24 साल बाद गैर-गांधी हाथ में कांग्रेस की कमान, मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के नए अध्यक्ष
करीब 24 साल बाद कांग्रेस पार्टी की कमान गैर-गांधी परिवार के हाथ में आई है. 17 अक्टूबर को कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव में मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस पार्टी के नए अध्यक्ष चुने गए हैं.
छात्र राजनीति से शुरुआत करने वाले खड़गे के लिए राजनीति नई चीज़ नहीं है. खड्गे कर्नाटक बीदर जिले के वारावत्ती गांव के महादलित समुदाय से आते हैं. कर्नाटक के गुलबर्गा के सरकारी कॉलेज से स्नातक की पढाई की और गुलबर्गा के ही सेठ शंकरलाल लाहोटी लॉ कॉलेज से एलएलबी करने के बाद वकालत किया.
मल्लिकार्जुन खड़गे के पास लंबा संगठनात्मक और प्रशासनिक अनुभव है. खड्गे ने एक लंबी पारी यूनियन पॉलिटक्स की भी खेली है. साल 1969 में वह एमएसके मिल्स एम्प्लॉयीज यूनियन के कानूनी सलाहकार थे. वह संयुक्त मजदूर संघ के एक प्रभावशाली नेता थे, जिन्होंने मजदूरों के अधिकारों के लिए किए गए कई आंदोलनों का नेतृत्व किया.
साल 1969 में ही उन्होंने कांग्रेस का हाथ थामा और 1972 में पहली बार कर्नाटक की गुर्मत्कल (Gurumitkal) असेंबली सीट से विधायक बने. और इस सीट से नौ बार विधायक चुने जा चुके हैं. 2009 में खड़गे पहली बार गुलबर्गा से ही सांसद चुने गए. इसी इसके बाद इस सीट से वे दोबारा सांसद बने. मनमोहन सिंह के कार्यकाल में भारत सरकार में रेलवे के पूर्व मंत्री भी रह चुके हैं.
क़ानून और प्रशासन की गतिशीलता के अच्छे ज्ञाता, किताब पढने में रूचि रखने वाले खड्गे की राजनीति में लम्बा अनुभव और एक स्वच्छ सार्वजनिक छवि उन्हें कांग्रेस में अग्रणी दक्षिण भारतीय चेहरा बनाता है.
बता दें, कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव में दो नेता मैदान में उतरे थे- मल्लिकार्जुन खड़गे और शशि थरूर. शशि थरूर ने साल 2009 में कांग्रेस का दामन थामा था और तब से लगातार चुनाव जीत रहे हैं और तीसरी बार सांसद है. पार्टी अध्यक्ष के इस चुनाव में 96 फीसदी तक वोटिंग होने का दावा किया गया था जिसमें कांग्रेस के क़रीब 9 हजार से ज्यादा प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया था. मतदान में मल्लिकार्जुन खड़गे को 7,897, जबकि शशि थरूर को 1,072 वोट मिले हैं.
खड्गे को उनकी जीत पर बधाई देते हुए शशि थरूर ने कहा, 'कांग्रेस का अध्यक्ष बनना बड़े सम्मान, बड़ी जिम्मेदारी की बात है, मैं मल्लिकार्जुन खरगे को इस चुनाव में उनकी सफलता के लिए बधाई देता हूं. अंतिम फैसला खरगे के पक्ष में रहा, कांग्रेस चुनाव में उनकी जीत के लिए मैं उन्हें हार्दिक बधाई देना चाहता हूं.'
'ज़िंदा कौम 5 साल तक इंतजार नहीं करती' का मंत्र देने वाले लोहिया कैसे बने गैर-कांग्रेसवाद के प्रतीक?