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गोबर-धन से हर माह पांच लाख की कमाई, सालाना टर्नओवर पांच करोड़ रुपए

गोबर-धन से हर माह पांच लाख की कमाई, सालाना टर्नओवर पांच करोड़ रुपए

Friday October 25, 2019 , 4 min Read

"पीएम की गोबरधन योजना (गैलवनाइजिंग ऑर्गेनिक बॉयो-एग्रो रिसोर्स धन योजना) भी अब रंग लाने लगी है। करनाल के अमित अग्रवाल का 'अमृत फ़र्टिलाइज़र' स्टार्टअप गोबर से हर माह पांच लाख रुपए कमा रहा है। मुंबई के उमेश सोनी के स्टार्टअप का सालाना टर्नओवर पांच करोड़ तक पहुंच चुका है। गुजराती जयेश पटेल गोबर से प्लाइवुड, अगरबत्ती बना रहे हैं।" 

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करनाल में अमित अग्रवाल का गोबर-धन अमृत फर्टिलाइजर



प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'मन की बात' में पिछले साल इस बात को ध्यान में रखते हुए सरकार की 'गोबर' GOBAR योजना (गैलवनाइजिंग ऑर्गेनिक बॉयो-एग्रो रिसोर्स धन योजना) का जिक्र किया था कि पूरे विश्व में सबसे ज्यादा भारत में मवेशियों की आबादी लगभग 30 करोड़ है और प्रतिदिन लगभग 30 लाख टन गोबर का बड़ा हिस्सा अनुपयोगी रह जाता है, जबकि कई एक यूरोपीय देश और चीन पशुओं के गोबर और अन्य जैविक अपशिष्ट से तरह-तरह के उत्पादन कर रहे हैं।  बाद में केंद्र सरकार ने गोबर और एग्रीकल्चर वेस्ट के सही इस्तेमाल के लिए देश के 115 मॉडल जिलों का चयन कर गोबरधन योजना के लिए बजट में प्रावधान के साथ इसकी मई में करनाल (हरियाणा) से शुरुआत भी कर दी।


उसी करनाल के गांव कुंजपुरा में दो भाई अमित अग्रवाल और आदित्य अग्रवाल अपनी 'अमृत फ़र्टिलाइज़र' स्टार्टअप कंपनी में गोबर से रोजाना दो हजार यूनिट बिजली बनाकर हर महीने पांच लाख रुपए कमा रहे हैं। प्लांट चलाने के लिए वह रोजाना 25 हजार किलो गोबर गोशालाओं से खरीदकर उसे भी जैविक खाद के रूप में बेच रहे हैं। अमित अग्रवाल कहते हैं कि यदि सरकार चाहे तो इस प्लांट से वह कुंजपुरा गांव के सभी परिवारों को बिजली मुहैया करने के साथ ही 2000 घरों को एलपीजी गैस भी दे सकते हैं।


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अमित अग्रवाल और उमेश सोनी

इतना ही नहीं, देश में गोबरधन से तरह-तरह के प्रॉडक्शन की अब कई एक कड़ियां जुड़ चुकी हैं। इसकी दास्तान अब काफी लंबी हो चुकी है। मुंबई की 'राविनो इंडस्ट्रीज' के एमडी उमेश सोनी का स्टार्टअप काउपैथी नाम से कई तरह के गोबर-जनित ब्रांड बैंकाक, रूस, यूक्रेन, अमेरिका तक सप्लाई कर रहा है। काउपैथी के गोबर का साबुन 13 देशों में सप्लाई हो रहा है। हर साल लगभग 41 प्रतिशत ग्रोथ के साथ इस स्टार्टअप का सालाना टर्नओवर 05 करोड़ रुपए तक पहुंच चुका है, जिसमें अकेले काउपैथी का ही सालाना टर्नओवर 2 करोड़ रुपए का है।

यह कंपनी गो-मूत्र और गोबर से साबुन के अलावा कॉस्मेटिक प्रॉडक्ट्स, टूथपेस्ट, क्रीम, फेसवॉस आदि का प्रॉडक्शन कर रही है। सोनी बताते हैं कि उनका बिजनेस तेजी से ग्रो कर रहा है। यह काम उन्होंने कुछ साल पहले अपने एक्सपोर्ट के बिजनेस से जुटाए 10 लाख रुपए के निवेश से एक दोस्त के साथ मिलकर काउपैथी की शुरुआत की थी। उन्होंने गाय के गोबर से बने साबुन का पेटेंट करा लिया है। वह निकट भविष्य में गोबर के कई और प्रॉडक्ट लांच करने जा रहे हैं।

 




इसी तरह आणंद (गुजरात) के गांव झारोला में जयेश पटेल गोबर से गमले, प्लाइवुड और अगरबत्ती बना रहे हैं। उनके प्रॉडक्ट्स गुजरात के बाजारों में इन दिनों धड़ल्ले से बिक रहे हैं। इससे पहले से जयेश 15 गायों की डेयरी भी चला रहे हैं। वह बताते हैं कि एक किलो गोबर से उन्हें 10 रुपये मिलते हैं। रोजाना 14 से 15 किलो गोबर वह बेच लेते हैं। गोबर से जैविक खाद बना कर उसे और ऊंची कीमत पर बेचते हैं। उनके यहां गोबर की अगरबत्ती और इको फ्रेंडली गमलों की भी मार्केट में काफी डिमांड है।


वह गोबर से कोयला और प्लाइवुड भी बना रहे हैं। उन्होंने गोबर को और अधिक उपयोगी बनाने के लिए 'काउ डन्क ड्रायर' मशीन बनाई है। इस मशीन में गाय के गोबर का पहले पाउडर, फिर उसी से अलग-अलग प्रॉडक्ट बना रहे हैं। इस काम के लिए गुजरात सरकार अब तक जयेश पटेल को 10 अवार्ड दे चुकी है। जयेश कहते हैं कि दूध मंडली की तरह अगर सरकार गोबर बैंक भी खुलवा दे तो किसान और पशुपालक मालामाल हो जाएंगे। 


'अमृत फ़र्टिलाइज़र' स्टार्टअप के फाउंडर अमित अग्रवाल कहते हैं कि इसका आइडिया उनको पीएम मोदी के गोबर-धन योजना से मिला था। केंद्र सरकार तो सन् 2025 तक पूरे देश में पांच हजार बायोगैस प्लांट लगाना चाहती है। लोग दूध को सफ़ेद सोना मानते हैं और वह गोबर को हरा सोना। उन्होंने अपने भाई आदित्य के साथ मिलकर शुरुआत में गोबर से खाद का प्रॉडक्शन लिया, उससे किसानों का गन्ना उत्पादन डेढ़गुना तक बढ़ गया। उसके बाद उनकी कंपनी बायोगैस, फिर बिजली का प्रॉडक्शन करने लगी।


अब वह रोजाना इस प्रॉडक्शन में लगभग 40 टन सॉलिड वेस्ट गोबर, एग्रो-वेस्ट आदि के साथ ही आसपास के गाँवों का लगभग 40 हजार लीटर प्रदूषित पानी भी इस्तेमाल करने लगे हैं। अपना मुनाफा साठ फीसदी तक बढ़ा चुके एक हजार से अधिक किसान भी उनकी कंपनी से जुड़े चुके हैं। समय-समय पर आइआइटी स्ट्युडेंट्स भी उनके यहां विजिट करते रहते हैं। यूगांडा के डेलिगगेट्स भी उनके प्लांट का जायजा ले चुके हैं।