मिलें दिल्ली के उस बिज़नेसमैन से जिसने मात्र 3 हज़ार रुपये की लागत से खड़ी कर ली 4.5 करोड़ रुपये का टर्नओवर देने वाली कंपनी और 5 लाख ग्राहक
अक्सर हमने बिजनेस करते सिर्फ उन लोगों को देखा है जो बिजनेस बैकग्राउंड से आते हैं, मेरा मतलब उन लोगों से है जिनका फैमिली बिजनेस होता है। लेकिन आज हम जिस शख्स की कहानी बताने जा रहे हैं वो न तो बिजनेस फैमिली से ताल्लुक रखते हैं और न ही ज्यादा पैसे वाले थे। लेकिन बिजनेस करने के जुनून और कड़ी मेहनत ने उन्हें आज एक सक्सेसफुल बिजनेसमैन बना दिया। हम बात कर रहे हैं दिल्ली के रहने वाले युवा सीए राहुल गोयल की जिन्होंने महज तीन हजार रुपये की लागत से 4.70 करोड़ का बिजनेस खड़ा कर लिया।
राहुल पेशे से सीए (चार्टेड अकाउंटेंट) हैं लेकिन उन्होंने सीए की प्रैक्टिस (अपना खुद का ऑफिस) न करके दूसरा रास्ता चुना और वो था बिजनेस करने का। राहुल ने साल 2017 में खुद का फैशन लिस्टिंग ब्रांड ट्रेंडीफ्रॉग (Trendyfrog) शुरू किया।
तो चलिए कहानी शुरू करते हैं राहुल की पारिवारिक स्थिति और पढ़ाई से। राहुल ने योरस्टोरी से बात करते हुए कहा,
“साल 1982 में मेरा जन्म एक मिडिल क्लास फैमिली में हुआ था, परिवार में मेरे अलावा दो बहनें है। मेरे पिताजी एक गारमेंट एक्सपोर्ट हाउस में जॉब किया करते थे और माताजी हाउसवाइफ हैं। स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद मैंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से बी.कॉम. ऑनर्स किया और उसके बाद सीए।”
राहुल आगे बताते हैं,
“हमारी (तीनों भाई-बहनों की) पढ़ाई के दौरान ही जब पिताजी की नौकरी चली गई तो उन्होंने घर के पास में एक दुकान की जिस पर मैं भी बैठा करता था, पिताजी को सहारा देने के लिये। अपनी पढ़ाई और दुकान के बीच मैनें संतुलन बनाए रखा। परिवार ने भी मुझे अच्छा सपोर्ट दिया। इन दिनों में हमने सीख लिया कि पैसे की क्या अहमियत होती है? खुद का धंधा (बिजनेस) क्या होता है? पढ़ना क्यों जरुरी होता है? - ये सारी मॉरल वैल्यूज हमने सीख ली और इन्हीं बातों ने आगे बढ़ाया।”
लोन बाँटने के दौरान सीखे बिजनेस के गुण
राहुल ने सीए करने के बाद आईसीआईसीआई बैंक में लोन डिपार्टमेंट में नौकरी की। जहाँ लोन बाँटने के लिए उन्हें फील्ड में जाकर बड़े-बड़े पेशेवर लोगों से, कंपनीज के फाउंडर्स से मिलना होता था। उसके बाद उन्होंने डीएचएफएल जॉइन कर लिया। वहाँ भी उनका काम लोन बाँटना ही होता था और यहाँ भी राहुल फाउंडर्स और दूसरे बिजनेसमैन लोगों से मिलते थे।
राहुल ने बताया,
“लोगों को लोन बाँटने के लिये मेरी मुलाकातों का सिलसिला जारी रहा। इस दौरान मैंने बातों-बातों में इन पेशेवर लोगों से बिजनेस का हुनर सीखा।”
ट्रेंडीफ्रॉग का आइडिया
इन मुलाकातों से सीख लेने और अपने परिवार की जिम्मेदारियों (जैसा कि मिडिल क्लास फैमिली में होता है- परिवारिक खर्चे और घरेलु शादियाँ आदि) से थोड़ा फ्री होने के बाद राहुल ने बिजनेस करने का मन बनाया। इसके लिए उन्होंने ग़जब की मार्केट रिसर्च की। ई-कॉमर्स पोर्टलों से बाजार की मांग, रुझान, फैशन आदि पर भी उन्होंने रिसर्च की। रविवार को वह दिल्ली के विभिन्न थोक बाजारों का दौरा करते थे ताकि मांग वाले प्रोडक्ट्स की उपलब्धता का पता चल सके। तब उन्होंने पाया कि मार्केट में लेडीज क्लोथिंग की अच्छी डिमांड है। बस फिर क्या था, चार महीने की कड़ी रिसर्च के बाद राहुल ने इसमें उतरने के लिये कमर कस ली।
तब राहुल ने महिलाओं के लिये वेस्टर्न गारमेंट सैंगमेंट में अपना खुद का ब्रांड ट्रेंडीफ्रॉग शुरू करने का फैसला किया है।
सीए राहुल गोयल पहले से ही अपनी फुल-टाइम जॉब में लगे हुए थे और इस बिजनेस की डेली रूटीन एक्टीविटीज में शामिल नहीं हुए, क्योंकि इस समय वे अपनी जॉब नहीं छोड़ना चाहते थे। ऐसे में उनके पिता एस. पी. गोयल (कॉ-फाउंडर) उनकी मदद के लिए आगे आए।
बाजार में एक नए खिलाड़ी के रूप में आमतौर पर कोई भी दुकानदार उन्हें खास तरजीह नहीं देता था। दिल्ली के थोक बाजार जैसे करोल बाग, चांदनी चौक, सदर बाजार और गांधी नगर की हर गली में खोज करने के बाद विक्रेताओं को शॉर्टलिस्ट और फाइनल करने में उन्हें थोड़ा समय लगता है।
ट्रेंडीफ्रॉग के लिये पहली खरीद
रिसर्च और प्लानिंग के बाद अंत में वह दिन आ ही गया जब उन्होंने अपनी पहली खरीद जो कि महज तीन हजार रुपये थी, की। उन्होंने तीन हजार रुपये की लागत से अपना बिजनेस शुरू किया है। वे यह जानते थे कि यह बेहद छोटी राशि है लेकिन उनके सपने और हौसले मजबूत थे।
उन्होंने विभिन्न ई-कॉमर्स पोर्टल्स जैसे कि अमेज़ॅन, फ्लिपकार्ट, पेटीएम आदि पर अपने प्रोडक्ट बेचना शुरू कर दिया सिर्फ तीन दिनों के भीतर तीन हजार रुपये के ये सारे कपड़े बिक गए। इस बात ने उनके आत्मविश्वास को बढ़ाया जिसके बाद उन्होंने कई नए प्रोडक्ट्स की लिस्टिंग की।
बिजनेस के शुरुआती दिनों में एस पी गोयल (कॉ-फाउंडर) ऑर्डर्स की पैकिंग और अनपैकिंग खुद ही करते थे और सीए राहुल गोयल अपने रेग्यूलर ऑफिस टाइम के बाद से रोज सुबह 4 बजे तक (लगभग 18 से 20 घंटे) मार्केटिंग, कॉम्पिटैटर्स पर रिसर्च, नए आइडिया, नए प्रोडक्ट आदि पर काम किया करते थे।
वे नए प्रोडक्ट्स को लॉन्च करने और 1 वर्ष के अंतराल में 100 से अधिक प्रोडक्ट्स का पोर्टफोलियो बनाने के लिए अथक प्रयास करते हैं।
ई-कॉमर्स पोर्टल्स के स्पेशल सेलर
धीरे-धीरे उनके इस संघर्ष की मेहनत रंग लाने लगी और बड़ी ई-कॉमर्स कंपनियों की नज़र उनके ब्रांड ट्रेंडीफ्रॉग पर पड़ी। इन ई-कॉमर्स पोर्टल्स ने राहुल के ब्रांड ट्रेंडीफ्रॉग को स्पेशल सेलर के रूप में रजिस्टर करने के लिए उनसे कॉन्टैक्ट करना शुरू कर दिया। साल 2018 में, 1 साल में उन्होंने फ्लिपकार्ट पर B-2-C मॉडल के साथ B-2-B मॉडल की बिक्री शुरू करने का फैसला किया है जो कंपनी का एक महत्वपूर्ण बिंदु है।
आज ट्रेंडीफ्रॉग अमेजन, फ्लिपकार्ट, मीशो, क्लब फैक्ट्री, पेटीएम जैसे सभी बड़े ई-कॉमर्स पोर्टल्स पर महिलाओं के कपड़ों की ऑनलाइन बिक्री में अग्रणी ब्रांड है।
ट्रेंडीफ्रॉग का टर्नओवर
ट्रेंडीफ्रॉग ब्रांड ने वित्त वर्ष 2018 में 50 लाख रुपये तक का कारोबार किया जो वित्त वर्ष 2019 में बढ़कर 2.78 करोड़ रुपये हो गया, जो कि 2 साल की अवधि में वित्त वर्ष 2019 में 450% का उछाल था। वित्त वर्ष 2020 में, इस ब्रांड का टर्नओवर 4.78 करोड़ रुपये है, 160% की YOY वृद्धि के साथ। इसी के साथ अब तक वे 5 लाख से अधिक ग्राहकों को अपने प्रोडक्ट्स की सेल से संतुष्ट कर चुके हैं।
भविष्य की योजनाएं
वर्तमान में दिल्ली में उनका हेड ऑफिस है और कुल 10 लोगों के मैनफोर्स के साथ हरियाणा और महाराष्ट्र राज्यों में उन्होंने ब्रांच ऑफिस शुरु किया है।
अपने भविष्य की योजनाओं के बारे में बात करते हुए ट्रेंडीफ्रॉग के कॉ-फाउंडर राहुल गोयल ने बताया,
“हमने अगले 5 से 7 वर्षों में 100 करोड़ रुपये का कारोबार करने की योजना बनाई है। इसके लिए हम डिजिटल प्लेटफॉर्म और डिस्ट्रीब्यूटर शिप मॉडल के माध्यम से डायरेक्ट सेलिंग मॉडल की ओर बढ़ रहे हैं।”
हम ऊर्जावान व्यक्तियों को डिस्ट्रीब्यूटरशिप की पेशकश कर रहे हैं जो स्टॉक में निवेश किए बिना पैसा बनाना चाहता है और हर साल 100% की सीएजीआर वृद्धि प्राप्त कर सकते हैं। हमारा लक्ष्य पूरे भारत के सभी 28 राज्य और 8 केंद्र शासित प्रदेशों को डायरेक्ट सेलिंग के जरिए कवर करना है।
इस बातचीत के दौरान अतं में राहुल ने अपना मोटो (Motto) बताते हुए कहा,
“हमारा मोटो है, "Clothing for all (सभी के लिए वस्त्र)”
Edited by रविकांत पारीक