कोरोनोवायरस संकट के समय में, किस तरह से काम और डर का सामना कर रही हैं घरेलू महिला श्रमिक
बेंगलुरु में क्राइस्ट यूनिवर्सिटी कैंपस से सटा इलाका लगभग सुनसान दिखता है। एक महीने तक परीक्षाएं स्थगित होने के बाद अधिकांश छात्र अपने-अपने घरों के लिए रवाना हो गए हैं। आईटी आबादी का एक बड़ा हिस्सा वर्क-फ्रॉम-होम के रुटीन तक ही सीमित है। आस-पास के सुपरमार्केट्स में लोगों की लंबी कतारें देखी जा रही हैं, जो जरूरी चीजों को स्टॉक कर रहे हैं। COVID-19 के आसपास की दहशत सच में बहुत रियल है।
खबर लिखे जाने तक कर्नाटक में कोरोना वायरस से पीड़ितों की संख्या 100 के पार हो गई है और अब तक राज्य में तीनों लोगों की मौत हुई है। वहीं पूरे देश में वायरस से संक्रमितों की संख्या 1600 के पास हो गई है और 38 लोग इसके चलते अपनी जान गंवा चुके हैं। कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 मार्च को देश को संबोधित करते हुए 21 दिन के देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की थी। वहीं कर्नाटक सरकार ने इससे पहले ही तत्काल कार्रवाई की और वायरस के प्रसार को रोकने के लिए राज्य भर में स्कूल, कॉलेज और मॉल को बंद करने की घोषणा की।
जहां हम में से अधिकांश के पास घर से काम करने का विकल्प है, और हैंड सैनिटाइजर, मास्क और साबुन तक आसानी से पहुंच है, तो वहीं ब्लू-कॉलर वर्कर्स के लिए इस तरह के विकल्प नहीं हैं। इनमें से बड़ी संख्या में महिलाएं हैं। सुनसान गलियों में भी, आप महिला पौराकर्मिकों (बीबीएमपी कार्यकर्ता) को कड़ी मेहनत करते हुए, कचरे बीनते हुए, सफाई करते हुए और क्षेत्रों को साफ रखते हुए पा सकते हैं।
मैंने अपने घर के पास सड़क पर, बीबीएमपी की एक पौराकर्मी अल्वेलम्मा से संपर्क किया। यह सुबह के करीब 8 बजे का समय था। उन्होंने बताया कि वे लदभग दो घंटे से यहां काम कर रही हैं। हालांकि उन्होंने एक सर्जिकल मास्क पहना था इसलिए मुझे लगा कि वह कोरोनोवायरस स्थिति से अवगत हैं। मैं उनसे पूछा कि क्या वह कोई अन्य सावधानी भी बरत रही हैं क्योंकि उन्होंने सूखा कचरा इकट्ठा करते समय कोई दस्ताने नहीं पहने थे।
उन्होंने कहा,
“हाँ, बीबीएमपी ने एक जागरूकता सत्र आयोजित किया था और सैनिटाइटर और मास्क भी दिए हैं। उन्होंने हमें अपने हाथों को अक्सर साबुन और पानी से धोने के लिए कहा, घर के अंदर और बाहर हर जगह। हम जानते हैं कि हमें हाइजेनिक होने और खुद की देखभाल करने की आवश्यकता है।”
वहीं पड़ोस में हमारी बातचीत सुन रही एक महिला उस महिला कर्मी को दस्ताने नहीं पहनने को लेकर उपदेश देती है। तब वे अपनी जेब से दस्ताने निकालती हैं और उन्हें अपने हाथों में पहन लेती हैं, हालांकि वे कहती हैं कि ये पहनने पर उन्हें असहज लगता है।
इसी एरिया में, सासीरेखा एक कुक और हाउस हेल्प के रूप में पांच अलग-अलग घरों में काम करती हैं। मैने उनसे पूछा कि क्या वह कोरोनावायरस के बारे में जानती हैं तो उनके पास कोई जवाब नहीं था। वह यह भी नहीं जानती कि हैंड सेनेटाइजर क्या होता है। तब मैंने उन्हें मौजूदा स्थिति के बारे सामान्य जानकारी दी और एक बोलत सैनिटाइटर भी दिया। हालांकि वह पहली बार में जानकारी सुनकर थोड़ा घबरा गई, लेकिन उन्होंने सावधान रहने का वादा किया और कहा कि वे आगे से सावधानी बरतेंगी। अधिकांश आवासीय भवनों, विशेष रूप से बेंगलुरु और उसके आसपास के गेटेड समुदायों में, लोगों के उपयोग के लिए प्रवेश द्वारों पर सैनिटाइटर रखे हैं।
मैरी*, जो इसी तरह की बिल्डिंग में काम करती हैं, कहती हैं कि वह हर समय सावधान रहती हैं। इसके अलावा, उनके चर्च में हर हफ्ते, पादरी स्वच्छता प्रथाओं, जैसे कि हाथों को धोना, हाथ न मिलाना, चेहरे को न छूना और कैसे छींकें आदि के बारे में बताते हैं। भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई में 1.84 करोड़ की आबादी है और इसमें बड़ी संख्या में घरेलू कर्मचारी (डोमेस्टिक वर्कर्स) भी हैं।
शांता* जो शहर के उपनगरीय इलाके में एक गेटेड समुदाय में काम करती हैं, वे कहती हैं कि वे कोरोनावायरस से अवगत हैं और खुद को साफ रखने के बारे में सावधानी बरतती हैं।
वे कहती हैं,
"बिल्डिंग मैनेजमेंट ने कई निवारक उपाय किए हैं और हमें व्यक्तिगत रूप से और काम पर स्वच्छता बनाए रखने के लिए जागरूक किया है।"
देश में केरल एक ऐसा राज्य बनकर उभरा है जिसने सरकार से उपायों के साथ COVID-19 से निपटने के लिए एक तत्काल और सक्रिय दृष्टिकोण देखा है। के कोच्चि में जागरूकता बहुत अधिक है।
चंद्रिका*, जो एक हाउस हेल्प के रूप में काम करती हैं, वे कहती हैं,
“मेरे एप्लॉयर ने मुझे वायरस के बारे में सब बताया, और बताया कि क्यों मुझे अपने हाथों को साबुन से धोते रहना चाहिए और सेनेटाइजर का उपयोग करना चाहिए। मेरे पास अपने वर्कप्लेस पर बस से यात्रा करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है, लेकिन मैं हमेशा मास्क पहनती हूं और जैसे ही अपने घर पहुंचती हूं तुरंत अपने हाथों को धोती हूं।"
मौजूदा स्थिति को देखते हुए, कई एप्लॉयर भी सुनिश्चित कर रहे हैं कि उनके यहां काम करने वाले सुरक्षित रहें। उनमें से कुछ ने पेड लीव भी दी है।
विद्या*, बेंगलुरु से हैं। वे अभी-अभी विदेश से एक काम के सिलसिले से वापस आई हैं और सेल्फ-आइसोलेशन में हैं। वे कहती हैं,
“मैं उन्हें (काम करने वाली को) एक सप्ताह की पेड लीव दे रही हूं, खासतौर से इसलिए क्योंकि मैं यात्रा से लौटी हूं और सेल्फ-आइसोलेशन पर हूं और मैं नहीं चाहती की मेरी वजह से उन्हें कोई नुकसान पुहुंचे। जिस दिन मैं आई थी, तब से उनके साथ मेरा कोई संपर्क नहीं हुआ।"
बेंगलुरु उपनगर में रहने वाली रूपा का कहना है कि उन्होंने अपनी हाउस हेल्प को पेड लीव दोनो को कहा लेकिन उसने इनकार कर दिया। वे कहती हैं,
"मैंने उसे मास्क, एक सैनिटाइजर दिया और उसे COVID-19 के सभी लक्षणों के बारे में बताया और बताया कि यह कैसे नियमित फ्लू से अलग है।"
मुम्बई की रहने वाली एक लेखिका गायत्री जयरामन कहती हैं,
“मैंने अभी तक छुट्टी नहीं दी है, लेकिन मैंने उसे उसके आस-पड़ोस, घर, व जिन घरों में वह काम करती है वहां सावधानी बरतने के बारे में बताया। सभी लक्षणों के बारे में बताया। साथ ही उसे ये भी जानकारी दी कि क्या जरूरी चीजें हैं जिनको उसे स्टॉक करना चाहिए। यदि वह काम पर आना बंद करना चाहती है, तो उसके वेतन में कटौती नहीं की जाएगी।”
देश के वर्कफोर्स में महिलाओं का एक बड़ा हिस्सा है। लेकिन इन महिलाओं के पास घर पर रहने का विकल्प नहीं है। इस गिग इकॉनमी में उनका काम जारी रहेगा, क्योंकि हमें अपने जीवन को आसान बनाने के लिए उनकी आवश्यकता है। लेकिन हम कम से कम उन्हें सुरक्षित महसूस करने में मदद कर सकते हैं और कोरोनावायरस के संबंध में किसी भी आशंका को दूर कर सकते हैं। जो चीज सबसे ज्यादा समानुभूति रखती है, वह है हम सभी उसी स्थिति में हैं जहां हमें खुद का और दूसरों का भी ध्यान रखना चाहिए।
(अनुरोध करने पर इन महिलाओं के नाम बदले गए हैं)