जानें क्यों, यही सही समय है जब विशेषाधिकार प्राप्त तबके को जरूरतमंदों की मदद के लिए आगे आना चाहिए?
कोरोना वायरस महामारी ने दिहाड़ी मजदूरों और किसानों के लिए आजीविका का एक बड़ा संकट खड़ा कर दिया है, जिससे निपटने के लिए हमें एक समाज होने के नाते इस चुनौती को स्वीकार करना होगा।
कोरोना वायरस महामारी ने लगभग पूरे विश्व को अपनी चपेट में ले लिया है। विश्व की सबसे मजबूत अर्थव्यवस्था वाले देशों को भी इस महामारी ने बेबस कर दिया है। इसी के साथ इस महामारी को काबू में करने के लिए लगभग हर देश में जारी लॉकडाउन ने बड़ी बुनियादी मुश्किलों को जन्म दे दिया है, जिससे निपटना प्राथमिकता के साथ मुश्किल भी है।
लॉकडाउन के चलते तमाम कंपनियों ने अपने कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया है या उन्हे बिना वेतन के छुट्टी पर भेज दिया है। भारत जैसे देश में इस माहौल में सबसे बड़ी चोट दिहाड़ी मजदूरों को लगी है। अपने दैनिक भत्ते से गुज़र बसर करने वाले इन मजदूरों के सामने इस समय संकट के घने काले-बादल छाए हुए हैं।
इसी तरह अपनी दैनिक कमाई पर ही निर्भर अन्य लोग भी बेबस ही हैं, इनमें सब्जियाँ उगाने वाले किसान, रेहड़ी लगाने वाले लोग या इसी तरह की छोटी नौकरी करने वाले भी शामिल हैं। इस बेहद संकट की घड़ी में भी फिर भी एक तबका है जिसके सामने संकट के बादल तो हैं लेकिन इतने घने नहीं हैं।
इस तरह के विशेषाधिकार प्राप्त लोगों के पास आज मौका है कमजोर तबके के लोगों के लिए ढाल बनने का। इस तरह के लोग अगर बड़ी तादाद में मदद के लिए निकल कर सामने आते हैं तो जब तक हालात सामान्य नहीं हो जाते तब तक कमजोर तबके के लोगों के लिए यह बड़ी राहत साबित होगी।
हालांकि इस दौरान ऐसा नहीं है कि लोग सामने नहीं आ रहे हैं या सरकारें प्रयास नहीं कर रही हैं, लेकिन हम इस बात से मुकर नहीं सकते कि देश में आर्थिक असमानता कितनी अधिक है और संसाधन कितने सीमित। यदि सक्षम लोग बड़ी तादाद में मदद करने को आगे बढ़ते हैं तो सरकार का काम आसान हो जाएगा और इस महामारी के बाद आने वाले समय में हम इस देश के कमजोर तबके को एक बार फिर से खड़ा होता देख पाएंगे।
देश में सिर्फ एक प्रतिशत लोगों के पास देश की 70 प्रतिशत जनसंख्या से अधिक धन है, यह असमानता तब और अधिक घातक हो जाती है जब भारत जैसे विशाल देश में स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी बुनियादी जरूरतों के लिए केंद्र सरकार भी अधिक धन आवंटित नहीं कर पाती हैं।
आने वाले कुछ महीने या यूं कहें एक साल दुनिया की अर्थव्यवस्था को हिला देने वाला साबित होने वाला है, ऐसे में बड़ी तादाद में नौकरियों पर संकट की सुई लटक रही है, लोगों के पास काम का अभाव आने वाला है। इसी के साथ बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए सरकार को परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।
देश में फिलहाल कोरोना वायरस संक्रमण के मामलों में कोई कमकी होती नज़र नहीं आ रही हैं। हर दिन औसतन 1 हज़ार मामले सामने आ रहे हैं, वहीं अभी तक 10 प्रतिशत से कुछ अधिक लोग इस वायरस से रिकवर हो पाये हैं। गोवा देश का एकलौता ऐसा राज्य है जहां कोरोना के सभी केस नेगेटिव हो चुके हैं, हालांकि राज्य में कोरोना वायरस के सिर्फ 7 मामले पाये गए थे, जबकि महाराष्ट्र जैसे राज्य के हालात इस समय काफी चिंताजनक हैं।
महाराष्ट्र में कोरोना वायरस संक्रमण के कुल 40 सौ मामले पाये गए हैं, जिनमें सिर्फ मुंबई में 2268 मामले पाये गए हैं। महाराष्ट्र में अब तक 507 लोग इससे रिकवर हुए हैं। देश में कोरोना वायरस संक्रमण का आंकड़ा 17,357 पहुँच गया है, जबकि देश में अब तक कुल 2859 लोग इससे रिकवर हुए हैं।