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'अपनी क्लास' के माध्यम से तीन दोस्तों का स्टार्टअप रीजनल लैंग्वेजिस के छात्रों को दे रहा है मुफ्त और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा

'अपनी क्लास' स्टार्टअप शिक्षा प्रणाली को बदलने की दिशा में बेहतर काम काम कर रहा है। इस स्टार्टअप की खास बात ये है कि यह ऑनलाइन एजुकेशन के जमाने में रीजनल लैंग्वेजिस (क्षेत्रीय भाषाओं) के छात्रों को टारगेट करते हुए उनके लिये मुफ्त शिक्षा उपलब्ध करवा रहा है।

Ranjana Tripathi

रविकांत पारीक

'अपनी क्लास' के माध्यम से तीन दोस्तों का स्टार्टअप रीजनल लैंग्वेजिस के छात्रों को दे रहा है मुफ्त और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा

Thursday September 24, 2020 , 9 min Read

"मौजूदा स्कूली शिक्षा प्रणाली दुर्भाग्य से हमेशा अपनी वास्तविक क्षमता का एहसास करने में हर बच्चे का समर्थन नहीं करती है। इस तरह की चुनौतियां समस्याओं का सामना करने के लिए नए-नए समाधानों को सामने लाती हैं। कुछ इसी तरह से काम कर रहा है 'अपनी क्लास'। यह स्टार्टअप शिक्षा प्रणाली को बदलने की दिशा में बेहतर काम कर रहा है, साथ ही इसकी सबसे खास बात है कि ये ऑनलाइन एजुकेशन के ज़माने में रिजनल लैंग्वेजिस (क्षेत्रीय भाषाओं) के छात्रों को टारगेट करते हुए उनके लिये उपयुक्त कंटेंट प्रदान कर रहा है। इस प्लेटफॉर्म का मुख्य उद्देश्य हर छात्र तक उनकी अपनी भाषा में मुफ्त और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पहुंचाना है।"



कोविड-19 महामारी ने पूरी दुनिया में बड़े पैमाने पर शैक्षिक प्रणाली को बाधित किया है। आज हम डिजिटल और तकनीकी रूप से विकसित भविष्य की ओर अग्रसर है। एक ओर जहां इंटरनेट के माध्यम से सब कुछ हासिल किया जा सकता है, छात्रों के कंधों से भारी पुस्तकों के वजन को हल्का कर दिया गया है, वहीं दूसरी और क्षेत्रीय भाषाओं में सामर्थ्य, पहुंच और शैक्षिक सामग्री की कमी जैसे कुछ अवरोधों ने कई बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करने में पीछे छोड़ दिया है।


मौजूदा स्कूली शिक्षा प्रणाली दुर्भाग्य से हमेशा अपनी वास्तविक क्षमता का एहसास करने में हर बच्चे का समर्थन नहीं करती है। इस तरह की चुनौतियां समस्याओं का सामना करने के लिए नए-नए समाधानों को सामने लाती हैं। कुछ इसी तरह से काम कर रहा है 'अपनी क्लास'। यह स्टार्टअप शिक्षा प्रणाली को बदलने की दिशा में बेहतर काम कर रहा है, साथ ही इसकी सबसे खास बात है कि ये ऑनलाइन एजुकेशन के ज़माने में रिजनल लैंग्वेजिस (क्षेत्रीय भाषाओं) के छात्रों को टारगेट करते हुए उनके लिये उपयुक्त कंटेंट प्रदान कर रहा है। इस प्लेटफॉर्म का मुख्य उद्देश्य हर छात्र तक उनकी अपनी भाषा में मुफ्त और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पहुंचाना है।


अपनी क्लास के लेक्चर वीडियोज़, क्लास-नोट्स, क्वेश्चन बैंक्स और सेल्फ-इवैल्यूएशन टेस्ट के लिए प्रमुख भारतीय भाषाओं (हिंदी, मराठी, बंगाली) के साथ-साथ अंग्रेजी में भी नवीं से बारहवीं कक्षा के लिए तैयार किए गए हैं।



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अपनी क्लास के को-फाउंडर अनिरुद्ध मिश्रा, (फोटो साभार: अपनी क्लास)



अपनी क्लास के को-फाउंडर्स

अपनी क्लास स्टार्टअप की शुरुआत अनिरुद्ध मिश्रा और मानस चौहान ने की थी और आगे चलकर सौरभ सिंह चौहान भी इनसे जुड़ गए हैं और तीन दोस्तों की इस तिकड़ी ने अपनी क्लास की बेहतरीन शुरुआत की।


अनिरुद्ध मिश्रा और मानस चौहान बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस (BITS), पिलानी के पूर्व छात्र हैं। अनिरुद्ध ने डबल मास्टर्स, एमएससी (ऑनर्स): अर्थशास्त्र और एमएससी (टेक) फाइनेंस (2011 - 2015) से की है। अनिरुद्ध 'अपनी क्लास' के सीईओ हैं और कंटेंट रिसर्च व वीडियो शूटिंग का काम देखते हैं।

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अपनी क्लास के को-फाउंडर्स मानस चौहान (फोटो साभार: अपनी क्लास)


मानस चौहान ने भी BITS पिलानी से एमएससी (टेक) इनफॉर्मेशन सिस्टम्स से की है। मानस कंपनी में सीटीओ हैं और में वीडियो प्रोडक्शन व रिलीज़ का काम देखते हैं।

सौरभ सिंह चौहान ने NISER से फिजिक्स में इंटरनेशनल एमएससी की है और University of Minnesota, यूएसए से एस्ट्रोफिजिक्स में एमएस हैं। सौरभ 'अपनी क्लास' में मार्केटिंग, नेटवर्किंग और एनालिटिक्स डिपार्टमेंट देखते हैं।

अनिरुद्ध मिश्रा और सौरभ सिंह चौहान स्कूल के समय के दोस्त थे जबकि अनिरुद्ध और मानस की मुलाकात BITS, पिलानी के दिनों में हुई थी। अनिरुद्ध और मानस बिहार के गणितज्ञ आनंद कुमार के सुपर 30 में भी पढ़ चुके हैं।

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सौरभ सिंह चौहान (फोटो साभार, अपनी क्लास)

अपनी क्लास की शुरूआत

अपनी क्लास की शुरूआत नवंबर, 2019 में हुई। अनिरुद्ध मिश्रा BITS, पिलानी में (अपने कॉलेज के दिनों के दौरान) 'निर्माण' (एक गैर-लाभकारी संगठन), पिलानी चैप्टर में सक्रिय थे, जो पिलानी में वंचित बच्चों को शिक्षित करने का काम करता है। 'निर्माण' में अनिरुद्ध 'ज्ञान-बोध' प्रोजेक्ट से जुड़े हुए थे जबकि मानस चौहान आरटीई सेक्शन 12 (1) (सी) के तहत चलने वाले 'शिक्षा की ओर' प्रोजेक्ट में शामिल थे।

(L-R) मानस चौहान और अनिरुद्ध मिश्रा, अपनी क्लास के को-फाउंडर्स

(L-R) मानस चौहान और अनिरुद्ध मिश्रा, अपनी क्लास के को-फाउंडर्स (फोटो साभार: openpr.com)

वे स्थानीय बस्ती में एक कमरा किराए पर लेते थे, और शाम को उन बच्चों को एक-दो घंटे के लिए पढ़ाते थे। हालाँकि, यह मानते हुए कि केवल एक घंटे में निर्माण के अपने लक्ष्य को पूरी तरह से पूरा नहीं किया जा सकता है, उन्होंने आरटीई सेक्शन 12 (1) (सी) के प्रावधानों के माध्यम से स्थानीय निजी स्कूलों में प्रवेश पाने में छात्रों की मदद की। अनिरुद्ध ने यूपीएससी की तैयारी करने के दौरान पाया कि कई ऐसे दोस्त थे जिन्हें कंटेंट हिन्दी में चाहिए होता था या फिर कहें तो उनकी रिजनल लैंग्वैज में चाहिए होता था और इसी बात ने शिक्षा को प्राप्त करने में भाषा की बाधाओं को मिटाने के लिए वास्तव में कुछ करने के अपने मकसद को आगे बढ़ाया।


अपने सपने को आकार देने के लिए अनिरुद्ध ने अपने दोस्त मानस के साथ हाथ मिलाया, जिन्होंने स्कूल जाने वाले बच्चों की शैक्षिक आवश्यकताओं के लिए एक ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म अपनी क्लास शुरू करने के लिए बेंगलुरु में अपनी आलीशान आईटी की नौकरी छोड़ दी। वहीं बाद में सौरभ सिंह चौहान भी बतौर सीएओ 'अपनी क्लास' से जुड़ गए।

इसके साथ, तीनों क्षेत्रीय भाषाओं में शैक्षिक सामग्री की कमी को दूर करने की उम्मीद करते हैं। यह सामग्री YouTube जैसे ई-प्लेटफ़ॉर्म पर अपलोड की जाती है जो सामाजिक, आर्थिक बैंड के लोगों के लिए काफी सुलभ हैं। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि स्कूल में पढ़ाने की गुणवत्ता से छात्रों के सीखने की गुणवत्ता सीधे प्रभावित होती है। शिक्षण की उच्च गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए, यह महत्वपूर्ण है कि शिक्षक प्रेरित रहें और शिक्षण पर ध्यान केंद्रित करें।

क्या है 'अपनी क्लास'

अनिरुद्ध कहते हैं, रिजनल लैंग्वेज में पढ़ने वाले छात्रों को उनकी भाषा में क्वालिटी कंटेंट और एजुकेशन मिलनी चाहिए। फिलहाल ये सारी शिक्षा सामग्री कक्षा 9 से 12 वीं तक के छात्रों के लिये है और जल्द ही हम छोटी क्लासेस के लिये कंटेंट लॉन्च करने की तैयारी कर रहे हैं। छात्रों को ऑनलाइन पढ़ाया जाना वाला कंटेंट उन्हें अलग-अलग कॉम्पिटीशन्स के लिये तैयार करने के हिसाब से है या सिर्फ उनके सिलेबस के हिसाब से है?


इस पर अनिरुद्ध कहते हैं,

"जिस तरह से एनसीआरटी का सिलेबस क्वालिटी एजुकेशन में अहम रोल अदा कर रहा है, हम भी उसी तरह का कंटेंट छात्रों को देने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि उन्हें आगे के कॉम्पिटीशन्स की तैयारी में मदद मिल सके।"

ऑनलाइन क्लासेज के दौरान शिक्षकों और छात्रों को होने वाली परेशानियों और चुनौतियों के बारे में बात करते हुए सौरभ कहते हैं,

"एक तो शिक्षकों के सामने सबसे बड़ी समस्या इन्फ्रास्ट्रक्चर की है और दूसरी सबसे बड़ी समस्या ये है कि - ये वन-वे कम्यूनिकेशन है, मतलब कि शिक्षक पढ़ा तो देते हैं लेकिन सामने कोई छात्र नहीं है, जो ये बता सकें कि उन्हें कुछ समझ आ रहा है कि नहीं।"

प्लेटफॉर्म पर छात्रों की पहुंच के बारे में बताते हुए सौरभ सिंह कहते हैं,

"हमारे सभी सेशन्स रिकॉर्डेड होते हैं। जैसे-जैसे हम हमारे यूट्यूब चैनल पर वीडियोज रिलीज़ करते हैं, हमें प्रति वीडियो औसतन 8-9 हजार व्यूज़ मिलते हैं, जिसका मतलब है कि करीब 4-5 हजार छात्र जरूर इन वीडियोज को देखकर ये अपनी पढ़ाई कर रहे हैं। प्रतिदिन हम 3-4 वीडियो रिलीज़ करते हैं और वर्तमान में चैनल के 11 हजार 5 सौ सब्सक्राइबर्स हैं।"


सौरभ ने बताया कि अपनी क्लास ने अपने चैनल पर कंटेंट अपलोड करना इसी साल के शुरुआती महीने (जनवरी-फरवरी) में किया था।

क्षेत्रीय भाषाओं को क्यों टारगेट किया?

अक्सर स्कूलों में छात्रों को फीस, प्रवेश, उपस्थिति आदि जैसे व्यवस्थापक कार्यों का बोझ होता है, जो महत्वपूर्ण होते हैं लेकिन एक ही समय में शिक्षण सीखने की प्रक्रिया के लिए हानिकारक हो सकते हैं। अपनी क्लास, बहुभाषी ईआरपी के जरिये इन थकाऊ प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करती है और प्रणाली में दक्षता और पूर्वता लाती है जो न केवल शिक्षकों की क्षमता को अधिकतम करती है बल्कि उन्हें डेटा संचालित अंतर्दृष्टि के साथ भी सक्षम बनाती है। इसके साथ ही शिक्षकों को अपने दैनिक शिक्षण गतिविधियों में सहायता करने के लिए कुछ प्रोटोटाइप (3 डी मॉडल और सिमुलेशन) विकसित किए गए हैं।

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सांकेतिक फोटो (साभार: shutterstock)

हिन्दी के अलावा दूसरी क्षेत्रीय भाषाओं में प्लेटफॉर्म की पहुँच के बारे में बात करते हुए अपनी क्लास के को-फाउंडर और सीटीओ मानस चौहान बताते हैं,

"भारत में ज्यादातर स्कूल्स (लगभग 80 प्रतिशत) क्षेत्रीय भाषाओं में है और महज 20 प्रतिशत स्कूल्स इंग्लिश मीडियम हैं। वहीं जब बात आती है ऑनलाइन एजुकेशन की, तो ज्यादातर प्लेटफॉर्म्स पर कंटेंट इंग्लिश में है। क्षेत्रीय भाषाओं के 80 प्रतिशत स्कूल्स में से लगभग आधे, यानि कि 40 प्रतिशत स्कूल्स हिन्दी मीडियम के हैं। ऐसे में हिन्दी मीडियम के छात्रों के लिये कंटेंट है ही नहीं। इसके अलावा क्षेत्रीय भाषाएं जैसे, मराठी, तमिल, तेलुगु में पढ़ाई करने वाले छात्रों के लिये भी ऑनलाइन कंटेंट उपलब्ध नहीं है।"

अपनी क्लास द्वारा किये गए 'नीड सर्वे' से पता चला है कि हिन्दी के अलावा मराठी और बंगाली में भी छात्रों को ऑनलाइन एजुकेशन के लिये कंटेंट की जरूरत है।

चुनौतियां और भविष्य की योजनाएं

मानस ने आगे बताया कि इस एकेडमिक ईयर में वे हिन्दी भाषा का पूरा कंटेंट तैयार करके अपलोड कर देंगे। इसके बाद अगले साल जुलाई तक मराठी और बंगाली भाषा में भी कंटेंट अपलोड कर देंगे। उसके बाद तमिल, तेलुगु समेत अन्य क्षेत्रीय भाषाओं पर काम करेंगे। अभी अपनी क्लास केवल कॉमर्स स्ट्रीम के छात्रों के लिये कंटेंट तैयार कर रहा है। इसके बाद वे साइंस और आर्ट्स स्ट्रीम के छात्रों को टारगेट करते हुए उनके लिये भी कंटेंट लॉन्च करने की तैयारी कर रहे हैं। जिसकी तैयारी लगभग पूरी हो चुकी है।


अनिरुद्ध कहते हैं,

"बोर्ड एग्जाम्स (10 वीं और 12वीं) के ज्यादातर छात्र हिन्दी मीडियम से आते हैं। अगर बात की जाए यूपी बोर्ड और बिहार बोर्ड की, तो लगभग 90 प्रतिशत छात्र हिन्दी मीडियम से हैं। साल 2018 की बोर्ड परीक्षाओं में बैठने वाले छात्रों में से लगभग 60 लाख छात्र हिन्दी मीडियम से थे।"

साथ ही अनिरुद्ध ये भी कहते हैं,

"हम अंग्रेजी भाषा के बिल्कुल भी खिलाफ नहीं है, हम इस भाषा का पूरा सम्मान करते हैं। बस हमें क्षेत्रीय भाषाओं को भूलना नहीं चाहिए, इन भाषाओं पर भी ध्यान देना चाहिए और क्वालिटी एजुकेशन देने की दिशा में काम करना चाहिए।"

अनिरुद्ध के अनुसार,

"क्षेत्रीय भाषाओं (हिन्दी समेत मराठी, बंगाली, तमिल आदि) में पढ़ने वाले छात्रों की संख्या बहुत अधिक है लेकिन ये संख्या ऑनलाइन एजुकेशन के मामले में कम हो जाती है, क्योंकि इन भाषाओं के अधिकतर छात्रों के पास आज भी इंटरनेट की पहुँच नहीं है या वे मोबाइल, लैपटॉप और टैबलेट लेने में सक्षम नहीं है।"

सौरभ कहते हैं,

"ऑनलाइन क्लासेस की सबसे बड़ी समस्या ये है कि - छात्रों को जो भी संकोच होता है, उनके जो भी सवाल या डाउट्स होते हैं, वे रह जाते हैं। इंटरनेट, डिवाइसेज आदि की भी प्रमुख समस्याएं उन्हें झेलनी पड़ती हैं।"