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डॉ. गणेश राख और डॉ. प्रमोद लोहार: पुणे के ऐसे डॉक्टर्स जो बच्ची के जन्म पर नहीं लेते हैं फीस, बिग बी बता चुके हैं इन्हें 'रियल हीरो'

बीते आठ सालों में उनकी इस नेक मुहिम 'बेटी बचाओ जन आंदोलन' से देश-विदेश से करीब 2 लाख से अधिक निजी डॉक्टर, 12 हजार एनजीओ और 1.75 मिलियन स्वयंसेवक जुड़ चुके हैं और लड़कियों को बचाने के उनके प्रयासों में योगदान दिया है।

डॉ. गणेश राख और डॉ. प्रमोद लोहार: पुणे के ऐसे डॉक्टर्स जो बच्ची के जन्म पर नहीं लेते हैं फीस, बिग बी बता चुके हैं इन्हें 'रियल हीरो'

Tuesday October 06, 2020 , 7 min Read

1961 में, सात साल से कम उम्र के प्रत्येक 1,000 लड़कों के लिए 976 लड़कियां थीं। 2011 में जारी नवीनतम जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, यह आंकड़ा घटकर 914 हो गया।


एक डॉक्टर को जो सबसे कठिन काम करना होता है, वह है किसी को यह सूचित करना कि उसका प्रियजन मर गया है। इसके साथ ही आप एक ऐसे समाज में रहने की कल्पना करें जहां एक डॉक्टर अपने मरीजों के रिश्तेदारों को बताने के लिए सबसे मुश्किल काम करता है वह यह है कि पैदा होने वाला बच्चा एक लड़की है।


यह समाज आज भी भारत का विशाल क्षेत्र है। महाराष्ट्र के पुणे के रहने वाले डॉ. गणेश राख कई भारतीय डॉक्टरों में से एक हैं जिन्होंने माता-पिता, रिश्तेदारों और यहां तक ​​कि पति के चेहरे से मुस्कुराहट गायब होते देखी है, जब उन्होंने उन्हें बताया कि परिवार में एक लड़की का जन्म हुआ है।

डॉ. गणेश राख अपने हॉस्पिटल में बेटी के जन्म पर फीस नहीं लेते हैं

डॉ. गणेश राख अपने हॉस्पिटल में बेटी के जन्म पर फीस नहीं लेते हैं

उन्होंने कई परिवारों से सुना कि उन्होंने तांत्रिकों और दैवीय स्थानों का दौरा किया और यह सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न अनुष्ठानों का आयोजन किया कि परिवार में कोई लड़की पैदा न हो। डॉ. गणेश राख ने देखा कि परिवार तब मिठाईयां बांटते हैं जब उनके यहां लड़का पैदा होता है और लड़की के पैदा होने पर अस्पताल से बाहर निकल जाते हैं, जब वह बीमार हो जाती है तो डॉक्टर से छूट की मांग करते हुए वह उन पर मजबूर हो जाते हैं।


इकोनॉमिक सर्वे ऑफ इंडिया (2017-18) ने अनुमान लगाया कि पिछले 10 वर्षों में 63 मिलियन महिला भ्रूण हत्या हुई हैं।


ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2016 के अनुसार, भारत लैंगिक समानता में 87 वें स्थान पर है और यह चौंकाने वाला है कि देश में 63 मिलियन लापता महिलाएं और 21 मिलियन अवांछित लड़कियां हैं। भारत में तिरछे लिंगानुपात के कारण लिंग-संबंधी भेदभाव में भी वृद्धि हुई है।


यदि आप खुद के प्रति ईमानदार हैं, तो आपको पता होगा कि यह कन्या भ्रूण हत्या नहीं है, यह नरसंहार है। आप इस बात से भी वाकिफ होंगे कि पिछले कुछ वर्षों में जनगणना लड़कियों की संख्या में लड़कों (प्रत्येक 1000 के लिए 914) पर एक स्पष्ट गिरावट दिखाती है, उन्होंने जनता की मानसिकता को बदलने के लिए कुछ और करने का फैसला किया।

बेटी बचाओ जन आंदोलन

3 जनवरी 2012 में, डॉ. गणेश राख ने भारत में अपना 'मुल्गी वचवा अभियान' / 'बेटी बचाओ जन आंदोलन' / 'सेव द गर्ल चाइल्ड' अभियान शुरू किया।

डॉ. गणेश राख ने जनवरी, 2012 में 'मुल्गी वचवा अभियान' / 'बेटी बचाओ जन आंदोलन' की शुरूआत की

डॉ. गणेश राख ने जनवरी, 2012 में 'मुल्गी वचवा अभियान' / 'बेटी बचाओ जन आंदोलन' की शुरूआत की

डॉ. गणेश राख के अस्पताल (मेडिकेयर हॉस्पिटल, पुणे) में जब भी किसी बच्ची का जन्म होता है, तो सारी फीस माफ कर दी जाती।

डॉ. राख बताते हैं, "मैंने फैसला किया कि अगर बेटी का जन्म हुआ तो मैं कोई शुल्क नहीं लूंगा। इसके अलावा हमने तय किया कि हम अस्पताल में बेटी के जन्म का जश्न मनाएंगे।"

जिस तरह परिवारों ने एक बच्चे के जन्म का जश्न मनाया, डॉ. गणेश राख सुनिश्चित करते हैं कि उनका अस्पताल खुद मिठाई, केक, फूल और मोमबत्तियों के साथ हर लड़की के जन्म का जश्न मनाए।


इस अभियान की शुरूआत और सबसे बड़ी बाधाओं के बारे में योरस्टोरी से बात करते हुए डॉ. गणेश राख के सहयोगी और 'बेटी बचाओ जन आंदोलन' के राष्ट्रीय मार्गदर्शक डॉ. प्रमोद लोहार बताते हैं, "शुरुआती दिनों में, हर कोई हमें 'मैड डॉक्टर' कहता था।"

डॉ. गणेश राख और 'बेटी बचाओ जन आंदेलन' के राष्ट्रीय मार्गदर्शक डॉ. प्रमोद लोहार

(L-R) डॉ. गणेश राख और 'बेटी बचाओ जन आंदेलन' के राष्ट्रीय मार्गदर्शक डॉ. प्रमोद लोहार

उन्होंने आगे कहा, "एक बार जब हमारी कहानी ने भारत और विदेशों में लोगों का ध्यान खींचा, तो हजारों ने सलाह के लिए हमसे संपर्क किया और गुजरात, कर्नाटक, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, उत्तराखंड और पंजाब में अपने क्षेत्रों में इसी तरह के कार्यक्रम शुरू किए। हमारे लिए सबसे बड़ी प्रशंसा अंतर्राष्ट्रीय डॉक्टर हैं जो विभिन्न देशों में इसी तरह के 'सेव गर्ल चाइल्ड' अभियान शुरू कर रहे हैं।"

बेटी बचाओ जन आंदोलन

बेटी बचाओ जन आंदोलन के तहत अलग-अलग जगहों पर निकाली गई रैलियां

बीते आठ सालों में उनकी इस नेक मुहिम 'बेटी बचाओ जन आंदोलन' से देश-विदेश से करीब 2 लाख से अधिक निजी डॉक्टर, 12 हजार एनजीओ और 1.75 मिलियन स्वयंसेवक जुड़ चुके हैं और लड़कियों को बचाने के उनके प्रयासों में योगदान दिया है।

(L-R) डॉ. गणेश राख और 'बेटी बचाओ जन आंदेलन' के राष्ट्रीय मार्गदर्शक डॉ. प्रमोद लोहार

(L-R) डॉ. गणेश राख और 'बेटी बचाओ जन आंदेलन' के राष्ट्रीय मार्गदर्शक डॉ. प्रमोद लोहार

बेटी बचाओ आंदोलन के तहत डॉ. गणेश राख के नेतृत्व में साल 2019 में निकाली गई रैली की एक झलक:

विदेशों में भी जनजागरूकता की रैलियां

डॉ. प्रमोद लोहार ने विदेशों में इस तरह के प्रोग्राम के बारे में जानकारी देते हुए बताया, "फरवरी 2019 में, हमने जाम्बिया के लुसाका में एक रैली की, जिसमें जनता को बालिकाओं को बचाने और उनकी सुरक्षा के बारे में शिक्षित किया गया। हालांकि वे कन्या भ्रूण हत्या में लिप्त नहीं हैं। कार्यकर्ताओं ने कांगो, सूडान, केन्या, युगांडा और नाइजीरिया जैसे अन्य अफ्रीकी देशों में 'सेव गर्ल चाइल्ड' की मशाल को ले जाने के लिए प्रतिबद्ध किया और अंततः पूरे महाद्वीप को चरणों में कवर किया।"

जाम्बिया

जाम्बिया में 'सेव गर्ल चाइल्ड' कैंपेन के तहत निकाली गई रैली

यह सिर्फ अफ्रीका तक ही सीमित नहीं रहा। उन्होंने बांग्लादेश, नेपाल, पाकिस्तान में अपना संदेश फैलाया। इसके साथ ही इसी साल अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में भी इसी मुहिम के तहत रैलियां होनी थी, लेकिन कोरोनावायरस महामारी के चलते सारे कार्यक्रम स्थगित करने पड़े।

गरीबी से रहा नाता

डॉ. गणेश राख का जन्म गरीब परिवार में हुआ। उन्होंने अपनी पूरी शिक्षा छात्रवृत्ति के जरिए पूरी की।


डॉ. गणेश राख खुद मानते हैं कि ऐसी सेवाओं को चलाना कभी आसान नहीं होता है। लेकिन उन्हें उनके पिता की सीख याद है, जिन्होंने उनसे कहा था कि उन्होंने (डॉ. गणेश राख ने) जो अच्छा काम किया है, उसे आगे बढ़ाते रहें।

डॉ. गणेश राख

डॉ. गणेश राख

डॉ. प्रमोद लोहार कहते हैं, "हम अपने प्रसव संबंधी परामर्श शुल्क या पुरुष शिशुओं के प्रसव शुल्क से लागत की वसूली करके इन प्रसवों को मुफ्त में करवा सकते हैं। इसमें हम कोई मुनाफा नहीं लेते और जो मुस्कान हमें उन परिवारों के चेहरे पर दिखती है उसका कोई सानी नहीं।"


उन्होंने आगे यह भी बताया कि हॉस्पिटल में बच्ची के जन्म पर कोई फीस नहीं ली जाती। इसके अलावा 5 साल तक बच्ची और उसके माता-पिता का नि:शुल्क इलाज किया जाता है।


यह पूछने पर कि अस्पताल कैसे काम कर रहा है, वे कहते हैं, “हम दूसरों से पैसे लेते हैं, सर्जरी के लिए, ओपीडी, परामर्श शुल्क आदि। किसी भी तरह से मदद का हमेशा स्वागत है क्योंकि यह हमारे कारण में योगदान देता है।”

डॉ. प्रमोद लोहार ने जानकारी देते हुए आगे बताया कि डॉ. गणेश राख की इस पहल के तहत डॉ. राख के हॉस्पिटल (मेडिकेयर) में अब तक करीब 2 हजार से अधिक बच्चियों का जन्म हो चुका है, इनमें से करीब 17 सौ की डिलीवरी खुद डॉ. गणेश राख ने करवाई है। इनके माता-पिता से कोई फीस नहीं ली गई।

डॉ. गणेश राख और डॉ. प्रमोद लोहार का कहना है कि वे पुरुष बच्चों के खिलाफ नहीं हैं। ऐसा नहीं है कि वे उनसे प्यार नहीं करते। वे जिस चीज को बढ़ावा देना चाहते हैं, वह है समानता, ताकि समाज में कोई लिंग भेद न हो और सभी को समान अवसर मिलें।

बॉलीवुड के बिग बी ने बताया 'रियल हीरो'

साल 2016 में डॉ. गणेश राख के 'बेटी बचाओ जन आंदोलन' के पाँच साल होने पर उन्हें बीबीसी ने अपने शो "अनसंग हीरोज़" में फीचर किया। इसके अलावा उन्हें स्टार प्लस चैनल के टीवी शो 'आज की रात है ज़िंदगी' में बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन ने सम्मानित करते हुए उन्हें 'रियल होरो' बताया।

स्टार प्लस चैनल के टीवी शो 'आज की रात है ज़िंदगी' में बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन ने सम्मानित करते हुए उन्हें 'रियल होरो' बताया

स्टार प्लस चैनल के टीवी शो 'आज की रात है ज़िंदगी' में बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन ने सम्मानित करते हुए उन्हें 'रियल होरो' बताया

डॉ. गणेश राख का कहना है कि कन्या भ्रूण हत्या दुनिया के सबसे बड़े 'नरसंहारों' में से एक है। हम निष्क्रिय रूप से नहीं बैठ सकते हैं और लड़कियों और महिलाओं को इस तरह से मरने और उनके साथ भेदभाव होता नहीं देख सकते। लड़कियों को बचाने के लिए, समाज को बचाने के लिए, दुनिया के भविष्य को बचाने के लिए, सभी को स्वेच्छा से 'बेटी बचाओ जन आंदोलन' में भाग लेना चाहिए और कन्या भ्रूण को रोकने के लिए माता-पिता को समझाना चाहिए। हम वो बदलाव हैं जो दुनिया को चाहिए।


(फोटो साभार: डॉ. प्रमोद लोहार)