जिस बस स्टॉप पर मांगती थी भीख, आज उसी इलाके की हैं जज
मंडला देश की पहली महिला ट्रांसजेंडर है जिन्होने राष्ट्रीय लोक अदालत तक का सफर तय किया। हमारे देश के लिए इससे बड़ी गर्व की क्या बात होगी कि एक ट्रांसजेंडर राष्ट्रीय लोक अदालत की न्यायाधीश हैं।
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"जिस बस स्टॉप पर भीख मांगती थीं, आज उसी इलाके की जज हैं ये ट्रांसजेंडर"
जहां दुनिया अभी ट्रांसजेंडर को लेकर संकोच में है वहीं दूसरी ओर जोयिता एक सार्थक जवाब हैं उन लोगो के लिए जो अपनी मानसिकता में बदलाव नहीं ला पा रहे हैं।
कहते हैं कोशिश करने वालो की हार नहीं होती और जिसने दृढ़ निश्चय कर लिया उसके लिए तो अपने लक्ष्य को हासिल करना और भी आसान हो जाता है। ऐसा ही कुछ इस समय जोयिता मंडल महसूस कर रही है । जोयिता देश की पहली महिला ट्रांसजेंडर है जिन्होंने राष्ट्रीय लोक अदालत तक का सफर तय किया। हमारे देश के लिए इससे बड़ी गर्व की क्या बात होगी कि एक ट्रांसजेंडर राष्ट्रीय लोक अदालत की न्यायाधीश हैं। एक ट्रांसजेंडर होकर इस मुकाम तक पहंचना जोयिता के लिए आसान नहीं था। ये मुकाम जोयिता के लिए इसलिए भी खास है क्येंकि वो एक ट्रांसजेंडर है और ये एलजीबीटी समुदाय के लिए बहुत बड़ी खबर है कि उनके बीच का कोई आज इतने बड़े मुकाम पर है।
जहां दुनिया अभी भी ट्रांसजेंडर्स को लेकर संकोच में है वहीं दूसरी ओर जोयिता एक सार्थक जवाब हैं उन लोगो के लिए जो अपनी मानसिकता में बदलाव नहीं ला पा रहे हैं। एक ओर कड़ी मेहनत करके समाज के सभी वर्गों को प्रशिक्षित और गले लगाते हुए शिक्षित करने और ट्रांसजेंडर्स को आगे बढ़ाने के लिए पूरे देश में गर्व परेड आयोजित की जा रहा है, तो दूसरी ओर देश के कई शहर और ग्रामीण भाग ऐसे भी हैं जो अभी भी दकियानूसी ख्यालात में खुद को कैद किए हुए हैं। कहना गलत नहीं होगा कि उन्हें प्रकाश की जरूरत है। ऐसे ही एक जगह थी पश्चिम बंगाल का एक छोटा-सा जिला इस्लामपुर। जो कि अब जोयिता मंडल की चमक से जगमगा रहा है।
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एक समय ऐसा था जब जोयिता को पेट भरने के लिए भीख मांगने के साथ-साथ लोगो के घर में नाचना भी पड़ता था।
पहले जोयिता की पहचान सिर्फ एक ट्रांसजेन्डर के रूप में थी। जोयिता को 2010 में बस स्टॉप पर सोने के लिए इसलिए मजबूर होना पड़ा क्योंकि उन्हे होटल में घुसनें नहीं दिया गया। होटल वालों ने उनके साथ बदसलूकी की सिर्फ इसलिए कि वो एक ट्रांस थीं। आज जिस अदालत में वो जज हैं वो जगह वहां से केवल 5 मिनट की दूरी पर है जहां वो भीख मांगा करती थीं। सोचिए कितनी गर्व की बात है एक वो दिन रहा होगा और एक आज का दिन है, आज जोयिता को उसी जगह एक न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया है।
जब भी वो अपने संघर्षों की बात करती हैं तो यकीन मानिये सबके रोंगटे खड़े हो जाते हैं। एक समय ऐसा था जब जोयिता को पेट भरने के लिए भीख मांगने के साथ-साथ लोगो के घर में नाचना भी पड़ता था। ये सब करना उनकी मजबूरी थी क्योंकि लोगों ने उस समय उनके ट्रांस होने को कारण उनको काम देने से इंकार कर दिया था।
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जोयिता की नियुक्ति इस्लामपुर के सब डिविजनल कानूनी सेवा कमेटी में हुई है। जब लाल पट्टी लगी सफेद कार से वह जज के रूप में उतर कर राष्ट्रीय लोक अदालत में अपनी जज की कुर्सी तक पहुंचती हैं तब ये सफलता के क्षण जोयिता को गर्व से भर देते हैं।
जोयिता को उनके जेंडर के कारण बहुत से पूर्वाग्रहों का सामना करना पड़ा। जिस स्कूल मे वो पढ़ती थीं वहां पर भी लोगो का व्यवहार ठीक नहीं था। क्लासमेट से लेकर सारे कॉलेज के लोग उनपर फब्तियां कसते थे। इतना कुछ होने के बावजूद उन्होंने 2010 में खुद के लिए खड़ा होने का फैसला किया। जब वो अपने हक के लिए उठ खड़ी हुईं तो अनगिनत लोगों ने उन्हे पसंद किया। उन्होंने कड़ी मेहनत की और दूसरों की सहायता करने के लिए एक सामाजिक सेवा भी शुरू की।
जोयिता की नियुक्ति इस्लामपुर के सब डिविजनल कानूनी सेवा कमेटी में हुई है। जब लाल पट्टी लगी सफेद कार से वह जज के रूप में उतर कर राष्ट्रीय लोक अदालत में अपनी जज की कुर्सी तक पहुंचती हैं तब ये सफलता के क्षण जोयिता को गर्व से भर देते हैं। उनकी इस उपलब्धि से जोयिता का ही सर नहीं उठा है बल्कि देश भर की एलजीबीटी आबादी गर्व महसूस कर रही है। ट्रांस वेलफेयर इक्विटी और एम्पावरमेंट ट्रस्ट के संस्थापक अभिना अहिर के मुताबिक,'यह पहली बार है कि अल समुदाय से किसी व्यक्ति को यह अवसर मिला है। यह केवल समुदाय की सशक्तिकरण के बारे में ही नहीं है, यह सिस्टम में शामिल होने और एक अंतर बनाने के अधिकार प्राप्त करने के बारे में है।'
कई वर्षों की जोयिता की यात्रा और बेशुमार दर्दनाक अनुभवों ने उन्हें शीर्ष पर पहुंचा दिया है। जोयिता मंडल की ये उपलब्धि न केवल एलजीबीटी समुदाय के लिए एक प्रेरणा है बल्कि देश के लिए भी गर्व की बात है।
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