जलवायु संरक्षण- 3: चारगुना ज्यादा आग वाली भयानक तबाही का अब और इंतजार मत करिए
जलवायु आपदा आज ऐसे भयानक दौर में पहुंच चुकी है, 'धरती का फ़्रीजर' कहे जाने वाले आर्कटिक में जल रहे जंगलों की राख सूरज की रोशनी सोखकर ग्लेशियरों को आग का गोला बना रही है, पानी में आग लग रही है, समुद्र का दायरा बढ़ रहा है। वैज्ञानिक कह रहे हैं, आने वाले वक़्त में दुनिया में चारगुना ज्यादा आग लगने वाली है।
बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन की ओर से अमेरिका में पीएम नरेंद्र मोदी को 'गोलकीपर्स ग्लोबल गोल्स अवॉर्ड' जिन 17 लक्ष्यों के लिए दिया गया है, उनमें कामयाबी के पांच लक्ष्य पार्यावरण से जुड़े हैं - धरती के जीवों के लिए बेहतर वातावरण, जलवायु में सुधार, स्वच्छता, साफ पानी और स्वच्छ ऊर्जा। इस सम्मान समारोह में पीएम मोदी ने कहा कि भारत ये लक्ष्य प्राप्त करने के करीब है।
भारत को यह एक पल के लिए भी नहीं भूलना चाहिए कि यह विश्व का तीसरा सबसे बड़ा कार्बन उत्सर्जन वाला देश है। भारत में प्रदर्शन कर रहे लोग सरकार से जलवायु परिवर्तन पर तुरंत कदम उठाने की मांग कर रहे हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिस्टल में जल विज्ञानी कैटरीना माइकलाइड्स के एक ताज़ा अध्ययन में बताया गया है कि ‘लॉन्ग प्रोफाइल’ में जलवायु परिवर्तन के कारण नदियों का आकार बदल रहा है। सिक्किम जैसे आर्द्र क्षेत्रों में बहने वाली नदियों की स्थलाकृति, अर्ध शुष्क क्षेत्रों में राजस्थान की तरह शुष्क हो गई है। यह लॉन्ग प्रोफाइल धीरे-धीरे हजारों वषों में बनती है।
आठ सौ करोड़ रुपए की लागत से लद्दाख में यूनिवर्सिटी बनवा रहे सोनम वांगचुक जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए पैदल चलना, साइकिल से सफर करना जैसी छोटी-छोटी आदतों को अब करंसी में गिनेंगेऔर लोगों से मामूली सी कुर्बानी करने का वादा करने की वकालत करेंगे। जलवायु आपदा से निपटने की अपनी इस अनूठी क्राउड फंडिंग के बारे में वह बताते कि अभियान में वह लोगों से 100 डॉलर की मदद मांगने के बजाए उनसे कुछ आदतें छोड़ने को कहेंगे, जिनसे 100 डॉलर ऊर्जा की बचत हो। इन आदतों के बदलने से होने वाली बचत का हिसाब होगा और आदत-दान करने वालों के खातें में वह रकम दिखाई जाएगी। अभियान से खरबों डॉलर ऊर्जा की बचत होगी। वह चाहते हैं कि लोग लिफ्ट से न चलें, पैदल अथवा साइकिल से सफर करें। फ्लाइट नहीं, ट्रेनों का इस्तेमाल करें।
उल्लेखनीय है कि पीएम मोदी इसी माह गत 09 सितंबर को ग्रेटर नोएडा में मरूस्थलीकरण से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र समझौते (यूएनसीसीडी) में शामिल देशों के 14वें सम्मेलन (कॉप 14) के उच्च स्तरीय खंड को संबोधित करते हुए कह चुके हैं कि भारतीय संस्कृति में पृथ्वी हमारी मां है। वैश्विक जल यूएनसीसीडी के नेतृत्व को अब ग्लोबल वाटर एक्शन एजेंडा भी जोड़ना होगा। विगत तीन वर्षों में भारत का वन क्षेत्र 0.8 मिलियन हैक्टेयर, साथ ही जैव उर्वरकों का उपयोग बढ़ा है। अलग से जल शक्ति मंत्रालय बनाया गया है। स्वच्छता का दायरा 38 प्रतिशत से बढ़कर 99 प्रतिशत हो चुका है। हमारा लक्ष्य, भारत में बंजर भूमि को खेती योग्य बनाने की दिशा में 21 मिलियन हैक्टेयर को बढ़ाकर 2030 तक 26 मिलियन हैक्टेयर तक पहुंचाना है। इस दिशा में ज्ञान, प्रौद्योगिकी और जनशक्ति को लगातार प्रोत्साहित किया जा रहा है।
भारत में ऑटोमोबाइल सेक्टर के मंदी की चपेट में आने की एक वजह 2020 से लागू होने वाला ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन मानक बीएस-6 एमिसन स्टैंडर्ड भी माना जा रहा है, क्योंकि भारत में वाहनों से सर्वाधिक वायु प्रदूषण बढ़ रहा है। वर्ष 2000 से पहले वाहनों पर भारत में कोई उत्सर्जन मानक लागू नहीं था। बीएस-2 मानक 2001 में एनसीआर, मुंबई, चेन्नई और कोलकाता में, 2003 में देश के कुल 13 शहरों में, फिर 2005 में पूरे देश में लागू कर दिया गया। बीएस-6 वाहनों के उत्सर्जन में सल्फर की मात्रा बीएस-4 की तुलना में पांच गुना तक कम होगी। आने वाले दिनो में बीएस-6 मानक लागू होने का असर ऑटोमोबाइल उद्योग के साथ-साथ इसके साथ जुड़े हुए सारे उद्योगों पर पड़ना है। ऐसे में रिफाइनरियों को भी अब बीएस-6 ईंधन का उत्पादन करना होगा जिससे लागत बढ़ जाने पर तेल और गैस ईंधन महंगे हो जाएंगे।
उधर, जलवायु आपदा का हाल ये है कि धरती का फ़्रीजर, दुनिया के कुल जंगलों का एक तिहाई हिस्सा आर्कटिक, जहां पहले बर्फ़ ही बर्फ़ थी, दोगुनी रफ़्तार से गर्म हो रहा है, 40 लाख हेक्टेयर टैगा के जंगल शोलों में तब्दील हो चुके हैं, समुद्र बढ़ रहा है, जंगल जल रहे हैं, भालू भूख से मर रहे हैं, छत्तीस वर्षों से लगातार ग्लेशियर घट रहे हैं। अमेरिकी मोंटाना यूनिवर्सिटी में पढ़ा रहे पर्यावरणविद् फिलिप हिगुएरा पिछले 20 वर्षों से इस हालात पर नजर गड़ाए हुए 2016 में ही भविष्यवाणी कर चुके हैं कि ग्रीनलैंड, कनाडा और साइबेरिया के आर्कटिक इलाक़ों में 2021 तक इससे चारगुना ज्यादा आग लगने वाली है।
पैसे वाले लोग सोचते हैं कि वे सब कुछ खरीद सकते हैं, साफ हवा भी, लेकिन विश्व समुदाय सिर्फ पैसे जुटाकर इन लपटों पर काबू नहीं पा सकता है क्योंकि राख सूरज की किरणें तेजी से सोखकर बर्फ को आग का गोला बना रही है। पर्यावरणविद् सू नटाली और कनाडा की वैज्ञानिक मेरिट ट्यूरटस्की बताती हैं कि अलास्का में तो पानी में आग लगते हुए उन्होंने देखा है। गीली ज़मीन सुलग रही है। राख और धुएं से दुनिया की आब-ओ-हवा ही नहीं, उत्तरी गोलार्ध का पूरा इकोसिस्टम ही तबाह हो रहा है। पौधों की नस्ल तक बदलने लगी है। यहां हज़ारों साल से जमीन में दबे पेड़ों, जीवों के जीवाश्म खुले में आ गए तो उनके कार्बन वायुमंडल में घुलने के बाद पूरी धरती पर भयानक जलवायु परिवर्तन होगा।
हाल ही के 'फ्राइडे फॉर फ्यूचर' आंदोलन की धमक के बीच जर्मनी के क्लाइमेट कैबिनेट चांसलर अंगेला मैर्केल ने पर्यावरण सुरक्षा की दिशा में एक बड़ा कदम उठाते हुए 22 पेज के दस्तावेज में वर्ष 2030 तक कार्बन उत्सर्जन 1990 के स्तर से 55 फीसदी कम करने का लक्ष्य रखा है। साथ ही वर्ष 2021 से परिवहन और मकानों की हीटिंग के क्षेत्र में कार्बन कारोबार शुरू किया जाएगा। इस मैकेनिज्म के तहत कार्बन डाय ऑक्साइड के उत्सर्जन को महंगा बना दिया जाएगा। तेल, तरल और भूगैस, कोयला, पेट्रोल और डीजल जैसे जीवाश्म उर्जा की कीमत बढ़ जाएगी। जलवायु आपदा से निपटने के लिए हाल ही में सबसे बड़ी रैलियां सिडनी और मेलबर्न में निकाली गईं, जबकि दूसरी तरफ अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप और उनका प्रशासन खुले तौर पर जलवायु विज्ञान से अपनी घृणा जाहिर कर चुका है।
जलवायु आपदा से निपटने के लिए वैज्ञानिक और पर्यावरणविद इस बात पर खास जोर दे रहे हैं कि धरती की सेहत के लिहाज से शाकाहारी बनें और कम बच्चे पैदा करें, कपड़े ठंडे पानी से धोएं, रिसाइक्लिंग को अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में शामिल करें, बल्ब बदल कर लैम्प अथवा एलईडी जलाएं क्योंकि आबोहवा और समुद्री जल कार्बन से भर चुका है, हर साल 73 लाख हेक्टेयर जंगल काटे जा रहे हैं, मत्स्य सेवन से जलीय जीवन का संतुलन गड़बड़ा रहा है। रासायनिक खादों से हर साल 1.2 करोड़ हेक्टयेर जमीन खराब हो रही है।
आज के वक़्त में प्राकृतिक आपदाएं वर्ष 1990 की तुलना में दोगुनी हो चुकी हैं। विश्व बैंक के एक सर्वे के मुताबिक हर साल इन आपदाओं के कारण करीब ढाई करोड़ लोग गरीबी में धकेले जा रहे हैं। आईयूसीएन की रेड लिस्ट के अनुसार जानवरों और पौधों की 8,688 प्रजातियों में से करीब 19 फीसदी पर जलवायु परिवर्तन का गंभीर असर पड़ा है। कार्बन डाई ऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड जैसी अहम ग्रीनहाउस गैसों की वातावरण में मात्रा उच्चतम पाई गई है। पेरिस समझौते में इनको 450 पीपीएम पर सीमित करने का लक्ष्य है ताकि वैश्विक तापमान को 2 डिग्री की सीमा पर रोका जा सके।
पिछले साल 10 दिसंबर, 2018 को काटोवाइस (पोलैंड) में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में जारी 'जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक-2019' के मुताबिक, दुनिया के 56 देशों और यूरोपीय संघ के जलवायु संरक्षण के प्रदर्शन का मूल्यांकन करते हुए ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जनों के लगभग 90 प्रतिशत के लिए संयुक्त रूप से विश्व समुदाय को जिम्मेदार माना गया है। वर्ष 2019 के जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक में भारत को 11वां स्थान (स्कोर-62.93) प्राप्त हुआ है। वर्ष 2018 के सूचकांक में भारत का 14वां स्थान था।
मौजूदा वर्ष में जनवरी में जारी जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक में मोरक्को को स्वीडन के बाद दूसरा सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाला देश घोषित किया गया है। यह सूचकांक पहली बार वर्ष 2005 में जारी किया गया था। गौरतलब है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जलवायु परिवर्तन को लेकर वैश्विक स्तर पर चर्चाएँ प्रारंभ हुईं। वर्ष 1972 में पहली बार स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में पहला सम्मेलन आयोजित कर संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम का गठन और नैरोबी में इसका मुख्यालय बनाया गया। बीस साल बाद ब्राजील के रियो डि जेनेरियो में सम्बद्ध राष्ट्रों के प्रतिनिधि एकत्रित हुए। उसके बाद जलवायु आपदा पर 1995 में पहला कोप सम्मेलन, फिर आगे 2011 तक कुल 17 कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज हो चुकी हैं।