फौलादी इरादों से बनी हैं एसिड अटैक सर्वाइवर प्रज्ञा प्रसून सिंह, 'अतिजीवन फ़ाउंडेशन' शुरू कर अन्य पीड़ितों की कर रही हैं मदद
प्रज्ञा प्रसून सिंह एक एसिड अटैक सर्वाइवर्स हैं और आज खुद अपने फ़ाउंडेशन की मदद से इस तरह की सर्वाइवर्स की मदद कर रही हैं। प्रज्ञा देश में स्किन डोनेशन का प्रचालन भी बढ़ाना चाहती हैं, जिससे एसिड अटैक सर्वाइवर को इलाज में काफी मदद मिल सकती है।
एक रिश्तेदार द्वारा किए गए एसिड अटैक के बाद प्रज्ञा प्रसून सिंह का जीवन कई आयामों में बदला। अटैक सर्वाइव करने के दौरान उन्हे उनके पति और परिवार से बेहद सपोर्ट मिला। प्रज्ञा ने इन सर्वाइवर्स की मदद करने के लिए अतिजीवन फ़ाउंडेशन नाम कि एक संस्था का भी गठन किया, जो बड़े स्तर पर एसिड अटैक सर्वाइवर्स की कई तरह से मदद कर रही है।
ये सब कैसे शुरू हुआ, इस बारे में प्रज्ञा कहती हैं,
“मेरे साथ एसिड अटैक 2006 में हुआ, जब मैं ट्रेन से बनारस से दिल्ली जा रही थी। यह घटना रात के 2 बजे के आस-पास हुई, जब मेरे एक दूर के रिश्तेदार ने मेरे ऊपर एसिड डाला। वो मुझसे शादी करना चाहता था, मेरे शादी 12 दिन पहले ही हुई थी, जिसकी चिढ़ के चलते उसने मेरे ऊपर एसिड डाला।”
प्रज्ञा आगे बताती हैं,
“उस समय ट्रेन में मौजूद एक डॉक्टर ने हालात भाँपते हुए फौरन मुझे बाथरूम के पास ले जाकर मेरे ऊपर पानी डालना शुरू किया। उन्होने बताया कि तुम अपनी आँखें न खोलना और सोने की कोशिश न करना। मुझे इटावा स्टेशन में उतारा गया, लेकिन तब तक मैं बेहोश हो गई थी।”
प्रज्ञा को इलाज के लिए आगरा ले जाया गया, लेकिन वहाँ से डॉक्टरों ने उन्हे दिल्ली रेफर कर दिया। प्रज्ञा बताती हैं कि आरोपी आगरा में भी अस्पताल में उनके ऊपर दोबारा एसिड डालने के इरादे से आया था, लेकिन वहाँ वो पकड़ा गया।
दिल्ली में प्रज्ञा का इलाज सफदरजंग अस्पताल में चला, जहां उनकी दो सर्जरी भी हुईं। इलाज के बाद प्रज्ञा ने धीरे-धीरे रिकवर होना शुरू किया। इलाज के दौरान प्रज्ञा अपनी एक आँख की रोशनी खो रहीं थीं, जिसके बाद उन्हे आगे के इलाज के लिए चेन्नई ले जाया गया। चेन्नई में ही प्रज्ञा की अगली सर्जरी हुई, यह इलाज करीब डेढ़ साल चला।
परिवार ने दिया साहस
हालात धीरे धीरे सामान्य होने की तरफ बढ़ रहे थे, लेकिन तमाम सर्जरी के बावजूद चेहरे पर मौजूद घाव के निशानों प्रज्ञा के आत्मविश्वास को काफी चोट पहुंचाई। उस दौर की बात करते हुए प्रज्ञा कहती हैं,
“मेरा परिवार मेरे आत्मविश्वास को दोबारा जीवित करने की कोशिश कर रहा था। वो मेरे लिए एक सामान्य लड़की की तरह बर्ताव कर रहे थे। वे मुझे बाहर जाने और फिल्म देखने के लिए प्रेरित कर रहे थे, हालांकि वो मेरे स्वास्थ को लेकर भी उतने ही सजग थे।”
प्रज्ञा मानती हैं कि उन हालात से उबरने में उनके परिवार के साथ ने उन्हे बड़ा साहस दिया।
शुरू किया अतिजीवन फ़ाउंडेशन
एसिड अटैक सर्वाइवर्स की मदद करने के उद्देश्य से प्रज्ञा ने 2013 में अतिजीवन फ़ाउंडेशन की नींव रखी थी। इस बारे में बात करते हुए प्रज्ञा कहती हैं,
“मेरे इलाज के दौरान मेरे आत्मविश्वास को देखते हुए डॉक्टर काफी खुश रहते थे। मेरे बाद उन डॉक्टर के पास कई ऐसे मामले आए जिनमें पीड़िता अवसाद का शिकार हो चुकी थीं, वे लगभग हार चुकी थीं। ऐसे में डॉक्टर मुझसे संपर्क करते थे, कि मैं उन सरवाइवर्स से बात कर उन्हे साहस प्रदान कर सकूँ। अपनी इसी सोंच को लेकर मैंने 2013 में अतिजीवन फ़ाउंडेशन की स्थापना की।”
फ़ाउंडेशन वर्कशॉप का भी आयोजन करता है। ये वर्कशॉप मुख्यता अस्पतालों में आयोजित की जाती हैं, जहां एसिड अटैक सर्वाइवर्स से बात कर उन्हे गाइड करने की भी कोशिश की जाती है। इसके साथ एसिड अटैक सर्वाइवर्स को हर तरह की मदद भी उपलब्ध कराई जाती है। फ़ाउंडेशन सर्वाइवर्स को स्किल्स की भी ट्रेनिंग दे रहा है, जो उनके जीवनयापन और करियर में काम आ रही हैं।
फ़ाउंडेशन अब देश के कई बड़े शहरों जैसे दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, हैदराबाद, बैंगलोर, पटना, लखनऊ और वाराणसी जैसे शहरों काम कर रहा है। फ़ाउंडेशन के साथ बड़ी संख्या में सर्वाइवर्स जुड़े हुए हैं। फ़ाउंडेशन मेडिकल और लीगल सपोर्ट भी उपलब्ध करा है।
फ़ाउंडेशन ने 18 से अधिक अस्पतालों के साथ टाई-अप किया हुआ है, जहां सर्वाइवर्स की सर्जरी और वर्कशॉप का आयोजन किया जाता है। फ़ाउंडेशन ने स्किल ट्रेनिंग और पढ़ाई के लिए कई संस्थानों के साथ भी टाई-अप कर रखा हुआ है। प्रज्ञा बताती हैं कि फ़ाउंडेशन के साथ जुड़े बहुत से सर्वाइवर्स आज बड़ी-बड़ी एमएनसी में भी कार्यरत हैं।
स्किन डोनेशन का बढ़े प्रचलन
प्रज्ञा स्किन डोनेशन को भी प्रचालन में लाना चाहती हैं। स्किन डोनेशन बड़ी तादाद में एसिड अटैक सर्वाइवर्स के लिए मददगार साबित हो सकती है। इस बारे में बात करते हुए प्रज्ञा कहती हैं,
"जिस तरह लोग अंग दान करते हैं, उसी तरह लोगों के बीच स्किन डोनेशन का भी प्रचलन बढ़ना चाहिए। एक डोनर इस तरह तीन बर्न पेशेंट की जान बचा सकता है। आज मांग के अनुरूप सिर्फ पाँच प्रतिशत ही स्किन उपलब्ध हो पाती है। हम स्किन को 5 साल तक प्रिजर्व करके रख सकते हैं, जो आगे चलकर काम आ सकती है।"
प्रज्ञा के अनुसार एसिड अटैक के प्रति समाज का भी नज़रिया बदलने की जरूरत है। वह कहतीं हैं जरूरी है कि लोग आगे आकर उन्हे उनकी क्षमता और स्किल के अनुसार नौकरी दें।
प्रज्ञा कहती हैं,
"नौकरी होने से समाज के बीच इन सर्वाइवर्स का आत्मविश्वास और बढ़ जाता है। "
न्याय प्रक्रिया हो चुस्त
एसिड अटैक के आरोपियों के प्रति कानून और व्यवस्था का वास्तव में कैसा रवैया है, इस बारे में बात करते हुए प्रज्ञा कहती हैं,
“सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार इस तरह के केस फास्ट ट्रैक कोर्ट में चलने चाहिए, लेकिन वास्तविकता में ऐसा हो नहीं पता है।ये केस लंबे समय तक चलते रहते हैं। इस तरह के केसों में न्याय व्यवस्था को और सजग होने की आवश्यकता है।”
खुले आम होने वाली एसिड की बिक्री के बारे में बात करते हुए प्रज्ञा कहती हैं,
“खुलेआम एसिड की बिक्री को लेकर कानून तो बन गए हैं, लेकिन कानून को लेकर लोगों के बीच जागरूकता की भारी कमी है। आज भी आसानी से आम दुकानों पर एसिड की बिक्री जारी है।”
प्रज्ञा बताती हैं कि फ़ाउंडेशन आज व्यक्तिगत सहयोग के बल पर ही चल रहा है। सरकारों से फ़ाउंडेशन को किसी भी तरह की मदद नहीं मिली है।