"उभर रहा है, एक नये तरह का राष्ट्र", जैन संभाव्य विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग वेबिनार में बोले डॉ. सत्यम कुमार
वेबिनार के माध्यम से जैन संभाव्य विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग द्वारा किया गया 'शोधार्थी व्याख्यानमाला' का आयोजन, आज आयोजन का दूसरा दिन था।
"वेबिनार के माध्यम से जैन संभाव्य विश्वविद्यालय के शोधार्थियों द्वारा व्याख्यान-माला का आयोजन किया गया। सत्र के दूसरे दिन का विषय 'राष्ट्र, आख्यान एवं राष्ट्रवाद की परिधि में जेंडर विमर्श' रहा, जिस पर अतिथि व्याख्याता महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा के वरिष्ठ अध्येता डॉ. सत्यम कुमार सिंह ने अपने महत्वपूर्ण विचार प्रस्तुत किए। शोधार्थियों द्वारा आयोजित यह वेबिनार हिंदी विभाग द्वारा आयोजित किया जा रहा है, जो 18 जुलाई तक चलेगा। आज वेबिनार का दूसरा दिन था।"
जैन संभाव्य विश्वविद्यालय के द्वारा आयोजित व्याख्यान माला के दूसरे दिन सत्र की शुरुआत में संकाय अध्यक्ष डॉ. पी. मैथिली राव ने प्रमुख वक्ता और शोधार्थियों का दिल से अभिनन्दन व धन्यवाद किया और साथ ही शोधार्थियों का उत्साहवर्धन किया। सत्र की कमान शोधार्थी तुलसी छेत्री ने संभाली। सत्र के प्रमुख वक्ता वरिष्ठ अध्येता डॉ. सत्यम कुमार रहे। डॉ. सत्यम महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा में वरिष्ठ अध्येता है। आज सत्र का विषय 'राष्ट्र, आख्यान एवं राष्ट्रवाद की परिधि में जेंडर विमर्श' था। डॉ. सत्यम ने अपने विचार रखते हुए, राष्ट्र के परिकल्पना की व्याख्या की और साथ ही राष्ट्र की परिकल्पना, वैश्विक एवं राष्ट्रीय सन्दर्भ में तथा 1947 के बाद राष्ट्र और राज्य की प्रक्रिया सम्बन्धी तथ्यों को प्रस्तुत किया।
वेबिनार के दौरान डॉ. सत्यम कुमार सिंह ने कहा, "राष्ट्र जनमत का प्रतिबिम्ब है।" आख्यान से पूर्व महाख्यान, राष्ट्रवाद के घेरे में जेंडर विमर्श, लिक्विड सेक्सुअलिटी तथा एलजीबीटीक्यू आदि विषयों पर भी संक्षेप में अपने विचार साझा किए। राष्ट्र का उत्थान, राष्ट्र की संख्या वैश्विक सन्दर्भ में एवं कुछ उपनिवेशिक देशों की स्वतंत्रता की सुगबुगाहट के संघर्ष को आधुनिक राजनीति का प्रथम पृष्ठ माना। सोदाहरण के लिए लगान फिल्म की भी चर्चा हुई। डॉ. सत्यम ने आधुनिक परिघटनाओं का हवाला देते हुए तार्किकता, विवेकशीलता एवम अस्मिता को संघर्ष का आवश्यक कारक माना।
वेबिनार में डॉ. सत्यम ने उमा चक्रवर्ती और राजारामोहन राय के प्रगतिशील विचारों का उल्लेख तो किया ही, साथ ही राजाओं की कथाओं और दासियों से सम्बंधित प्रश्न के द्वारा उमा चक्रवर्ती के विचारों से भी अवगत कराया। दलित आंदोलनों, चिपको आंदोलन एवं सत्ता के माध्यम से महाख्यान की पुनः चर्चा की गयी। हाशिये के समाज की आवाज़ अगर केंद्र तक पहुँचती है तो वह हाशिये की आवाज़ नहीं रह पाएगी, घृणित राजनीति के यथार्थ सोच से अवगत कराया। डॉ. सत्यम के अनुसार राष्ट्र और राज्य आख्यान है और इसके अंदर ही अस्मितावादी राजनीति को स्थापित किया जाता है।
1990 में सोवियत रूस के विघटन एवं अमेरिकी साम्राज्यवाद और पूंजीवाद के आधुनिक रूप की यथार्थ व्याख्या हुई। वेबिनार के दौरान ट्रेड यूनियन के खत्म होने के कारणों की विवेचना तथा जनसत्ता के भूतपूर्व संपादक और शिक्षाविद अशोक वाजपेयी के कथन, बड़े स्वप्न देखने का समय खत्म हो गया है, आदि भी चर्चा का विषय बने रहे। आधुनिक सन्दर्भ में टीयूनिसिअ , लीबिया तथा अरब देशों के राष्ट्रवाद की चर्चा भी हुई, साथ ही जेएनयू के राष्ट्रवाद की चर्चा भी डॉ. सत्यम ने की और अपने महत्वपूर्ण विचारों से सभी को अवगत कराया।
व्याख्यान के बाद, प्रश्नोत्तर काल के दौरान श्रोताओं के प्रश्नों के उत्तर डॉ. सत्यम द्वारा दिए गए। एक प्रश्न में महागोविंद रानाडे और सर सईद अहमद खान के राष्ट्रवाद की चर्चा भी हुई। साथ ही वेबिनार के दौरान जैन संभाव्य विश्वविद्यालय के सहयोगी प्राध्यापक डॉ. भंवर सिंह शक्तावत और डॉ. सत्यम कुमार सिंह की दिलचस्प बातचीत को भी सुनने का मौका मिला। सत्र के समापन में शोधार्थी रजनी शाह के द्वारा धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया गया।
शोधार्थियों का ये व्याख्यान 18 जुलाई तक चलेगा, जिसमें डॉ. श्रीनारायण समीर, डॉ. निरंजन सहाय, डॉ. नीतिशा खलको और अजय ब्रम्हात्मज भी वक्ता होंगे। शोधार्थियों द्वारा आयोजित यह वेबिनार हिंदी विभाग द्वारा आयोजित किया जा रहा है।
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