जिस PS-1 फिल्म की हो रही है जोर-शोर से चर्चा, क्या जानते हैं उसमें दिखाए गए महान चोल साम्राज्य के बारे में
तमिल साहित्य की कल्ट नॉवेल Ponniyin Selvan (The Son of Ponni) पर आधारित मणिरत्नम की फिल्म पोन्नियिन सेल्वन-1 (Ponniyin Selvan: I) आज रिलीज़ हो चुकी है.
फिल्म की कहानी है तमिल प्रदेश के उस दौर की जिसे तमिल साहित्य में ‘स्वर्ण युग’ की संज्ञा दी जाती है. कहानी है चोल साम्राज्य (Chol dynasty) की, जिसका इतिहास वस्तुतः समस्त तमिल देश का इतिहास बन जाता है. प्राचीन काल में तमिल प्रदेश में तीन प्रमुख राज्य थे- चोल (Cholar), चेर (Cheran) तथा पाण्ड्य (Pandiyans). इन तीनो राज्यों के आपस के टकराव और 10वीं शताब्दी में दक्षिण भारत में लंबे समय तक शासन करने वाले चोल साम्राज्य की गाथा-वर्णन है यह फिल्म. जयम रवि (Jayam Ravi) ने पोन्नियिन सेल्वन की भूमिका निभाई है, जो सबसे लंबे समय तक शासन करने वाले राजवंशों में से एक का एक महान योद्धा है.
आखिर कौन थे चोल जिनके शासन का भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के कई देशों में चलता था सिक्का.
‘चोल’ शब्द की उत्त्पत्ति के बारे में बहुत मतभेद हैं लेकिन सर्वाधिक मान्य मत है कि इस शब्द की उत्पत्ति ‘चूल’ नामक शब्द से हुई जिसका अर्थ सिर अथवा श्रेष्ठ होता है. क्योंकि चोल दक्षिण प्रदेश के राजाओं में सबसे श्रेष्ठ थे इसीलिए उन्हें चोल कहा गया.
चोलों के प्रारम्भिक इतिहास के सम्बन्ध में हमें अशोक के अभिलेखों तथा बौद्ध साहित्य से जानकारी मिलती है. इसकी जानकारी के अन्य प्रमुख स्त्रोतों में ‘संगम साहित्य’ (Sangam literature) है. इतिहासकारों का मानना है चोलों के काल में विदेशी व्यापार बहुत समृद्ध था क्योंकि पेरिप्लस (Periplus) तथा टालेमी (Ptolemy) जैसे विद्वान यात्रियों के विवरणों में चोल राज्य के बन्दरगाहों का उल्लेख मिलता है.
अब बात फिल्म के नायक राजा की
चोल वंश की स्थापना विजयालय ने 850 ईस्वी में की थी. ये वंश 400 से ज्यादा सालों तक शासन करता रहा. हालांकि स्थापना के बाद जब विजयालय का देहांत हुआ तो इस कुल में परांतक नाम का पराक्रमी राजा हुआ था लेकिन अंतिम दिनों में उसे कई हार का सामना करना पड़ा. चोल साम्राज्य की नींव हिलने लगी. तब राजा राजराज (king RajRaJ) चोल ने खुद को ना केवल स्थापित किया बल्कि एक के बाद एक जीत हासिल कर तमाम राज्यों को साम्राज्य में मिलाना शुरू कर दिया. राजराज ने दक्षिण में केरल, पाण्ड्य तथा सिंहल राजाओं के विरुद्ध अभियान किया. सबसे पहले उसने केरल के ऊपर आक्रमण कर वहां के राजा रविवर्मा को त्रिवेन्द्रम् में पराजित किया, उसके बाद पाण्ड्य राज्य को जीता. केरल तथा पाण्ड्य राज्यों को जीतने के बाद राजराज ने सिंहल (श्रीलंका) को जीता. राजा राजराज के शासन में चोलों ने दक्षिण में सिंहल (श्रीलंका) और उत्तर में कलिंग (ओडिशा) और मालदीव के कुछ भागों तक साम्राज्य फैलाया. इसके बाद तो इस वंश ने खूब लंबे समय तक राज किया.
राजा राजराज एक साम्राज्यवादी शासक था जिसने अपनी अनेकानेक विजयों से चोल राज्य को एक विशालकाय साम्राज्य में बदला.
चोल साम्राज्य की महत्ता का वास्तविक संस्थापक राजराज को ही माना जाता है जिनका मूल नाम अरिमोलिवर्मन् (अरुलमोली) था जिसे अरुलमोझी भी कहा गया. कहा जाता है कि अरुलमोली ने राजराज खुद रखा, इसका मतलब था राजाओं का राजा. अपनी महानता को सूचित करने के लिये राजराज ने चोल-मार्त्तण्ड, राजाश्रय, राजमार्त्तण्ड, अरिमोलि, चोलेन्द्रसिंह जैसी उच्च सम्मानपरक उपाधियां धारण कीं.
महान् विजेता के साथ-साथ राजराज कुशल प्रशासक तथा महान् निर्माता भी था. 9वीं से 13वीं शताब्दी के बीच चोल साम्राज्य मिलिटरी (military), पैसे (finance), लिटरेचर (literature), संस्कृति (culture)और कृषि (agriculture) के मामले में काफी तरक्की कर चुका था. सिंचाई की व्यवस्था, राजमार्गों के निर्माण के अलावा उन्होंने बड़े नगरों और विशाल मंदिर बनवाए. राजराज प्रथम ने ही तंजौर (Thanjavur) में मशहूर बृहदेश्वर मंदिर (Brihadisvara Temple) का निर्माण कराया था.
मूर्तिकला का खूब विकास हुआ. कांस्य और दूसरी धातुओं से सजीव और कलात्मक मूर्तियां बनने लगीं. नृत्य करते नटराज की कांस्य प्रतिमा इसी साम्राज्य की देन है.
कांजीवरम (Kanchipuram silk sari) में बनने वाली मशहूर सिल्क की साड़ी, कांचीपुरम का मंदिर और तमिल संस्कृति का संगम काल भी चोल साम्राज्य के समय में हुए थे.
अभिलेखों से पता चलता है कि चोल साम्राज्य में शासन सुसंगठित था. राज्य का सबसे बड़ा अधिकारी राजा, मंत्रियों एवं राज्याधिकारियों की सलाह से शासन करता था. सारा राज्य कई मंडलों में बंटा था. मंडल कोट्टम् या बलनाडुओं इकाईयों में बंटे थे. फिर नाडु (जिला), कुर्रम् (ग्रामसमूह) एवं ग्रामम् थे. इनका शासन जनसभाएं करती थीं.
जिस तरह से राजा राजराज चोल ने हिंदमहासागर के कई देशों में युद्ध लड़कर विजय हासिल की, उससे जाहिर है कि उसकी नौसेना समय से कहीं आगे की थी और बहुत व्यवस्थित होने के साथ जरूरी हथियारों से लैस थे.
चोल वंश में राजशाही के तहत लोकतांत्रिक प्रणाली भी फलीफूली. खुशहाली और सांस्कृतिक चेतना के साथ बेहतर प्रशासन इस वंश की देन थी. राजनैतिक तथा सांस्कृतिक दोनों ही दृष्टियों से उसका शासन काल चोल वंश के चर्मोत्कर्ष को व्यक्त करता है.