क्या ऋषि सुनक बन सकते हैं इंग्लैंड के पीएम? भारत को ग़ुलाम बनाने वाला इंग्लैंड क्या बदल रहा है?
ब्रिटेन में प्रधानमंत्री पद के लिए ऋषि सुनक की दावेदारी और उस पर अब तक की प्रतिक्रिया ब्रिटिश समाज में गहरे परिवर्तनों की ओर संकेत कर रही है. अगर वह कामयाब हुए तो यह एक ऐतिहासिक बदलाव होगा. लेकिन इस प्रतिक्रिया में भी एक अवसर है हम सब के लिए.
ऋषि सुनक भारतीय मूल के ब्रिटिश राजनेता हैं जो ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के इस्तीफे के बाद प्रधानमंत्री के पद के लिए अपनी प्रबल दावेदारी के लिए सुर्ख़ियों में हैं. इसके पहले वे ब्रिटेन के वित्त मंत्री भी रह चुकें हैं. सुनक ब्रिटिश कंजरवेटिव पार्टी के एक लोकप्रिय सदस्य हैं. ऋषि 2015 से उत्तरी यॉर्कशायर में रिचमंड (यॉर्क) से सांसद हैं जब वे कंजर्वेटिव पार्टी के सांसद चुने गए. जून 2017 से उनकी मंत्री पद की नियुक्ति व्यापार, ऊर्जा और औद्योगिक रणनीति विभाग में संसदीय निजी सचिव के रूप में भी थी.
भारत की मीडिया और ख़ासकर सोशल मीडिया पर सुनक की दावेदारी को लेकर काफी उत्साह देखा जा रहा है. इस उत्साह के पीछे की वजह साफ़ है. कभी इंग्लैंड ने 200 साल भारत पर राज किया था. अब कहीं न कहीं लोगों को अपनी कल्पना में लग रहा है कि एक इंडियन ‘गोरों’ पर राज करने की दावेदारी पेश कर रहा है. सुनक की इस दावेदारी में बहुत-से लोगों को भारत की बदलती छवि और बढ़ती हुए आर्थिक ताक़त की भी झलक दिख रही है.
लेकिन सुनक की दावेदारी भारत के साथ-साथ ब्रिटेन और पश्चिमी दुनिया के बारे में भी कुछ कह रही है.
क्या बदल रही है पश्चिमी दुनिया?
पिछले दो दशकों में दुनिया ने श्वेत लोगों के अलावा ब्राउन और ब्लैक लोगों को पावरफुल पश्चिमी देशों का राष्ट्रप्रमुख या लोकप्रिय राजनेता बनते देखा है. सबसे बड़ा उदाहरण बराक ओबामा का है जिनके पिता केन्या से थे, और वे अमेरिका के पहले ब्लैक राष्ट्रपति बने. अमेरिका में ही भारतीय मां और जमैकन पिता की संतान कमला हैरिस पहली महिला और पहली कलर्ड उप-राष्ट्रपति चुनी गयी.
लियो वरदकर, जिनके पिता भारतीय मूल के थे, आयरलैंड के प्रधान मंत्री चुने जा चुके हैं.
लंदन के वर्तमान मेयर पाकिस्तानी मूल के सादिक़ खान है. ब्रिटेन में कनाडा की तरह दक्षिण एशियाई और भारतीय मूल के कई लोग सत्ता में विभिन्न पदों पर हैं. इसके बावजूद एक भारतीय मूल के व्यक्ति के ब्रिटेन का अगला प्रधानमंत्री हो सकने की सम्भावना भर अपने में एक बड़ा ऐतिहासिक क्षण है.
लेकिन बड़ी बात यह भी है कि ऋषि सुनक के नोमिनेशन की पूरी प्रक्रिया में राजनैतिक दलों से लेकर वहां की मीडिया की तरफ़ से कोई ख़ास रंगभेदी या नस्लभेदी टिप्पणी देखने को नहीं मिली है. उनके दावेदारी जताने पर उनकी योग्यता को लेकर सवाल नहीं उठाये गये.
उनकी दावेदारी को लेकर ऐसी प्रतिक्रिया को ब्रिटेन की राजनीति, समाज और मीडिया में एक सुखद परिपक्वता की तरह देखा जा सकता है. इसे सुखद मानने के कई कारण है. पहला कारण यह है कि न सिर्फ़ इंग्लैंड का इतिहास एशिया, अफ़्रीका, अमेरिका और आस्ट्रेलिया सब जगह अपने उपनिवेश बनाने का रहा है, बल्कि वर्तमान ब्रिटिश राजनीति और समाज में भी एक मुखर, प्रभुत्वशाली वर्ग त्वचा के रंग और नस्ल के सवाल पर पुराने औपनिवेशिक जमाने जैसी बातें करता है. दूसरा कारण यह है कि ऋषि सुनक उस कंजर्वेटिव पार्टी से हैं जिसकी इन मुद्दों पर अक्सर काफ़ी पुरातन समझ रही है.
यह उस माहौल से बिल्कुल अलग है जो अमेरिका में बराक ओबामा की उमीदवारी पर, और ख़ासकर उनके धर्म को लेकर बना था. ऋषि सुनक की दावेदारी को उनके धर्म या नस्ल की जगह उनके अब तक के काम के आधार पर जांचना-परखना क्या आज के ब्रिटेन की अपने साम्राज्यवादी और नस्लभेदी इतिहास से दूर जाने की कोशिश नहीं है जिसका स्वागत किया जाना चाहिए?
हो सकता है कि सितम्बर में वहां के लोग एक ‘गोरे’को ही अपना प्रधानमंत्री चुन लें, लेकिन टोरी पार्टी के उम्मीदवारों में चार महिलाएँ हैं और कुल आठ उम्मीदवारों में से चार इराक, भारत, पाकिस्तान और नाईजीरिया से हैं. जो यह साफ़ दर्शाता है कि ब्रिटिश समाज में नस्ल, जेंडर, वर्ग और राष्ट्रीयता के प्रश्नों पर खुद को समावेशी और सब के लिए बराबर अवसरों वाला बनाने की सकारात्मक जद्दोजहद चल रही है.
सॉफ़्ट पॉवर और भारत
देश में रहने वाले विभिन्न समुदायों को उनकी पहचान से ज़्यादा उनके काम के आधार पर स्वीकार करने को ब्रिटेन की ‘सॉफ्ट पॉवर’ की तरह देखा जा सकता है. आर्थिक और मिलिट्री पॉवर में वह जापान, फ्रांस या जर्मनी जैसे देशों से आगे ही है. यूरोपियन यूनियन से अलग होने के बाद यह ‘सॉफ़्ट पॉवर’ उसके लिए कई तरह से एक ज़रूरत भी है.
विविध पहचानों, समुदायों और धर्मों का देश भारत पिछले दो-तीन दशकों में आर्थिक और मिलिट्री शक्ति के रूप में उभरा है. हम भारतीय लोकतंत्र की अब तक की सफलता, अहिंसा और शांति के गांधी के ग्लोबल संदेश, सॉफ़्टवेयर और इंटरनेट इकॉनमी में भारतीयों की ग्लोबल सफलता और अध्यात्म एवं योग की पारम्परिक शक्ति का एक मिला-जुला इस्तेमाल सही दिशा में करके जिओ-पोलिटिक्स में अपनी पहचान पुख्ता कर सकते हैं. भारत के समावेशी लोकतंत्र में अल्पसंख्यको की स्थिति पर अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर जब-तब उठने वाले प्रश्नों के बीच मल्टी-कल्चरल राष्ट्रीयताओं की ओर अग्रसर यह दुनिया हमारे लिए भी अपनी सॉफ़्ट पॉवर बढ़ाने का एक अवसर है.
ऋषि सुनक की ब्रिटिश पीएम पद के लिए दावेदारी और उस पर अब तक की आ रही प्रतिक्रिया में पूरी दुनिया के लिए एक संदेश और अवसर दोनों है.