एफआईआर में उर्दू-फ़ारसी नहीं, सरल भाषा के इस्तेमाल का ऐतिहासिक फैसला
"पुलिस एफआईआर में उर्दू-फ़ारसी के कठिन शब्दों का इस्तेमाल न करने का दिल्ली हाईकोर्ट की खंडपीठ का फैसला पूरे देश के लिए स्वागत योग्य है। दिल्ली ही नहीं, यह कठिनाई तो देश के ज्यादातर राज्यों में शिकायतकर्ताओं को झेलनी पड़ रही है। अब तो जरूरत भी और उम्मीद भी है, इस आदेश पर पूरे देश में जरूर अमल होने की।"
इसे अपनी तरह की एक ऐतिहासिक सुनवाई माना जा सकता है। एक याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने पुलिस को निर्देश दिया है कि वह एफआईआर दर्ज करने में उर्दू और फ़ारसी के जटिल, अबूझ शब्दों का प्रयोग करने की बजाए शिकायतकर्ता की आम भाषा का इस्तेमाल करे, ताकि उस साधारण भाषा को एक आम आदमी भी पढ़कर समझ सके। मुख्य न्यायमूर्ति डीएन पटेल और न्यायमूर्ति सी. हरि शंकर की खंडपीठ ने निर्देश दिया है कि दिल्ली पुलिस एफआईआर दर्ज करने में उर्दू और फारसी के उन शब्दों का उपयोग बंद करे, जो बिना सोचे-समझे इस्तेमाल किए जा रहे हैं।
अब एफआईआर में उर्दू और फारसी के ऐसे कठिन 383 शब्दों की जगह साधारण शब्दों का प्रयोग किया जाएगा। अदालत ने मामले की सत्यता की जांच के लिए नमूने के तौर पर एफआईआर की ऐसी 100 प्रतियां पेश करने का आदेश दिल्ली पुलिस को दिया है। दिल्ली पुलिस ने गत 20 नवंबर को, अब साधारण भाषा में एफआईआर लिखने का, सभी पुलिस थानों को एक सर्कुलर भी जारी कर दिया है।
खंडपीठ का यह फैसला तो आदेशों पर अमल की तहकीकात करते हुए अब आया है लेकिन यह मामला अक्तूबर, 2015 से ही राजधानी दिल्ली की चर्चाओं में है। उस समय दिल्ली पुलिस ने थानों के दैनिक कार्यों में फारसी और उर्दू के प्राचीन तथा कठिन शब्दों के स्थान पर हिंदी या अंग्रेजी के आसान शब्दों के इस्तेमाल करने के निर्देश संबंधी याचिका का दिल्ली हाईकोर्ट में विरोध किया था।
तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जी.रोहिणी और न्यायमूर्ति जयंत नाथ के समक्ष दिल्ली पुलिस ने दलील दी थी कि पुलिस एफआईआर की भाषा को आम आदमी अच्छी तरह समझता है। दिल्ली पुलिस ने थानों में बयान दर्ज करने और अदालतों में चालान दाखिल करने जैसी कार्यवाही में फारसी और उर्दू शब्दों के खिलाफ दायर याचिका खारिज करने का अनुरोध करते हुए अदालत में दाखिल हलफनामे में कहा था कि इन शब्दों को हटाने से बहुत परेशानी पैदा हो जाएगी। ट्रेनिंग कॉलेज में उर्दू और फारसी शब्दों के इस्तेमाल का पुलिस को प्रशिक्षण दिया जाता है।
उल्लेखनीय है कि एक याचिका में वकील विशालक्षी गोयल ने हाईकोर्ट से अपील की थी कि दिल्ली पुलिस को एफआईआर दर्ज करने में उर्दू और फारसी शब्दों का प्रयोग करने से रोका जाए क्योंकि यह आम लोगों की समझ में नहीं आती है। यह महत्वपूर्ण सुनवाई करते हुए अदालत ने कहा है कि पुलिस आम आदमी का काम करने के लिए है, सिर्फ उन लोगों के लिए नहीं है, जिनके पास उर्दू या फारसी में डॉक्टरेट की डिग्री है।
ऐसे शब्द, जिनका अर्थ शब्दकोश में ढूंढना पड़े, एफआईआर में उनके इस्तेमाल का कोई औचित्य नहीं बनता। एफआईआर शिकायतकर्ता के शब्दों में होनी चाहिए। भारी भरकम शब्द की जगह आसान भाषा का इस्तेमाल होना चाहिए। लोगों को ये पता होना चाहिए कि उसमें आखिर लिखा क्या गया है।
अब, आगे यह मसला देश के अन्य राज्यों में भी नज़ीर के तौर पर सामने आ सकता है। पूरे देश के पुलिस थानों, अदालतों में जमाने से उर्दू-फारसी के शब्दों का बहुतायत में प्रयोग होता आ रहा है। जैसाकि दिल्ली हाईकोर्ट की खंडपीठ ने ऐतिहासिक फरमान सुनाया है, भविष्य में उस पर पूरे देश में अमल होने की मांग और संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता है।