लीला और मन्ना ने फैलाया कई दूर देशों तक उजाला
राजस्थान का एक छोटा सा कस्बा है तिलोनिया, जहां के एक कॉलेज में मन्ना और लीला जैसी करीब तीन दर्जन महिलाएं मास्टर ट्रेनर के रूप में न केवल खुद की जिंदगी में बल्कि गरीब विदेशी महिलाओं के जीवन में भी उजाला फैला रही हैं।
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लीला देवी
शिक्षा और साक्षरता की राह में एक सबसे बड़ी बाधा है बिजली। इस दिशा में सौर ऊर्जा के सहारे उत्तर प्रदेश और राजस्थान की महिलाओं की आश्चर्यजनक पहल ने उम्मीद की नई किरण जगाई है। इन महिलाओं की कोशिश उजाला फैलाने के साथ ही अच्छी कमाई का जरिया भी बन रही है। सौर ऊर्जा से रोजगार की रोशनी फैलाने वाली तिलोनिया (राजस्थान) की लीला देवी तो पूरी दुनिया को महिलाओं को अपने जीवन के अंधेरे से लड़ना सिखा रही हैं। मैनपुरी (उ.प्र.) का एक महिला स्वयं सहायता समूह ऐसा सोलर लैंप बनाने जा रहा है, जो रियायती दर पर स्कूलों में छात्र-छात्राओं को बेचा जाएगा।
इन सोलर लैंपों से जहां स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं की किस्मत चमकने वाली, वहीं छात्रों को रात में पढ़ने के लिए रोशनी का संसाधन मिल जाएगा। मैनपुरी की 23 पंचायतों में इन महिलाओं द्वारा सोलन लैंप बनाने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। ये लैंप कक्षा एक से 12 तक के छात्रों को उनकी कक्षा में ही उपलब्ध कराए जाएंगे। इसके लिए उन्हें महज 100 रुपये खर्च करने होंगे। इस महिला स्वयं सहायता समूह का चालीस हजार सोलर लैंप बनाने का लक्ष्य है।
इसी तरह कानपुर के राजकीय पॉलिटेक्निक कॉलेज में मैकेनिकल प्रोडक्शन ब्रांच के छात्र शुभम पांडेय ने दिव्यांगों के लिए एक ऐसा व्हील चेयर तैयार किया है, जो सौर ऊर्जा के सहारे चलेगा। खास बात है कि यह व्हील चेयर अन्य किसी भी इलेक्ट्रिॉनिक व्हील चेयर से पचास प्रतिशत सस्ता भी है। शुभम को इस आविष्कार की प्रेरणा टीवी पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाषण सुनने से मिली। उनके व्हील चेयर में सोलर सिस्टम लगा है, ताकि
बिजली न होने पर धूप से चार्ज हो सके। शुभम मूलत: संत कबीरनगर (उ.प्र.) के निवासी हैं।
यह चौंकाने वाली बात हो सकती है कि जयपुर से 90 किलोमीटर दूर किशनगढ़ के पास स्थित तिलोनिया गांव में एक ऐसा कॉलेज है जहां स्कूल का मुंह नहीं देखने वाली दर्जनों ग्रामीण महिलाएं विदेशों से आई महिलाओं को सोलर पैनल बनाने के गुर सिखा रही हैं। बेयरफुट कॉलेज तिलोनिया में मन्ना और लीला देवी तो विदेशों में जाकर भी महिलाओं को ट्रेनिंग दे चुकी हैं। सोलर पैनल बनाने की ट्रेनिंग लेने वाली महिलाएं ऐसे देशों के दूरस्थ गांवों से हैं, जो अब तक सामाजिक रुप से काफी पिछड़े हुए हैं। उन गांवों में अब तक बिजली नहीं पहुंची है।
मन्ना और लीला जैसी इस कॉलेज में करीब 35 ऐसी महिलाएं है जो मास्टर ट्रेनर बनकर न केवल खुद की जिंदगी में बल्कि सामाजिक रुप से पिछड़ी इन विदेशी महिलाओं के जीवन में भी उजाला ला रही है। राजस्थान का एक छोटा सा कस्बा है तिलोनिया, जहां अफ्रीकी देशों की उन गरीब महिलाओं को सोलर टेक्नीशियन बनने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है, जिनके इलाके विद्युत कटौती से जूझते रहते हैं।
उन्हें प्रशिक्षण देने वाली उनकी जैसी ही महिलाओं में एक हैं मामूली पढ़ी-लिखी लीला देवी, जो लगभग डेढ़ दशक से अधिक समय से जो दुनिया के लगभग नब्बे मुल्कों के लोगों को सोलर लैंप बनाने के साथ ही उनका रखरखाव, मरम्मत करना भी सिखा चुकी हैं। लीला देवी पहले सिलाई कढ़ाई करती थीं। उन्ही दिनो उन्हें सोलर लैंप बनाने का हुनर आ गया। लीला देवी बताती हैं कि सप्लाई से मिलने वाली बिजली भले चली जाए लेकिन सौर ऊर्जा का इस्तेमाल अपने हाथ में होता है। सोलर लैम्प से बिजली बिल देने से भी बचाव हो जाता है। गरीब इलाकों के लिए तो सौर ऊर्जा किसी चमत्कार से कम नहीं।
यहां से ट्रेनिंग लेने वाली महिलाएं अपने देश में जाकर स्वयं सोलर लैम्प बनाकर बेचती हैं, जिससे उनकी अच्छी कमाई हो रही है। वे गांवों में घूम-घूमकर सोलर ऊर्जा वाले उपकरणों को बेच कर अपनी जीविका चला रही हैं। एक सूचना के मुताबिक ये प्रशिक्षित तीन हजार से अधिक महिलाएं अब तक दो लाख से अधिक सोलर लैम्प सेल कर चुकी हैं।
गौरतलब है कि बिजली की समस्या को लेकर बिहार और उत्तर प्रदेश सरकारें भी छात्रों को अनुदानित दर पर सोलर लैंप उपलब्ध करा रही हैं। भारत सरकार ने सत्तर लाख सौर ऊर्जा आयोजनों के माध्यम से देश के उन क्षेत्रों में यह कार्यक्रम चला रखा है, जहां पर बिजली का कनेक्शन नहीं है या कनेक्शन होने के बावजूद कटौती होती रहती है, जिससे छात्र केरोसिन लैंप या दीपक के उजाले में पढ़ने को मजबूर हैं।
सौर ऊर्जा लैंप केरोसिन लैंप या दीपक से छात्रों की आंखों, फेफड़ों को होने वाले नुकसान से बचाता है। ये सौर ऊर्जा लैंप सात सौ रुपए में तैयार कर अनुदानित दर मात्र सौ रुपये में दिए जा रहे हैं। ये लैंप मुख्यतः राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन से जुड़ी महिलाएं तैयार कर के बेच रही हैं। ये महिलाएं भारत सरकार के ऊर्जा मंत्रालय के सहयोग से प्रशिक्षण लेने के बाद सौलर लैम्प बना रही हैं। ये लैंप मुख्यतः कक्षा एक से बारहवीं तक के छात्रों को वितरित किए जा रहे हैं।
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