंडिंग, ऐक्टिव प्रोटेक्शन सिस्टम, सिक्यॉर हार्डवेअर आधारित ऑफलाइन इनक्रिप्ट डिवाइस, अडवांस्ड टेक्नॉलजी बेस्ड डीसैलिनेशन सिस्टम, लॉजिस्टिक्स में आर्टिफिशल इंटेलिजेंस, रिमोट से चलने वाले हवाई वाहन, लेजर हथियार और सेनाओं के लिए मानवरहित थल और जल वाहन आदि ऐसे ही नए तरह के स्टार्टअप कार्यक्षेत्र सामने आ रहे हैं।
देश में वैसे तो फिलहाल रेत की बोरियों से बंकर बनाए जाते हैं, जो दो से तीन महीने में खराब हो जाते हैं। इससे दो से तीन महीने के बाद फिर से बंकर बनाने पड़ते हैं। जम्मू-कश्मीर की भारत वायर मेश स्टार्टअप कंपनी ऐसे मोबाइल बंकर बना रही है, जिसमें वायर के साथ कपड़ों का घेरा होता है। इसके बीच में रेत डाल दी जाती है। यदि कहीं दूसरी जगह बंकर बनाना हो तो इसे हटाकर वहां लगा दिया जा सकेगा। यह पांच से दस साल तक खराब नहीं होगा। कंपनी के प्रबंधक राहुल सिंह कहते हैं कि मोबाइल बंकर की मांग दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। 20 से 30 मिनट के भीतर कहीं भी मोबाइल बंकर तैयार किया जा सकता है।
मोबाइल बंकर बनाने में इस समय देश में सबसे अग्रणी भारत वायर मेश स्टार्टअप कंपनी के उत्पादों की पूरे देश में रेलवे, रक्षा, बाढ़ नियंत्रण और अन्य सिविल इंजीनियरिंग क्षेत्रों में भारी डिमांड है। कंपनी अपने बंकर बनाने में पर्यावरणीय प्रभावों का भी खास ध्यान रखती है। इसके बंकर खदानों से लेकर इमारतों के निर्माण और सबसे ज्यादा रक्षाक्षेत्र के लिए बड़े काम के हैं। छोटी चट्टानों, मलबे के प्रवाहों बुनियादी ढांचे अवरुद्ध हो सकते हैं।
तत्काल ऐसे विघटन से बचाने में इन बंकरों की दूरगामी उपयोगिता होती है। हिमस्खलन से बचाव, ढलान वाले दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों में अपने लचीलेपन के कारण भवनों की भूकंपरोधी सुरक्षा में भी इसका इस्तेमाल होने लगा है। ये बंकर कृत्रिम संरचनाओं को अपने जटिल सिस्टम के कारण बड़े से बड़ा जोखिम रोक लेते हैं।
रक्षा क्षेत्र को हर तरह की मजबूत करने की दिशा में सरकार की महत्वपूर्ण दिलचस्पी के चलते गुरुग्राम की स्टार्टअप कंपनी एम2के टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड ड्रोन गन के निर्माण पर जोर दे रही है तो बेंगलुरु की कंपनी डायनामेटिक टेक्नोलॉजीज लिमिटेड ने शेरपा नाम से ऐसा ड्रोन तैयार किया है, जिसके माध्यम से 15 किलो वजन का सामान किसी भी ऊंचाई तक आसानी से पहुंचाया जा सकता है।
यह पहाड़ी इलाकों में आर्मी के लिए काफी लाभदायक मानीा जा रहा है। कई बार ऊंचाई पर तैनात जवान बीमार हो जाते हैं। उन तक दवाएं पहुंचाने में समय लग जाता है। शेरपा ड्रोन के माध्यम से आधे घंटे के भीतर किसी भी ऊंचाई पर दवा व अन्य सामान पहुंचाया जा सकता है।
आइआइटी रुड़की का सिविल इंजीनियरिग विभाग स्टार्टअप के तहत ही ड्रोन सर्विलांस बनाना रहा है। इसको लेकर सुरक्षाकर्मी काफी उत्सुक देखे जा रहे हैं। ड्रोन सर्विलांस में कैमरे के साथ ही नाइट विजन की भी सुविधा है। इसके माध्यम से ऊंचाई पर आसानी से मेडिसिन पहुंचाना संभव है। डिफेंस सेक्टर में स्टार्टअप को बढ़ावा देने और भारत को इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की कई स्तरों पर कोशिशें चल रही हैं।
इसी क्रम में सरकार ने सपॉर्ट फॉर प्रोटोटाइप ऐंड रिसर्च किक स्टार्ट की भी शुरुआत की है, ताकि भारत में रक्षा संबंधी निर्माण के आनेवाले प्रस्तावकों की तकनीकी समस्याओं को सुलझाने में मदद मिले। इसके लिए 1.5 करोड़ रुपये तक अनुदान देने की व्यवस्था है।