16 साल की उम्र में नोबल के लिए नॉमिनेट होने वाली पर्यावरण एक्टिविस्ट
पूरी दुनिया जलवायू परिवर्तन के गंभीर संकट से जूझ रही है। पर्यावरणविदों का मानना है कि अगर सही समय पर कार्बन उत्सर्जन को कम करने के प्रयास नहीं किए गए को पृथ्वी के सभी जीवों का अस्तित्व खतरे में आ जाएगा। धरती को बचाने के लिए दुनियाभर में कई तरह के आंदोलन चल रहे हैं। इस कड़ी में नया नाम जुड़ा है महज 16 साल की उम्र में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को रोकने के लिए आवाज उठाने वाली ग्रेटा थनबर्ग का। स्वीडिश पर्यावरण एक्टिविस्ट ग्रेटा को हाल ही में नोबल शांति पुरस्कार के लिए नामित किया गया है।
ग्रेटा ने अगस्त 2018 में स्वीडिश संसद के बाहर पर्यावरण को बचाने के लिए स्कूल स्ट्राइक की थी। स्कूल की यह हड़ताल इतनी चर्चा में रही कि पूरी दुनिया के स्कूली बच्चों ने इसमें हिस्सा ले लिया। अब इस आंदोलन में लगभग 100,000 स्कूली बच्चे शामिल हो गए हैं। इतना ही नहीं ग्रेटा को नोबल शांति पुरस्कार के लिए भी नामित कर दिया गया है। तीन नॉर्वेजियन सांसदों ने ग्रेटा को नोबल अवॉर्ड के लिए नामित किया गया है। इस बार 2019 में नोबल पुरस्कार पाने की दौड़ में 301 उम्मीदवार हैं जिसमें 223 व्यक्ति और 78 संगठन शामिल हैं।
थनबर्ग ने स्टॉकहोम, हेलसिंकी, ब्रुसेल्स और लंदन समेत कई देशों में अलग-अलग मंचो पर जाकर जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए आवाज उठाई। आपको बता दें कि ग्रेटा ने सिर्फ नौ साल की उम्र में क्लाइमेट एक्टिविजम में हिस्सा लिया था, जब वे तीसरी कक्षा में पढ़ रही थीं। द न्यू यॉर्कर से बात करते हुए ग्रेटा ने कहा, 'बिजली बल्ब बंद करने से लेकर पानी की बर्बादी रोकने और खाने को न फेंकने जैसी बातें मैं हमेशा से सुनती आई थी। जब मैंने इसकी वजह पूछी तो मुझे बताया गया कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए ऐसा किया जा रहा है। मुझे यह जानकर हैरानी हुई कि लोग इसके बारे में कम ही बात करते हैं। अगर हम इंसान जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को रोक सकते हैं तो हमें इसके बारे में बात करनी चाहिए।'
पिछले साल दिसंबर में पोलैंड के काटोविस में संयुक्त राष्ट्र की COP24 बैठक में भी ग्रेटा ने हिस्सा लिया था और पर्यावरण पर भाषण दिया था। इस मंच से ग्रेटा ने कहा, 'हम दुनिया के नेताओं से भीख मांगने नहीं आए हैं। आपने हमें पहले भी नजरअंदाज किया है और आगे भी करेंगे। अब हमारे पास वक्त नहीं है। हम यहां आपको यह बताने आए हैं कि पर्यावरण खतरे में है।' ग्रेटा के इस भाषण को कार्यकर्ताओं के साथ-साथ राजनीतिक नेताओं ने भी खूब सराहा। ग्रेटा ने दावोस में भी भाषण दिया था।
इतना ही नहीं ग्रेटा ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी एक वीडियो के जरिए संदेश भेजा था। स्वीडन की इस छात्रा ने पीएम नरेंद्र मोदी को जलवायु परिवर्तन को लेकर गंभीर कदम उठाने की मांग की थी। आज ग्रेटा से प्रभावित होकर लगभग 2,000 स्थानों पर पर्यावरण को बचाने को लेकर प्रदर्शन हो रहे हैं। ग्रेटा ने अपनी बात लोगों तक पहुंचाने के लिए ट्विटर का सहारा लिया है। अगर ग्रेटा को नोबल पुरस्कार मिल जाता है तो वह यह पुरस्कार पाने वाली सबसे कम उम्र की शख्सियत बन जाएगी। इसके पहले मलाला युसुफजई ने सिर्फ 17 वर्ष की उम्र में नोबल पुरस्कार जीता था।
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