Tax Saving: टैक्सपेयर्स के लिए दो तरह की इनकम टैक्स व्यवस्था हैं मौजूद, अपनी सहूलियत के हिसाब से करें चुनाव
नई टैक्स व्यवस्था को बजट 2020 में प्रस्तावित किया गया था और यह अप्रैल 2020 से शुरू हुए वित्त वर्ष 2020-21 से लागू हुई.
टैक्स सेविंग (Tax Saving) का वक्त चल रहा है. जिन लोगों ने अभी तक वित्त वर्ष 2022-23 के लिए टैक्स सेविंग नहीं की है, वे इसकी कवायद में जुट गए हैं. भारत में 2.5 लाख रुपये तक की सालाना आय, आयकर (Income Tax) से मुक्त है. लेकिन आय के इस लिमिट को क्रॉस करने के बाद व्यक्ति आयकर के दायरे में आ जाता है. याद रहे कि सालाना आय, हर सोर्स से होने वाली आय को जोड़कर निकलती है, न कि केवल सैलरी या बिजनेस से होने वाली आय के आधार पर.
कहा जा रहा है कि इस बार के बजट यानी केंद्रीय बजट 2023 में वित्त मंत्रालय मध्यम वर्ग यानी मिडिल क्लास को लाभ देने वाले प्रस्तावों पर विचार कर रहा है. कयास हैं कि इसके तहत इनकम टैक्स रेट्स में राहत मिल सकती है, स्टैंडर्ड डिडक्शन की 50,000 रुपये की लिमिट को बढ़ाया जा सकता है, आयकर कानून के सेक्शन 80C के अंतर्गत टैक्स डिडक्शन के लाभ की लिमिट बढ़ाई जा सकती है, आदि. करदाता की कुल सालाना आय में से फ्लैट स्टैंडर्ड डिडक्शन को सीधे-सीधे घटा दिया जाता है. स्टैंडर्ड डिडक्शन को बजट 2018 में दोबारा लाया गया और बजट 2019 में इसकी लिमिट को 40000 से बढ़ाकर 50000 रुपये कर दिया गया. यानी वर्तमान में हर सैलरीड क्लास करदाता के लिए 50 हजार रुपये के फ्लैट स्टैंडर्ड डिडक्शन का प्रावधान है.
इनकम टैक्स रेट की बात करें तो टैक्सपेयर्स की सालाना आय सीमा के आधार पर आयकर की अलग-अलग दरें लागू हैं. वर्तमान में देश में आयकर की दो व्यवस्थाएं लागू हैं, जिन्हें पुरानी टैक्स व्यवस्था और नई टैक्स व्यवस्था के नाम से जाना जाता है. नई टैक्स व्यवस्था को बजट 2020 में प्रस्तावित किया गया था और यह अप्रैल 2020 से शुरू हुए वित्त वर्ष 2020-21 से लागू हुई. आइए जानते हैं पुरानी और नई टैक्स व्यवस्था के इनकम टैक्स रेट....
पुरानी टैक्स व्यवस्था
नई वैकल्पिक टैक्स व्यवस्था
यहां याद रहे कि वैकल्पिक नई टैक्स व्यवस्था के तहत टैक्सपेयर्स को कुछ टैक्स डिडक्शंस का फायदा नहीं मिलता है.
टैक्स रिबेट का भी है प्रावधान
अंतरिम बजट 2019 में सरकार ने टैक्स रिबेट की लिमिट को 2500 रुपये से बढ़ाकर 12500 रुपये कर दिया था. टैक्स रिबेट से अर्थ उस कर देनदारी से है, जिसे सरकार माफ कर देती है. यानी वर्तमान में सरकार, करदाता की 12500 रुपये तक की आयकर देनदारी को माफ कर देती है. इस टैक्स रिबेट के चलते, 5 लाख रुपये तक की कर योग्य आय पर फिलहाल कोई टैक्स नहीं देना होता है.
यह ध्यान रखना जरूरी है कि टैक्स रिबेट को माइनस नहीं किया जाता है. उदाहरण के तौर पर अगर करदाता पर कुल 13,000 रुपये की कर देनदारी बन रही है तो ऐसा नहीं हो सकता कि उसमें से 12500 रुपये की रिबेट लिमिट घटा दी जाए और बचे हुए 500 रुपये को टैक्स के तौर पर जमा कर दिया जाए. होगा यह कि बनने वाले टैक्स की राशि 12500 से 1 रुपये भी ज्यादा गई तो करदाता को पूरे के पूरे 12501 रुपये टैक्स के तौर पर जमा करने होंगे.
बजट से टैक्स राहत को लेकर क्या हैं उम्मीदें
सरकार ने अभी तक आयकर छूट की सीमा 2.5 लाख रुपये से अधिक नहीं की है. यह सीमा 2014 में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने उस सरकार का पहला बजट पेश करते हुए तय की थी. इसके साथ ही साल 2019 से स्टैंडर्ड डिडक्शन 50,000 रुपये पर ही बना हुआ है. जहां तक सेक्शन 80सी की बात है तो फिलहाल इसके तहत 1.50 लाख रुपये तक के निवेश पर टैक्स डिडक्शन का लाभ मिलता है. FY2013-14 तक सेक्शन 80C के तहत उपलब्ध अधिकतम डिडक्शन 1 लाख रुपये प्रति वर्ष था. फिर वित्त वर्ष 2014-15 में यह सीमा बढ़ाकर 1.5 लाख रुपये प्रति वर्ष कर दी गई. अनुमान है कि सेक्शन 80D के तहत डिडक्शन की लिमिट को भी बढ़ाया जा सकता है. हेल्थ इंश्योरेंस प्रीमियम के भुगतान पर आयकर कानून के सेक्शन 80D के तहत 1 लाख रुपये तक का डिडक्शन क्लेम किया जा सकता है.
अन्य स्त्रोतों से हुई आय: अन्य स्त्रोतों से हुई आय जैसे- बचत से आने वाला ब्याज, घर से हो रही कमाई, साइड बिजनेस, कैपिटल गेन्स आदि. वैसे तो भारत में 2.5 लाख रुपये से ज्यादा की सालाना आय, आयकर के दायरे में आती है लेकिन कुछ स्त्रोत ऐसे भी हैं, जिनसे होने वाली आय आयकर के दायरे में नहीं आती. इस बारे में डिटेल में पढ़ें...