किस तरह ये उद्यमी बायजू, बीरा और फ्यूजन को कोवर्किंग स्पेस क्लाइंट बना हर साल कर रहा है 20 करोड़ की आमदनी
को-वर्किंग स्पेस आज स्टार्टअप्स के बीच काफी तेजी से लोकप्रिय हो रहा है और भारत में इसमें काफी तेजी से ग्रोथ देखने को मिल रही है। लचीले वर्कस्पेस के मामले में एशिया पैसेफिक देशों में चीन के बाद भारत दूसरा सबसे बड़ा मार्केट बन गया है।इसके अलावा मझोली और बड़ी साइज वाली कंपनियां भी को-वर्किंग स्पेस और इनकी ओर से ऑफर किए जा रहे किफायती इंफ्रास्ट्रक्चर का इस्तेमाल कर रही हैं।
कोवर्किंग इंडस्ट्री अभी भी बढ़ रही है और युवा इनोवेटर्स के उभार से स्टार्टअप्स और एमएसएमई के बीच को-वर्किंग स्पेस की मांग तेजी से बढ़ रही है। इन युवा इनोवेटर्स के लिए एक टिकाऊ इकोसिस्टम मुहैया कराने के विचार ने उद्यमी संजय चौधरी को इनक्यूस्पेज शुरू करने के लिए प्रेरित किया। इनक्यूस्पेज एक प्रीमियम को-वर्किंग स्पेस है, जिसे 2017 में शुरू किया गया था।
संजय ने योरस्टोरी को बताया,
'हमने अपना पहला सेंटर गुरुग्राम में खोला था और बाद में धीरे-धीरे अपने बिजनेस का विस्तार किया। तीन साल के इस छोटे से समय में ही हम गर्व से यह कह सकते हैं कि हम देश में सबसे तेजी से बढ़ने वाले को-वर्किंग स्पेस में से एक है और हमारी उपस्थिति टियर-I और टियर-II दोनों शहरों में हैं।'
इनक्यूस्पेज का कहना है कि उसकी प्रॉपर्टी का इस्तेमाल करने वाले सबसे बड़े क्लाइंट्स में फ्यूजन, बीरा, बायजू, नेशनल हाउस बिल्डिंग काउंसिल (एनएचबीसी), द टेक ट्री जैसे ब्रांड्स शामिल हैं। कंपनी ने नई दिल्ली के कनॉट प्लेस स्थित अपनी प्रॉपर्टी के लिए स्मॉल इंडस्ट्रीज डिवेलपमेंट बैंक ऑफ इंडिया (सिडबी) के साथ भी हाथ मिलाया है।
योरस्टोरी के साथ एक बातचीत में हमें इनक्यूस्पेज के बारे में और जानकारी दी और बताया कि कैसे यह स्टार्टअप्स और एमएसएमई को इंड-टू-इंड सर्विस मुहैया करा रही है।
इनक्यूस्पेज को क्यों शुरू किया गया? इसकी क्या जरूरत थी?
संजय चौधरी: भारतीय युवाओं में मौजूद संभावनाओं ने मुझे हमेशा हैरान किया है। इन युवा इनोवेटर्स को उनके सपने साकार करने का एक मंच मुहैया कराने की दृष्टि के साथ मैंने अपने जुटाए पैसों को लगाकर इनक्यूस्पेज शुरू किया था।
इसे शुरू करने से पहले मैंने काफी रिसर्च किए थे। इससे मुझे पता चला कि नए उद्यमियों के सामने सबसे बड़ी समस्या किसी एक स्थान पर संपूर्ण इकोसिस्टम का न होना था, जहां वह एक सीमित बजट में रोजाना की लॉजिस्टिक की चिंता किए बगैर व्यक्तिगत तौर पर या एक टीम के तौर पर काम कर सकें। इसी जरूरत को समझते हुए इनक्यूस्पेज को शुरू किया गया, जिसका मकसद स्टार्टअप्स के लिए एक अपने आप में संपूर्ण और टिकाऊ इकोसिस्टम बनाना था।
हमने नए वेंचर्स के प्रदर्शन को और बेहतर बनाने के लिए 'पीक परफॉर्मेंस' नाम से एक प्रोग्राम भी शुरु किया था। यह एक
डिग्री यानी कि संपूर्ण दृष्टि वाला एक प्रोग्राम था, जिसके तहत इनवेस्टर कनेक्ट, मेंटर कनेक्ट, स्टार्टअप कनेक्ट और पार्टनर कनेक्ट जैसे कई और प्रोग्राम भी शामिल थे, जिनसे स्टार्टअप को उनकी बिजनेस बढ़ाने में मदद मिलती थी।
कीमतों को लेकर आपकी क्या रणनीति है और मौजूदा आमदनी कितनी है?
संजय चौधरी: हमने अपनी कीमतों को प्रतिस्पर्धात्मक रखा था और ये इंडस्ट्री के मानकों के अनुरूप थीं। प्रति सीट की हमारी कीमत जगह और हमारे टारगेट ऑडियंस के हिसाब से बदलती रहती है। हमसे जुड़ने वाली हर ग्राहक को बेहतर सर्विस मिले, यह सुनिश्चित करने के लिए हमने कई ऑफर प्लान रखे हैं। क्लाइंट इनमें मिलने वाली सेवाओं के आधार पर प्लान चुनते हैं।
हमारी सबसे बड़ी खूबी यह है कि हम मेंबर्स के लिए कस्टमाइज्ड स्पेस भी बनाते हैं, जिसमें बड़े सीटिंग की जरूरत होती है और फिर बाद में हम बाकी बचे एरिया को को-वर्किंग स्पेस में बदल देते हैं। इससे बड़ी टीमों को बिना किसी बड़े स्थान की चिंता किए हुए एक साथ काम करने को मौका मिलता है। हमारे पास फिलहाल 12 सेंटर औऱ और हमारी मौजूदा आमदनी 20 करोड़ सालाना के रन रेट से है।
आप जिसे 'ढूंढ़ो, बनाओ और देखभाल करो' के मॉडल का पालन करते हैं, वह क्या है?
संजय चौधरी: 'ढूंढ़ो, बनाओ और देखभाल करो' का मूल रूप से मतलब यह है कि जब कोई क्लाइंट मिलता है और वह एख जगह की मांग करता है, तो हम उनकी जरूरत के हिसाब से मौजूद प्रॉपर्टीज की तलाश करते हैं। फिर उस जगह को उनकी जरूरतों और मांग के हिसाब से बनाने हैं और फिर वह रोजाना की जरूरतों और सेवाओं और प्रॉपर्टी की देखभाल करते हैं।
उदाहरण के लिए मान लीजिए कि एक 'एक्स' नाम की कंपनी है। इसे अपने 50 सदस्यों के लिए गुरुग्राम के साइबर सिटी में एक अच्छी सुविधाओं युक्त जगह चाहिए। उन्हें रोज दो से तीन घंटे कॉन्फ्रेंस रूम का भी काम है, जहां कम से कम 15 लोग एक साथ बैठ सकें। साथ ही वह रूम भी अच्छा, साफ औऱ ब्रांडेंट कलर वाला होना चाहिए। इसके अलावा उनके पास प्रति सीट के लिए एक बजट भी है, जिसमें इंटरनेट कनेक्शन, प्राइवेट मीटिंग रूप, चाय, कॉफी और बिजली जैसी रोजना की जरूरी सेवाएं भी शामिल हैं।
इस क्लाइंट के लिए हमारा नजरिया यह होता है कि हम इनके लिए साइबर सिटी में ऐसी जगह ढूंढ़े, जहां कम से कम 100 लोग बैठ सके। साथ ही इस जगह से सार्वजनिक यातायात के साधन भी आसानी से मिल सकें। फिर इशसके बाद हम इसमें से 50 सीटें अलग कर लेंगे और उस जगह के इंटीरियर को क्लाइंट की जरूरतों को ध्यान में रखकर बनाएंगे। बाकी के एरिया को हम एक मानक तरीके से डिजाइन करेंगे। बनने के बाद जिस एरिया को हमने अलग किया था, उसे हम एक्स कंपनी को दे देंगे और बाकी के एरिया को प्रति सीट के हिसाब से फ्रीलांसर्स, स्टार्टअप ओनर्स और दूसरों को ऑफर करेंगे। पूरे प्रोजेक्ट का प्रबंधन और देखभाल पूरी तरीके से इनक्यूस्पेज देखती है।
आपने सिडबी के साथ भी हाथ मिलाया है। यह किस तरह की पार्टनरशिप है?
संजय चौधरी: हम सिडबी के साथ को-वर्किंग पार्टनर के रूप में जुड़े हैं और हम कनॉट प्लेस में @workspaze नाम की एक जगह के प्रबंधन में मदद करते हैं। इसे अगस्त 2019 में लॉन्च किया गया था। यह जगह खासतौर से स्टार्टअप और एमएसएमई को सेवाएं देता है, जो सिडबी से जुड़े होते हैं। हमने एमएसएमई को सभी परेशानियों से मुक्त को-वर्किंग महौल की सुविधा देने के लिए अपने विचारों को सिडबी के साथ मिलाया और अन्य उद्योगों के साथ मजबूत संबंध बनाने, विचार बनाने और व्यवसाय विकसित करने के लिए संसाधन प्रदान किए। वहीं सपोर्ट के अन्य पहलुओं को SIDBI की ओर से प्रबंधित किया जाता है।
छोटी कंपनियों के लिए क्या सुविधाएं मौजूद हैं?
संजय चौधरी: जो छोटे बिजनेसेज हमसे जुड़े हैं, उन्हें हम सभी सामान्य ऑफिस सुविधाएं ऑफर करते हैं। जैसे की मीटिंग रूम, कॉन्फ्रेंस रूम, इवेंट स्पेस, प्राइवेट रूम आदि। हालांकि इनका इस्तेमाल उन प्लान के मुताबिक बदलता रहता है, जिसे वह लेते हैं। हम अपने स्ट्रैटजिक पार्टनरशिप के जरिए उन्हें बहुत से डिस्काउंट और ऑफर भी देते हैं, जिसमें ओयो, ओला, मेडलाइफ और गूगल क्लाउट प्लेटफॉर्म जैसे ब्रांड शामिल हैं।
इनक्यूस्पेज स्टार्टअप को संभावित इनवेस्टर्स और मेंटर्स से कैसे जोड़ता है?
संजय चौधरी: इसके लिए हमारे पास एक मानक प्रोग्राम है, जिसकी अगुआई इनवोशेन और इनक्यूबेशन की डायरेक्टर डॉली भसीन करती हैं। उनके पास इंफॉर्मेन और कम्युनिकेशन इंडस्ट्री का 26 सालों से ज्यादा का अनुभव है। पहले लेवल के मेंटरिंग में पास होने के बाद वह उन्हें सही इनवेस्टर्स और मेंटर्स से जुड़ने में मदद करती हैं।
छोटे उद्यमियों और एसएमई को क्लाइंट्स के तौर पर लेने में क्या चुनौतियां आती हैं।
संजय चौधरी: छोटे उद्यमी और एसएमई के सदस्य इवेंट्स, पार्टनर बेनेफिट्स और वर्कशॉप्स को लेकर ज्यादा सक्रिय रहते हैं। ऐसे में हम उन्हें प्रेरित और उर्जावान बनाए रखने के लिए लगातार नई चीजों को तलाशते रहते हैं औऱ नियमित अंतराल पर इवेंट आयोजित करते रहते हैं। वहीं दूसरी तरफ चूंकि वह बिजनेस के शुरुआती चरण में होते हैं और प्रॉफिट की तलाश में रहते हैं, ऐसे में हमें कई बार समय पर पेमेंट मिलने की भी दिक्कत आती है। इसके अलावा इनका लॉक-इन पीरियड भी तुलनात्मक रूप से कम रहता है, जिसका मतलब यह है कि उनके हमारे साथ लंबे समय तक बने रहने के चांस कम होते हैं।