जानिये कौन बनाता है हल्दीराम, चाय पॉइंट, स्टारबक्स, पीवीआर के सस्टेनेबल फूड सर्विसवेयर
भारत में गन्ने की सबसे अधिक खेती उत्तर प्रदेश में होती है. पिछले साल 2021 में उत्तर प्रदेश ने लगभग 177 मिलियन टन गन्ने का उत्पादन किया. ज़ाहिर है, इतने उत्पादन से बहुत भारी मात्रा में हर साल गन्ने का वेस्ट भी निकलता है. भारत में प्लास्टिक वेस्ट हर दिन लगभग 15,000 टन का होता है, जिसमें 6,000 टन प्लास्टिक कलेक्ट तक नहीं किये जाते और हमारे पर्यावरण में पड़े रहते हैं.
उत्तर प्रदेश के अयोध्या के वेद कृष्णा ने इन दो तरह के वेस्ट को कम करने की एक पहल की. वह गन्ने के वेस्ट से पैकेजिंग मटेरियल, फूड कंटेनर और फूड सर्विस मटेरियल तैयार करते हैं. उन्होंने सोचा कि कप, प्लेट्स प्लास्टिक की जगह बायो-डिग्रेडेबल मटेरियल से बनाए जाने चाहिए और गन्ने के वेस्ट से बेहतर बायो-डिग्रेडेबल मटेरियल और क्या हो सकता है. खेत से लेकर चीनी मीलों तक में बड़ी मात्रा में यह वेस्ट पाया जाता है.
वेद कृष्ण ने 2017 में ‘चक’ नाम से पैकेजिंग और मैन्युफैक्चरिंग ब्रांड की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य सस्टेनेबल पैकेजिंग सॉल्यूशंस के जरिये पर्यावरण में प्लास्टिक के वेस्ट को कम करना है. यह कंपनी हर दिन लगभग 300 टन से अधिक गन्ने के अवशेषों को प्रोसेस करती है. इनके इस प्रयास को काफी पसंद किया गया है और आज ये आलम है कि ‘चक’ हल्दीराम, चाय पॉइंट, पीवीआर, स्टारबक्स, अमेज़न जैसी कंपनियों के साथ पार्टनरशिप में है. इसके अलावा भारतीय रेलवे ने भी ‘चक’ के साथ कोलैबोरेट किया है. अब ट्रेन में भी यात्रियों को खाना चक की गन्ने की खोई से बनी ‘ट्रे’ में दिया जाएगा. 'चक' के अन्य पार्टनरशिप ब्रांड्स आप नीचे देख सकते हैं:
योरस्टोरी हिंदी के साथ बातचीत में ‘चक’ के बिजनेस हेड सतीश चैमिवेलुमणि बताते हैं कि ‘चक’ का 93% रेवेन्यू B2B मॉडल से जनरेट होता है पर इस साल ‘चक’ B2B (बिजनेस टू बिजनेस) मॉडल के साथ-साथ D2C (डायरेक्ट टू कस्टमर्स) मॉडल को भी अपनाएगा. वजह? D2C मॉडल की वजह से लोग अपने घरों में भी प्लास्टिक की बजाय बायो-डिग्रेडेबल प्रोडक्ट इस्तेमाल करके पर्यावरण को हरा-भरा रखने में अपनी भूमिका निभा सकते हैं. घर में आयोजित किये जाने वाले छोटे फंक्शन्स में आप ‘चक’ के प्रोडक्ट्स इस्तेमाल में ला सकते हैं, जो माइक्रोवेव, फ्रीज़र और ओवन सेफ है. गन्ने का फाइबर 60-90 दिनों में डीकम्पोज हो जाता है, जबकि प्लास्टिक को डीकम्पोज होने में 500 साल लग सकते हैं. स्वस्थ पर्यावरण की दिशा में अपने प्रयासों को तेज करने और ख़ुद को इसके प्रति जिम्मेदार बनाने के मकसद से 2019 में ‘चक’ ने #IChuk नाम से एक देशव्यापी अभियान भी चलाया था.
इस दिशा में अगला कदम उठाते और अपने कारोबार का दायरा बढ़ाते हुए ‘चक’ इस साल से भारत से बाहर के देशों में भी अपने प्रोडक्ट्स मुहैया करवाएगा, खासकर मिडिल-ईस्ट देशों में और अमेरिका में. इसी साल, ‘चक’ डिलीवरी करने वाली कंपनियों के साथ टाय-अप करके डिलीवरी मील ट्रे भी सप्लाई करने वाला है. यह कुछ ही महीने में शुरू हो जाएगा.
‘चक’ का उद्देश्य लोगों को न सिर्फ अपने लिए बेहतर और सुरक्षित विकल्प मुहैया करवाना है बल्कि पूरे प्लैनेट को भी सुरक्षित बनाना है.