भारत को जल्द मिलेगी नई स्पेस पॉलिसी, देश में बनेंगे 'SpaceX' जैसे वेंचर
सरकार जल्द ही एक नई अंतरिक्ष नीति (Space Policy) लॉन्च करेगी जो भारत के अपने "SpaceX" जैसे वेंचर के उदय को देख सकती है. यह बात भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार, अजय कुमार सूद ने कही है.
सरकार हर सेक्टर में लगभग प्राइवेटाइजेशन को बढ़ावा दे रही है. ऐसे में स्पेस (अंतरिक्ष) सेक्टर भी प्राइवेटाइजेशन से अछूता नहीं रहा है. इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (ISRO) ने पहले ही प्राइवेट स्टार्टअप्स के लिए दरवाजे खोल दिए हैं.
, , , Cosmos, , Astrogate Labs आदि कुछ नामचीन स्टार्टअप्स हैं जो इस सेक्टर में इनोवेशन कर रहे हैं.अब, सरकार जल्द ही एक नई अंतरिक्ष नीति (Space Policy) लॉन्च करेगी जो भारत के अपने "SpaceX" जैसे वेंचर के उदय को देख सकती है. यह बात भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार, अजय कुमार सूद ने कही है.
पीटीआई को दिए एक इंटरव्यू में, सूद ने कहा कि इस पॉलिसी पर विचार-विमर्श हो चुका है और इसका फाइनल ड्राफ्ट जल्द ही आगे की जांच के लिए Empowered Technology Group (ETG) को भेजा जाएगा।
उन्होंने कहा, "स्पेस पॉलिसी पर काम चल रहा है। हम इसका ज्यादा उपयोग नहीं कर रहे हैं, लेकिन low earth orbit (LEO) सैटेलाइट्स की नई टेक्नोलॉजी कम लागत वाला खेल है।"
बीती 25 अप्रैल को पदभार ग्रहण करने वाले अजय कुमार सूद ने कहा, "LEO में बड़ी संख्या में सैटेलाइट्स हैं। यह स्पेस सेक्टर को बदल देगा।"
उन्होंने कहा कि सरकार स्वास्थ्य देखभाल, कृषि से शहरी विकास और संपत्ति कर अनुमान जैसी कई जरूरतों के लिए प्राइवेट सेक्टर में सैटेलाइट्स के निर्माण को बढ़ावा देगी.
सूद ने कहा, "हमने इस सेक्टर की पूरी क्षमता का उपयोग नहीं किया है। आज, 2022 में, स्पेस सेक्टर वही तेजी देख रहा है, जो 1990 के दशक में इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी सेक्टर ने देखी थी। अगले दो वर्षों में हमारा अपना SpaceX होगा।
उन्होंने कहा कि मानव जाति के लाभ के लिए स्पेस टेक्नोलॉजी के उपयोग के लिए अपार अवसर हैं लेकिन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) जो कर सकता है, कुछ हद तक उसकी अपनी सीमाएं हैं।
सूद ने कहा, "नए लॉन्च व्हीकल बनाए जा रहे हैं, स्पेसक्राफ्ट के लिए नए फ्यूल तैयार किए जा रहे हैं।"
उन्होंने कहा कि स्पेस सेक्टर के खुलने से कृषि, शिक्षा, आपदा प्रबंधन, ई-कॉमर्स ऐप्लीकेशन जैसे विभिन्न क्षेत्रों के लिए समर्पित उपग्रह हो सकते हैं।
सूद ने कहा, "Edusat 2004 में लॉन्च किया गया था. दूसरा वर्जन अभी तक लॉन्च नहीं किया गया है। तो, प्राइवेट सेक्टर को बिजनेस में क्यों न आने दें? एग्रीकल्चर सेक्टर के लिए, हमारे पास ऐसे सैटेलाइट्स हो सकते हैं जो जलवायु, मिट्टी के बारे में जानकारी दे सकें।"
रिपोर्ट्स के अनुमानों के अनुसार, ग्लोबल स्पेस सेक्टर का मार्केट साइज 423 बिलियन डॉलर है जिसमें भारत का योगदान 2-3 प्रतिशत है। मॉर्गन स्टेनली का अनुमान है कि 2040 तक ग्लोबल स्पेस इंडस्ट्री का विस्तार एक ट्रिलियन डॉलर तक हो जाएगा।
अब भारत के लिए यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार की यह नई स्पेस पॉलिसी कितनी कारगर साबित होगी. प्राइवेटाइजेशन इस सेक्टर को किस हद तक बदल पाएगा. क्या यह इस सेक्टर के लिए नई संभावनाओं और नए सपनों को सच कर दिखाने की दौड़ होगी.