Brands
YSTV
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Yourstory
search

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

Videos

ADVERTISEMENT
Advertise with us

चाय पॉइंट से प्रेरणा लेकर शुरू किया रोजगार ढाबा, ग्रामीणों को दे रहे रोजगार की जानकारी

चाय पॉइंट से प्रेरणा लेकर शुरू किया रोजगार ढाबा, ग्रामीणों को दे रहे रोजगार की जानकारी

Saturday September 15, 2018 , 6 min Read

छोटे कस्बों और दूर दराज के गांवों से शहरों में हो रहे तेजी से पलायन को रोकने के लिए मध्य प्रदेश के विनोद ने एक ऐसा टी स्टॉल शुरू किया जहां पर चाय के साथ-साथ रोजगार और नौकरी की जानकारी भी दी जाती है। विनोद का यह स्टॉल मध्य प्रदेश के सिहोर जिले के नशरुल्लागंज ब्लॉक में स्थित है।

रोजगार ढाबा

रोजगार ढाबा


विनोद ने 2018 जनवरी में रोजगार ढाबा की शुरुआत की थी। इस ढाबे पर एक महीने में लगभग 1,000 लोग आते हैं। एक महीने में यहां 20 जॉब मेला लगता है और पांच तरह के कृषि उत्पादों को प्रदर्शित भी किया जाता है।

चाय ऐसा पेय पदार्थ है जिसे भारत में किसी भी मौसम में कहीं भी आसानी से खोजा जा सकता है। चाहे गांव-कस्बे हों या फिर बड़े-बड़े महानगर हर जगह चाय की छोटी-छोटी दुकानें मिल जाती हैं। 35 वर्षीय विनोद ने भी चाय की दुकान खोलने की योजना बनाई लेकिन उनका मदसद सिर्फ चाय बेचना नहीं बल्कि ग्रामीणों को रोजगार और आजीविका चलाने संबंधी जानकारी देना था। पेशे से विकासकर्मी विनोद बताते हैं, 'मैं बिहार से हूं और मैंने देखा है कि बिहार के लोग रोजगार की तलाश में न जाने कितनी दूर तक निकल जाते हैं। मेरा एक चचेरा भाई रोजगार की तलाश में पंजाब गया था लेकिन वहां उसे स्लम इलाके में रहना पड़ा और वह बीमारी की चपेट में आ गया जिसकी वजह से उसकी मौत भी हो गई।'

इसके बाद विनोद ने सोचा कि वे गांव के लोगों को स्वरोजगार के लिए जागरूक करेंगे ताकि फिर किसी प्रवासी को काम की तलाश में अपनी जान न गंवानी पड़े। विकास ने भारत में रोजगार से जुड़े हुए कई सारे प्रॉजेक्ट्स के साथ काम किया। इसी वक्त उनके दिमाग में 'रोजगार ढाबा' का आइडिया आया। हालांकि इस आइडिया को धरातल में लाने में विनोद को लगभग एक दशक का वक्त लग गया। एक बार वे किसी काम के सिलसिले में बेंगलुरु गए थे। वहां उन्होंने एयरपोर्ट से बाहर निकलकर देखा कि चाय पॉइंट के स्टॉल पर लोगों की भारी भीड़ लगी है। इस दृश्य से उन्हें अहसास हुआ कि चाय में लोगों को एक साथ बुलाने की कितनी बड़ी ताकत है।

image


वह याद करते हुए बताते हैं, 'हमने सोचा कि लोगों को आपस में जोड़ने का यह अच्छा आइडिया हो सकता है। फिर मैंने सोचा है कि इसे लोगों को आजीविका से जुड़ी जानकारी आसानी से दी जा सकेगी।' विनोद के इस आइडिया की तारीफ करते हुए चाय पॉइंट के सीईओ और फाउंडर अमुलीक सिंह बिजराल कहते हैं, 'इसमें कोई दो राय नहीं है कि चाय लोगों को एक दूसरे से जोड़ती है। अगर मैं पढ़ाई के लिए विदेश नहीं गया होता तो शायद मुझे इसकी अहमियत नहीं समझ आती। मुझे यह जानकर काफी खुशी है कि विनोद चाय पॉइंट से प्रभावित होकर इतना बड़ा काम कर रहे हैं।'

विनोद ने 2018 जनवरी में रोजगार ढाबा की शुरुआत की थी। इस ढाबे पर एक महीने में लगभग 1,000 लोग आते हैं। एक महीने में यहां 20 जॉब मेला लगता है और पांच तरह के कृषि उत्पादों को प्रदर्शित भी किया जाता है। विनोद ने सरकारी एजेंसी समेत 70 संस्थानों को जोड़ रखा है जहां लोगों को नौकरी मिल सकती है। इसमें स्किल सेंटर्स, एनजीओ और आसपास के छोटे-छोटे बिजनेस भी शामिल है। अभी तक ढाबे से 10 लोगों को नौकरी मिल चुकी है वहीं विनोद को भी हर महीने 8,000 से 12,000 रुपये की आय हो जाती है।

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) की एक रिपोर्ट के अनुसार 3.1 करोड़ भारतीय फरवरी 2018 तक बेरोजगार थे, जबकि रोजगार के अवसर और नई नौकरिओं की संख्या 600,000 तक सीमित थी। सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (एसईसीसी), 2011 के अनुसार, लगभग 30 करोड़ लोग रोजगार की तलाश में शहरों में बस गए हैं। भारत के आर्थिक सर्वेक्षण 2017 का अनुमान है कि भारत में अंतर-राज्य प्रवासन की संख्या 2011 और 2016 के बीच सालाना 90 लाख थी, जबकि जनगणना 2011 देश में आंतरिक प्रवासियों की कुल संख्या 13 करोड़ पर पहुंच गई है। उत्तर प्रदेश और बिहार ऐसे बड़े राज्य हैं जहां के लोग रोजगार के लिए दूसरे प्रदेशों में पलायन करते हैं।

image


विनोद कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि छोटे गांव और कस्बों में नौकरियां नहीं हैं। बल्कि लोगों को जानकारी ही नहीं होती कि उन्हें गांव के आसपास भी कहीं रोजगार मिल सकता है। वे बताते हैं कि निर्माण कार्य, पेंटिंग, इलेक्ट्रिक से जुड़ा काम, प्लंबिंग जैसे कामों की अधिक डिमांड है। भले गांव में शहरों की अपेक्षा कम पैसे मिलते हैं, लेकिन रहन-सहन किफायती होने की वजह से यह बराबर हो जाता है। विनोद बताते हैं, 'लोगों से बात करते वक्त मुझे मालूम चला कि लोगों के पास नौकरी की जानकारी लेने का स्रोत ही नहीं था।'

विनोद का रोजगार ढाबा स्थानीय वेंडर्स और एंप्लॉयर्स से नौकरी से जुड़ी जानकारियां इकट्ठा करता है और ग्रामीणों तक पहुचाने का काम करता है। इतना ही नहीं इस रोजगार ढाबे पर ऐसे कृषि उत्पादों के नाम भी लिखे होते हैं जिनकी लोगों को जरूरत होती है। इससे किसानों की उपज का सही दाम भी मिल जाता है और जरूरतमंद को जरूरी सामान भी। इन सब चीजों के साथ खेती से जुड़े उपकरणों को किराए पर देने की जानकारी और स्कूल-कॉलेजों में दाखिले से जुड़ी जानकारी भी मुहैया कराई जाती है। सरकारी योजनाओं की जानकारी रोजगार ढाबे पर दी जाती है।

इस रोजगार ढाबे की सबसे खास बात ये है कि किसी भी सेवा के लिए ग्रामीणों से कोई फीस नहीं ली जाती। स्टाल पर सिर्फ चाय के पैसे लिए जाते हैं। विनोद बताते हैं कि लोगों को वॉट्सऐप से भी कनेक्ट किया गया है ताकि उन्हें घर बैठे सारी जानकारी मिल सके। विनोद बताते हैं, 'हम स्थिरता चाहते हैं। हमारे लिए प्रगति तभी होगी जब बड़ी संख्या में लोग नौकरी के लिए यहां आएंगे और जब इलाके में नौकरी के अवसर बढ़ेंगे।' विनोद ने इसे खुद के पैसों से शुरू किया है और उनकी निगाह किसी इन्वेस्टर्स पर है। सिहोर जिले में अभी फिलहाल ऐसे दो ही ढाबे हैं लेकिन आने वाले समय में वे 100 रोजगार ढाबे खोलना चाहते हैं।

यह भी पढ़ें: हिंदी दिवस पर हिंदी मीडियम से पढ़कर यूपीएससी टॉप करने वाले IAS निशांत जैन की कहानी