हाथ नहीं हैं लेकिन फिर भी मरीजों का सहारा हैं 19 वर्षीय पिंची
19 वर्षीय पिंची गोगोई बिना हाथ के भी बन रही हैं मरीजों का सहारा..
कहते हैं कि सपनों की उड़ान उड़ने के लिए हौसले बुलंद होने चाहिए और पिंची गोगोई के हौसले किस कदर बुलंद हैं ये आप पिंची की कहानी पढ़कर और बेहतर जान सकते हैं।
देश में ऐसे कई उदाहरण मिलेंगे जहां लोगों ने अपनी शारीरिक अक्षमता को किनारे रख देश का नाम रौशन किया और दूसरों के लिए प्रेरणा बने। एक ऐसा ही नाम है पिंची गोगोई। गुवाहाटी की 19 वर्षीय लड़की पिंचि गोगोई उन लोगों के लिए मिसाल हैं जो शारीरिक अक्षमता के चलते हार जाते हैं।
"तकदीर के खेल से निराश नहीं होते,
जिन्दगी में कभी उदास नहीं होते,
हाथों की लकीरों पे यकीन मत करना,
तकदीर तो उनकी भी होती है जिनके हाथ नहीं होते..."
ऊपर की ये लाइनें 19 वर्षीय पिंची गोगोई पर बिल्कुल फिट बैठती हैं। कहते हैं कि सपनों की उड़ान उड़ने के लिए हौसले बुलंद होने चाहिए और पिंची गोगोई के हौसले किस कदर बुलंद हैं ये आज हम आपको बताने जा रहे हैं। देश में ऐसे कई उदाहरण मिलेंगे जहां लोगों ने अपनी शारीरिक अक्षमता को किनारे रख देश का नाम रौशन किया और दूसरों के लिए प्रेरणा बने। एक ऐसा ही नाम है पिंची गोगोई। गुवाहाटी की 19 वर्षीय लड़की पिंचि गोगोई उन लोगों के लिए मिसाल हैं जो शारीरिक अक्षमता के चलते हार जाते हैं।
पिंची के जन्म से ही हाथ नहीं हैं। लेकिन 19 वर्षीय पिंची ने अपनी भावनाओं को रुकने नहीं दिया और सभी कठिनाइयों के खिलाफ मजबूती से खड़ी रहीं। स्वतंत्र होने के एक सपने के साथ, उन्होंने सभी बाधाओं को चुनौती दी और अब गुवाहाटी में नेमेकेयर सुपरस्पेशालिटी हॉस्पिटल में 'मे आई हेल्प यू (सहायता डेस्क)' डेस्क की प्रभारी हैं।
पिंची हेल्प डेस्क पर मरीजों को अस्पताल और बीमारी से जुड़ी जानकारियां देती हैं। पिंची की ये जॉब उन्हें बड़ी संख्या में लोगों की सेवा करने में मदद करती है। पिंची हर रोज मरीज का विवरण लिखना, कॉल करना, अन्य आधिकारिक व लिखा पढ़ी का काम करती हैं। लेकिन आप सोच रहे होंगे कि पिंची के तो हाथ ही नहीं हैं तो वह ये सब कैसे कर लेती होंगी? जी हां, आपने सही सोचा। दरअसल पिंची ये सब काम पैरों से करती हैं। पिंकी का जीवन संघर्षों से भरा हुआ है। उन्हें शुरू में स्कूलों ने एडमिशन देने से इनकार कर दिया था। हालांकि उन्हें अपने एक रिश्तेदारों की मदद से किसी प्रकार अपने गृह नगर में एक निजी संस्थान में प्रवेश मिला।
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हालांकि पिंची के लिए संघर्ष जारी रहा। अब उनके लिए गुवाहाटी में उच्च शिक्षा के लिए भी प्रवेश पाना मुश्किल था। लेकिन वो पिंची की मां थी जो अपनी बेटी के सभी संघर्षों को दूर करने में उनकी मदद करती रहीं। टाइम 8 के साथ बात करते हुए नेमेकेयर अस्पताल के प्रबंध निदेशक, हितेश बारुआ ने कहा कि, "शारीरिक रूप से असक्षम होने के बावजूद भी पिंची नेमेकेर सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल में हेल्प डेस्क पर प्रभारी के रूप में अपना काम बखूबी करती हैं।" अपने पेशेवर कौशल को चलाने में माहिर होने के अलावा, पिंची अपने पैरों का उपयोग करके चित्रों को भी स्केच कर सकती हैं।
पिंची की ही तरह, लखनऊ की एक 48 वर्षीय कलाकार शीला शर्मा, नियमित रूप से अपने पैर और उसके मुंह का उपयोग करके कलाकृति बनाती हैं। चार साल की उम्र में एक दुर्घटना में अपनी बाहों को खोने के बावजूद, उन्होंने खुद से पढ़कर और खुद से ही पेंट करना सीखा। अपने जुनून का एहसास होने के बारे में मिड से बात करते हुए शीला कहती हैं कि "एक बार जब मैं स्कूल में थी तब मैंने एक व्यक्ति को अपने पैरों से पेंटिंग करते हुए देखा था। तब मुझे एहसास हुआ कि एक विषय के रूप में फाइन आर्ट पूरी तरह से सक्षम लोगों का ही विषय नहीं है। इसे कोई भी अपना सकता है।"
पिंची और शीला अकेले नहीं हैं बल्कि देश में तमाम ऐसे लोग हैं जो अपने हौसलों और अपनी इच्छाशक्ति के दम पर अपने सपनों को पूरा कर रहे हैं। ये लोगों समाज के आदर्श हैं। जीवन को कैसे बिना निराश हुए और सारी बाधाओं को पार करते हुए जिया जाता है, ये लोग इस बात का सबसे अच्छा उदाहरण हैं।
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