हर दिन 1,000 वंचित बच्चों को भोजन करा रहा है मुम्बई का यह हंगर वॉरियर
आज, भारत को दुनिया की उभरती हुई महाशक्तियों में से एक माना जाता है। लेकिन बच्चों का डस्टबिन में खाना ढूंढ़ना और दिनों तक भूखे रहना चिंताजनक है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स के हालिया सर्वेक्षण में पता चला है कि भारत 117 योग्य देशों में से 102 स्थान पर है।
इसमें भी सबसे चिंताजनक मुद्दा यह है कि भारत ने कुल 30.3 अंक स्कोर किए हैं, जो गंभीर श्रेणी में आता है। हालांकि भूख की समस्या को हल करने के लिए मिड-डे मील से लेकर इंदिरा कैंटीन तक कई पहल की जा रही हैं, फिर भी यह समस्या बनी हुई है।
हालांकि, सरकारी पहलों के अलावा, कई व्यक्ति अपनी व्यक्तिगत क्षमता से इस मुद्दे को हल करने के लिए भी सामने आए हैं। उदाहरण के लिए, खुशियां फाउंडेशन द्वारा शुरू किया गया 'रोटी घर' रोजाना 1,000 से अधिक गरीब बच्चों को खाना खिला रहा है। इसका प्राथमिक उद्देश्य गरीब बच्चों को महाराष्ट्र, ओडिशा और कर्नाटक में हर दिन एक उचित पोषण भोजन प्राप्त कराना है।
NDTV से बात करते हुए रोटी घर के फाउंडर चीनू क्वात्रा ने कहा,
“हमारे पास हमारा केंद्रीयकृत रसोईघर है जिसकी निगरानी मेरे पिता करते हैं। लेकिन मैंने कई स्थानों पर रेस्तरां मालिकों को पड़ोस के वंचित वर्गों के बीच बचा हुआ भोजन वितरित करते हुए देखा है। पहले से ही कुपोषण के शिकार बच्चों को बासी और बचा हुआ खाना खिलाने से उन्हें बिल्कुल भी मदद नहीं मिलती है। बल्कि इससे उनकी सेहत और भी बिगड़ जाती है।”
चीनू एमबीए ग्रेजुएट हैं। रोटी घर की शुरुआत दिसंबर 2017 में हुई। इसने शुरुआत में रोजाना 100 बच्चों को भोजन उपलब्ध कराने का काम किया। इसके अलावा उन्हें मेंटॉर भी किया और बुनियादी स्वच्छता के बारे में भी पढ़ाया।
चीनू कहते हैं,
"मैंने 'रोटी घर’ शुरू करने के बारे में सोचना तब शुरू किया जब मैंने मुंबई की मलिन बस्तियों में देखा कि यहां भूख बहुत ज्यादा है। ऐसे उदाहरण थे जहां बच्चों को भूख से जान गंवानी पड़ी। जब मैं बड़ा हो रहा था तब भी मैं इसी तरह से उदाहरणों के बारे में सुनता था, और इसलिए मैंने इसके बारे में कुछ करने का फैसला किया। मुझे अपने एनजीओ, खुशियांन फाउंडेशन के कुछ स्वयंसेवकों के साथ मिला, और हमने इस पहल की शुरुआत की।“
चीनू कहते हैं, बच्चों को डिस्पोजेबल कचरे से बचने के लिए अपनी खुद की प्लेट लाने के लिए कहा जाता है, और इस प्रक्रिया में, हम पर्यावरण की रक्षा करना चाहते हैं। भोजन में दाल, चावल और कुछ अचार होता है।
पहल पूरी तरह से दाताओं (donors) की मदद से की जाती है, और रोटी घर रोजाना बच्चों को भोजन कराने के लिए लगभग 3,500 रुपये खर्च करता है। हाल ही में, फाउंडेशन ने बच्चों के लिए साप्ताहिक भोजन में एक उबला हुआ अंडा भी शामिल किया है।
चीनू आगे कहते हैं,
“शुरुआत में, उनमें से कुछ बच्चे शर्मीले थे तो कुछ दूसरों से खाना छीन कर खा लेते थे। लेकिन धीरे-धीरे, उन्होंने कुछ जमीनी नियम बनाए और उन्हें एक कतार में बैठना सिखाया गया।"
एसबीएस हिंदी की रिपोर्ट के अनुसार, उन्हें खाने से पहले अपने हाथ धोने का मूल नियम भी सिखाया जाता है। व्यक्तिगत स्वच्छता बनाए रखने के संदर्भ में, स्वयंसेवकों को मासिक धर्म स्वच्छता के लिए सेनेटरी नैपकिन टूथपेस्ट और एक टूथब्रश प्रदान किए जाते हैं।
चीनू कहते हैं:
“भोजन वितरित करने के बाद, प्रत्येक स्वयंसेवक तीन से चार बच्चों के समूह को कुछ बुनियादी शिक्षा देता है। वह चाहते हैं कि समूह न केवल डंपिंग ग्राउंड में रहने वाले लोगों को विकसित करे और उनकी सेवा करे, बल्कि साल के अंत तक 1,000 वंचितों को कवर करे। भोजन और स्वच्छता का पाठ पढ़ाने के अलावा, वह समय-समय पर चिकित्सा शिविरों का भी संचालन करना चाहते हैं यदि समूह पर्याप्त फंड हासिल कर लेता है तो। मिशन स्पष्ट है: हम अधिक से अधिक लोगों की सेवा करना चाहते हैं।"