पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश में रोज मर्दों के मुकाबले आठ गुना ज्यादा घरेलू श्रम करती हैं महिलाएं
इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन (ILO), जेनेवा की रिपोर्ट कहती है कि पूरी दुनिया में महिलाएं मर्दों से चार गुना ज्यादा घरेलू श्रम करती हैं. भारत में छह गुना ज्यादा घरेलू श्रम करती हैं और पड़ोस के देश में आठ गुना ज्यादा. पूरी दुनिया ने मुफ्त के श्रम का सारा ठीकरा औरतों के सिर फोड़ रखा है.
यह राष्ट्रव्यापी सर्वे हमारे पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश से आया है. बांग्लादेश ब्यूरो ऑफ स्टैटिसटिक्स की यह सर्वे रिपोर्ट कह रही है कि उनके देश में महिलाएं पुरुषों के मुकाबले 8 गुना ज्यादा अनपेड घरेलू श्रम करती हैं. एक पुरुष घरेलू कामों में प्रतिदिन औसत 1.6 घंटे का समय देते हैं, जबकि महिलाओं का प्रतिदिन का यह औसत समय 11.7 घंटे का है.
सर्वे के मुताबिक चूंकि यह घरेलू काम श्रम नियमों के अंतर्गत उत्पादक श्रम के दायरे में नहीं आता, इसलिए इसका कोई मेहनताना और पहचान नहीं है. इस श्रम की कहीं गणना नहीं हो रही है. प्रोडक्टिव या उत्पादक श्रम के दायरे में वह श्रम आता है, जो जीडीपी में काउंट हो रहा हो.
बांग्लादेश ब्यूरो ऑफ स्टैटिसटिक्स ने 13 जून को यह रिपोर्ट प्रकाशित की है. विकसित देशों में इस तरह के बहुत सारे सर्वे हुए हैं, लेकिन बांग्लादेश में पूरे राष्ट्र के स्तर पर हुआ यह अपनी तरह का पहला सर्वे है.
यह रिपोर्ट कहती है कि 11.7 घंटों के अनुत्पादक श्रम के अलावा महिलाएं प्रतिदिन 1.2 घंटे उत्पादक श्रम भी कर रही हैं. पुरुषों के उत्पादक श्रम का प्रतिदिन का औसत 6.1 घंटा है.
रिपोर्ट कहती है कि 25 से 59 आयु वर्ष की महिला प्रतिदिन पारिवारिक जिम्मेदारियों और परिवारजनों की देखभाल में 5.2 घंटे खर्च करती है, जबकि उसी आयु वर्ग के पुरुष केयरगिविंग के काम में प्रतिदिन सिर्फ 0.6 घंटा खर्च करते हैं. शहरी क्षेत्रों में महिलाएं प्रतिदिन 4.4 घंटा केयरगिविंग के काम में लगा रही हैं, जबकि पुरुषों का यह समय मात्र 0.6 घंटा है. ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं का केयरगिविंग का औसत समय प्रतिदिन 4.7 घंटा है, जबकि पुरुषों का यह समय गांवों में भी 0.6
घंटा है.
इस वृहद सर्वे में महिलाओं के अनपेड लेबर को कई श्रेणियों में बांटकर उसका आंकलन किया गया है, जैसे उम्र, शिक्षा, आर्थिक स्थिति, ग्रामीण और शहरी क्षेत्र आदि.
इस रिपोर्ट के मुताबिक अशिक्षित महिलाएं प्रतिदिन 4.1 घंटा घरेलू कामों को देती हैं. प्राइमरी एजूकेशन प्राप्त महिलाएं प्रतिदिन 4.9 घंटा, सेकेंडरी एजूकेशन प्राप्त महिलाएं प्रतिदिन 4.9 घंटा और सेकेंडरी एजूकेशन से ऊपर शिक्षा प्राप्त महिलाएं प्रतिदिन 4.3 घंटा घरेलू कामों में खर्च करती हैं.
यह सर्वे कहता है कि बांग्लादेश में शादी के बाद जहां रोजगार से जुड़े उत्पादक श्रम में पुरुषों की हिस्सेदारी बढ़ जाती है, वहीं घरेलू कामों में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ जाती है. अविवाहित महिलाएं प्रतिदिन 1.1 घंटा उत्पादक श्रम में खर्च करती हैं. पुरुषों का यह औसत 3.8 घंटा है. वहीं विवाहित महिलाएं 1.2 घंटा उत्पादक श्रम करती हैं, वहीं पुरुषों का यह प्रतिशत 6.8 घंटा है. विधवा, तलाकशुदा और सेपरेटेड महिलाएं प्रतिदिन 1.6 घंटा और पुरुष 2.8 घंटा उत्पादक श्रम करते हैं.
यह सर्वे देश की जनगणना जितना बड़ा है और तकरीबन देश की सारी आबादी को इसमें कवर किया गया है. सर्वे का उद्देश्य स्त्रियों के अनुत्पादक श्रम का आंकलन कर यह अनुमान लगाना है कि जीवन के लिए जरूरी और बुनियादी कितना सारा श्रम जीडीपी में काउंट न होने की वजह से पहचान से बाहर है. देश की अर्थव्यवस्था, श्रम, उत्पादन और जीडीपी की सही अर्थों में गणना को मुमकिन बनाने के इरादे से यह व्यापक अध्ययन किया गया है.
पांच दिन पहले हमने अपनी स्टोरी “नौकरी के बाजार से गुम होती महिलाएं” में भारत के संदर्भ में अनपेड लेबर का यह आंकड़ा दिया था. नेशनल स्टैटिकल ऑफिस (एनएसओ) की साल 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक एक भारतीय महिला रोज 243 मिनट यानी तकरीबन चार घंटे घरेलू काम करती है, जबकि भारतीय पुरुष प्रतिदिन सिर्फ 25 मिनट घर के काम करता है.
एनएसओ की रिपोर्ट के मुताबिक एक भारतीय महिला प्रतिदिन अपने उत्पादक समय का 19.5 फीसदी हिस्सा घरेलू कामों में खर्च कर रही है, जबकि इन कामों में पुरुष की हिस्सेदारी सिर्फ 2.3 प्रतिशत है. नौकरी के साथ 81 फीसदी औरतें घर के काम कर रही हैं, जबकि मात्र 19 फीसदी मर्द घरेलू कामों में हाथ बंटा रहे हैं.
यह तो हुई दो पड़ोसी मुल्कों की बात. इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन (ILO), जेनेवा की रिपोर्ट कहती है कि पूरी दुनिया में महिलाएं मर्दों से चार गुना ज्यादा घरेलू श्रम करती हैं. पूरी दुनिया में महिलाओं के अनुत्पादक अनपेड लेबर का औसत 76.2 फीसदी है.
न्यूजीलैंड की फेमिनिस्ट इकोनॉमिस्ट मैरिलिन वेरिंग का यूट्यूब पर एक टेड टॉक है. उस टेड टॉक में वह महिलाओं के अनपेड श्रम के बारे में बात कर रही हैं. टॉक के दौरान वो महिलाओं से पूछती हैं, “क्या आपको पता है कि आप अपने शिशु को जो दूध पिला रही हैं, वो आपके देश की जीडीपी का हिस्सा नहीं है? क्या आपको पता है कि गाय, भैंस, भेड़, बकरी सबका दूध यानि उस सबका श्रम जीडीपी का हिस्सा है, लेकिन आपका श्रम जीडीपी का हिस्सा नहीं है."
आज की तारीख में फेमिनिस्ट इकोनॉमिक्स अर्थशास्त्र की एक पूरी स्ट्रीम है, जो लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से लेकर दुनिया के बड़े विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जा रही है. लेकिन आज भी दुनिया के किसी देश में अनपेड घरेलू श्रम की जीडीपी में कोई गणना नहीं होती, हालांकि यह सवाल पिछले डेढ़ दशकों में पूरे जोर-शोर से उठने लगा है.
टेरी नैश ने मैरिलिन वेरिंग की किताब “इफ विमेन काउंटेड” पर 1995 में एक डाक्यूमेंट्री फिल्म बनाई थी, जिसे ऑस्कर से नवाजा गया. महिलाओं का अनपेड लेबर, जीडीपी, अर्थव्यवस्था, उसके आंकलन के पैमाने, इन सारे सवालों पर यह किताब और फिल्म दोनों से गुजरना चौंकाने और आंखें खोलने वाला अनुभव हो सकता है.