अपने पैरों से लाचार नसीमा दीदी बनीं हजारों ज़रूरतमंदों के लिए उम्मीद की किरण
"किशोर उम्र से ही व्हीलचेयर का सहारा लेने को मजबूर कोल्हापुर (महाराष्ट्र) की 69 वर्षीय नसीमा मोहम्मद अमीन हुजुर्क आज अपने जैसे हजारों लोगों को अपने पैरों पर खड़े होने का हौसला दे रही हैं। वह तो खुद एथलीट बनने का सपना पूरा न कर सकीं, हेल्पर्स ऑफ द हैंडिकैप्ड के जरिए विकलांग जिंदगियां जरूर रोशन कर रही हैं।"
किशोर उम्र से ही व्हीलचेयर का सहारा लेने को मजबूर कोल्हापुर (महाराष्ट्र) की 69 वर्षीय नसीमा मोहम्मद अमीन हुजुर्क आज तमाम असहायों की जिंदगी में उम्मीद की किरण बनकर उन्हे अपने पैरों पर खड़े होने की प्रेरणा दे रही हैं। उन्होंने कभी एथलीट बनने का सपना देखा था, जिसे लकवा ने तो मिट्टी में मिलाकर रख दिया लेकिन उन्होंने इतने गंभीर चैलेंज से भी हार नहीं मानी और दूसरों का सहारा बनकर पिछले साढ़े तीन दशकों में तेरह हजार से अधिक लोगों का पुनर्वास करा चुकी हैं। नसीमा हेल्पर्स ऑफ द हैंडिकैप्ड कोल्हापुर (एचओएचके) की संस्थापक और अध्यक्ष अमीन हुजुर्क, जिन्हे लोग आज नसीमा दीदी के नाम से पुकारते हैं, पैराप्लेजिया बीमारी (दोनों पैरों से निःशक्त) होने के बावजूद कस्टम विभाग में नौकरी के साथ ही 1984 में उन्होंने हेल्पर्स ऑफ द हैंडिकैप्ड की स्थापना कर डाली।
यद्यपि नसीमा दीदी अपनी सत्रह साल की उम्र में ही चलने-फिरने में असमर्थ हो गई थीं, अपनी जिंदगी को एक मामूली चैलेंज की तरह लेते हुए उन्हे ऐसे संकल्प की प्रेरणा पहली बार एक ऐसे व्यापारी से मिली, जो स्वयं उसी बीमारी से पीड़ित होने के बावजूद खुद की बनाई एक विशेष मॉडल की कार से सफर किया करते थे। उसके बाद नसीमा दीदी ने अपनी पढ़ाई के बूते सेंट्रल एक्साइज एंड कस्टम्स विभाग में नौकरी पाकर मानो पहली लड़ाई फतह कर ली।
अपनी इस कामयाबी से भी उनके मन को तसल्ली नहीं मिली तो उन्होंने उस जॉब से वीआरएस ले लिया और आम पीड़ित विकलांगों की सहायता के लिए कोल्हापुर में ‘पंग पुनर्वासन संस्थान’ स्थापित किया, जो पैराप्लेजिक्स लोगों का पनाहगाह बन गया। ‘हेल्पर्स ऑफ द हैंडिकैप्ड कोल्हापुर’ संस्थान उन लोगों के लिए काम करने लगा, जिन्हे पैराप्लेजिया की शुरुआती शिकायत होती थी।
कई दफ़ा कई लोग बचपन में ही तय कर लेते हैं कि आगे चलकर उन्हें क्या करना है। इसके लिए वह हर तरह की कोशिश भी करते हैं। उनकी मेहनत और लगन में कोई कमी नहीं रहती है लेकिन कई बार हालात उनको किसी और मोड़ पर पहुंचा देते हैं। ऐसी शख्सियतों के सपनों को ऊंची उड़ान के लिए पंख मिल ही जाते हैं। नसीमा दीदी की आज कामयाबियां कुछ इसी तरह से लोगों का प्रेरणा स्रोत बन चुकी हैं।
देखते ही देखते उनके अदम्य जीवट ने अंधेरे से घिरी जिंदगियों में खुशहाली के फूल खिला दिए हैं। नसीमा दीदी कहती हैं कि ख़ुद की ज़िन्दगी आसान बनाने के लिए हर कोई काम करता है, लेकिन किसी और की ज़िन्दगी आसान बनाने के लिए किया गया काम अलग सुकून देता है। इंसान सिर्फ अपने लिए जिए तो क्या जिए, उसे जमाने के लिए जीना चाहिए। आज वह अपने जैसे कई और लोगों को 'अपने पैरों पर खड़े होने' और जीवन को गर्व के साथ जीने का हौसला दे रही हैं।