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लाल नहीं कभी सफेद हुआ करता था, कैसे बना किला-ए-मुबारक दिल्ली का लाल किला

लाल नहीं कभी सफेद हुआ करता था, कैसे बना किला-ए-मुबारक दिल्ली का लाल किला

Saturday December 17, 2022 , 4 min Read

1947 में 15 अगस्त की रात देश की आज़ादी की घोषणा पहली बार लाल किले की प्राचीर से ही की गई थी. नेहरू की इस घोषणा के साथ ही पूरा देश उत्साहित हो उठा था…और लाल किला उसका गवाह था. लाल किला मुगलों से लेकर अंग्रेजों तक के शासन की भी गवाही देता है. कभी कोहिनूर हीरे का घर रही, चीन के रेशम और टर्की के मखमल से सजी किला-ए-मुबारक क्रांतियों के दमन से लाल भी हुई.


10 मई 1857 को मेरठ में शुरू हुआ विद्रोह जब सुनामी के रूप में दिल्ली पहुंचा तब 82 वर्षीय बहादुर शाह ज़फर द्वितीय, जिनका अंग्रेज़ों द्वारा अंतिम मुगल शासक के रूप में अधिकार खारिज कर दिया गया था, को क्रांतिकारियों द्वारा एक बार फिर से "हिंदुस्तान के सम्राट" के रूप में घोषित कर दिया गया. उनके नाम पर सिक्के और आदेश जारी किए गए. उनके साथ शामिल होने के लिए मुहम्मद बख्त खान के नेतृत्व में विद्रोही सैनिक बरेली से दिल्ली पहुंचे और, ज़फर, औपनिवेशिक सत्ता के विरुद्ध, प्रतिरोध का प्रतीक बन गए. विद्रोहियों ने मिलकर लाल किले पर अधिकार जमा लिया.


जैसे जैसे विद्रोह देश के अन्य हिस्सों में फैला, अंग्रेज़ों ने किले पर फिर से कब्जा करने के लिए एक सशक्त आक्रमण आरंभ किया. वे विद्रोह को दबाने में और 20 सितंबर 1857 को किले पर दोबारा कब्जा करने में कामयाब रहे. वहीं बहादुर शाह ज़फर को पकड़ इस किले में कैद कर उनपर मुक़दमा चलाया गया और उनको रंगून (अब म्यांमार) निर्वासित कर दिया गया.


यह किला देश में स्वतंत्रता का सशक्त प्रतीक बन गया था. वर्तमान में यह प्रथा है कि प्रधानमंत्री हर साल स्वतंत्रता दिवस पर यहां से राष्ट्रीय ध्वज फहराते हैं और राष्ट्र को संबोधित करते हैं. यह किला, भारत के दृढ़ संकल्प का ऐतिहासिक चिन्ह है और एक स्वतंत्र राष्ट्र का प्रतीक है.

मुगल सल्तनत के पतन के बाद अंग्रेजों ने इस किले में आर्मी हेड क्वार्टर बना लिया था. अंग्रेजों के अधीन होने के बाद किले में रखे सामान भी अंग्रेज लूट ले गए. कोहिनूर हीरा  भी अंग्रेज तभी ले गए. शाहजहां जिस तख्त पर बैठा करते थे ये हीरा उसी में लगा हुआ था, कोहिनूर लगा ये तख्त 'दीवान-ए-ख़ास' का हिस्सा था.


यमुना नदी के तट पर निर्मित, अष्टकोणीय आकार का लाल किला अंग्रेजों के सत्ता में आने से पहले लगभग 200 वर्षों तक मुगल साम्राज्य की गद्दी बना रहा. लाल किला को 1648 में पांचवें मुगल सम्राट शाहजहां ने बनवाया था जब वो अपनी राजधानी को आगरा से दिल्ली स्थानांतरित करने का फैसला किया था. 


इस इमारत के कई हिस्से चूने के पत्थर से बनाए गए थे. जिसकी वजह से इसका रंग सफेद था. लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, पत्थर खराब होने लगे. अंग्रेजों ने इसे लाल रंग से पेंट करवाया जिसकी वजह से इसे लाल किले के नाम से जाना जाता है.


लाल किला की ऊंचाई 75 फीट है. लाल किला के ग्राउंड में महल, शाही रानियों के निजी कक्ष, मनोरंजन हॉल, शाही भोजन एरिया, स्नानागार, इनडोर नहरें (नाहर-ए-बिहिष्ट या स्वर्ग की धारा), बाग और एक मस्जिद है. परिसर के भीतर सबसे प्रमुख संरचनाओं में दीवान-ए-आम और दीवान-ए-खास शामिल हैं, जो मुगल युग की अधिकतर इमारतों में पाई जाने वाली एक विशेषता है. वहीं, इमारत के दो मुख्य प्रवेश द्वार हैं – लाहौरी गेट और दिल्ली गेट. लाहौरी गेट किले का मुख्य प्रवेश द्वार है, जबकि दिल्ली गेट इमारत के दक्षिणी छोर पर सार्वजनिक प्रवेश द्वार है.


1947 में भारत के आजाद होने पर ब्रिटिश सरकार ने यह परिसर भारतीय सेना के हवाले कर दिया था. जिसके बाद यह सेना का कार्यालय हुआ करता था. 22 दिसम्बर 2003 को लाल किला को भारतीय सेना ने पर्यटन विभाग को सौंप दिया. 2007 में लाल किला को यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया. इसे प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम, 1959 के तहत राष्ट्रीय महत्व का स्मारक भी घोषित किया गया है, और अब इसका प्रबंधन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा किया जाता है.


लाल किला में अब संग्रहालय हैं जो विभिन्न प्रकार की ऐतिहासिक कलाकृतियों को प्रदर्शित करते हैं. इनमें सुभाष चंद्र बोस संग्रहालय, 1857 का संग्रहालय, याद-ए-जलियां, दृश्यकला और आजादी के दीवाने शामिल हैं.