भारत पर राज करने वाली ईस्ट इंडिया कंपनी आज कहां है?
1857 के विद्रोह से पहले तक भारत पर राज करने वाली ईस्ट इंडिया कंपनी का दुनिया के कारोबार पर एकाधिपत्य था और वो एशिया और अफ़्रीका के कई देशों के शासन को नियंत्रित कर रही थी. आज उसका मालिक एक भारतीय है.
जिस कंपनी ने भारत समेत दुनिया के एक बड़े हिस्से पर दो सौ साल राज किया, जो इतिहास के उस दौर की सबसे ताक़तवर कंपनी थी, जिसका दुनिया के करीब 50 फ़ीसदी कारोबार पर कब्ज़ा था, जिसने एशिया और अफ़्रीका में जुल्म की हर हद पार की, जिसने इंसानों को ग़ुलामों की तरह बेचा, वो कंपनी आज कहां है?
हम बात कर रहे हैं ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ की जो सन 1600 में भारत आयी तो व्यापारिक इरादे से आई लेकिन धीरे-धीरे देश की राजनीतिक व्यवस्था में दखल देते हुए भारत पर राज करना शुरू कर दिया. इस कंपनी के जरिये ही भारत में ब्रिटिश शासन की नींव पड़ी.
‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ की स्थापना वर्ष 1600 में हुई थी. ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ प्रथम और उनके निधन के बाद किंग जेम्स ने ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ को एशिया में कारोबार करने की खुली छूट दी.
शुरुआत में कंपनी भारतीय मसालों, चाय, सूत, नील इत्यादि को इंग्लैंड और बाक़ी यूरोप में महंगे दामों में बेच कर बेतहाशा मुनाफ़ा रही थी. अगले लगभग सौ साल में कंपनी बाक़ी दुनिया के साथ-साथ भारत में भी खूब विस्तार हुआ. उसने मछलीपटनम, सूरत और कलकत्ता में कारख़ाने लगाए. कंपनी ने कपड़ों, चमड़ा, गहनों, खाद्य सामग्री, फर्नीचर का भी व्यापार करना शुरू कर दिया.
भारत पर कंपनी का पूरा दबदबा था, उसकी ताक़त का आलम यह था कि कंपनी के पास ब्रिटेन की फ़ौज से दुगुनी फ़ौज थी. 1757 के प्लासी युद्ध के बाद तो उसका धीरे-धीरे भारत की बड़ी रियासतों पर सीधा नियंत्रण हो गया. 1757 से 1857 के बीच के सौ साल ने भारत पर ब्रिटिश सरकार के शासन के लिए प्रशासनिक ढाँचा तैयार किया.
फिर 1857 का विद्रोह हुआ जिसका असर इतना बड़ा था कि अगले ही साल 1858 में ‘भारत सरकार एक्ट’ बनाकर ब्रिटिश हुकूमत ने कंपनी राष्ट्रीयकरण कर दिया. ब्रिटिश हुकूमत ने कंपनी की संपत्ति और फौज को अपने अधीन कर लिया. कुछ सालों बाद, 1873 में, ब्रिटिश सरकार ने एक नया क़ानून ‘एक्ट ऑफ पार्लियामेंट’ बना कर ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ को भंग कर दिया. कंपनी के भंग हो जाने के बाद भारत सीधे तौर पर ब्रिटिश हुकूमत के नियंत्रण में आ गया. 1874 में कंपनी डिज़ॉल्व कर दी गई.
भारतीय उपमहाद्वीप, अफ़्रीका और चीन में व्यापार से लेकर राजनीति और राज करने वाली वो कंपनी आज कहां है? एलफाबेट (गूगल), माइक्रोसॉफ्ट, अमेजन, मेटा (फ़ेसबुक), एपल, ट्विटर जैसी अमेरिकी महा-कंपनियों के आर्थिक साम्राज्य के दौर में में वो कहाँ है?
संजीव मेहता की दास्तान
1989 में 27 साल का एक गुजराती जैन व्यापारी मुंबई से लंदन पहुँचा. उसका इरादा वहाँ एक्सपोर्ट का बिजनेस शुरू करने का था. अगले पंद्रह साल में उसने यूरोप के कई देशों में हर तरह की चीजें ख़रीदने बेचने का कारोबार किया. घड़ियों और फ़र्नीचर से शुरू हुई उनकी कंपनी बाद में बड़े ब्रांडस के सामान भी बेचने लगे. उसका नाम संजीव मेहता था.
2003 में संजीव की मुलाक़ात कुछ ऐसे लोगों से हुई जिनके पास ईस्ट इंडिया कंपनी के स्टॉक थे. वे 1874 में डिज़ॉल्व हुई कंपनी को रिवाइव करने की कोशिश कर रहे थे. उन्होंने कंपनी से जुड़े पुराने लोगो और झंडे आदि के भी अधिकार ले लिए थे. लेकिन उनमें से किसी के लिए कंपनी के नाम का वो मतलब नहीं था जो कंपनी और ब्रिटिश राज की ग़ुलामी में रहे एक भारतीय व्यापारी के लिए था.
संजीव की नज़रों में ईस्ट इंडिया कंपनी नाम का मतलब साफ़ था: लूट, दमन और ग़ुलामी. उन्होंने सोच लिया कि वो इस कंपनी के मालिक बनेंगे.
और पुरानी ईस्ट इंडिया कंपनी के डिज़ॉल्व होने के ठीक 131 साल, 48,000 दिनों के बाद एक भारतीय ‘ईस्ट इंडिया कम्पनी’ का मालिक बना. संजीव मेहता ने 2005 में कंपनी में अपना दखल हासिल किया और कंपनी को लक्जरी टी, कॉफी और खाद्ध पदार्थों के कारोबार में एक नया ब्रांड बनाकर कंपनी को नई पहचान दी. उसके बाद, लग्जरी गिफ्ट सेट्स और अन्य सामानों को ई-कॉमर्स के माध्यम से बेचने लगी. 15 अगस्त 2010 को संजीव मेहता ने कंपनी का पहला स्टोर लंदन रिहाइशी इलाकों में एक मेफेयर (Mayfair) में खोला.
अब यह कम्पनी बब्रिटेन के अलावा यूरोप, जापान, अमेरिका और मिडल-ईस्ट में भी व्यापार करती है.
अब यह कंपनी साम्राज्यवादी उपनिवेश का प्रतीक नहीं है और सिर्फ कारोबार से वास्ता रखती है. लेकिन दिलचस्प यह है कि सदियों पहले की तरह अब भी इस कंपनी का एक प्रमुख कारोबार चाय और मसालों से जुड़ा है. जाहिर ही कंपनी की अपनी फौज और अपना जासूसी विभाग नहीं है. ब्रिटेन में महारानी आज भी हैं, लेकिन इस नयी ईस्ट इंडिया कंपनी पर उनकी सरपरस्ती नहीं है इस कंपनी के पास.
नए मालिक संजीव मेहता कभी अपनी आक्रामकता के लिए जानी जाने वाली कंपनी को ब्रिटिश औपनिवेशिक इतिहास के प्रति सजग एक कंपनी के रूप में देखते हैं. शायद यह मालिक-ग़ुलाम सम्बन्धों की एक आधुनिक कहानी है. पुरानी कहानियों में ग़ुलाम सत्ता पाकर मालिकों जैसे बन जाते हैं. आधुनिक कहानी में ग़ुलाम सत्ता पाने पर अपने पूर्व मालिकों को यह सीखाने की कोशिश करते हैं कि दुनिया को बेहतर ढंग से भी चलाया जा सकता है. आज़ादी के बाद भारत ने जैसा देश, संविधान, शासन बनाया वो इसी की मिसाल थी. अमानवीय नस्लभेदी दमन के बावजूद नेल्सन मंडेला ने जैसा दक्षिण अफ़्रीका बनाया वह भी इसी की मिसाल था.
संजीव मेहता गांधी, नेहरू, मंडेला नहीं हैं. वे एक सफल. साधारण व्यवसायी हैं जिन्होंने ऐसा लगता है कुछ न कुछ तो गांधी, नेहरू, मंडेला जैसे लोगों से सीखा है.
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