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"स्त्री विमर्श एक राजनीतिक आंदोलन हैं", जैन संभाव्य विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग वेबिनार में बोले नतालि पुरस्कार सम्मानित डॉ. श्रीनारायण समीर

वेबिनार के माध्यम से जैन संभाव्य विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग द्वारा किया गया 'शोधार्थी व्याख्यानमाला' का आयोजन, आज आयोजन का तीसरा दिन था।

"स्त्री विमर्श एक राजनीतिक आंदोलन हैं", जैन संभाव्य विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग वेबिनार में बोले नतालि पुरस्कार सम्मानित डॉ. श्रीनारायण समीर

Wednesday July 15, 2020 , 5 min Read

"वेबिनार के माध्यम से जैन संभाव्य विश्वविद्यालय के शोधार्थियों द्वारा व्याख्यान-माला का आयोजन किया गया। सत्र के तीसरे दिन का विषय 'समकालीन हिंदी स्त्रीवादी कविता के प्रमुख स्वर' रहा। वेबिनार में मुख्य अतिथि व्याख्याता नतालि पुरस्कार सम्मानित डॉ. श्रीनारायण समीर (केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो, भारत सरकार) ने अपने महत्वपूर्ण विचार प्रस्तुत किए। शोधार्थियों द्वारा आयोजित यह वेबिनार हिंदी विभाग द्वारा आयोजित किया जा रहा है, जो 18 जुलाई तक चलेगा। आज वेबिनार का तीसरा दिन था।"


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वेबिनार के दौरान डॉ. श्रीनारायण समीर



जैन संभाव्य विश्वविद्यालय के द्वारा आयोजित व्याख्यान माला के तीसरे दिन सत्र की शुरुआत में संकाय अध्यक्ष डॉ. पी. मैथिली राव ने प्रमुख वक्ता और शोधार्थियों का दिल से अभिनन्दन व धन्यवाद किया और साथ ही शोधार्थियों का उत्साहवर्धन भी किया। सत्र की कमान शोधार्थी स्वप्ना चतुर्वेदी ने संभाली। सत्र के प्रमुख वक्ता डॉ. श्रीनारायण समीर रहे। डॉ. समीर लेखक, शिक्षक, प्रशिक्षक, संपादक एवं अनुवाद विशेषज्ञ हैं। २०११-२०१९ तक केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो में निदेशक भी रहे हैं। इन्हें शब्द साहित्य सम्मान तथा भारतीय अनुवाद परिषद् द्वारा ‘नतालि पुरस्कार’, राजभाषा हिंदी निदेशालय द्वारा प्रशस्ति सम्मान भी मिल चुका है। आज सत्र का विषय 'समकालीन हिंदी स्त्रीवादी कविता के प्रमुख स्वर' था।


समकालीन हिंदी स्त्रीवादी कविता का प्रमुख स्वर अर्थात स्त्री स्मिता को बुलंद करने वाली कविता या स्त्री स्मिता को केंद्र में रखकर लिखी जाने वाली कविता ही स्त्रीवादी कविता है। डॉ. श्रीनारायण समीर के अनुसार अंग्रेजी में स्त्री विमर्श को फेमिनिज़्म आंदोलनों से जोड़ा गया। हिंदी में स्त्रीवादी और स्त्री विमर्श का साहित्य ही अर्थात स्त्री से संबंधित लिखी जाने वाली रचना को ही स्त्री विमर्श समझा जाता है, साथ ही पश्चिम में फेमिनिज़्म डिस्कोर्स को भी स्त्री विमर्श समझा जाता है। इसकी शुरुआत 1929 में वर्जिनिया वुल्फ और सिमोन द बोउआर आदि की रचनाओं के सामने आने पर हुई। थिंकिंग अबाउट आदि किताबें भी छपीं। पश्चिम में नारीवादी आंदोलन का प्रारंभ हुआ। पश्चिम का स्त्री विमर्श लैंगिक स्वभाव और कारणों का विश्लेषण करता है। वहां के साहित्य में महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव और दमन का प्रसंग दिखाई देता है। स्त्री विमर्श उसी अभिव्यक्ति को प्रस्तुत करता है।


स्त्री विमर्श घरेलू हिंसा, यौन हिंसा, प्रजनन संबंधी विचार, नौकरी के साथ समान अवसर और उन अधिकारों की मांग की व्याख्या करता है। यह आजकल के नारी आंदोलन का प्रमुख स्वर है। वर्तमान समय में स्त्रीवादी/अस्मितावादी आधुनिक हिंदी साहित्य में नई ताकत और त्वरा आई है। डॉ. श्रीनारायण समीर के अनुसार,

"प्रभा खेतान, सुमन राजे, अनामिका, मैत्रेयी पुष्पा, कात्यायनी और निर्मला पुतुल का लेखन और अवदान प्रमुख है।"


डॉ. समीर ने आधुनिक काल के प्रमुख कवि मैथिलीशरण गुप्त की कविता की एक पंक्ति "अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी, आंचल में है दूध और आंखों में पानी..." का उदाहरण देते हुए कुछ अन्य समकालीन कवियों की भी चर्चा की, जिनमें जयशंकर प्रसाद की कामायनी और महादेवी वर्मा तथा निराला की कविता 'तोड़ती पत्थर' आदि कविताओं पर अपने विचार प्रस्तुत किए। इसके अलावा उन्होंने सबाल्टन डिसकोर्स की भी चर्चा की तथा पुरुषों के दृष्टिकोण से आलोक धन्वा की 'भागी हुई लड़कियां', गोरख पांडे के 'कैथल गांव की औरतें' पर चर्चा की। उनके अनुसार पुरुषों ने जो स्त्री अभिव्यक्ति की कविताएं लिखी हैं, वह दूर बैठ कविता है।


स्त्री विमर्श पर कविताओं का सृजन करने वाली प्रमुख स्त्री लेखिका स्नेहमय चौधरी, सुशीला टाकभैरो, रमणीका गुप्ता तथा स्त्री काव्यधारा की प्रमुख कवित्री अनामिका, मंजरी श्रीवास्तव, रंजना जयसवाल, पूर्णिमा, मनीषा कुलश्रेष्ठ आदि समकालीन हिंदी कविता की प्रमुख स्वर हैं।





डॉ. श्रीनारायण समीर का मानना है , आजाद खयाली, खुले में साँस लेना और सामाजिक बेड़ियों के विरुद्ध और विद्रोह की कवितायें समकालीन स्त्री विमर्श की कविता है। स्त्री मर्दन और मुखालफत की कविताएँ भी स्त्री विमर्श के दायरे में आती हैं। मंजरी की कविता, 'एक औरत का वेश्या बनना', सुशीला टाकभैरो की कविता, 'आज की खुद्दार औरतें', रंजना जायसवाल की कविता, 'क्या पौरुष सिर्फ छलना भी है', राजी सेठ की, 'हमने मान लिया उस चउहद्दी के बीच आसमान तुम्हारा', कात्यायनी की कविता, 'स्त्री से डरो', अनामिका की, 'तुलसी का झोला' आदि। डॉ. समीर ने अपने व्याख्यान में कवयित्रियों की कविताओं में बिम्ब के माध्यम से पीड़ा और संत्रास की सारगर्भित व्याख्या भी की। 


डॉ. समीर के अनुसार व्यापक समाज में स्त्री-पुरुष के बीच विडंबनाएं है। समकालीन हिंदी कविता का प्रमुख स्वर इन्हें बदलने की मांग करता है और समानता के अधिकार के प्रति अपनी आवाज़ को प्रखर करता है। व्याख्यान में डॉ. समीर ने अनीता भारती की कविता, 'उड़ान', हरप्रीत की 'खामोश रहने वाली लड़कियाँ', निर्मला पुतुल की कविता, 'बाबा मुझे उतनी दूर मत ब्याहना', और साथ ही अपने शहर बेंगलोर की कवयित्री उषा रानी राव और इंदु झुनझुनवाला की कविताओं की खूबियों को भी बयां किया ।


डॉ. श्रीनारायण समीर को शुभम श्री की कविताओं में नारी विमर्श के परिवर्तनगामी कविता का बोध दिखलाई पड़ता है। डॉ. समीर ने वेबिनार में 'हमारे हॉस्टल के सफाई कर्मचारियों ने, सेनेटरी नैपकिन फेंकने से मना केर दिया' कविता की इन पंक्तियों के माध्यम समाज के रूढ़िवादी विचारों पर अपने विचार प्रस्तुत किए  प्रसिद्ध कवि और शायर निदा फाजली की नज़्म, 'ज़माने को बदलना है तो समाज को बदलो' और साहिर लुधियानवी की, 'स्त्री ने मर्दों को जन्म दिया और मर्दों ने इन्हें बाजार दिया' का उद्धरण प्रस्तुत किया। इसके आलावा उन्होंने प्रतिभागियों द्वारा पूछे गए सवालों के जवाब दिए। कार्यक्रम के अंत में डॉ. प्रकाश द्वारा धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया गया।


शोधार्थियों का ये व्याख्यान 18 जुलाई तक चलेगा, जिसमें डॉ. श्रीनारायण समीर, डॉ. निरंजन सहाय, डॉ. नीतिशा खलको और अजय ब्रम्हात्मज भी वक्ता होंगे। शोधार्थियों द्वारा आयोजित यह वेबिनार हिंदी विभाग द्वारा आयोजित किया जा रहा है।


इन सभी वेबिनार का हिस्सा आप भी बन सकते हैं,


ज़ूम लिंक: https://zoom.us/j/98330540822?pwd=eXlZbXB0VjIzQXo2eDE3a1BEMkhrdz09

आईडी: 983 3054 0822

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